रवि राय
रवि राय
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पूरा नाम | रवि राय |
जन्म | 26 नवंबर, 1926 |
जन्म भूमि | पुरी, उड़ीसा |
नागरिकता | भारतीय |
पार्टी | जनता दल (एस) |
पद | लोकसभा अध्यक्ष |
कार्य काल | 19 दिसंबर, 1989 – 9 जुलाई, 1991 |
शिक्षा | बी.ए. (इतिहास) और वकालत |
विद्यालय | मधुसूदन लॉ कॉलेज, रावेनशॉ कॉलेज, कटक |
भाषा | उड़िया, हिन्दी तथा अंग्रेजी |
अन्य जानकारी | प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार में 'स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री' भी रहे। |
अद्यतन | 12:31, 21 सितम्बर 2012 (IST)
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रवि राय (अंग्रेज़ी: Rabi Ray, जन्म: 26 नवंबर, 1926) एक राजनीतिज्ञ और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष हैं। नौवीं लोकसभा के चुनावों ने भारत के संसदीय लोकतंत्र में एक नए युग का सूत्रपात किया। कोई भी एक राजनीतिक दल सदन में पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं कर सका और इस प्रकार भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार, "त्रिशंकु संसद" बनी। इस अभूतपूर्व राजनीतिक अनिश्चितता के बावजूद, लोक सभा के सदस्यों ने दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर श्री रवि राय को सर्वसम्मति से नौवीं लोक सभा का अध्यक्ष बनाया। अंतर्निहित सादगी तथा पारदर्शी निष्कपटता से संपन्न रवि राय ने अपने निष्पक्ष तथा विवेकपूर्ण रवैये से अध्यक्ष पद के सम्मान तथा गरिमा में वृद्धि की।
जीवन परिचय
रवि राय का जन्म 26 नवम्बर, 1926 को उड़ीसा में भगवान जगन्नाथ की नगरी के रूप में विख्यात ज़िला पुरी के भानगढ़ गांव में हुआ। उन्होंने राज्य के एक उत्कृष्ट महाविद्यालय, रावेनशॉ कॉलेज, कटक से इतिहास में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बाद में कटक के मधुसूदन लॉ कॉलेज में क़ानून की शिक्षा ग्रहण की। उनके भावी राजनीतिक सफर की शुरूआत उस समय हुई जब 1948-49 में रावेनशॉ कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष पद पर और तत्पश्चात् 1949-50 में मधुसूदन लॉ कॉलेज छात्र संघ के प्रथम अध्यक्ष के रूप में उनका निर्वाचन हुआ। रवि राय अन्य देशवासियों की भांति स्वतंत्रता संघर्ष की ओर आकृष्ट हुए। देशभक्ति और देश-प्रेम का अतिरेक और विदेशी शासन के प्रति घृणा का भाव छात्र-काल से ही उनमें कूट-कूट कर भरा हुआ था। वर्ष 1947 के प्रारम्भ में, स्नातक शिक्षा प्राप्त करते हुए उन्होंने राष्ट्रीय झंडा फहराने के सिलसिले में गिरफ्तारी दी। हालांकि देश में तब भी विदेशी शासन था, तथापि ब्रिटिश सरकार को अन्ततः शैक्षणिक संस्थाओं में तिरंगा फहराने की छात्रों की मांग के सामने झुकना पड़ा।
राजनीतिक परिचय
कॉलेज के दिनों से ही समाजवाद में प्रबल विश्वास रखने वाले रवि राय 1948 में सोशलिस्ट पार्टी में एक सदस्य के रूप में भर्ती हुए। नेतृत्व का अन्तर्जात गुण होने और समाजवादी कार्यों के प्रति गहन वचनबद्धता के कारण वे समाजवादी आंदोलन में हमेशा आगे रहे। वर्ष 1953-54 के दौरान वे अखिल भारतीय समाजवादी युवक सभा के संयुक्त सचिव के पद पर कार्यरत रहे। वर्ष 1956 में उन्होंने डॉ. राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में उड़ीसा में सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। उस अवधि के दौरान वह सोशलिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे। बाद में 1960 में उन्होंने लगभग एक वर्ष के लिए दल के महासचिव का कार्यभार संभाला।
