भारतीय संस्कृति में क्षेत्रीयता
भारत एक विशाल देश है। भारत की मुख्य भूमि चार खण्डों -
- विस्तृत हिमालय प्रदेश,
- सिन्धु और गंगा का मैदान,
- रेगिस्तानी क्षेत्र तथा
- दक्षिणी प्राय:द्वीप में बंटी हई है। इन्हें हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं-
विस्तृत हिमालय प्रदेश
इसे उत्तर पर्वतीय प्रदेश भी कहा जाता है। हिमालय पर्वत भारत के उत्तर में स्थित है। इस क्षेत्र में हिमालय की तीन लगभग समानान्तर श्रृंखलाएँ हैं, जिनके बीच बड़े-बड़े पठार और घाटियाँ हैं, जिनमें कश्मीर और कुल्लू जैसी कुछ घाटियाँ उपजाऊ, विस्तृत और प्राकृतिक सौंदर्य से सम्पन्न है। इस पर्वतीय क्षेत्र में कश्मीर, टिहरी, कुमाऊँ, नेपाल, सिक्किम तथा भूटान के प्रदेश सम्मिलित किए जाते हैं। यह पर्वतीय दीवार 240 से 320 किमी. तक चौड़ी है और लगभग 2,400 किमी. की दूरी तक फैली हुई हैं। पूर्व में भारत और म्यांमार तथा भारत और बंगला देश के बीच की पहाड़ी श्रृंखलाओं की ऊँचाई बहुत कम है।
सिन्धु और गंगा का मैदान
यह वह क्षेत्र है, जिसमें सिन्धु, गंगा व ब्रह्मपुत्र नदियाँ बहती हैं, अथवा इनकी सहायक नदियों द्वारा सिंचाई होती है। उत्तर प्रदेश, दिल्ली व पंजाब आदि क्षेत्रों को इसमें सम्मिलित किया है। यह भी 2,400 किमी. लम्बा और 240 से 320 किमी. चौड़ा मैदान है।
रेगिस्तानी क्षेत्र
इस क्षेत्र में राजस्थान तथा अरावली पर्वत - श्रेणियों को सम्मिलित किया जाता है तथा इसका अधिकांश भाग रेगिस्तानी है। इस क्षेत्र को विशाल रेगिस्तान और लघु रेगिस्तान में भी विभाजित किया जाता है। विशाल रेगिस्तान ‘कच्छ के रन’ के पास से उत्तर की ओर लूणी नदी तक फैला हुआ है। राजस्थान-सिन्ध की पूरी सीमा इसी रेगिस्तान के साथ-साथ है। लघु रेगिस्तान जैसलमेर और जोधपुर के बीच में लूणी नदी से आरम्भ होकर उत्तर की ओर फैला हुआ है।
दक्षिणी प्राय:द्वीप
यह क्षेत्र 460 से 1,220 मीटर की ऊँचाई के पर्वतीय खण्ड और पहाड़ियों की श्रृंखलाओं के कारण सिन्धु और गंगा के मैदानों से पृथक् हो जाता है। विन्ध्याचल पर्वत उत्तर और दक्षिण भारत को अलग करता है। नर्मदा, ताप्ती, महानदी, गोदावरी आदि नदियाँ इसी प्रदेश में बहती हैं। भारत के पश्चिम तथा पूर्व में समुद्र है। समुद्र के किनारे तथा मैदानों के बीच पहाड़ियाँ हैं। इन्हें पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट के नाम से भी जाना जाता है। इन प्रदेशों में मौसम अच्छा और भूमि उपजाऊ है।
क्षेत्रीय विभाजन पर आधारित भिन्नताएँ
यदि हम भारतवर्ष को क्षेत्रीय विभाजन के आधार पर देखें, तो हमें निम्नलिखित प्रमुख भिन्नताएँ स्पष्ट दिखाई देती हैं-
- विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की जलवायु पाई जाती है। अत: यहाँ विभिन्न प्रकार की वनस्पति और रहन-सहन के तरीके देखने को मिलते हैं। पहाड़ों व रेगिस्तानों में विभिन्न रीति-रिवाज, खान-पान व संस्कृति पाई जाती है।
- क्षेत्रीय भिन्नता के कारण भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व समान नहीं है। गंगा-सिन्धु के मैदानों में जनसंख्या का घनत्व, पहाड़ी प्रदेशों व रेगिस्तानों की अपेक्षा काफ़ी अधिक है।
- विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न प्रकार के विश्वासों, रीति-रिवाजों इत्यादि का पाया जाना भी क्षेत्रीय भिन्नता का ही परिणाम है।
