रेशमा
रेशमा
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पूरा नाम | रेशमा |
जन्म | 1947 |
जन्म भूमि | बीकानेर, राजस्थान (भारत) |
मृत्यु | 3 नवम्बर 2013 |
मृत्यु स्थान | लाहौर, पाकिस्तान |
कर्म-क्षेत्र | लोक गयिका |
पुरस्कार-उपाधि | सितारा-ए-इम्तियाज़[1], लीजेंड्स ऑफ पाकिस्तान |
प्रसिद्ध गीत | 'दमा दम मस्त कलंदर', 'हाय ओ रब्बा नइयों लगदा दिल मेरा', 'लंबी जुदाई', अंखियां नू रहण दे आदि |
अन्य जानकारी | राजकपूर ने फ़िल्म बॉबी में इनके गीत 'अंखियां नू रहण दे' की तर्ज का इस्तेमाल करते हुए लता मंगेशकर से 'अंखियों को रहने दे, अंखियों के आस-पास' गाना भी गवाया। |
रेशमा (अंग्रेज़ी: Reshma, जन्म: 1947 – मृत्यु: 3 नवम्बर 2013) सितारा-ए-इम्तियाज़ से सम्मानित पाकिस्तानी लोक गायिका थीं। वो भारत में भी काफ़ी लोकप्रिय थी। रेशमा प्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता-निर्देशक सुभाष घई की फ़िल्म हीरो के ‘लंबी जुदाई’ वाले गाने से भारत में बहुत मशहूर हुई थीं। राजस्थान के बीकानेर में रेशमा का जन्म हुआ था। रेशमा का भारत से भी गहरा रिश्ता रहा है। बंटवारे के बाद रेशमा का परिवार कराची चला गया था। 12 साल की उम्र से ही रेशमा गायकी में मशहूर हो गईं। पाकिस्तान रेडियो पर रेशमा ने अपना पहला सूफ़ी गाना लाल मेरी... गाया। बाद में ये एक बड़ी सूफ़ी गायिका के रूप में जानी गईं।
जीवन परिचय
1947 में राजस्थान के बीकानेर में एक बंजारा परिवार में जन्मी रेशमा लोक गायकी के लिए मशहूर रहीं। भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद उनका परिवार कराची जाकर बस गया। रेशमा ने संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी और वह दरगाह पर गाती थीं। ऐसे ही, शहबाज कलंदर की दरगाह पर 12 साल की नन्हीं रेशमा को गाते सुन कर एक टीवी एवं रेडियो प्रोड्यूसर ने पाकिस्तान के सरकारी रेडियो पर चर्चित गीत ‘लाल मेरी’ रेशमा से गवाने की व्यवस्था की। यह गीत बेहद लोकप्रिय हुआ और रेशमा पाकिस्तान के लोकप्रिय लोक गायकों में शामिल हो गईं। 1960 के दशक में रेशमा का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था और उन्होंने पाकिस्तानी तथा भारतीय फ़िल्म उद्योग में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। पाकिस्तानी बैंड ‘लाल’ के प्रमुख गायक शहराम अजहर ने बताया, वह अपने आप में एक संस्थान थीं और उनकी जैसी गायिका के जाने का मतलब एक युग का अवसान है। उनका जाना संगीत जगत की बहुत बड़ी क्षति है। हाय ओ रब्बा नहीं लगदा दिल मेरा और अंखियां नू रहने दे अंखियों दे कोल कोल जैसे गीत रेशमा की रेशमी आवाज़़ में सज कर मानो खुद पर इठलाते थे। उनकी आवाज़़ में अलग ही तरह की कशिश थी जो उनको सबसे अलग पहचान देती थी।[2]
प्रसिद्ध गीत
रेशमा 12 साल की उम्र में एक बार शाहबाज कलंदर की दरगाह पर गाती हुई दिखीं। रेशमा पर टीवी और रेडियो के एक प्रोड्यूसर की नज़र पड़ी। उन्होंने पाकिस्तान रेडियो पर 'लाल मेरी' की रिकॉर्डिंग का इंतजाम किया। रेशमा की यह रिकॉर्डिंग जबरदस्त हिट रही। वह 1960 के दशक से ही पाकिस्तान की टीवी पर गाने लगी थीं। उनकी आवाज़ में 'दमा दम मस्त कलंदर', 'हाय ओ रब्बा नइयों लगदा दिल मेरा' और 'अंखियां नू रहण दे' जैसे गाने लोगों की जुबान पर चढ़ गए। राजकपूर ने तो फ़िल्म बॉबी में 'अंखियां नू रहण दे' की तर्ज का इस्तेमाल करते हुए लता मंगेशकर से 'अंखियों को रहने दे, अंखियों के आस-पास' गाना भी गवाया।
रेशमा को उनकी माटी के बुलावे का वास्ता दिया वो ठेठ देशी मारवाड़ी लहजे में बोलीं, "अगर माटी बुलाव तो बताओ फेर मैं किया रुक सकू हूं?
