मिनर्वा मूवीटोन

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मिनर्वा मूवीटोन (अंग्रेज़ी: Minerva Movietone) नामक फ़िल्म कम्पनी की शुरुआत अपने समय के प्रसिद्ध अभिनेता सोहराब मोदी द्वारा की गई थी। मिनर्वा मूवीटोन हिन्दी सिनेमा के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हुआ था। यहीं से 'जेलर', 'तलाक' और 'मीठा जहर' जैसी लोकप्रिय फ़िल्में आई थीं।

स्थापना

भारतीय सिनेमा में सोहराब मोदी (1897-1984) एक इतिहास पुरुष के नाम से प्रख्यात हैं। अस्त होते हुए पारसी थियेटर (रंगमंच) को बचाने के लिए सोहराब मोदी ने 'स्टेज फ़िल्म कंपनी' का निर्माण किया। वे पारसी रंगमंच के बड़े कलाकार थे। सोहराब मोदी ने सिनेमा के बढ़ते हुए प्रभाव और मांग को देखते हुए सन् 1936 में 'स्टेज फ़िल्म कंपनी' को 'मिनर्वा मूवीटोन' नामक फ़िल्म कंपनी में रूपांतरित कर दिया। इस तरह सोहराब मोदी द्वारा एक सशक्त आधुनिक तकनीक से लैस फ़िल्म कंपनी का निर्माण हुआ।[1]

सोहराब मोदी का योगदान

सोहराब मोदी स्वयं एक कद्दावर अभिनेता थे। पृथ्वीराज कपूर और सोहराब मोदी में काफ़ी समानताएँ थीं। दोनों का व्यक्तित्व विशाल, गंभीर और पुरुष से युक्त असाधारण था। संवाद कला में दोनों कुशल थे। दोनों की आवाज़ में रौब भरा एक जादू समाया था। भारतीय सिनेमा में ऐतिहासिक फ़िल्मों को भव्यता के साथ प्रथम प्रदर्शित करने का श्रेय सोहराब मोदी को ही जाता है। वे एक सशक्त निर्देश और निर्माता थे। वे अपने तकनीकी दल को विदेश भेजकर वहाँ से नवीनतम सिनेमा तकनीक को आयातित करते और उसका उपयोग अपने फ़िल्म निर्माण में करते थे।

सोहराब मोदी को फ़िल्म निर्माण के प्रारम्भिक प्रयासों में बहुत अधिक सफलता नहीं मिली। उन्होंने 1937 में 'आत्मतरंग' नामक एक सामाजिक फ़िल्म बनाई। यह फ़िल्म बुरी तरह असफल हुई। उन्होंने फ़िल्म निर्माण से संन्यास लेने का निर्णय ले लिया। लेकिन एक दिन दर्शकों में से कोई चार दर्शकों ने उन्हें फ़िल्म के लिए बधाई दी और उन्हें ऐसी ही फ़िल्में बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। वे चकित थे। सोहराब मोदी ने उनके बारे में जब पता लगाया तो उन्हें पता चला कि वे चारों बम्बई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। उनका खोया हुआ मनोबल लौट आया। मिनर्वा मूवीटोन हिन्दी सिनेमा के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हुआ। यहीं से 'जेलर', 'तलाक' और 'मीठा जहर' जैसी लोकप्रिय फ़िल्में आईं। सन् 1940 में 'भरोसा', 'सिकंदर' और 'फिरदौसी' के निर्माण की घोषणा की गई।

प्रमुख फ़िल्में

मिनर्वा मूवीटोन में सोहराब मोदी द्वारा निर्मित ऐतिहासिक फ़िल्में हर युग में याद की जाती हैं। भारतीय इतिहास के कुछ ख़ास प्रसंगों को जिस भव्यता और महानता के साथ सोहराब मोदी ने फिल्मी पर्दे पर प्रस्तुत किया, वह बेजोड़ और अभूतपूर्व है। उनकी 'पुकार' (1939), 'सिकंदर' (1941), 'पृथ्वी वल्लभ' (1943) और 'झांसी की रानी' (1953) ऐसी ही कालजयी फ़िल्में हैं जो सोहराब मोदी के कलात्मक रौबदार अभिनय के लिए याद की जाएँगी। साथ ही इन फ़िल्मों के भव्य, सेट, राजसी पोशाक, वैभवशाली राजप्रासादों के दृश्य और पात्रों के सम्मोहक संवादों को नहीं भुलाया जा सकता। ये पाँचों फ़िल्में बड़े बजट की सोहराब मोदी की फ़िल्में थीं। 'झांसी की रानी' भारत की पहली 35 एम. एम. टेक्नीकलर फ़िल्म थी, जिसे बनाने का श्रेय सोहराब मोदी को ही है। मिनर्वा मूवीटोन में निर्मित अन्य चर्चित व लोकप्रिय फ़िल्में निम्नलिखित हैं[1]-

  1. मिर्ज़ा गालिब (1954)
  2. वारिस (1954)
  3. कुन्दन (1955)
  4. राजहठ (1956)
  5. नौशेरवाने आदिल (1957)
  6. जेलर (1958)


सोहराब मोदी एक महान् अभिनेता, निर्देशक और निर्माता थे, जिन्होंने भारतीय सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति दिलाई और हिंदी सिनेमा को आसमान की बुलंदियों तक पहुँचाया।

सामाजिक फ़िल्मों का निर्माण

हिन्दी सिनेमा को पारंपरिक पारसी थियेटर के प्रभाव से मुक्त कर सोहराब मोदी एक नया रूप देना चाहते थे, किन्तु उनकी फ़िल्मों में यह प्रभाव बना रहा। साहित्यिक उर्दू में पात्रों के मुखर संवाद की शैली उनकी फ़िल्मों की विशेषता हुआ करती थी। 1938 में बनी 'जेलर' को उन्होंने 1958 में दुबारा बनाया। यह एक मनोवैज्ञानिक प्रेम कथा थी। इस फ़िल्म की कहानी और गीत अमीर हैदर कमाल (कमाल अमरोही) ने लिखे थे। मोदी ने इस फ़िल्म में एक क्रूर जेलर का अभिनय किया था। इस फ़िल्म की नायिका 'लीला चिटनिस' थीं। इस फ़िल्म का प्रीमियर लाहौर में 1938 में हुआ था।


मिनर्वा मूवीटोन की फ़िल्में ज़्यादातर सामाजिक बुराइयों और समस्याओं पर ही आधारित हैं। शराब के दुर्व्यसन पर आधारित 'मीठा जहर', तलाक के अधिकार आधारित 'तलाक'। स्त्री-पुरुष संबंधों पर एक नई पहल सोहराब मोदी ने की थी। 'भरोसा' मोदी की सामाजिक फ़िल्मों में विशेष स्थान रखती है। पति, पत्नी और प्रेमी के त्रिकोण को प्रस्तुत करने वाली यह फ़िल्म चर्चित हुई। इसे एक क्रांतिकारी सामाजिक फ़िल्म माना गया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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