सांस्कृतिक वैशिष्ट्य
ब्राह्मण-ग्रन्थों की सर्वाधिक उपादेयता यज्ञ-संस्था के उद्भव और विकास को समझने की दृष्टि से है। यज्ञों के स्वरूप और सूक्ष्मातिसूक्ष्म कार्य-कलाप की कार्य-कारण-मीमांसा ब्राह्मणग्रन्थों की अपनी विशिष्ट उपलब्धि है। यज्ञ-संस्था वैदिक धर्म की धुरी है। शबरस्वामी ने याग के अनुष्ठाता को ही धार्मिक कहा है।[1] सम्पूर्ण वैदिक मन्त्रराशि (आम्नाय) को क्रियार्थक सिद्ध करने में ही ब्राह्मणग्रन्थों और पूर्वमीमांसा ने अपनी सार्थकता समझी है। एक दिन से लेकर सहस्रसंवत्सर-साध्य यागों के विस्तृत विधि-विधान की प्रस्तुति में, ब्राह्मणग्रन्थों के योगदान का पूर्ण आकलन दु:साध्य ही है। आज श्रौतयागों के सम्पादन का वातावरण भले ही न हो, किन्तु युगविशेष में उनके प्रचुर प्रचलन की उपेक्षा नहीं की जा सकतीं आज भी, विज्ञान की मान्यताओं के सन्दर्भ में उनकी उपादेयता को प्रबुद्ध वर्ग स्वीकार कर ही रहा है। कालान्तर, से यज्ञों के द्रव्यात्मक रूप में साथ ही स्वाध्याय और जप-यज्ञ की अवधारणाएँ सम्मिलित हो गईं। समय के परिवर्तन के साथ ही अनेक वैदिक यज्ञों में तान्त्रिक क्रियाओं का समावेश भी होता रहा। ब्राह्मणग्रन्थ इन सभी परिवर्तनों के साक्षी हैं।
गंगा, यमुना की अन्तर्वेदी और सरस्वती के तटों पर निवास करने वाले जन-समुदाय की सम्पूर्ण धार्मिक आस्थाओं की संचिकाएँ हैं ब्राह्मणग्रन्थ। धर्म का यज्ञ-यागात्मक स्वरूप आज सरस्वती की धारा के समान ही इंगितवेद्य हो चुका है। विद्वानों का विचार है कि भक्ति-आन्दोलन की प्रबलता ने भी व्ययसाध्य यज्ञों के सम्पादन के स्थान पर अन्य क्रियाओं को प्रोत्साहन दिया। धर्म के द्वितीय स्वरूप जिसका निर्माण स्वाध्याय, मन्त्र-जप, तीर्थ-दर्शन और व्रत-उपवासों से हुआ है, को भी ब्राह्मणग्रन्थों में अभिव्यक्ति मिली। गंगा की निर्मल धारा के समान धर्म का यह रूप आज भी जनमानस का सबसे बड़ा सम्बल है। धर्म के तृतीय रूप में टोने-टोटके, अभिचार-कृत्य और झाड़-फूँक आते हैं। यह समाज के सामान्यवर्ग में अत्यन्त प्राचीन काल से ही प्रचलित रहा है। यमुना की नील-शबल जलराशि से इसकी समानता प्रतीत होती है। अथर्ववेद के अनन्तर सामविधान और षडविंश ब्राह्मण प्रभृति ब्राह्मण-ग्रन्थों ने इन धार्मिक आस्थाओं को भी ऋचाओं और सामों की उदात्तता से मण्डित करने की चेष्टा की। ब्राह्मण-ग्रन्थों में विद्यमान इस त्रिविध स्वरूप का ही उपबृंहण कालान्तर से स्मृतियों तथा इतिहास और पुराणसाहित्य में हुआ। प्राचीन भारतीय इतिहास, भूगोल और आचार-व्यवहार की दृष्टि से भी ब्राह्मण-ग्रन्थों की उपादेयता असन्दिग्ध है। महर्षि यास्क ने 'निरुक्त' में जिस 'धात्वर्थवाद' का पल्लवन किया, उसका बीजारोपण ब्राह्मणों में ही हो चुका था।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यो हि यागमनुतिष्ठति तं धार्मिक इति समाचक्षते। यश्च यस्य कर्ता, स तेन व्यपदिश्यते, यथा पाचको लावक इति। तेन य: पुरुषो नि:श्रेयसेन संयुनक्ति, से धर्मशब्देन उच्यते। न केवलं लोके, वेदेऽपि 'यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् (ऋग्वेद 10.90.16) इति यजतिशब्दवाच्यमेव धर्मं समामनन्ति- जैमनीय मीमांसासूत्र 1.1.1. पर शाबरभाष्य।
