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भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति समानता के आधार पर दुनिया में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। यह विशाल जनशक्ति आधार, विविध प्राकृतिक संसाधनों और सशक्त वृहत अर्थव्यवस्था के मूलभूत तत्वों के कारण व्यवसाय और निवेश के अवसरों के सबसे अधिक आकर्षक गंतव्यों में से एक है। वर्ष 1991 में आरंभ की गई आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया से सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में फैले नीतिगत ढाँचे के उदारीकरण के माध्यम से एक निवेशक अनुकूल परिवेश मिलता रहा है। भारत को आज़ाद हुए 77 साल हो चुके हैं और इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा में ज़बरदस्त बदलाव आया है। औद्योगिक विकास ने अर्थव्यवस्था का रूप बदल दिया है। आज भारत की गिनती दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में होती है। विश्व की अर्थव्यवस्था को चलाने में भारत की भूमिका बढ़ती जा रही है। आईटी सॅक्टर में पूरी दुनिया भारत का लोहा मानती है।
वृद्धि और निष्पादन
दुनिया के बाज़ार में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि और निष्पादन को विभिन्न आर्थिक पैरामीटरों के जरिए प्रदान की गई सांख्यिकीय सूचना के संदर्भ में बताया गया है। उदाहरण के लिए सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी), सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), निवल राष्ट्रीय उत्पाद (एनएनपी), प्रतिव्यक्ति आय, सकल घरेलू पूंजी निर्माण (जीडीसीएफ) आदि अर्थव्यवस्था के राष्ट्रीय आय क्षेत्र से संबंधित विभिन्न सूचक हैं। ये मानवी इच्छाओं की संतुष्टि के लिए इसकी उत्पादकता सहित अर्थव्यवस्था का एक व्यापक परिदृश्य प्रदान करते हैं।
विकास दर
भारतीय रिज़र्व बैंक ने अप्रैल में अपनी वार्षिक नीति पर जारी बयान में भारत में वर्ष की विकास दर 7.5-8.0 फीसदी के बीच रहने की उम्मीद जताई है। 27 अक्तूबर 2006 को ख़त्म हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार क़रीब 167.092 अरब डॉलर तक पहुँच गया। सोने का भंडार 6.202 अरब डालर तक पहुँच गया है। कभी विदेशी संस्थानों से कर्ज़ लेने वाले भारत ने वर्ष 2003 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को कर्ज़ देने की घोषणा की। वर्ष में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 33.8 फीसदी की वृद्धि हुई। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने भी एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि अगले दो सालों तक भारत में आठ फीसदी की दर से विकास होता रहेगा। औद्योगिक क्षेत्र में आठ, सेवा क्षेत्र में 8.5 प्रतिशत की विकास दर रहेगी। भारत की अर्थव्यवस्था में उद्योग और सेवा क्षेत्र में सबसे ज़्यादा विकास हुआ है । वर्ष में दसवीं पंचवर्षीय योजना शुरू होने के बाद से इन दोनों क्षेत्रों में सालाना सात फीसदी या उससे ज़्यादा की दर से विकास हुआ है। भारतीय अर्थव्यवस्था के मज़बूत होने का एक और प्रमाण जानी-मानी अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार संस्था प्राइसवाटर हाउस कूपर्स या पीडब्ल्यूसी की एक रिपोर्ट कहती है कि 2005 से 2050 के बीच चीन की अर्थव्यवस्था का आकार दोगुना हो जाएगा। साथ ही इसमें ये भी कहा गया है कि भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा। पी डब्ल्यू सी की रिपोर्ट कहती है कि तब तक भारत और ब्राज़ील जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर दूसरे और तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बन जाएँगे। पिछले कुछ सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था में काफ़ी तेज़ी आई है। बढ़ती विकास दर के अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े कई सकारात्मक पहलू सामने आए हैं। इन सकारात्मक पहलूओं में से एक अहम पहलू है- भारतीय शेयर बाज़ार में जारी मज़बूती का दौर।
शेयर सूचकांक
