फ़र्रुख़ जाफ़र (अंग्रेज़ी: Farukh Jaffer) भारतीय अभिनेत्री हैं। उन्होंने आकाशवाणी से अपने करियर की शुरुआत की। वह लखनऊ में विविध भारती की पहली महिला एनाउंसर थीं, इसके अलावा आकाशवाणी की उर्दू सेवा के बनने के समय वह संस्थापक सदस्यों में से एक थीं।
परिचय
फ़र्रुख़ जाफ़र फ़िल्म की तरह ही आम ज़िंदगी में भी एक ज़मींदार ख़ानदान से आती हैं। जौनपुर में पैदा वह हुईं और 16-17 साल की उम्र में निकाह के बाद लखनऊ आ गईं। उनके पति सैयद मोहम्मद जाफ़र स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने बाद में काफ़ी समय तक पत्रकारिता की और फिर दो बार उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे। लखनऊ आने के बाद फ़र्रुख़ जाफ़र इसी तहज़ीब में रच-बस गईं और यहीं से उन्होंने हाईस्कूल, इंटरमीडिएट और फिर ग्रैजुएशन किया।[1]
कॅरियर
फ़र्रुख़ जाफ़र ने आकाशवाणी से अपने करियर की शुरुआत की। वह लखनऊ में विविध भारती की पहली महिला एनाउंसर थीं, इसके अलावा आकाशवाणी की उर्दू सेवा के बनने के समय वह संस्थापक सदस्यों में से एक थीं। फ़र्रुख़ जाफ़र की बेटी और लेखिका मेहरू जाफ़र कहती हैं, "हमारे अब्बा की पोस्टिंग वॉशिंगटन पोस्ट के संवाददाता के तौर पर दिल्ली में हुई थी। तब हमारी मां दिल्ली में आकाशवाणी में एनाउंसर के तौर पर काम कर रही थीं।" लेकिन पारिवारिक कारणों से फ़र्रुख़ आकाशवाणी से इस्तीफ़ा देकर वापस लखनऊ आ गईं।
फ़िल्मी शुरुआत
फ़र्रुख़ जाफ़र को फ़िल्म गुलाबो-सिताबो से पहले सुलतान, सीक्रेट सुपरस्टार, स्वदेश, पीपली लाइव में देखा जा चुका है, लेकिन उनका फ़िल्मी करियर इससे भी बहुत पहले 80 के दशक में शुरू होता है। उसका क़िस्सा कुछ यूं है जो फ़र्रुख़ जाफ़र ने खुद बताया- "एक्टिंग में मेरा इंट्रेस्ट था लेकिन कभी हम कैमरे के आगे एक्टिंग करेंगे ऐसा सोचा नहीं था। हुआ यूं कि एक दावत में मैं अपने एक नौकर की नकल उतार रही थी तभी वहां मुज़फ़्फ़र अली भी मौजूद थे। वो उस समय उमराव जान बनाने की तैयारी कर रहे थे। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उनकी फ़िल्म में एक्टिंग करूंगी लेकिन मैंने कहा कि हमारे यहां औरतें फ़िल्में तक देखने नहीं जाती हैं और आप मुझसे एक्टिंग करने के लिए कह रहे हैं।" फिर उन्होंने एक्टिंग करने के लिए हामी कैसे भरी? इस सवाल पर वो कहती हैं कि उनके पति बेहद खुले विचारों के थे, उन्होंने किसी चीज़ के लिए उन्हें रोका नहीं।
वह बताती हैं कि कुछ लोगों को आपत्ति थी लेकिन उनके पति को कोई आपत्ति नहीं थी, इस वजह से वह एक्टिंग कर पाई। इसके बाद फ़र्रुख़ ने उमराव जान में रेखा की मां का किरदार निभाया और फिर मुज़फ़्फ़र अली के कुछ और सीरियल्स में काम किया। इसके बाद वह फ़िल्मों में रोल करती रहीं लेकिन हमेशा उनका किरदार या तो बेहद छोटा होता या फिर पोस्ट प्रोडक्शन में काट दिया जाता।
अमिताभ के साथ कार्य
2004 में आई स्वदेश फ़िल्म में उन्होंने शाहरुख़ ख़ान के साथ काम किया लेकिन उन्हें असली पहचान 2010 में आई पीपली लाइव फ़िल्म से मिली। पीपली लाइव के बाद उनके पास काफ़ी फ़िल्मों के ऑफ़र आने लगे। फ़र्रुख़ जाफ़र कहती हैं कि अमिताभ बच्चन उनके पसंदीदा अभिनेता रहे हैं और उनकी 'सिलसिला' फ़िल्म उन्हें बेहद पसंद है। अमिताभ बच्चन के साथ शूटिंग के अनुभवों पर वो कहती हैं, "मैं अमिताभ बच्चन के आगे बिलकुल भी नर्वस नहीं हुई। वो मुझसे बड़े मोहज़्ज़ब (सभ्य) तरीक़े से सलाम करते थे। लेकिन वो अपना रोल निभाकर चले जाते थे इसलिए ज़्यादा उनसे बातचीत नहीं हुई।"
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ फ़र्रुख़ जाफ़र: 'गुलाबो-सिताबो' की फ़त्तो बेगम को जानते हैं आप? (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 19 जून, 2020।
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