शकीला का फ़िल्मी कॅरियर
शकीला का फ़िल्मी कॅरियर
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पूरा नाम | बादशाहजहाँ |
प्रसिद्ध नाम | शकीला |
जन्म | 1 जनवरी, 1936 |
मृत्यु | 20 सितम्बर, 2017 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | हिन्दी सिनेमा |
मुख्य फ़िल्में | 'चाईना टाउन', 'आरपार', 'सीआईडी', 'दो बीघा ज़मीन', 'अलिफ़ लैला', 'झांसी की रानी', 'हातिमताई', 'अब्दुल्ला' तथा 'काली टोपी लाल रूमाल' आदि। |
प्रसिद्धि | अभिनेत्री |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | शकीला जी को असली पहचान 1954 में प्रदर्शित सुपरहिट फिल्म ‘आरपार’ से मिली। इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक और नायक गुरु दत्त थे। ‘आरपार’ गुरु दत्त की बतौर निर्माता पहली फ़िल्म थी। संगीतकार ओ.पी. नैयर को भी इसी फ़िल्म से पहली सफलता मिली थी। |
बाहरी कड़ियाँ | 15:21, 23 जून 2017 (IST)
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अभिनेत्री शकीला का वास्तविक नाम 'बादशाहजहाँ' था। अपने समय की जानीमानी तथा खूबसूरत अभिनेत्रियों में उनकी गिनती की जाती थी। हिन्दी सिनेमा में सही सफलता उन्हें फ़िल्म 'आरपार' से मिली थी। यह फ़िल्म प्रसिद्ध अभिनेता और फ़िल्म निर्माता-निर्देशक गुरु दत्त की बतौर निर्माता पहली फ़िल्म थी, जिसने काफ़ी सफलता पाई।
कॅरियर
‘दास्तान’ के बाद शकीला जी ने ‘गुमास्ता’ (1951), ‘खूबसूरत’, ‘राजरानी दमयंती’, ‘सलोनी’, सिंदबाद द सेलर’ (सभी 1952) और ‘आगोश’, ‘अरमान’, ‘झांसी की रानी’ (सभी 1953) में बतौर बाल कलाकार अभिनय किया। सोहराब मोदी की फिल्म ‘झांसी की रानी’ में शकीला जी ने रानी लक्ष्मीबाई (अभिनेत्री मेहताब) के बचपन की भूमिका की थी। साल 1953 में प्रदर्शित हुई फिल्म ‘मदमस्त’ में वह पहली बार नायिका बनीं। इस फिल्म में उनके नायक एन.ए. अंसारी थे। फिल्म ‘मदमस्त’ को पार्श्वगायक महेंद्र कपूर की पहली फिल्म के तौर पर भी जाना जाता है। उन्होंने अपने कॅरियर का पहला गीत ‘किसी के ज़ुल्म की तस्वीर है मज़दूर की बस्ती’ इसी फिल्म में, गायिका धन इन्दौरवाला के साथ गाया था। साल 1953 में शकीला जी की बतौर नायिका दो और फिल्में ‘राजमहल’ और ‘शहंशाह’ प्रदर्शित हुईं।[1]
शकीला जी को असली पहचान साल 1954 में प्रदर्शित हुई सुपरहिट फिल्म ‘आरपार’ से मिली। इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक और नायक गुरु दत्त थे। ‘आरपार’ गुरु दत्त की बतौर निर्माता पहली फ़िल्म थी। संगीतकार ओ.पी. नैयर को भी इसी फ़िल्म से पहली सफलता मिली थी। इससे पहले उनकी तीनों फ़िल्में ‘आसमान’, ‘छमा छमा छम’ (दोनों 1952) और ‘बाज़’ (1953) फ्लॉप हो गयी थीं। फ़िल्म ‘आरपार’ में शकीला जी के अलावा एक और नायिका श्यामा भी थीं।
फैंटेसी फ़िल्मों में सफलता
शकीला जी के अनुसार- "होमी वाडिया के बैनर ‘बसंत पिक्चर्स’ की धार्मिक और फैंटेसी फिल्मों ‘वीर घटोत्कच’, ‘श्री गणेश माहिमा’, ‘लक्ष्मी नारायण’, ‘हनुमान पाताल विजय’ और ‘अलादीन और जादुई चिराग़’ जैसी फिल्मों की अभिनेत्री मीना कुमारी ‘बैजू बावरा’ (1952) की कामयाबी के बाद सामाजिक फ़िल्मों में व्यस्त हो गयी थीं। होमी वाडिया की अगली फैंटेसी फ़िल्म के लिए उनके पास समय ही नहीं था। उधर फ़िल्मों से जुड़े लोग मुझे बहुत पहले ही ‘अरबी चेहरा’ का ख़िताब दे चुके थे।
होमी वाडिया ने उस फिल्म में मीना की जगह मुझे लेना चाहा तो उन्हें टालने के लिए बुआ ने मेहनताने के तौर पर 10 हज़ार रूपए मांगे जो उस ज़माने के हिसाब से बहुत बड़ी रकम थी। लेकिन होमी वाडिया बिना किसी नानुकुर के उतना पैसा देने को तैयार हो गए। ऐसे में मुझे उनकी फ़िल्म ‘अलीबाबा 40 चोर’ करनी ही पड़ी। इस फिल्म में मेरे हीरो महिपाल थे। साल 1954 में बनी ये फ़िल्म इतनी कामयाब हुई कि मुझे फैंटेसी और कॉस्ट्यूम फिल्मों के ही ऑफ़र आने लगे।[1]
शकीला जी ने अगले 10 सालों में ‘गुलबहार’, ‘लालपरी’, ‘लैला’, ‘नूरमहल’, ‘रत्नमंजरी’, ‘शाही चोर’, ‘हातिमताई’, ‘खुल जा सिमसिम’, ‘अलादीन लैला’, ‘माया नगरी’, ‘नागपद्मिनी’, ‘परिस्तान’, ‘सिमसिम मरजीना’, ‘डॉक्टर ज़ेड’, ‘अब्दुल्ला’ और ‘बगदाद की रातें’ जैसी कई फ़िल्मों में महिपाल, जयराज, दलजीत और अजीत जैसे नायकों के साथ काम किया।
महिपाल के साथ उनकी जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया। इस दौरान उन्होंने देव आनंद के साथ ‘सी.आई.डी.’ (1956), सुनील दत्त के साथ ‘पोस्ट बाक्स 999’ (1958), राज कपूर के साथ ‘श्रीमान सत्यवादी’ (1960), मनोज कुमार के साथ ‘रेशमी रूमाल’ (1961) और शम्मी कपूर के साथ ‘चायना टाऊन’ (1962) जैसी फ़िल्में भी कीं, लेकिन उनकी पहचान फैंटेसी फिल्मों की नायिका की ही बनी रही। शकीला जी ने 14 साल के अपने कॅरियर में कुल 72 फिल्मों में अभिनय किया। उनकी आख़िरी फिल्म ‘उस्तादों के उस्ताद’ थी, जो साल 1963 में प्रदर्शित हुई थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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