भारत में मार्च में शेयर सूचकांक 6493 रहा जो कि मार्च 2006 में 11,280 पर पहुँच गया और इस पर प्रतिफल मिला 73.7 प्रतिशत। वर्तमान मे यह 13,000 के ऐतिहासिक स्तर को पार गया है। शेयर बाज़ार ने सिर्फ़ 16 कार्य दिवसों में ही 11 हज़ार से 12 हज़ार तक की ऊँचाई प्राप्त कर ली। इस अवधि के दौरान भारतीय शेयर सूचकांक ने दुनिया के अन्य शेयर सूचकांकों के मुक़ाबले अधिक गति प्राप्त की है। आँकड़ों के हिसाब से उभरते हुए शेयर बाज़ारों में भारत का बाज़ार सबसे ज़ोरदार प्रतिफल वाला साबित हो रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था में एक और महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बैंकिंग है। भारत के तेज़ी से विकसित होते मध्यवर्ग के चलते बैंकिंग ख़ासे मुनाफ़े का कारोबार हो गई है। कुल ख़रीदी गई कारों की अस्सी फीसदी कारें कर्ज़ लेकर ख़रीदी जा रही हैं। दस साल पहले मकान मालिक बनने की औसत आयु 45 साल थी लेकिन अब औसतन 32 साल की उम्र में ही किसी बैंक से लिए गए कर्ज़ की बदौलत मकान मालिक बन जाते हैं । तमाम नई बैंकिंग सुविधाओं का विकास हो रहा है। कुल मिलाकर बैंकिंग क्षेत्र के मुनाफ़े आने वाले कुछ सालों में तेज़ीसे बढ़ेंगें।
व्यापार और वाणिज्य
भारत में अरबपतियों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है जो यह दिखाता है कि व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में देश तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। प्रतिष्ठित फोर्ब्स पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार अरबपतियो की संख्या मे 15 प्रतिशत की वृद्घि हुई है और अब कुल 793 अरबपति है और एशिया में भारत अग्रणी बनकर उभरा है। विश्व अर्थव्यवस्था में आई उछाल के कारण भारत में अरबपतियो की संख्या में आलेख में बढोत्तरी हुई है। इस सर्वे के अनुसार भारत में 23 अरबपति हैं जिनके पास भारतीय सकल घरेलू उत्पाद का 16 प्रतिशत हिस्सा है। इसका यह अर्थ निकाला जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत बेहतर हो रही है। इकॉनॉमिक टाइम्स के ब्यूरो चीफ़ एम.के. वेणु का मानना है कि भारत मे पहले से कहीं ज़्यादा अवसर उपलब्ध हैं।
- कृषि क्षेत्र में विकास दर
पिछले कुछ सालों में कृषि क्षेत्र में विकास दर दो से तीन प्रतिशत के बीच रही है। वर्ष 2002-03 में कृषि क्षेत्र में विकास दर शून्य से भी कम थी। 2003-2004 में इसमें ज़बरदस्त उछाल आया और ये 10 फीसदी हो गई लेकिन 2004-2005 में विकास दर फिर लुढ़क गई और ऐसी लुढ़की कि 0.7 फीसदी हो गई। आर्थिक प्रगति में इस विसंगति को केंद्र सरकार भी स्वीकार करती है। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पवन कुमार बंसल कहते हैं, "कृषि पीछे है इसमें कोई दो राय नहीं। अगर विकास दर को 10 फीसदी करना है तो कृषि में भी चार फीसदी की दर से विकास करना होगा।" भारत में लोगों को रोज़गार अवसर मुहैया करवाने, किसानों की स्थिति बेहतर बनाने और निर्यात बढ़ाने में बागवानी क्षेत्र का बड़ा हाथ है। वर्ष 2003-04 में फलों और सब्ज़िओं की पैदावार में भारत विश्व में दूसरे नंबर पर था। फलों, फूलों और सब्ज़ियों की खेती में निर्यात में भी काफ़ी संभनाएँ हैं।
- बजट
वर्ष 2006 के मार्च महीने में ब्रिटेन का आम बजट पेश किया गया। बजट में ब्रितानी वित्त मंत्री के भाषण का एक मुख्य अंश कुछ इस तरह था, "भारत और चीन से मिलने वाली कड़ी प्रतिस्पर्धा का मतलब है कि हम हाथ पर हाथ धर कर नहीं बैठे रह सकते" इससे पहले अमरीकी राष्ट्रपति बुश ने भी अपने अहम राष्ट्रीय भाषण में कहा, "हम हाथ पर हाथ धर कर नहीं बैठ सकते। दुनिया की अर्थव्यवस्था में हम भारत और चीन जैसे नए प्रतियोगी देख रहे हैं।"
उद्योगो में निर्माण, खनन और बिजली क्षेत्र अग्रणी रहे हैं। जबकि सेवा क्षेत्र की बात करें तो इसमें मोटे तौर पर तीन क्षेत्र आगे हैं- बैंकिंग, बीमा और रीयल ऐस्टेट जिनमें 9.5 फीसदी के दर से विकास हुआ है। लेकिन औद्योगिक विकास के बावजूद इन 59 सालों में एक तथ्य जो नहीं बदला है वो ये है कि आज भी भारत के 65 से 70 फीसदी लोग रोज़ी-रोटी के लिए कृषि और कृषि आधारित कामों पर निर्भर हैं।
- विदेशी निवेश
अर्थव्यवस्था में एक ओर सेवा क्षेत्र और विदेशी निवेश जैसे पहलू जहाँ माहौल सकारात्मक है। दूसरी तरफ़ है मध्यम वर्ग की अर्थव्यवस्था जिमसें अपार संभावनाएँ हैं लेकिन कई तरह की परेशानियाँ भी हैं और तीसरे स्तर पर है एक ऐसा वर्ग जिसका ऊपर के दो वर्गों से कोई लेना देना नहीं है, उनकी समस्याएँ शायद वैसी की वैसी रहने वाली हैं।
औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में विकास की बदौलत भारत में विकास की गाड़ी तेज़ी से दौड़ तो रही है लेकिन अभी भी उसके सामने कई तरह की चुनौतियाँ हैं। भारत में कई जगहों में अब भी सड़क, बिजली, पानी और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत ज़रूरतों की कमी है और ये तस्वीर सिर्फ़ गाँवों की ही नहीं ब्लकि दिल्ली, बंगलौर और मुम्बई जैसे शहरों की भी है। इन मूलभूत ज़रूरतों के अभाव में उद्योग और सेवा सॅक्टर में जारी विकास इतनी ही गति से बरकरार रह पाएगा। ये भी एक बड़ा सवाल है। लिहाज़ा फर्राटे से दौड़ रहे विकास के घोड़े को अगर लंबे रेस का घोड़ा बनना है तो आधारभूत ढाँचे, सड़क, बिजली और पानी जैसी मूलभूत ज़रूरतों की सही खुराक सही समय पर इसे देते रहना होगा।[1]
