हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला
हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में स्थित है। संस्थान हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू व कश्मीर के राज्यों की अनुसंधान आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। परिषद द्वारा संस्थान को एक उन्नत शीत मरुस्थल वन रोपण तथा चरागाह प्रबंधन के लिए उन्नत केंद्र घोषित कर दिया है, ताकि इन कठोर क्षेत्रों के पारि-पुर्नर्स्थापन में उन्नत अनुसंधान किया जा सके।
स्थापना
इस संस्थान की स्थापना 1977 में एक उच्च स्तरीय 'कानीफर उत्थान अनुसंधान केंद्र' के रूप में सिल्वर देवदार तथा प्रसरल वृक्ष के प्राकृतिक पुनजनन से संबंधित समस्याओं पर अनुसंधान के लिए की गई थी। संस्थान ने अपनी गौरवशाली शुरूआत इस केंद्र से की तथा 'भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद' (भा.वा.अ.शि.प.) में वानिकी अनुसंधान के पुर्नसंस्थापन के समय, 1988 में भारत सरकार ने शीतोष्ण परितंत्र की समस्याओं को समझा तथा इस केंद्र को एक पूर्ण अनुसंधान संस्थान में अद्यतन कर दिया।[1]
कार्य
संस्थान का अधिदेश हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू व कश्मीर के शीतोष्ण, उच्च पर्वतीय तथा शीत मरुस्थलीय क्षेत्रों पर कार्य है, ताकि उपर्युक्त 'हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान' के अधिदेशित राज्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके तथा 2007 के दौरान दुबारा चर्चा की गई तथा संशोधित अधिदेश इस प्रकार है[1]-
- महत्वपूर्ण पादप प्रजातियों के प्राकृतिक पुर्नजनन की वर्तमान स्थिति का आकलन करना।
- महत्वपूर्ण पादप प्रजातियों की कीमत को प्रभावित करने वाली पौधशाला, रोपण तथा बीज तकनीकों का विकास करना।
- खदानों वाले क्षेत्रों, तनाव स्थलों तथा अन्य भंगुर क्षेत्रों के पुनर्वासन के लिए तकनीकों का विकास करना।
- शीत मरुस्थलों की प्रजातियों का सर्वेक्षण, पहचान तथा प्रलेखन तथा महत्वपूर्ण पादपों में जैव संहति के लिए सही तकनीकों का विकास करना।
- उच्च पर्वतीय चरागाहों की उत्पादन क्षमता तथा निचले घास के मैदानों का सर्वेक्षण तथा आकलन करना।
- बीजों, पौधशाला, रोपण तथा प्राकृतिक वनों के लिए आर्थिक रूप से सही तथा पर्यावरण सहयोगी कीट तथा रोग प्रबंधन तकनीकों का विकास करना।
- व्यवसायिक रूप से महत्वपूर्ण अकाष्ठ वन उत्पादों के लिए कृषि की तकनीकों के विकास सहित वनस्पति संरक्षण की स्थिति का आकलन करना।
- जैव ईंधन प्रजातियों सहित विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों को अपनी उनकी आपके संपूरक के लिए बहुउद्देशीय वृक्ष प्रजातियों की पहचान तथा इनके बारे में जागरूकता लाना।
- शीतोष्ण पारितंत्रों में वैश्विक गर्मी से संबंधित विभिन्न पहलुओं का अध्ययन तथा विश्लेषण।
- वानिकी आधारित समुदायों की आजीविका को बढ़ाने के लिए मूल्य प्रभावी वानिकी प्रबंधन कार्यप्रणालियों को बढ़ाना तथा पहचान करना।
- शहरी वानिकी पर अनुसंधान/अध्ययन करना, जो कि एक अन्य उभरता क्षेत्र है।
- पारिस्थितिकी, जैवविविधता संरक्षण, कीट गिराव, अकाष्ठ वन उपजों तथा वन संवर्ध महत्व से संबंधित मामलों के क्षेत्र में परामर्शी सेवाएँ लेना।
अधिदेश
'हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान' का अधिदेश खान वाले क्षेत्रों की शीत मरुस्थलों के पारि-पुर्नस्थापन से संबंधित अनुसंधान आवश्यकताओं तथा शंकुधारी तथा पर्णपाती वनों, प्रबंधन कार्य प्रणाली पर क्रियाकलापों के अतिरिक्त शीतोष्ण तथा अल्पाइन क्षेत्रों में भी कीट प्रबंधन सहित, वानिकी अनुसंधान की आवश्यकताओं की पूर्ति को बढ़ा दिया गया है। कृषि वानिकी को लोकप्रिय बनाने तथा अन्य विस्तार क्रियाकलाप भी इस अधिदेश में सम्मिलित हैं। अब यह केंद्र 'हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान', शिमला के रूप में पुनः नामित किया गया है तथा यह हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू व कश्मीर की बढ़ती हुई जिम्मेदारियों के साथ (भा.वा.अ.शि.प.) का एक क्षेत्रीय संस्थान बन गया है। इस संस्थान ने सिल्वर देवदार तथा प्रसरल वृक्ष के बीजों, पौधाशाला कार्नप्रणाली तथा रोपण तकनीकों पर अनुसंधान करके इनके कृत्रिम पुर्नजनन में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
अन्य उपलब्धियाँ
पौधाशाला तथा रोपण तकनीकों का विकास तथा अन्य शंकुधारी, जैसे- देवदार, टैक्सस, चीर-पाइन, ब्ल्यू पाइन उसके पत्तों वाले सहयोगी, जैसे- बर्ड चैरी, हार्सचैसजद ओक, मौपल्स, पापुलर तथा शीत मरुस्थलों क्षेत्रों की स्थानिक प्रजातियाँ हैं। संस्थान की अनुसंधान तथा विस्तार क्रियाकलाप हिमाचल प्रदेश के निम्न तथा मध्य पहाड़ियों में कृषि वानिकी के नमूनों की स्थापना तथा मानकीकृत करना, खान से नुकसान वाले क्षेत्रों का पारिस्थितिकी आर्थिक पुनर्वास तथा उपभोक्ता समूह के लिए कार्यशाला तथा प्रशिक्षण का आयोजन करना है। जम्मू व कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश के शीत मरुस्थलों में वनस्पति के प्रलेखन तथा शीत मरुस्थलों की स्थानिक प्रजातियों के लिए पौधाशाला तकनीकों को मानकीकृत करने सहित विचारणीय कार्य किए गए है।[1]
वन्य जीव अभारण्यों में पादप विविधता तथा पशु पादप संबंधों के आकलन का अध्ययन इस उम्मीद पर किया गया कि संस्थान आने वाले समय में इन पहलुओं पर भी अपना योगदान देगा। देवदार, शीशम, चीर पाइन, ब्ल्यू पाइन, सीरिस, ओक तथा विलोव पर खोजे की गई तथा हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू व कश्मीर राज्य वन विभागों को सुधारात्मक उपाय सुझाए गए। औषधीय पादपों विशेषतयः शीतोष्ण क्षेत्र की कृषि कार्यप्रणालियों के मानकीकरण में भी अच्छी सफलता प्राप्त की गई है। इस प्रकार संस्थान ने इस सबसे अधिक भंगुर, संवेदनशील तथा आयानी से प्रभावित होने वाले पारितंत्र में हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू व कश्मीर राज्यों के वन पारितंत्र को अच्छे तथा वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए अपनी विशेषज्ञता का योगदान दिया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 14 सितम्बर, 2013।
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