वृष संक्रांति

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वृष संक्रांति अथवा वृषभ संक्रांति (अंग्रेज़ी: Vrishabha Sankranti) हिन्दू धर्म में मान्य प्रमुख संक्रांतियों में से एक है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सूर्य देव महीने में एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे संक्रान्ति कहते हैं। जब सूर्य देव अपनी उच्च राशि मेष से निकलकर वृषभ में प्रवेश करते हैं, तो इसे वृषभ संक्रांति कहा जाता है। सूर्य की इस राशि परिवर्तन से मौसम में परिवर्तन भी देखा जा सकता है। संस्कृत में वृषभ का अर्थ एक बैल से लिया जाता है। बैल को हिंदू धर्म में 'नंदी' कहा जाता है जो कि भगवान शिव का वाहक माना जाता है। इसलिए हिंदू भक्तों के लिए ऋषभ संक्रांति का उत्सव बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन लोग भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। भगवान विष्णु की पूजा करने से मनुष्य को खुशहाल और समृद्ध जीवन प्राप्त होता है और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

महत्त्व

हिंदू धर्म में वृषण संक्रांति का महत्त्व अत्यधिक माना जाता है। इस दिन सूर्य पूजा का विशेष महत्व माना गया है। वृषभ संक्रांति के दिन सूर्य उदय के समय सूर्य को अर्घ्य देने से भगवान सत्यनारायण की कृपा मनुष्य पर बनी रहती है। इस दिन सूर्य देव की आराधना करने से सूर्य ग्रह के संबंधी दोष दूर होते हैं। सूर्य आराधना करने से व्यक्ति को यश, कीर्ति और वैभव की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में वृषभ संक्रांति को मकर सक्रांति के समान माना जाता है। इस दिन पूजा पाठ और दान का विशेष महत्व बताया जाता है। इस दिन पवित्र नदी और कुंड में नहाने से के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। वृषण संक्रांति ज्येष्ठ महीने में आती है, इसलिए इस दौरान अन्न दान और जल दान का विशेष महत्व माना जाता है।

कथा

पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि बहुत समय पहले धरमदास नाम का एक वैश्य रहता था। वह बहुत ही दानी स्वभाव का था। एक दिन उसे अक्षय तृतीय के महत्व के बारे में पता चलता है कि शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर देवताओं और ब्राह्मण की पूजा करने से और दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। तब से वह अक्षय तृतीया का व्रत विधि विधान से करने लग जाता है। व्रत के दिन सत्तू, चना, गुड़, दही आदि सामग्रियों का दान करने लगता है। इसी बीच उसकी पत्नी ने उसे दान पुण्य करने से मना किया। परंतु वह नहीं माना और श्रद्धा भाव से उसने अक्षय तृतीया का व्रत पूरा किया। कुछ समय बाद धरमदास की मृत्यु हो जाती है। कहा जाता है कि कुछ दिन बाद उसका पुनर्जन्म राजा के रूप में द्वारका के माटी नगर में हुआ था। मान्यता है कि अक्षय तृतीया का व्रत करने से उसे फलस्वरूप राजयोग मिला। तब से वृषभ संक्रांति के दिन व्रत की बहुत मान्यता है।

पूजा विधि

  • वृषभ संक्रांति के दिन सुबह जल्दी उठकर घर की साफ सफाई की जाती है।
  • इस दिन पवित्र नदी या सरोवर में स्नान किया जाता है।
  • यदि पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करना संभव ना हो तो घर में ही पानी में गंगाजल डालकर स्नान किया जा सकता है।
  • स्नान करने के बाद सूर्य देव को जल दिया जाता है।
  • सूर्य देव को अर्घ्य देते समय मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
  • वृषभ संक्रांति के दिन पितरों का तर्पण किया जाता है।
  • वृषभ संक्रांति के दिन भगवान विष्णु और शिवजी की पूजा की जाती है।
  • इस दिन व्रत रखा जाता है और शाम को आरती के बाद फलाहार भोजन किया जाता है।
  • वृषभ संक्रांति के महीने में पानी पिलाना और भोजन कराना सबसे अधिक फलदाई माना जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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