बेसिलिका ऑफ़ बोम जीसस
बेसिलिका ऑफ़ बोम जीसस
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विवरण | बेसिलिका ऑफ़ बोम जीसस, भारत के कुछ महान् गिरजाघरों में से सबसे अधिक लोकप्रिय और सबसे अधिक सम्मानित चर्च है, जिन्हें दुनिया भर के ईसाई मानते हैं। |
राज्य | गोवा |
निर्माण काल | 1605 ई. |
मार्ग स्थिति | पणजी से पूर्व दिशा में 10 किलोमीटर की दूरी पर मांडवी नदी के साथ पुराना गोवा कस्बा में स्थित है। |
प्रसिद्धि | यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल सूची में शामिल है। |
गूगल मानचित्र | |
संबंधित लेख | गोवा के गिरजाघर, संत फ़्रांसिस आसिसी गिरजाघर, सेंट केथेड्रल |
बोम जीसस का अर्थ | शिशु जीसस या अच्छा जीसस |
वास्तुकला | इसकी रूपरेखा में सरल मानकों का उपयोग किया गया है जबकि इसके विस्तार और सज्जा में अतुलनीय बारोक कला झलकती है। |
अन्य जानकारी | बेसिलिका में सेंट फ्रेंसिस जेवियर के पवित्र अवशेष रखे हैं जो गोवा के संरक्षक संत थे और उनकी मृत्यु 1552 में हुई थी। |
बेसिलिका ऑफ़ बोम जीसस (अंग्रेज़ी:Basilica of Bom Jesus) गोवा में स्थित एक प्रसिद्ध चर्च (गिरजाघर) है जो अब यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल सूची में शामिल है। पणजी से पूर्व दिशा में 10 किलोमीटर की दूरी पर मांडवी नदी के साथ पुराना गोवा कस्बा बसा हुआ है, जहां भारत के कुछ महान् गिरजाघर हैं और इनमें सबसे अधिक लोकप्रिय और सबसे अधिक सम्मानित चर्च हैं, जिन्हें दुनिया भर के ईसाई मानते हैं और यह है बेसिलिका ऑफ़ बोम जीसस। शिशु जीसस को समर्पित बेसिलिका को अब वैश्विक विरासत स्मारक घोषित किया गया है। बोम जीसस का अर्थ है शिशु जीसस या अच्छा जीसस।
इतिहास
बेसिलिका में सेंट फ्रेंसिस जेवियर के पवित्र अवशेष रखे हैं जो गोवा के संरक्षक संत थे और उनकी मृत्यु 1552 में हुई थी। संत के नश्वर अवशेष कोसिमो डी मेडिसी III (तृतीय) द्वारा चर्च को उपहार दिए गए, जो ट्यूस केनी के ग्रेंड ड्यू थे। अब यह शरीर कांच के बने हुए वायुरोधी कफ़न में रखा गया है जिसे सत्रहवीं शताब्दी के फ्लोरेंटाइम शिल्पकार, जीयोवानी बतिस्ता फोगिनी द्वारा चांदी के कास्केट में शिल्पकारी द्वारा रखा गया है। उनकी इच्छा के अनुसार उनके अंतिम अवशेष उनकी मृत्यु के वर्ष में गोवा लाए गए।
यह कहा जाता है कि यहां लाते समय संत का शरीर उतना ही ताजा तरीन था जितना कि इसे कफ़न में रखते समय पाया गया था। यह अद्भुत चमत्कारी घटना दुनिया के हर कोने से लोगों को आने के लिए आकर्षित करती और उनके शरीर के दर्शन प्रत्येक दशक में एक बार कराए जाते हैं जब धार्मिक यात्री आ कर इसे देख सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस संत के पास घाव भरने की चमत्कारी शक्ति थी, दुनिया भर से लोग आकर यहां प्रार्थना करते हैं। चांदी का कास्केट लोगों को दिखाने के लिए केवल एक बार नीचे लाया जाता है, अंतिम बार इसे 2004 में दिखाया गया था।[1]
वास्तुकला
कैथोलिक दुनिया में अच्छी तरह से प्रतिष्ठित सोलवीं शताब्दी के कैथेरल भारत के प्रथम अल्प वयस्क बेसिलिका हैं और इन्हें भारत में बारोक वास्तुकला का एक सर्वोत्तम उदाहरण माना जाता है। इसकी रूपरेखा में सरल पुनर्जीवन मानक दर्शाए गए हैं जबकि इसका विस्तार और सजावट अतुलनीय बारोक है। यह सुंदर संरचना, जिसमें सफ़ेद संगमरमर लगाया गया है और जिसे भित्ति चित्रों और अंदरुनी शिल्प कला से सजाया गया है। बारीकी से शिल्पकारी द्वारा बनाए गए बेसॉल्ट के नमूने इसे गोवा में सबसे समृद्ध मुख द्वार बनाते हैं। इसकी रूपरेखा में सरल मानकों का उपयोग किया गया है जबकि इसके विस्तार और सज्जा में अतुलनीय बारोक कला झलकती है। संत जेवियर का मकबरा इटालियन कला (संगमरमर का आधार) और हिन्दू शिल्पकारी (चांदी का कास्केट) का अद्भुत मिश्रण है। विस्तारपूर्वक बनाए गए अल्तार लकड़ी, पत्थर, स्वर्ण और ग्रेनाइट में शिल्पकला और पच्चीकारी का सुंदर उदाहरण है। इसके खम्भों पर संगमरमर लगाया हुआ है और इनके अंदर कीमती पत्थर लगाए गए हैं। इस चर्च में संत फ्रेंसिस जेवियर के जीवन को दर्शाने वाले चित्र भी लगाए गए हैं। यहां आकर अतिथि गहरी आध्यात्मिकता और इस स्थान के जादू में डूब जाते हैं। हर वर्ष हज़ारों लोग इस केथेड्रल में आते हैं, विशेष रूप से दिसम्बर माह के दौरान। गोवा दर्शन का महत्व बेसिलिका को देखे बिना अधूरा रह जाता है।[1]
चित्र वीथिका
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बेसिलिका ऑफ़ बोम जीसस
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बेसिलिका ऑफ़ बोम जीसस
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 बेसिलिका ऑफ बोम जीसस (गोवा) (हिंदी) भारत की आधिकारिक वेबसाइट। अभिगमन तिथि: 30 दिसम्बर, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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