सूचकांक
केऔद्योगिक क्षेत्र में औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक अर्थव्यवस्था में औद्योगिक गतिविधि के सामान्य स्तर को मापने का एक अला प्रतिनिधि आँकड़ा है। यह औद्योगिक उत्पादन का परम स्तर और प्रतिशत वृद्धि मापता है। देश में मूल्य की गति को थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) तथा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। थोक मूल्य सूचकांक को थोक बाज़ार में ख़रीदी-बेची गई वस्तुओं के औसत मूल्य स्तर में बदलाव को मापने में किया जाता है। जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में उपभोक्ताओं के विभिन्न वर्गों में खुदरा मूल्य गति को विचार में लिया जाता है। अर्थव्यवस्था में विभिन्न सामाजिक आर्थिक समूहों का शामिल करते हुए चार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक हैं। ये चार मूल्य सूचकांक हैं: –
- औद्योगिक कामगारों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई-आईडब्ल्यू)
- कृषि श्रमिकों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई-एएल)
- ग्रामीण श्रमिक के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई-आरएल)
- शहरी अकुशल कर्मचारियों के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई-यूएनएमई)।
ऐसे सभी आर्थिक सूचकांक न केवल अर्थव्यवस्था वर्तमान निष्पादन का विश्लेषण करते हैं बल्कि भावी वृद्धि संभावनाओं के अनुमान और पूर्वानुमान में भी सहायता देते है।
मौद्रिक योग
मुद्रा आपूर्ति के उपायों में से चार प्रमुख मौद्रिक योग, जो मौद्रिक क्षेत्र की स्थिति दर्शाते हैं, इस प्रकार हैं:-
- एम1 (संकीर्ण धन) = जनता के पास मौजूद मुद्रा + जनता की मांग पर जमा
- एम2 = जनता के पास मौजूद मुद्रा + जनता की मांग पर जमा + डाकखाने में जमा राशि
- एम3 (स्थूल धन) = जनता के पास मौजूद मुद्रा + जनता की मांग पर जमा + जनता द्वारा बैंकों में सावधि जमा
- एम4 = जनता के पास मौजूद मुद्रा + जनता की मांग पर जमा + जनता द्वारा बैंकों में सावधि जमा + डाकखाने में कुल जमा।[2]
भारत के राज्यों की अर्थव्यवस्था
भारत के विभिन्न राज्यों की अर्थव्यवस्था निम्न है:-
अरुणाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था
- सन 2004 में अरुणाचल प्रदेश का सकल घरेलू उत्पादन 706 मिलियन डॉलर के लगभग था।
- अर्थव्यवस्था मुख्यत: कृषि प्रधान है।
- अरुणाचल प्रदेश का लगभग 61000 वर्ग किलोमीटर का भाग घने जंगलों से भरा है, और वन्य उत्पाद राज्य की अर्थव्यवस्था का दूसरा महत्त्वपूर्ण भाग है।
उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था
उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था के निम्न साधन हैं-
- संसाधन- आर्थिक तौर पर उत्तर प्रदेश देश के अत्यधिक अल्पविकसित राज्यों में से एक है। यह मुख्यत: कृषि प्रधान राज्य है और यहाँ की तीन-चौथाई (75 प्रतिशत) से अधिक जनसंख्या कृषि कार्यों में लगी हुई है। राज्य में औद्योगिकीकरण के लिए महत्त्वपूर्ण खनिज एवं ऊर्जा संसाधनों की कमी है। यहाँ पर केवल सिलिका, चूना पत्थर व कोयले जैसे खनिज पदार्थ ही उल्लेखनीय मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अलावा यहाँ जिप्सम, मैग्नेटाइट, फ़ॉस्फ़ोराइट और बॉक्साइट के अल्प भण्डार भी पाए जाते हैं।
गुजरात की अर्थव्यवस्था
गुजरात की जलवायु संबंधी प्रतिकूल परिस्थियाँ, मृदा और जल की लवणता और चट्टानी इलाक़े ऐसी भौतिक समस्याएँ हैं, जिन्होंने गुजरात की कृषि गतिविधियों को अवरुद्ध किया। राज्य ज़्यादातर सिंचाई पर निर्भर है। भूजल की उपयोगी को बढ़ाने की आवश्यकता है, क्योंकि भूमिगत जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। यह आवश्यक है कि नर्मदा नहर प्रणाली का परिचालन सिंचाई के लिए हो। मुख्य खाद्य फ़सलों में ज्वार-बाजरा, चावल और गेहूँ शामिल हैं। गुजरात में नक़दी फ़सलों का उत्पादन महत्त्वपूर्ण है। गुजरात कपास, तंबाकू और मूँगफली का उत्पादन करने वाले देश का प्रमुख राज्य है तथा यह कपड़ा तेल और साबुन जैसे महत्त्वपूर्ण उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराता है।
जम्मू और कश्मीर की अर्थव्यवस्था