संबंधित लेख
ब्राह्मण साहित्य |
---|
| ब्राह्मण साहित्य | | | ॠग्वेदीय ब्राह्मण | | | शुक्ल-कृष्ण यजुर्वेदीय | | | सामवेदीय ब्राह्मण | | | अथर्ववेदीय ब्राह्मण | |
|
श्रुतियाँ
उपवेद और वेदांग |
---|
| उपवेद |
|
कामन्दक सूत्र · कौटिल्य अर्थशास्त्र · चाणक्य सूत्र · नीतिवाक्यमृतसूत्र · बृहस्पतेय अर्थाधिकारकम् · शुक्रनीति | | |
मुक्ति कल्पतरू · वृद्ध शारंगधर · वैशम्पायन नीति-प्रकाशिका · समरांगण सूत्रधार · अध्वर्यु | | | | | |
अग्निग्रहसूत्रराज · अश्विनीकुमार संहिता · अष्टांगहृदय · इन्द्रसूत्र · चरक संहिता · जाबालिसूत्र · दाल्भ्य सूत्र · देवल सूत्र · धन्वन्तरि सूत्र · धातुवेद · ब्रह्मन संहिता · भेल संहिता · मानसूत्र · शब्द कौतूहल · सुश्रुत संहिता · सूप सूत्र · सौवारि सूत्र |
| | वेदांग |
कल्प | | | शिक्षा |
गौतमी शिक्षा (सामवेद) · नारदीय शिक्षा· पाणिनीय शिक्षा (ऋग्वेद) · बाह्य शिक्षा (कृष्ण यजुर्वेद) · माण्ड्की शिक्षा (अथर्ववेद) · याज्ञवल्क्य शिक्षा (शुक्ल यजुर्वेद) · लोमशीय शिक्षा | | व्याकरण |
कल्प व्याकरण · कामधेनु व्याकरण · पाणिनि व्याकरण · प्रकृति प्रकाश · प्रकृति व्याकरण · मुग्धबोध व्याकरण · शाक्टायन व्याकरण · सारस्वत व्याकरण · हेमचन्द्र व्याकरण | | निरुक्त्त |
मुक्ति कल्पतरू · वृद्ध शारंगधर · वैशम्पायन नीति-प्रकाशिका · समरांगण सूत्रधार | | छन्द |
गार्ग्यप्रोक्त उपनिदान सूत्र · छन्द मंजरी · छन्दसूत्र · छन्दोविचित छन्द सूत्र · छन्दोऽनुक्रमणी · छलापुध वृत्ति · जयदेव छन्द · जानाश्रमां छन्दोविचित · वृत्तरत्नाकर · वेंकटमाधव छन्दोऽनुक्रमणी · श्रुतवेक | | ज्योतिष |
आर्यभटीय ज्योतिष · नारदीय ज्योतिष · पराशर ज्योतिष · ब्रह्मगुप्त ज्योतिष · भास्कराचार्य ज्योतिष · वराहमिहिर ज्योतिष · वासिष्ठ ज्योतिष · वेदांग ज्योतिष |
|
|
उपनिषद | | ॠग्वेदीय उपनिषद | | | यजुर्वेदीय उपनिषद |
शुक्ल यजुर्वेदीय | | | कृष्ण यजुर्वेदीय | |
| | सामवेदीय उपनिषद | | | अथर्ववेदीय उपनिषद | | | | | ॠग्वेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ | | | यजुर्वेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ |
शुक्ल यजुर्वेदीय | | | कृष्ण यजुर्वेदीय | |
| | सामवेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ | | | अथर्ववेदीय ब्राह्मण ग्रन्थ | | |
सूत्र-ग्रन्थ | | ॠग्वेदीय सूत्र-ग्रन्थ | | | यजुर्वेदीय सूत्र-ग्रन्थ |
शुक्ल यजुर्वेदीय | | | कृष्ण यजुर्वेदीय | |
| | सामवेदीय सूत्र-ग्रन्थ |
मसकसूत्र · लाट्यायन सूत्र · खदिर श्रौतसूत्र · जैमिनीय गृह्यसूत्र · गोभिल गृह्यसूत्र · खदिर गृह्यसूत्र · गौतम धर्मसूत्र · द्राह्यायण गृह्यसूत्र · द्राह्यायण धर्मसूत्र | | अथर्ववेदीय सूत्र-ग्रन्थ | |
|
शाखा | | शाखा |
शाकल ॠग्वेदीय शाखा · काण्व शुक्ल यजुर्वेदीय · माध्यन्दिन शुक्ल यजुर्वेदीय · तैत्तिरीय कृष्ण यजुर्वेदीय · मैत्रायणी कृष्ण यजुर्वेदीय · कठ कृष्ण यजुर्वेदीय · कपिष्ठल कृष्ण यजुर्वेदीय · श्वेताश्वतर कृष्ण यजुर्वेदीय · कौथुमी सामवेदीय शाखा · जैमिनीय सामवेदीय शाखा · राणायनीय सामवेदीय शाखा · पैप्पलाद अथर्ववेदीय शाखा · शौनकीय अथर्ववेदीय शाखा | | मन्त्र-संहिता |
