पारादीप बंदरगाह
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विवरण | 'पारादीप' गहरे पानी वाला बंदरगाह है, जो बंगाल की खाड़ी और महानदी के मिलन स्थल पर ही स्थित है। |
देश | भारत |
स्थान | पारादीप, उड़ीसा |
संचालन | पारादीप पोर्ट ट्रस्ट |
उद्घाटन | 12 मार्च 1966 |
स्वामित्व | भारत सरकार |
क्षमता | 80,000 टन वाले जहाज़ ठहर सकते हैं। |
पोताश्रय गहराई | 15 मीटर |
निर्यात | थर्मल कोल और लोहा आदि। |
अन्य जानकारी | पारादीप बंदरगाह का विकास मुख्यत: उड़ीसा से जापान को कच्चा लोहा निर्यात करने के लिए किया गया है। यहां प्रथम चरण में एक समय में दो बड़े टैंकर या जहाज़ ठहर सकते हैं, किंतु बाद में अधिक जहाज़ों की सुविधा के लिए और अधिक बर्थे विकसित की गये हैं। |
अद्यतन | 06:01, 1 दिसम्बर-2016 (IST) |
पारादीप बंदरगाह (अंग्रेज़ी: Paradip Port) को उड़ीसा राज्य का सबसे पहला बंदरगाह माना जाता है। यह बंदरगाह उड़ीसा के जगतसिंहपुर ज़िले में स्थित है। यह भारत के पूर्वी समुद्री किनारे पर स्थित सबसे बड़े समुद्र तटों में से एक है। पारादीप बंदरगाह 'पारादीप पोर्ट ट्रस्ट' द्वारा संचालित किया जाता है। यह बंदरगाह एक कृत्रिम हार्बर पर बनाया गया है। पारादीप गहरे पानी वाला बंदरगाह है, जो बंगाल की खाड़ी तथा महानदी के संगम पर स्थित है। इसका पोताश्रय 15 मीटर गहरा है।[1]
स्थिति
पारादीप गहरे पानी वाला बंदरगाह है, जो बंगाल की खाड़ी और महानदी के मिलन स्थल पर ही स्थित है। यहाँ जहाज़ मानव निर्मित लैगून के माध्यम से लाभ पाते हैं। 'पारादीप पोर्ट ट्रस्ट' भारत सरकार के स्वामित्व में है। यह बंदरगाह राघवेन्द्र के द्वारा स्थापित किया गया था।
सुविधाएं
पारादीप बंदरगाह का विकास उड़ीसा के तट पर (बंगाल की खाड़ी में) सभी मौसमों में व्यापार करने के लिए किया गया है। यहां 80,000 टन वाले जहाज़ ठहर सकते हैं। इस बंदरगाह के 4 वर्ग मील क्षेत्र में भवन, आदि का निर्माण किया गया हैं। सम्पूर्ण क्षेत्र पहले दलदली था, किंतु अब इन दलदलों को सुखा कर लैगून, बंदरगाह, जहाज़ों के मुड़ने के लिए स्थान, खनिज तथा समान के लिए दो बर्थ, लैगून तक पहुंचने के लिए एक 15 मीटर गहरी जलधारा तथा खनिज चढ़ाने के लिए विशेष जेट्टी का निर्माण किया गया है। जलतोड़ दीवार बंदरगाह में आने वाले जहाज़ों को तूफान से संरक्षण देती है। तटीय रेत से बचाव के लिए जहाज़ मुड़ने के स्थान के दोनों किनारों पर ग्रेनाइट के पत्थर जड़े गये हैं। प्रत्येक वर्ष 55 लाख टन से अधिक कार्गो के निपटान की क्षमता इस बंदरगाह में है। एक दिलचस्प बात यह है कि यह बंदरगाह एक कृत्रिम हार्बर पर बनाया गया है। 43 फीट के एक न्यूनतम ड्राफ्ट के साथ 14-बर्थ बंदरगाह में 70,000 डीडब्ल्यूटी के जहाज़ों को धारण करने की अद्भुत क्षमता है। इन सभी के लिए योजनाएँ बनाई जा रही हैं। पारादीप बंदरगाह का विकास मुख्यत: उड़ीसा से जापान को कच्चा लोहा निर्यात करने के लिए किया गया है। यहां प्रथम चरण में एक समय में दो बड़े टैंकर या जहाज़ ठहर सकते हैं, किंतु बाद में अधिक जहाज़ों की सुविधा के लिए और अधिक बर्थे विकसित की गये हैं।[2]
पृष्ठदेश
पारादीप बंदरगाह को धनी पृष्ठदेश से जोड़ने के लिए 145 किलोमीटर लम्बा द्रुतगामी राजमार्ग बनाया गया है। इसे क्योंझर ज़िले से होकर लौह की विकसित खानों (जादा और बारबिल) तक बढ़ाया गया है।
आयात एवं निर्यात
पारादीप बंदरगाह से पारागमित होने वाला प्रमुख सामान (माल) थर्मल कोल और लोहा है। इस बंदरगाह में निर्यात मुख्य रूप से कच्चे लोहे का किया जाता है। पारादीप का पोर्ट क्षेत्र इस्पात, संयंत्रों, एल्यूमिना रिफाइनरी, एक पेट्रोकेमिकल परिसर, ताप विद्युत संयंत्रों आदि के साथ-साथ अब एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र के रूप में विकसित होने जा रहा है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारत का भूगोल |लेखक: डॉ. चतुर्भुज मामोरिया |प्रकाशक: साहित्य भवन पब्लिकेशन्स, आगरा |पृष्ठ संख्या: 368 |
- ↑ पारादीप पोर्ट, पारादीप (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 07 जून, 2014।