- जम्मू और कश्मीर के अधिकांश लोग जीवन निर्वाह के लिए कृषि में लगे हैं और चावल, मक्का, गेहूँ, जौ, दालें, तिलहन तथा तम्बाकू सीढ़ीनुमा पहाड़ी ढलानों पर उगाते हैं।
- कश्मीर की घाटी में बड़े-बड़े बाग़ों में सेब, नाशपाती, आडू, शहतूत, अखरोट और बादाम उगाए जाते हैं।
- कश्मीर की घाटी भारतीय उपमहाद्वीप के लिए एकमात्र केसर उत्पादक है।
- गूजर और गद्दी ख़ानाबदोशों के द्वारा भेड़, बकरी, यॉक व खच्चरों का पालन और ऋतु प्रवास किया जाता है।
बिहार की अर्थव्यवस्था
- अर्थव्यवस्था के अनुसार बिहार की लगभग 75 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्य में संलग्न है।
- 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में खनन व विनिर्माण में में उल्लेखनीय उपलब्धि के बाबजूद बिहार प्रति व्यक्ति आय के मामले में देश में सबसे आखिर में है और राज्य की लगभग आधी आबादी प्रशासनिक तौर पर ग़रीबी रेखा के नीचे है।
त्रिपुरा की अर्थव्यवस्था
- त्रिपुरा की अर्थव्यवस्था प्राथमिक रूप से कृषि पर आधारित है। मुख्य फ़सल चावल है (कृषि उत्पादन का 46.16 प्रतिशत)।
- पूरे राज्य में इसकी खेती होती है। नक़दी फ़सलों मे जूट (जिसका इस्तेमाल बोरी, टाट और सुतली बनाने में होता है), कपास, चाय, गन्ना, मेस्ता और फल शामिल हैं।
- राज्य की कृषि में पशुपालन की सहायक भूमिका है। वनोपज आधारित उद्योग इमारती लकड़ी ईंधन और लकड़ी के कोयले का उत्पादन करते है। 1994 में चाय का उत्पादन 35,55,593 किलोग्राम था।
तमिलनाडु की अर्थव्यवस्था
- तमिलनाडु की ग्रामीण जनसंख्या के लगभग तीन-चौथाई हिस्से के जीवन का आधार कृषि है।
- आरंभिक काल से ही तमिल किसानों ने कम मात्रा में होने वाले वर्षा जल को छोटे और बड़े सिंचाई जलाशयों या तालाबों में कुशलतापूर्वक संरक्षित किया है।
- सरकारी नहर, नलकूप और कुएँ भी सिंचाई प्रणाली का हिस्सा हैं। चूँकि विभिन्न नदी घाटी परियोजनाएँ पानी के लिए अन अनियमित पूर्वोत्तर मानसून पर निर्भर हैं, इसलिए प्रशासन भूमिगत जल स्रोतों के अधिकतम उपयोग का प्रयास कर रहा है।
पंजाब की अर्थव्यवस्था
- पंजाब की अर्थव्यवस्था में उत्पादन और वाणिज्यिक कृषि की प्रमुखता है और यहाँ विभिन्न लघु व मध्यम आकार के उद्योग हैं।
- भारत के मुख्य राज्यों में से पंजाब में प्रति व्यक्ति आय सबसे अधिक है।
- भारत के कुल क्षेत्रफल के मात्र 1.6 प्रतिशत भू-भाग वाला पंजाब लगभग भारत के कुल अन्न उत्पादन का 12 प्रतिशत हिस्सा पैदा करता है।
- यह केंद्रीय भंडार (उपयोग से अधिक अन्न की राष्ट्रीय भंडारण प्रणाली) के लगभग 40 प्रतिशत चावल और 60 प्रतिशत गेहूँ की आपूर्ति करता है।
नागालैंड की अर्थव्यवस्था
- नागालैंड राज्य की लगभग 90 प्रतिशत जनता कृषि में लगी है।
- यहाँ की मुख्य फ़सलें चावल (खरीफ चावल :701,00 हेक्टेयर: रबी चाबल: 58,900 हेक्टेयर), मक्का (24,900 हेक्टेयर), ज्वार-बाजरा (14,00 हेक्टेयर), दलहन (मटर और फलियाँ जैसी दालें) तिलहन (11,580 हेक्टेयर) रेशेदार फ़सलें, गन्ना, आलू और तंबाकू हैं। लेकिन नागालैंड को अब भी पड़ोसी राज्यों से खाद्य-पदार्थों के आयात पर निर्भर रहना पड़ता है।
- यहाँ 8,16,212 एकड़ (3,30,450 हेक्टेयर) भूमि पर कृषि होता है, जबकि 54,400 हेक्टेयर भूमि सिंचित है।
असम की अर्थव्यवस्था
समग्र पूर्वोत्तर क्षेत्र में असम की अर्थव्यवस्था सबसे बडी अर्थव्यवस्था है। यह मुख्यतया कृषि और संबद्ध कार्यकलापों में लगी हुई है। इसकी भारत में ब्रह्मपुत्र घाटी के साथ-साथ सबसे अधिक उर्वर भूमि फैली हुई है जो कि वाणिज्यिक आधार पर विविध नकदी फसलों और खाद्य फसलों की पैदावार के लिए उपयुक्त है। यहाँ पर प्राकृतिक संसाधन जैसे तेल और प्राकृतिक गैस, कोयला, रबड इत्यादि, खनिज जैसे ग्रेनाइट, चूना पत्थर इत्यादि तथा वन और जल संसाधन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। यह राज्य अन्य पूर्वोत्तर राज्यों की तुलना में औद्योगिक रूप से अधिक विकसित है। यह चाय और तेल पेट्रोलियम क्षेत्र में अपने बडे उद्योगों के लिए जाना जाता है। यह राज्य कुटीर उद्योगों से संबंधित कला और शिल्प के लिए प्रसिद्ध है। कुटीर उद्योगों में हथकरघा, रेशमकीट पालन, केन और बाँस की वस्तुएँ, बढई गिरी पीतल और बेल मेटल शिल्प शामिल है। असम में एन्डी, मूगा, टसर जैसे विभिन्न प्रकार के रेशम का उत्पादन होता है।[3]
हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था
