रामानुज प्रताप सिंह देव
रामानुज प्रताप सिंह देव कोरिया ज़िला, छत्तीसगढ़ के महाराज रहे थे। इनका जन्म वर्ष 1901 ई. में हुआ था। ये बहुत ही मेधावी और प्रसिद्ध देश प्रेमी थे। इनके जीवन पर पण्डित मोतीलाल नेहरू तथा पण्डित जवाहरलाल नेहरू का बहुत ही प्रभाव था। रामानुज प्रताप सिंह देव ने लंदन में हुए 'गोलमेज सम्मेलन' में भी भाग लिया था।
परिचय
रामानुज प्रताप सिंह देव का जन्म वर्ष 1901 में हुआ था। इनके पिता का नाम 'शिवमंगल सिंह देव' एवं माता का नाम 'रानी नेपाल कुंवर' था। वर्ष 1660 ई. के आस-पास इनका समस्त परिवार मैनपुरी से कोरिया ज़िला, छत्तीसगढ़ में आकर स्थापित हो गया था। 1920 ई. में छोटा नागपुर की राजकुमारी 'दुर्गादेवी' के साथ ये वैवाहिक सूत्र में बंध गये थे।[1]
शिक्षा एवं देश भक्ति
बाल्यकाल से ही रामानुज प्रताप सिंह देव प्रतिभावान एवं देश-प्रेमी के रुप में विख्यात रहे। इनकी प्राथमिक शिक्षा 'राजकुमार कॉलेज', रायपुर में हुई थी। बाद में स्नातक की उपाधि वर्ष 1924 में 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय' से प्राप्त की, जहाँ पर ये पं. मोतीलाल नेहरु तथा पं. जवाहरलाल नेहरु के सम्पर्क में आये तथा इन विभूतियों के सान्निध्य में ही इनको देश-भक्ति की प्रेरणा प्राप्त हुई। इन्होंने 1931 में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में महात्मा गांधी के साध सदस्य के रुप में भाग लिया था।[1]
सुधार कार्य
देश में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के दोहन एवं कारख़ाना क्षेत्र के श्रमिकों के प्रति संवेदनशील रहने के कारण तत्कालीन कोरिया ज़िले में इनके अथक प्रयासों से वर्ष 1928 में कोयला खदान का कार्य 'खरसिया' एवं 'चिरमिरी' में प्रारंभ किया गया। वर्ष 1941 में कोरिया ज़िले में संचालित शिक्षण संस्थानों में कक्षा आठवीं तक के बच्चों को मध्याह्न अल्पाहार में गुड़ और चना देना प्रारंभ किया गया। वर्ष 1946 में पंचायती राज कोरिया ज़िले में प्रथम बार लागू किया गया था। शिक्षा के क्षेत्र में यहाँ संचालित शेक्षणिक केन्द्रों में से 64 केन्द्रों में 'प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम' लागू किया गया। रामानुज प्रताप सिंह देव प्रत्येक शिक्षण केन्द्र का वर्ष में दो बार निरीक्षण स्वयं करते थे।
निधन
श्रमिकों के प्रति अति संवेदनशील होने के कारण वर्ष 1947 में कोरिया ज़िले द्वारा 'न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम'[2] पारित किया गया। रामानुज प्रताप सिंह देव द्वारा 'सेन्ट्रल प्राविंस' एवं 'बरार राज्य संविलयन' के दौरान वर्ष 1948 में कोरिया ज़िले के ख़ज़ाने की रुपये 1.20 करोड़ की राशि जमा कराई गई। इनका देहावसान 6 अगस्त, 1954 को हुआ। छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में श्रम एवं उत्पादकता वृद्धि के क्षेत्र में अभिनव प्रयत्नों के लिये 'महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव सम्मान' स्थापित किया है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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