- विभिन्न क्षेत्रों में उनकी जलवायु व सुविधाओं के अनुकूल ही विभिन्न प्रकार के व्यवसाय पनपते हैं। पहाड़ों पर लकड़ी व जड़ी-बूटी का व्यवसाय, ऊनी व मोटे कपड़ों को धारण करना, मैदानों में यातायात की सुविधा के कारण विभिन्न प्रकार के व्यवहार करना, रेगिस्तान में खजूर उत्पन्न करना और हल्के कपड़े पहनना तथा समुद्री किनारों पर मछली पकड़ना आदि बातें क्षेत्रीय विभिन्नता के कारण ही हैं।
- क्षेत्रीय विभिन्नता ने भारत के लोगों के शारीरिक लक्षणों को भी प्रभावित किया है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कद, रंग तथा बनावट के लोगों का पाया जाना क्षेत्रीय भिन्नताओं का परिणाम ही है।
क्षेत्रीय विभिन्नताओं का प्रभाव
भारतीय संस्कृति को क्षेत्रीय विभिन्नताओं ने अनेक प्रकार से प्रभावित किया है। ऐसे प्रमुख प्रभाव निम्नांकित हैं-
सीमाओं की सुरक्षा
उत्तर व दक्षिण की सीमाओं पर पर्वत व समुद्र होने के कारण बहुत काल तक भारतीय सीमाओं की सुरक्षा बनी रही है। इन प्राकृतिक सीमाओं के कारण ही विदेशी लोगों ने बहुत काल तक भारत पर आक्रमण नहीं किया।
संस्कृति की रक्षा
विभिन्न क्षेत्रों में निवास करने वाले व्यक्ति विभिन्न रीति-रिवाजों का पालन करते हैं और अपनी-अपनी संस्कृति की रक्षा करते हैं। इस प्रकार भारतीय संस्कृति की रक्षा होती है।
संकीर्णता
विभिन्न क्षेत्रों में निवास करने वाले व्यक्ति विभिन्न रीति-रिवाजों का पालन करते हैं और इस प्रकार अपनी उपसंस्कृति की रक्षा करते हैं। क्षेत्रीय महत्त्व के कारण वे अन्य क्षेत्रीय लोगों के विचारों को सहन नहीं करते। इसीलिए भारत में स्थानीयता का प्रभुत्व हो गया और विचारों में संकीर्णता आ गई। आज भी यही संकीर्ण भावनाएँ क्षेत्रीयता अथवा प्रादेशिकता की संकीर्ण भावना के प्रसार के लिए पर्याप्त सीमा तक उत्तरदायी है।
सामाजिक समस्याएँ
क्षेत्रीय विभिन्नता के कारण भारत में संस्कृति, भाषा, धर्म, प्रदेश, क्षेत्र आदि के विषय को लेकर वाद-विवाद उठाए जाते हैं और देश को विभिन्न सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
सांस्कृतिक विघटन
भारत एक विशाल देश है, जिसमें अनेकों संस्कृतियों के लोग रहते हैं। ये लोग अपने-अपने क्षेत्र की उपसंस्कृति की ही रक्षा करते हैं। क्षेत्रीय भावना के कारण एक क्षेत्र के लोग इतने अन्धविश्वासी होते हैं कि दूसरी उपसंस्कृति में पाये जाने वाले गुणों की उपेक्षा करने में भी इनको किसी प्रकार का संकोच नहीं होता है।
निष्कर्ष
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत को प्रकृति ने एक दुर्ग के समान बनाया है। उत्तर में विशाल एवं अजेय हिमालय, दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा म्यांमार की पहाड़ियाँ एवं पश्चिम में अरब सागर इसकी सीमाओं के रक्षक हैं। चारों ओर से प्राकृतिक सीमाओं से घिरा हुआ देश भारत अपनी संस्कृति की रक्षा करने में सफल रहा है। आज के भारत में प्राचीनतम संस्कृति के अवशेष देखने को मिलते हैं। किन्तु विभिन्न प्रकार की जलवायु वाले विभिन्न क्षेत्रों के पाए जाने से यह देश विभिन्नताओं का एक संग्रहालय बन गया है। इन क्षेत्रीय विभिन्नताओं के कारण ही देश में राष्ट्रीयता की भावनाओं का विकास बहुत काल तक नहीं हुआ। आधुनिक समय में भी क्षेत्रीयता, भाषावाद, नदियों के जल के बंटवारे आदि समस्याओं ने भारत में प्रजातंत्र के विकास में बाधा पहुँचाई है व इससे राष्ट्र निर्बल हुआ है। आज इस बात की आवश्यकता है कि हम क्षेत्रीय हितों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हितों की पूर्ति हेतु अपने आप को समर्पित कर दें।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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