हिमाचल प्रदेश में अधिकांश लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि, पशु चराई, ऋतु प्रवास, बाग़वानी और वनों पर निर्भर हैं। राज्य के उद्योगों में नाहन कृषि उपकरण, तारपीन का तेल और रेज़िन निर्माण उद्योग, सोलन में टीवी सेट्स, उर्वरक, बीयर, शराब और बल्ब निर्माण उद्योग, राजबन में सीमेंट उद्योग, परवानू में प्रसंस्कृत फल, ट्रैक्टर के पुर्ज़े और विद्युत उपकरण उद्योग, शिमला के निकट विद्युत उपकरण और बाड़ी तथा बरोटीवाला में काग़ज़ और गत्ते का निर्माण उद्योग शामिल हैं। राज्य ने अपने प्रचुर जलविद्युत, खनिजों और वन संसाधनों के आधार पर अपना विकास शुरू किया है। यह अपनी सड़कों और पर्यटन संसाधन का भी विकास कर रहा है।
हरियाणा की अर्थव्यवस्था
हरियाणा की अर्थव्यवस्था पूरे देश में अग्रणी है। कृषि की दृष्टि से हरियाणा एक समृद्ध राज्य है और यह केंद्रीय भंड़ार (अतिरिक्त खाद्यान्न की राष्ट्रीय संग्रहण प्रणाली) में बड़ी मात्रा में गेहूं और चावल देता है। कपास, राई, सरसों, बाजरा, चना, गन्ना, ज्वार, मक्का और आलू अन्य प्रमुख फ़सलें हैं। राज्य की कृषि प्रधानता ने हरित क्रांति में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है, जिसके अंतर्गत सिंचाई उर्वरक और उच्च गुणवत्ता के बीजों में बड़े पैमाने पर निवेश शामिल है। हरियाणा के कुल श्रम बल का लगभग 58 प्रतिशत कृषि में संलग्न है। हरियाणा ने कृषि आधारित और निर्माण उद्योगों में उल्लेखनीय प्रगति की है। इनमें प्रमुख है, कपास और चीनी प्रसंस्करण, कृषि उपकरण, रसायन और अनेक प्रकार की उपभोक्ता वस्तुएं, जिनमें साईकिल उल्लेखनीय है।
ओडिशा की अर्थव्यवस्था
ओडिशा की अर्थव्यवस्था में कृषि की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। ओडिशा की लगभग 80प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्य में लगी है, हालांकि यहाँ की अधिकांश भूमि अनुपजाऊ या एक से अधिक वार्षिक फ़सल के लिए अनुपयुक्त है। ओडिशा में लगभग 40 लाख खेत हैं, जिनका औसत आकार 1.5 हेक्टेयर है, लेकिन प्रति व्यक्ति कृषि क्षेत्र 0.2 हेक्टेयर से भी कम है। राज्य के कुल क्षेत्रफल के लगभग 45 प्रतिशत भाग में खेत है। इसके 80 प्रतिशत भाग में चावल उगाया जाता है। अन्य महत्त्वपूर्ण फ़सलें तिलहन, दलहन, जूट, गन्ना और नारियल है। सूर्य के प्रकाश की उपलब्धता में कमी, मध्यम गुणवत्ता वाली मिट्टी, उर्वरकों का न्यूनतम उपयोग और मानसूनी वर्षा के समय व मात्रा में विविधता होने के कारण यहाँ उपज कम होती है और इसकी गिनती देश के ग़रीब राज्यों में होती है।
सिक्किम की अर्थव्यवस्था
सिक्किम राज्य में खनिज में तांबा, सीसा, जस्ता, कोयला, ग्रेफाइट और चूना-पत्थर पाए जाते हैं। हालांकि इन सभी का व्यापारिक दोहन नहीं होता है। यहाँ के वन संसाधन और पनबिजली क्षमता अधिक उल्लेखनीय हैं। फिर भी सिक्किम मुख्यत: कृषि प्रधान राज्य है। इसका कुल बुआई क्षेत्र 63,254 हेक्टेयर है और एक बड़ा इलाक़ा खेती के लिए सुलभ नहीं है। घाटी के किनारे लगे सीढ़ीदार खेतों में मक्का, चावल, मेथी, गेहूं और जौ की उपज होती है। यहाँ पर सेम, अदरक, आलू और अन्य सब्ज़ियाँ, फल और चाय भी उगाए जाते हैं। सिक्किम दुनिया के प्रमुख इलायची उत्पादक क्षेत्रों में से एक है।
पश्चिम बंगाल की अर्थव्यवस्था
छोटे आकार के बावजूद पश्चिम बंगाल से भारत के सकल घरेलू उत्पादन का लगभग छठा हिस्सा आता है।
- कृषि- भू-परिदृश्य और अर्थव्यवस्था, दोनों में कृषि की प्रधानता है। राज्य के प्रत्येक चार में से तीन व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि में संलग्न हैं, सापेक्षिक कृषि योग्य भूमि के कुल क्षेत्र (65 प्रतिशत) के मामले में पश्चिम बंगाल अन्य राज्यों से आगे है। दार्जिलिंग को छोड़कर अन्य सभी ज़िलों में धान की, जिसे विस्तृत सिंचाई की आवश्यकता होती है। फ़सल प्रमुख है। अपने छोटे के बावजूद देश के कुल चावल-उत्पादन क्षेत्र का 14 प्रतिशत भाग पश्चिम बंगाल बोता है और देश की कुल उपज का 16 प्रतिशत काटता है।
राजस्थान की अर्थव्यवस्था
राजस्थान मुख्यत: एक कृषि व पशुपालन प्रधान राज्य है और अनाज व सब्जियों का निर्यात करता है। अल्प व अनियमित वर्षा के बावजूद, यहाँ लगभग सभी प्रकार की फ़सलें उगाई जाती हैं; रेगिस्तानी क्षेत्र में बाजरा, कोटा में ज्वार व उदयपुर में मुख्यत: मक्का उगाई जाती हैं। राज्य में गेहूं व जौ का विस्तार अच्छा-ख़ासा (रेगिस्तानी क्षेत्रों को छोड़कर) है, ऐसा ही दलहन (मटर, सेम व मसूर जैसी खाद्य फलियाँ), गन्ना व तिलहन के साथ भी है। चावल की उन्नत किस्मों को लाया गया है एवं चंबल घाटी और इंदिरा गांधी नहर परियोजनाओं के क्षेत्रों में इस फ़सल के कुल क्षेत्रफल में बढ़ोतरी हुई है। कपास व तंबाकू महत्त्वपूर्ण नक़दी फ़सलें हैं। हांलाकि यहाँ का अधिकांश क्षेत्र शुष्क या अर्द्ध शुष्क है, फिर भी राजस्थान में बड़ी संख्या में पालतू पशू हैं व राजस्थान सर्वाधिक ऊन का उत्पादन करने वाला राज्य है। ऊँटों व शुष्क इलाकों के पशुओं की विभिन्न नस्लों पर राजस्थान का एकाधिकार है।