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आर्थिक परेशानियाँ
एक दौर ऐसा भी आया जब रेशमा आर्थिक परेशानियों में घिर गईं। तब पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और संगीत प्रेमी परवेज मुशर्रफ ने उन्हें दस लाख रुपये दिए ताकि वह अपना ऋण चुका सकें। बाद में मुशर्रफ ने रेशमा के लिए प्रति माह 10,000 रुपये की सहायता भी निर्धारित कर दी। रेशमा को जब 6 अप्रैल 2013 को लाहौर के डॉक्टर्स हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था तो नजम सेठी की अगुवाई वाली तत्कालीन कार्यवाहक सरकार ने उनके चिकित्सकीय खर्च का भुगतान करने का फैसला किया था। रेशमा ने कहा था, मैं अमेरिका, कनाडा सहित कई देशों में गई। उसके बाद मैं भारत गई जहां लोगों ने मुझे काफ़ी सम्मान दिया।[2]
प्रसिद्ध लोक गायिका
लोक स्वर ऐसा जिसे सुनते हुए राजस्थान के रेगिस्तान की खुरदराहट और बंजारों की रगों में दौड़ती मस्ती पूरी शिद्दत से महसूस होती थी। ज्यादातर भारतीयों के लिए रेशमा से परिचय का अर्थ फ़िल्म 'हीरो' के गीत, चार दिनां दा प्यार हो रब्बा बड़ी लंबी जुदाई.. से है, लेकिन रेशमा ने जब-जब और जो भी गाया वह पूरे दिल से गाया। यह बख्शीश लोक से सींचे जाने पर ही मिलती है कि मंदर सप्तक से लेकर तार सप्तक तक रेशमा की आवाज़ में कहीं कोई टूटन नहीं आती। हाय ओ रब्बा नइयो लगदा दिल मेरा.. जैसा गीत गाकर वह हमारे अंदर छिपी हुई शाश्वत उदासी को धीरे-धीरे जगाते हुए मंझे हुए मनोवैज्ञानिक की तरह बाहर ले आती हैं। लोग इसे आज भी याद करते हैं कि पाकिस्तान के ही मशहूर गायक रहे और मेहदी हसन के शिष्य परवेज़ मेहदी के साथ गाया उनका गाना, गोरिए, मैं जाणा परदेस.. में किस तरह रेशमा की सुरीली हूंक परवेज की हरकतों और मुर्कियों पर भारी पड़ी थी। उनकी जवानी से लेकर बुढ़ापे के दौर तक में उनके साक्षात्कारों में एक साफगोई और अविरल विचार प्रवाह हमेशा नजर आया। उर्दू और पंजाबी के मिश्रण में बात करते हुए रेशमा ने कभी नहीं छुपाया कि वह पढ़ी-लिखी नहीं हैं और भाषा पर उनका कोई अधिकार नहीं है। न रेशमाजी ने वे अदाएं सीखीं जो नए लोग तब भी सीख लेते हैं जब उन्हें संगीत की सही समझ न हो। साक्षात्कार लेने वाले को वह कभी बाबू साहब, कभी बाबू तो कभी बेटा कह कर ही संबोधित करती थीं। भारत का ज़िक्र आते ही वह उस सम्मान के बारे में ज़रूर बात करती थीं जो उन्हें यहां मिला। स्टूडियो में जाने से घबराने वाली रेशमाजी के अनुरोध पर लंबी जुदाई गाना दिलीप कुमार के घर पर रिकॉर्ड हुआ था। वे उन चंद पाकिस्तानी कलाकारों में थीं जिन्हें पाकिस्तान ने समझा और कद्र भी की। यह कहना हालांकि बहुत रवायती होगा, लेकिन सच यही है कि सांस्कृतिक संदर्भो में रेशमा भारत और पाकिस्तान के बीच एक पुल की तरह थीं।[3]
व्यक्तित्व
रेशमा की मखमली आवाज़़ जब फ़िज़ा में गूंजती थी तो थार मरुस्थल का ज़र्रा-ज़र्रा कुंदन सा चमकने लगता। वे राजस्थान के शेखावाटी अंचल के एक गांव में पैदा हुईं थीं लेकिन उनका गायन कभी सरहद की हदों में नहीं बंधा। रेशमा को जब भी मौका मिला वो राजस्थान आती रहीं और सुरों को अपनी सर-ज़मी पर न्योछावर करती रहीं। लोगों को याद है जब रेशमा को वर्ष 2000 में सरकार ने दावत दी और वो खिंची चली आईं तब उन्होंने ने जयपुर में खुले मंच से