लोकसभा सांसद
भारतीय संसद के साथ रवि राय पहले-पहल 1967 में जुड़े जब उड़ीसा राज्य के पुरी निर्वाचन क्षेत्र से चौथी लोक सभा के लिए उनका निर्वाचन हुआ। उस अवधि के दौरान वे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एस.एस.पी.) के संसदीय दल के नेता भी रहे। अपनी स्पष्टवादिता, निष्कपट विचारों और सकारात्मक विरोध के लिए विख्यात रवि राय वाग्मकौशल से सम्पन्न सांसद थे। संसदीय वाद-विवाद और बल्कि समूचे राष्ट्रीय जन-जीवन में उनका योगदान जितना व्यापक था, उतना ही सुसमृद्ध भी था। वर्ष 1974 में उड़ीसा राज्य से उनका राज्य सभा के लिए चुनाव हुआ और वर्ष 1980 में उन्होंने अपनी सदस्यता का सम्पूर्ण कार्यकाल पूरा किया।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री
वर्ष 1977 में छठी लोक सभा के लिए हुए आम चुनावों के परिणामस्वरूप केन्द्र में एक नयी राजनीतिक व्यवस्था क़ायम हुई। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से लगातार राष्ट्रीय राजनीतिक क्षितिज पर छाए हुए कांग्रेस दल को पहली बार केन्द्रीय सत्ता से हाथ धोना पड़ा और तत्पश्चात् जनता पार्टी की सरकार बनी। रवि राय की निस्वार्थ सेवा से प्रभावित होकर प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने जनवरी, 1979 में उन्हें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री की हैसियत से अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया और उन्होंने जनवरी, 1980 तक यह कार्य-भार संभाला। वे 1977-80 की अवधि के दौरान जनता पार्टी के महासचिव भी रहे।
लोकसभा अध्यक्ष
नौवीं लोक सभा के लिए आम चुनाव 1989 में हुए और रवि राय उड़ीसा के केन्द्रपाड़ा निर्वाचन क्षेत्र से जनता दल के टिकट पर लोक सभा में पुनः निर्वाचित हुए। दिनांक 19 दिसम्बर, 1989 को सर्वसम्मति से नौवीं लोक सभा के अध्यक्ष पद के लिए उनका चुनाव हुआ। इस उच्च पद की कड़ी जिम्मेदारी और निष्पक्षता के बारे में जागरूक रवि राय ने सदस्यों को आश्वस्त किया कि जब तक वे अध्यक्ष पद पर रहेंगे, वह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कार्य करेंगे और सबके प्रति निष्पक्ष रहेंगे। हालांकि रवि राय अध्यक्ष पद पर केवल साढ़े पन्द्रह महीने की अल्पावधि के लिए ही आसीन रहे तथापि उन्हें प्रत्येक सत्र में बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा और उन्होंने इसका सामना कुशलता और दृढ़ता से किया। कुछ पेचीदा प्रक्रियात्मक और तत्संबंधी मुद्दों पर निर्णय देने के अलावा उन्होंने कुछ नई प्रथाओं की शुरुआत भी की जिससे आम जनता की आशाओं और आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करने वाली संस्था के रूप में संसद के कार्यकरण में निश्चित रूप से और अधिक निखार आया।
अध्यक्षता के दौरान
अध्यक्ष की हैसियत से रवि राय द्वारा लिए गए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और दूरगामी निर्णय जनता दल के विभाजन के उपरांत कुछ सदस्यों की लोक सभा की सदस्यता समाप्त किए जाने के मुद्दे से संबंधित हैं। दिनांक 6 नवम्बर, 1990 को जनता दल का विभाजन होने के बाद 58 सदस्यों ने यह दावा किया कि उन्होंने जनता दल के एक अलग गुट का प्रतिनिधित्व करने वाले दल का गठन कर लिया है और उन्होंने इस दल का नाम जनता दल (एस) रखा है। विभाजन के समय और सदस्यता समाप्त किये जाने के समय के