छत्तीसगढ़ की अर्थव्यव्स्था
छत्तीसगढ़ भारत के खनिज समृद्ध राज्यों में से एक है। यहाँ पर चूना- पत्थर, लौह अयस्क, तांबा, फ़ॉस्फेट, मैंगनीज़, बॉक्साइट, कोयला, एसबेस्टॅस और अभ्रक के उल्लेखनीय भंडार हैं। छत्तीसगढ़ में लगभग 52.5 करोड़ टन का डोलोमाइट का भंडार है, जो पूरे देश के कुल भंडार का 24 प्रतिशत है। यहाँ बॉक्साइट का अनुमानित 7.3 करोड़ टन का समृद्ध भंडार है और टिन अयस्क का 2,700 करोड़ से भी ज़्यादा का उल्लेखनीय भंडार है। छत्तीसगढ़ में ही कोयले का 2,690.8 करोड़ टन का भंडार है। स्वर्ण भंडार लगभग 38,05,000 किलो क्षमता का है। यहाँ भारत का सर्वोत्तम लौह अयस्क मिलता है, जिसका 19.7 करोड़ टन का भंडार है। बैलाडीला, बस्तर, दुर्ग और जगदलपुर में लोहा मिलता है। भिलाई में भारत के बड़े इस्पात संयंत्रों में से एक स्थित है। राज्य में 75 से भी ज़्यादा बड़े और मध्यम इस्पात उद्योग हैं, जो गर्म धातु, कच्चा लोहा, भुरभुरा लोहा (स्पंज आयरन), रेल-पटरियों, लोहे की सिल्लियों और पट्टीयों का उत्पादन करते हैं।
मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था
मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है लेकिन आधे से कम क्षेत्र कृषि योग्य है और भू- आकृति, वर्षा व मिट्टी में विविधता होने के कारण इसका वितरण काफ़ी असमान है। कृषि योग्य प्रमुख क्षेत्र चंबल, मालवा के पठार और रेवा के पठार में मिलते हैं। नदी द्वारा बहाकर लाई गई जलोढ़ मिट्टी से ढकी नर्मदा घाटी एक अन्य उपजाऊ इलाका है।
- कृषि- मध्य प्रदेश की कृषि की विशेषता कम उत्पादन और कृषि की परंपरागत पद्धति का उपयोग है। चूंकि कृषि योग्य भूमि का केवल 15 प्रतिशत भाग ही सिंचित है, राज्य की कृषि वर्षा पर निर्भर करती है और अक्सर इसे सूखे व लाल- पीली मिट्टी में नमी की बहुत कम मात्रा का सामना करना पड़ता है। मध्य प्रदेश में होने वाली सिंचाई, जो मुख्यत: नहरों, कुओं, गांवों के तालाबों और झीलों से होती है, उसकी अधिकांश योजनाएँ केंद्रीय सरकार की एक के बाद एक पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान मझोले आकार की या छोटी परियोजनाओं द्वारा विकसित हुई हैं।
महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था
निजी और सार्वजनिक उद्यमों के माध्यम से महाराष्ट्र भारत का एक सुविकसित और समृद्ध राज्य बन गया है। विद्युत उत्पादन इस दिशा में सबसे महत्त्वपूर्ण सहायक कारकों में से एक है। महाराष्ट्र में पश्चिमी घाट स्थित जलप्रपातों के ज़रिये पनबिजली उत्पादन किया जाता है। पूर्वी क्षेत्रों में ताप- विद्युत उत्पादन की प्रधानता है। नागपुर और चंद्रपुर में बड़े ताप विद्युत गृह स्थित हैं। भारत का पहला परमाणु बिजली संयंत्र मुंबई से 113 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। बिजली की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए नए विद्युत संयंत्र लगाए जा रहे हैं। महाराष्ट्र के खनिज संसाधनों में मैंगनीज, कोयला, चूना- पत्थर, लौह अयस्क, तांबा, बॉक्साइट और सिलिकायुक्त रेत शामिल है। इनमें से अधिकांश खनिज पदार्थ, भंडारा, नागपुर और चंद्रपुर ज़िलों में पाए जाते हैं और दक्षिण कोंकण में भी कुछ भंडार हैं। सह्याद्रि क्षेत्र के कई हिस्सों में बॉक्साइट भी पाया जाता है। बॉम्बे हाई में हाइड्रोकार्बन का उत्पादन भी बढ़ रहा है।
मेघालय की अर्थव्यवस्था
भूमि की विपुल मात्रा में उपलब्धता, साझा स्वामित्त्व और उत्तराधिकार की एकवंशीय प्रणाली ने मेघालय की अर्थव्यवस्था के क़बीलाई चरित्र को बनाए रखा। मेघालय की भरपूर प्राकृतिक संपदा में कोयला, चूना- पत्थर, केओलिन, फ़ेल्डस्पार, स्फटिक, अभ्रक, जिप्सम और बॉक्साइट जैसे खनिज पाए जाते हैं, लेकिन उनका अभी समूचित दोहन नहीं हो पाया है। यहाँ के सिलीमेनाइट के भंडार (उच्च स्तरीय चिकनी मिट्टी के स्रोत) दुनिया में सबसे श्रेष्ठ माने जाते हैं और भारत का लगभग सारा सिलीमेनाइट यहीं से प्राप्त किया जाता है।
मणिपुर की अर्थव्यवस्था
