सदाशिव मिश्र

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सदाशिव मिश्र (जन्म- 1857, पुरी, उड़ीसा; मृत्यु- 1929) संस्कृत के विद्वान और समाज सुधारक थे। उनका उड़ीसा में संस्कृत भाषा के प्रसार में प्रमुख योगदान रहा है। वे 'उत्कल भूषण' की उपाधि और 'महामहोपाध्याय' की पदवी से सम्मानित थे।

परिचय

उड़ीसा के संस्कृत विद्वान और समाज सुधारक पंडित सदाशिव मिश्र का जन्म 1857 ई. में पुरी जिले में हुआ था। उनकी शिक्षा प्राचीन परिपाटी के अनुसार हुई और बाद में उन्होंने बंगाल संस्कृत एसोसिएशन से 'काव्य कंठ' की उपाधि प्राप्त की। उन्हें 1889 ई. में पुरी के जिला स्कूल में हेड पंडित बनाया गया। इस पद पर उन्होंने 4 वर्ष तक काम किया। उनका प्रदेश में संस्कृत भाषा के प्रसार-प्रचार में बड़ा योगदान रहा। पुरी के वर्तमान संस्कृत कॉलेज की स्थापना उन्हीं के प्रयासों से हो सकी थी। जगन्नाथ मंदिर की व्यवस्था में भी उन्होंने अनेक सुधार कराए।[1]

संस्कृत का प्रचार-प्रसार

सदाशिव मिश्र का उड़ीसा में संस्कृत भाषा के प्रसार में बहुत बड़ा योगदान रहा है। वहां का वर्तमान 'वेद कर्मकांड विद्यालय' उन्हीं के प्रयत्नों का परिणाम है। पुरी के वर्तमान संस्कृत कॉलेज की स्थापना 1913 ई. में उन्होंने ही की थी। 'कल्याणपाद धर्म' नामक संस्कृत ग्रंथ उनकी एक और बड़ी देन है।

मान्यता का खंडन

उस समय की मान्यता के अनुसार हिंदुओं के लिए विदेश यात्रा वर्जित थी। जो विदेश यात्रा करता था, उसे बिरादरी से बाहर कर दिया जाता था। सदाशिव मिश्र ने शास्त्रों, स्मृतियों, पुराणों आदि का अध्ययन करके इस मान्यता का खंडन किया और विदेश यात्रा को दोषमुक्त सिद्ध किया।

सम्मान

सदाशिव मिश्र काशी हिंदू विश्वविद्यालय और पटना विश्वविद्यालय से भी संबद्ध थे। भारत धर्म महामंडल, वाराणसी ने उन्हें 'उत्कल भूषण' की उपाधि दी और सरकार ने 'महामहोपाध्याय' की पदवी से सम्मानित किया। बंगाल संस्कृत एसोसिएशन ने उन्हें 'काव्य कंठ' की उपाधि प्रदान की।

मृत्यु

उड़ीसा के संस्कृत विद्वान और समाज सुधारक पंडित सदाशिव मिश्र का 1929 ई. में स्वर्गवास हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 894 |

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