ॠग्वेद मन्त्र-संहिता · शुक्ल यजुर्वेद मन्त्र- संहिता · सामवेद मन्त्र-संहिता · अथर्ववेद मन्त्र-संहिता | | आरण्यक | | |
प्रातिसाख्य एवं अनुक्रमणिका | | ॠग्वेदीय प्रातिसाख्य |
शांखायन प्रातिशाख्य · बृहद प्रातिशाख्य · आर्षानुक्रमणिका · आश्वलायन प्रातिशाख्य · छन्दोनुक्रमणिका · ऋग्प्रातिशाख्य · देवतानुक्रमणिका · सर्वानुक्रमणिका · अनुवाकानुक्रमणिका · बृहद्वातानुक्रमणिका · ऋग् विज्ञान | | यजुर्वेदीय प्रातिसाख्य |
शुक्ल यजुर्वेदीय |
कात्यायन शुल्वसूत्र · कात्यायनुक्रमणिका · वाजसनेयि प्रातिशाख्य | | कृष्ण यजुर्वेदीय |
तैत्तिरीय प्रातिशाख्य |
| | सामवेदीय प्रातिसाख्य |
शौनकीया चतुर्ध्यापिका |
|
|
स्मृति साहित्य |
---|
| स्मृतिग्रन्थ | | | पुराण | | | महाकाव्य | | | दर्शन | | | निबन्ध |
जीमूतवाहन कृत : दयाभाग · कालविवेक · व्यवहार मातृका · अनिरुद्ध कृत : पितृदायिता · हारलता · बल्लालसेन कृत :आचारसागर · प्रतिष्ठासागर · अद्भुतसागर · श्रीधर उपाध्याय कृत : कालमाधव · दत्तकमीमांसा · पराशरमाधव · गोत्र-प्रवर निर्णय · मुहूर्तमाधव · स्मृतिसंग्रह · व्रात्यस्तोम-पद्धति · नन्दपण्डित कृत : श्राद्ध-कल्पलता · शुद्धि-चन्द्रिका · तत्त्वमुक्तावली · दत्तक मीमांसा · · नारायणभटट कृत : त्रिस्थली-सेतु · अन्त्येष्टि-पद्धति · प्रयोग रत्नाकर · कमलाकर भट्ट कृत: निर्णयसिन्धु · शूद्रकमलाकर · दानकमलाकर · पूर्तकमलाकर · वेदरत्न · प्रायश्चित्तरत्न · विवाद ताण्डव · काशीनाथ उपाध्याय कृत : धर्मसिन्धु · निर्णयामृत · पुरुषार्थ-चिन्तामणि · शूलपाणि कृत : स्मृति-विवेक (अपूर्ण) · रघुनन्दन कृत : स्मृति-तत्त्व · चण्डेश्वर कृत : स्मृति-रत्नाकर · वाचस्पति मिश्र : विवाद-चिन्तामणि · देवण भटट कृत : स्मृति-चन्द्रिका · हेमाद्रि कृत : चतुर्वर्ग-चिन्तामणि · नीलकण्डभटट कृत : भगवन्त भास्कर · मित्रमिश्र कृत: वीर-मित्रोदय · लक्ष्मीधर कृत : कृत्य-कल्पतरु · जगन्नाथ तर्कपंचानन कृत : विवादार्णव | | आगम |
वैष्णवागम |
अहिर्बुध्न्य-संहिता · ईश्वर-संहिता · कपिलाजंलि-संहिता · जयाख्य-संहिता · पद्मतंत्र-संहिता · पाराशर-संहिता · बृहद्ब्रह्म-संहिता · भरद्वाज-संहिता · लक्ष्मी-संहिता · विष्णुतिलक-संहिता · विष्णु-संहिता · श्रीप्रश्न-संहिता · सात्त्वत-संहिता | | शैवागम |
तत्त्वत्रय · तत्त्वप्रकाशिका · तत्त्वसंग्रह · तात्पर्य संग्रह · नरेश्वर परीक्षा · नादकारिका · परमोक्ष-निराशकारिका · पाशुपत सूत्र · भोगकारिका · मोक्षकारिका · रत्नत्रय · श्रुतिसूक्तिमाला · सूत-संहिता | | शाक्तागम |
वामागम |
अद्वैतभावोपनिषद · अरुणोपनिषद · कालिकोपनिषद · कौलोपनिषद · तारोपनिषद · त्रिपुरोपनिषद · ब्रहिचोपनिषद · भावनोपनिषद | | मिश्रमार्ग |
कलानिधि · कुलार्णव · कुलेश्वरी · चन्द्रक · ज्योत्स्रावती · दुर्वासस · बार्हस्पत्य · भुवनेश्वरी | | समयाचार |
वसिष्ठसंहिता · शुक्रसंहिता · सनकसंहिता · सनत्कुमारसंहिता · सनन्दनसंहिता | | तान्त्रिक साधना |
कालीविलास · कुलार्णव · कूल-चूड़ामणि · ज्ञानार्णव · तन्त्रराज · त्रिपुरा-रहस्य · दक्षिणामूर्ति-संहिता · नामकेश्वर · प्रपंचसार · मन्त्र-महार्णव · महानिर्वाण · रुद्रयामल · शक्तिसंगम-तन्त्र · शारदा-तिलक |
|
|
|