कृषि मणिपुर की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। मणिपुर में कृषि और वानिकी आय के प्रमुख स्रोत हैं। यहाँ की मुख्य फ़सल चावल 72 प्रतिशत इलाके में उगाई जाती है और यहाँ की उर्वर भूमि में मक्का (1.79 प्रतिशत) गन्ना, सरसों, तंबाकू, फल, सब्जियाँ (आलू 1.7 प्रतिशत) और दलोअहन (जैसे मटर और सेम) उगाए जाते हैं। आमतौर पर पहाड़ियाँ पर सीढ़ीदार खेत होते हैं, जिन्हें आदिवासी कुदाली से जोतते हैं। कुछ पर्वतीय आदिवासी मांस के लिए पालतू पशु पालते हैं। उनका उपयोग दूध निकालने या बोझा ढोने के लिए नहीं किया जाता। सिंचाई नहरों द्वारा की जाती है। नागाओं के बारे में कहा जाता है कि वे मछली पकड़ने के लिए नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं। सालाना लगभग 7,500 टन मछली पकड़ी जाती है, जिनकी कीमत लगभग पाँच लाख रुपये होती है। राज्य में अधिकृत रूप से दर्ज वनक्षेत्र 15,154 वर्ग किलोमीटर है, किंतु वास्तव में वनाच्छादित क्षेत्र 17,418 वर्ग किलोमीटर है जो कुल क्षेत्रफल का 78 प्रतिशत है। सागौन प्रमुख वनोपज हैं।
कर्नाटक की अर्थव्यवस्था
कर्नाटक की लगभग 70 प्रतिशत जनता कृषि कार्य में लगी है। तटीय मैदान में सघन खेती होती है, जहाँ प्रमुख खाद्यान्न चावल और प्रमुख नकदी गन्ना है। अन्य प्रमुख फ़सलों में ज्वार और रागी शामिल हैं। अन्य नकदी फ़सलों में काजू, इलायची, सुपारी और अंगूर प्रमुख हैं। पश्चिमी घाट की ठंडी ढलानों पर कॉफी और चाय के बागान हैं। पूर्वी क्षेत्र में सिंचाई के कारण गन्ने और अल्प मात्रा में रबड़ केले व संतरे जैसे फलों की खेती संभव हो सकी है। पश्चिमोत्तर में मिलने वाली काली मिट्टी में कपास, तिलहन और मूंगफली की फ़सलें उगाई जाती है।
केरल की अर्थव्यवस्था
- भौगोलिक और भौगर्भिक कारक केरल की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।
- केरल की सघन आबादी के लिए उपलब्ध कृषि योग्य भूमि काफ़ी नहीं है।
- इस राज्य में जीवाश्म ईधनों और खनिजों के प्रमुख भंडारों की भी कमी है।
- केरल में सिर्फ इल्मेनाइट (टाइटेनियम का प्रमुख अयस्क), रयूटाइल (टाइटेनियम ऑक्साइड), मोनाजाइट (सीरियम और थोरियम फास्फेट युक्त खनिज) हैं, जो समुद्र तट की रेत में पाए जाते हैं।
- केरल में जलविद्युत की काफ़ी संभावनाएँ हैं। इडुक्की कॉम्पलेक्स विशालतम विद्युत उत्पादन संयंत्र है।
गोवा की अर्थव्यवस्था
गोवा भारत के अति विकसित राज्यों में से एक के रूप में उभरा है। निवेश वातावरण और आधारभूत संरचना के मामलों में भी गोवा ने भारत के श्रेष्ठतम राज्यों में से एक का दर्जा हासिल किया है। यह महानगरों, व्यापारिक और वाणिज्यिक केंद्रों के साथ सड़क, रेल, समुद्री मार्गों के अलावा वायु मार्ग के द्वारा भी भली प्रकार जुड़ा हुआ है। गोवा के मोरमुगांव में एक प्राकृतिक बंदरगाह है और साथ ही कई छोटे बंदरगाह भी हैं, जिनमें व्यवसायिक सुविधाओं के विकास की अपार संभावनाएं विद्यमान हैं। इसके अलावा इसमें पूर्ण विकसित इन्टरनेट संयोजन और टेलीफोन एक्सचेंजों का विशाल नेटवर्क भी है, जो इसके नागरिकों को उच्च गुणवत्ता वाले जीवन की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। अत: भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में गोवा अग्रणी राज्य है।
मिज़ोरम की अर्थव्यवस्था
मिज़ोरम के पास संसाधनों की प्रचुरता है जिनका उपयोग राज्य में कई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए किया जाता है। बांस की प्रचुरता के अलावा बागवानी वाली कई फ़सलें निवेशकों के लिए कई प्रकार से लाभदायक हो हैं। देश का दूसरा सर्वाधिक साक्षर राज्य होने से मिज़ोरम देश का सर्वाधिक 'आई.टी.' साक्षर राज्य बनने जा रहा है। इसके अतिरिक्त यहाँ की ख़ूबसूरत प्राकृतिक छटा के साथ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध सांस्कृतिक विरासत इसे पर्यटकों के लिए आकर्षक स्थान बनाता है। इस प्रकार राज्य के कई क्षेत्रों में निवेश की कई संभावनाएँ हैं।[4]
झारखण्ड की अर्थव्यवस्था
कृषि और कृषि सम्बंधित गतिविधियां झारखण्ड की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हैं। कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल केवल 38 लाख हेक्टेयर है। झारखण्ड राज्य के 79,714 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में से 18,423 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में वन हैं।
- सिंचाई और बिजली- दामोदर, मयूराक्षी, बराकर, उत्तरी कोयेल, दक्षिणी कोयेल, संख, सुवर्णरेखा, खरकई और अजय यहाँ की प्रमुख नदियाँ हैं और राज्य के जल का प्रमुख स्रोत है। राज्य में कुल बुवाई का क्षेत्र 1.57 लाख हेक्टेयर है जिसमें से 8 प्रतिशत क्षेत्र में ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो पाती है। झारखण्ड में स्थापित विद्युत क्षमता 2,590 मेगावाट है। जिसके स्रोत हैं- 420 मेगावट (तेनुघाट ताप बिजलीघर) से, 840 मेगावाट (पतरातू ताप पनबिजलीघर) से, 130 (सिक्कीद्रि बिजली परियोजना) से और 1,200 मेगावाट (दामोदर घाटी निगम ताप / पनबिजली परियोजना)से। ताप व पनबिजली पर आधारित विभिन्न बिजलीघरों की क्षमता 4,736 मेगावाट की जा सकती है जिसमें 686 पनबिजली उत्पादन शामिल है।