बारे में दावे और जवाबी-दावे किए गए। इन जटिल मुद्दों से निपटने में अध्यक्ष रवि राय को कठिनाई हुई, किन्तु अत्यधिक जिम्मेदारी की भावना दिखाते हुए उन्होंने इस बारे में निर्णय लेने से पहले इस मुद्दे के सभी पहलुओं की तटस्थतापूर्वक जांच की। निष्पक्ष रूप से निर्णय करने की क्षमता में उनकी क़ानूनी जानकारी ने काफ़ी सहायता की। वास्तव में यह एक अभूतपूर्व निर्णय था। अध्यक्ष पद पर रहते हुए रवि राय ने सदन के प्रक्रिया एवं कार्य-संचालन संबंधी नियमों में कतिपय परिवर्तन किए ताकि सदस्यों को लोकहित के महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक मुद्दों को सदन में उठाने के अधिक से अधिक अवसर मिल सकें।
सामाजिक सक्रियता
रवि राय बहुत सी सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं के साथ विभिन्न पदों पर लम्बे अरसे से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं। वर्ष 1974 में वे केन्द्रीय रेशम बोर्ड के सदस्य थे तथा वर्ष 1977-78 के दौरान प्रेस काउंसिल के चेयरमैन रहे। वर्ष 1975 में वे लोक लेखा समिति के भी सदस्य रहे और 1977-78 के दौरान लोकपाल विधेयक पर बनी संयुक्त प्रवर समिति के सदस्य रहे। समाज कल्याण संगठनों में क्रियाशील रहते हुए वे लोहिया अकादमी तथा ग्राम विकास फाउंडेशन के अध्यक्ष भी रहे। रवि राय आदर्शवाद और मानवतावाद से जुड़े कार्यकर्ता हैं। समाजवाद उनके लिए महज एक बौद्धिक विचार ही नहीं है अपितु वास्तविक जीवन में भी उन्होंने इसे अपनाया है। उनका यह दृढ़ विश्वास है कि शोषित वर्ग की दशा को सुधारने के लिए समाजवाद बहुत ही प्रभावशाली साधन है। अपने आरम्भिक वर्षों में उन्होंने स्वैच्छिक श्रम जुटाकर गांवों में सड़कें बनाना आदि जैसे बहुत से रचनात्मक कार्यों में भी भाग लिया। उन्होंने अध्ययन केन्द्र तथा युवा क्लब जैसे "समाजवादी निर्माण केन्द्र" आदि भी शुरू किए, ताकि समाजवादी पद्धति के आधार पर एक सुदृढ़ तथा व्यापक युवा एवं किसान आन्दोलन का उदय हो सके। यद्यपि दसवीं लोक सभा के बाद रवि राय चुनावों में खड़े नहीं हुए किन्तु राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में वे बुद्धिजीवी मंचों में भाग लेते रहे हैं। वे 1997 से एक गैर-राजनीतिक संगठन, लोक शक्ति अभियान के माध्यम से उच्च पदों पर भ्रष्टाचार, अत्यधिक केन्द्रीकरण तथा पतनोन्मुख उपभोक्तावादी संस्कृति के विरुद्ध जन आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं।
लेखन एवं संपादन
अध्ययन एवं गांधीवादी नीतियों पर आधारित सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने तथा अन्य रुचियों के अतिरिक्त साहित्य के क्षेत्र में भी उनकी उपलब्धियां रही हैं। उन्होंने उड़िया भाषा की एक मासिक पत्रिका "समता" तथा तत्कालीन सोशलिस्ट पार्टी द्वारा निकाली जाने वाली हिन्दी साप्ताहिक पत्रिका "चौखम्बा" का सम्पादन किया। संसदीय कूटनीति पर उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक काफ़ी चर्चित रही। वे हमारे राष्ट्रीय जीवन के सभी क्षेत्रों में सत्यनिष्ठा तथा पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए देश के विभिन्न भागों का भी दौरा करते रहे हैं। वे उड़िया, हिन्दी तथा अंग्रेजी की विभिन्न प्रमुख पत्रिकाओं में समकालीन राजनीतिक तथा सामाजिक मुद्दों पर भी नियमित रूप से लेख लिखते रहते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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