अपनी प्रस्तुति दी और फ़िज़ा में अपने गायन का जादू बिखेरा। रेशमा ने न केवल अपना पसंदीदा 'केसरिया बालम पधारो म्हारे देश' सुनाया बल्कि 'लम्बी जुदाई' सुनाकर सुनने वालो को सम्मोहित कर दिया था। इस कार्यक्रम के आयोजन से जुड़े अजय चोपड़ा उन लम्हों को याद कर बताया कि जब रेशमा को दावत दी गई तो वो कनाडा जाने वाली थीं और कहने लगी उनको वीसा मिल गया है। मगर जब उनको अपनी माटी का वास्ता दिया गया तो रेशमा भावुक हो गईं। रेशमा को उनकी माटी के बुलावे का वास्ता दिया वो ठेठ देशी मारवाड़ी लहजे में बोलीं, "अगर माटी बुलाव तो बताओ फेर मैं किया रुक सकू हूं?" ये ऐसा मौका था जब राजस्थान की माटी में पैदा पंडित जसराज, जगजीत सिंह, मेहदी हसन और रेशमा जयपुर में जमा हुए और प्रस्तुति दी। होटल में रेशमा ने राजस्थानी ठंडई की ख्वाहिश ज़ाहिर की तो ठंडई का सामान मंगाया गया और रेशमा ने खुद अपने हाथ से ठंडई बनाई। "रेशमा अपने गांव, माटी और लोगों को याद कर बार-बार जज़्बाती हो जाती थीं। रेशमा ने मंच पर कई बार अपने गांव- देहात और बीते हुए दौर को याद किया और उन रिश्तों को अमिट बताया।"[4]
सम्मान और पुरस्कार
पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने उन्हें ‘सितारा ए इम्तियाज’ और ‘लीजेंड्स ऑफ पाकिस्तान’ सम्मान प्रदान किया था। उन्हें और भी कई राष्ट्रीय सम्मान मिले थे। भारत और पाकिस्तान के कलाकारों को जब 1980 के दशक में एक दूसरे के यहां अपनी प्रस्तुति देने की अनुमति मिली, रेशमा ने भारत में लाइव परफार्मेन्स दिया था। फ़िल्म निर्माता सुभाष घई ने उनकी आवाज़़ को अपनी फ़िल्म ‘हीरो’ में इस्तेमाल किया था और वह गीत ‘लंबी जुदाई’ था जिसे आज भी श्रोता पसंद करते हैं। उन्हें तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने के लिए बुलाया गया था।[2]
निधन
रेशमा का 3 नवम्बर 2013 को लाहौर, पाकिस्तान में निधन हो गया। रेशमा को गले का कैंसर था और वह लंबे समय से लाहौर के एक अस्पताल में भर्ती रहीं। रेशमा ने बाद में इसी अस्पताल में अंतिम सांस ली। अस्पताल सूत्रों के मुताबिक़ रेशमा क़रीब एक महीने से कोमा में थीं। बॉलीवुड की फ़िल्म 'हीरो' में उनका गाना 'लंबी जुदाई...' काफ़ी मशहूर हुआ था। 'हीरो' फ़िल्म के निर्देशक सुभाष घई सहित तमाम हस्तियों ने रेशमा के निधन पर शोक जताया। सुभाष घई ने कहा, 'रेशमा जी आज भी हमारे दिल में हैं। मैं जब भी सूफी गानों के बारे में सोचता हूं तो रेशमा जी याद आ आती है।'
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पाकिस्तान का तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार
- ↑ 2.0 2.1 2.2 लंबी जुदाई पर चली गईं हरदिल अजीज फनकार रेशमा (हिन्दी) ज़ी न्यूज़। अभिगमन तिथि: 5 नवम्बर, 2013।
- ↑ लंबी जुदाई पर चली गईं हरदिल अजीज फनकार रेशमा (हिन्दी) जागरण याहू इंडिया। अभिगमन तिथि: 5 नवम्बर, 2013।
- ↑ हमेशा के लिए जुदा हुईं 'लंबी जुदाई' वाली रेशमा (हिन्दी) बीबीसी हिंदी। अभिगमन तिथि: 5 नवम्बर, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
- रेशमा "लम्बी जुदाई" गाते हुए (यु-ट्यूब पर)
- रेशमा पंजाबी गीत "अक्खियाँ नूं रैहन दे" गाते हुए (यु-ट्यूब पर)
- बालीवुड की रेशमा को श्रद्धांजलि
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