उत्तराखण्ड की अर्थव्यवस्था
उत्तराखण्ड की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि आधारित है और राज्य की 10 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्यों में लगी हुई है। उत्तराखण्ड खनिजों जैसे चूनापत्थर, रॉक फॉस्फेट, डोलोमाइट, मैग्नेसाइट, कॉपर ग्रेफाइट, सोप स्टोन, जिप्सम इत्यादि के मामले में एक धनी राज्य है। 2003 की औद्योगिक नीति के कारण यहाँ निवेश करने वाले निवेशकों को कर राहत दी गई है। यहाँ पूँजी निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- संसाधन- उत्तराखण्ड आर्थिक रूप से देश के सबसे पिछड़े हुए राज्यों में से एक है। मुख्य रूप से यह कृषि पर निर्भर राज्य है और कामकाजी जनसंख्या का 4/5 से भी अधिक कृषि कार्य में संलग्न है। राज्य में औद्योगिकीकरण के लिए महत्त्वपूर्ण खनिज और ऊर्जा संसाधनों की कमी है। खनिज के नाम पर केवल सिलिका और चूना पत्थर ही उल्लेखनीय मात्रा में मिलते हैं। यहाँ जिप्सम, मैग्नेसाइट, फ़ॉस्फ़ोराइट और बॉक्साइट के छोटे भंडार हैं। इस पहाड़ी राज्य की बारहमासी नदियाँ जलविद्युत का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। लेकिन इस ऊर्जा स्रोत की अपार सम्भावनाओं को अभी बहुत कम आंका गया है। झरनों का उपयोग करने वाले छोटे विद्युत केन्द्रों के अलावा टिहरी बाँध (भागीरथी नदी पर निर्माणाधीन) जल शक्ति को काम में लाने वाली सबसे बड़ी परियोजनाओं में से एक है। वनों को भी आर्थिक संसाधन माना जाता है। जल शक्ति और वन संसाधनों के दोहन के प्रयास को पर्यावरणविदों के विरोध का सामना करना पड़ा है।
समाचार
2030 तक भारत होगा तीसरी विश्व आर्थिक शक्ति
- 27 फरवरी 2012, सोमवार
भारत 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा, लेकिन उसकी उर्जा की मांग घटकर 4.5 प्रतिशत रह जाएगी। उर्जा क्षेत्र की वैश्विक कंपनी बीपी ने यह अनुमान लगाया है। बीपी के मुख्य अर्थशास्त्री क्रिस्टॉफ रुहल ने बीपी के उर्जा परिदृश्य 2030 को आज जारी करते हुए कहा कि 2030 तक चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा और भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में तीसरे स्थान पर होगी। वैश्विक आबादी, सकल घरेलू उत्पाद और उर्जा मांग में दुनिया की कुल आबादी में इन दोनों देशों की हिस्सेदारी 35 प्रतिशत की होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में उर्जा की मांग में विशेष इज़ाफ़ा नहीं होगा। इसकी वजह यह है कि भारत की औद्योगिक क्षेत्र की मांग घटकर 4.5 प्रतिशत सालाना रह जाएगी, जो 1999-2010 में 5.5 प्रतिशत थी। ऐसे में उर्जा दक्षता में सुधार से औद्योगिकीकरण और बुनियादी ढांचा विस्तार के लिए उर्जा की मांग की भरपाई हो सकेगी।
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तीसरा सबसे आकर्षक निवेश स्थल है भारत
- 6 जुलाई 2012, शुक्रवार
संयुक्त राष्ट्र के व्यापार और विकास सम्मेलन (अंकटाड) की जारी विश्व निवेश रिपोर्ट-2012 के अनुसार बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए 2012 से 2014 की अवधि में चीन सबसे आकर्षक निवेश स्थल रहा। उसके बाद अमेरिका, भारत का स्थान रहा। आकर्षक निवेश स्थलों में शीर्ष पांच देशों में इंडोनेशिया और ब्राजील का चौथा और पांचवां स्थान रहा। बड़ी कंपनियां और बड़े निवेशक भारत में निवेश करना पसंद करते हैं। भारत निवेशकों के लिए चीन और अमेरिका के बाद भारत तीसरा सबसे आकर्षक निवेश स्थल बनकर उभरा है। संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन की ओर से जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के अच्छे प्रदर्शन की वजह से समूचे दक्षिण एशिया में पिछले साल विदेशी निवेश 23 फीसदी बढ़ा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय अर्थव्यवस्था (हिन्दी) (एच.टी.एम.) हिमआर्टिकल्स। अभिगमन तिथि: 11 अप्रॅल, 2011।
- ↑ भारतीय अर्थव्यवस्था (हिन्दी) व्यापार ज्ञान संसाधन। अभिगमन तिथि: 11 अप्रॅल, 2011।
- ↑ निवेश के अवसर (हिन्दी) (पी.एच.पी.) व्यापार ज्ञान संसाधन। अभिगमन तिथि: 9 जून, 2011।
- ↑ निवेश के अवसर (हिन्दी) भारत सरकार। अभिगमन तिथि: 11 जून, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
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