रघुवंश प्रसाद सिंह
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पूरा नाम | रघुवंश प्रसाद सिंह |
अन्य नाम | रघुवंश बाबू |
जन्म | 6 जून, 1946 |
जन्म भूमि | वैशाली, बिहार |
मृत्यु | 13 सितंबर, 2020 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली |
पति/पत्नी | जानकी देवी |
संतान | पुत्र- सत्यप्रकाश, शशि शेखर; एक पुत्री |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | राजनीतिज्ञ |
पार्टी | राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) |
कार्य काल | पशुपाल और डेयरी मंत्री- 1996-1997 |
अन्य जानकारी | 1974 में जेपी मूवमेंट के समय में 'मीसा' के तहत रघुवंश प्रसाद जी की गिरफ्तारी हुई और वो मुजफ्फरपुर जेल में बंद किए गए। बाद में पटना के बांकीपुर जेल में ट्रांसफर किया गया, जहां उनकी पहली बार लालू प्रसाद यादव से मुलाकात हुई। |
रघुवंश प्रसाद सिंह (अंग्रेज़ी: Raghuvansh Prasad Singh, जन्म- 6 जून, 1946, वैशाली, बिहार; मृत्यु- 13 सितंबर, 2020, दिल्ली) बिहार की राजनीति में ख़ासा प्रभाव रखने वाले राजनीतिज्ञ थे। उनका सम्बंध भारत के राजनीतिक दल राष्ट्रीय जनता दल से था। रघुवंश प्रसाद सिंह चौदहवीं लोकसभा के सदस्य थे। उनकी पहचान बिहार की राजनीति में समाजवादी नेता के तौर पर होती थी। वह पिछड़ों की पार्टी कहे जाने वाले राजद में सवर्णों के सबसे बड़े चेहरे और लालू प्रसाद यादव के सबसे करीबी थे। कहते हैं कि नेता वही जो सबका जनप्रतिनिधि हो। जो सवर्ण-दलित में भेद न करे और दोनों के विकास की बात करे। आज के दौर में जब किसी पार्टी प्रमुख के खिलाफ नेताओं के कंठ से आवाज तक नहीं निकलती, लोगों को पद छिन जाने का डर होता है, वैसे दौर में गणित डिग्रीधारी 'प्रोफेसर साहब' यानि रघुवंश प्रसाद सिंह का गणित बिल्कुल अलग था।
परिचय
रघुवंश प्रसाद सिंह का जन्म 6 जून, 1946 को वैशाली, बिहार में हुआ था। वह अपने दो भाइयों में बड़े थे। उनके छोटे भाई रघुराज सिंह का पहले ही देहांत हो चुका है। रघुवंश प्रसाद सिंह की धर्मपत्नी जानकी देवी भी इस दुनिया में नहीं हैं। रघुवंश बाबू को दो बेटे और एक बेटी है। उनके परिवार से उनके अलावा कोई दूसरा सदस्य राजनीति में सक्रिय नहीं था।
रघुवंश प्रसाद जी के दोनों बेटे इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके नौकरी कर रहे हैं। जिसमें बड़े बेटे सत्यप्रकाश दिल्ली में इंजीनियर हैं और वहीं नौकरी करते हैं जबकि उनका छोटा बेटा शशि शेखर भी पेशे से इंजीनियर हैं जो हांगकांग में नौकरी करते हैं। इसके अलावा जो एक बेटी है वो पत्रकार है और टीवी चैनल में काम करती हैं।
जब रघुवंश प्रसाद सिंह से ये जानना चाहा गया था कि आखिर उनके अलावा परिवार के किसी दूसरे सदस्य ने राजनीति में कदम क्यों नहीं रखा तो रघुवंश बाबू ने बड़ी बेबाकी से कहा था कि- "आज जिस हालत में हम अभी पड़े हैं, अपने बच्चों को भी उसी में धकेल देते ये हरगिज सही नहीं होता। ये भी कोई भला जिंदगी है पूरे जीवन भर त्याग, त्याग और सिर्फ त्याग"।[1]
जेल यात्राएँ
रघुवंश प्रसाद सिंह राजनेता बाद में बने और प्रोफेसर पहले। बिहार यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने के बाद डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह ने साल 1969 से 1974 के बीच करीब 5 सालों तक सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में बच्चों को गणित पढ़ाया। गणित के प्रोफेसर के तौर पर डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने नौकरी भी की और इस बीच कई आंदोलनों में वह जेल भी गए। पहली बार 1970 में रघुवंश प्रसाद टीचर्स मूवमेंट के दौरान जेल गए। उसके बाद जब वो कर्पूरी ठाकुर के संपर्क में आए तब साल 1973 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के आंदोलन के दौरान फिर से जेल चले गए। इसके बाद तो उनके जेल आने जाने का सिलसिला ही शुरू हो गया।
जानकारी के मुताबिक़ रघुवंश प्रसाद सिंह करीब 11 बार जेल गए। इसमें साल 1974 यानि जेपी के आंदोलन में रघुवंश प्रसाद सिंह ने खूब बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और फिर दोबारा से उन्हें जेल में बंद कर दिया गया। इन दिनों केंद्र और बिहार में कांग्रेस पार्टी की हुकूमत थी। आपात काल के दौरान जब बिहार में जगन्नाथ मिश्र की सरकार थी तो बिहार सरकार ने जेल में बंद रघुवंश प्रसाद सिंह को प्रोफेसर के पद से बर्खास्त कर दिया। सरकार के इस फैसले के बाद रघुवंश प्रसाद सिंह ने कभी मुड़कर पीछे नहीं देखा और फिर कर्पूरी ठाकुर और जयप्रकाश नारायण के रास्ते पर तेज़ीसे चल पड़े।
लालू-रघुवंश मित्रता
जब 1974 में जेपी मूवमेंट के समय में 'मीसा' के तहत रघुवंश प्रसाद की गिरफ्तारी हुई और वो मुजफ्फरपुर जेल में बंद किए गए। उसी समय उन्हें मुजफ्फरपुर से पटना के बांकीपुर जेल में ट्रांसफर किया गया, जहां उनकी पहली बार लालू प्रसाद यादव से मुलाकात हुई। उस दौरान लालू पटना यूनिवर्सिटी में स्टूडेंट लीडर थे और जेपी मूवमेंट में काफी सक्रिय थे। लालू शुरू से ही एक जुझारू नेता थे। बहुत जल्द किसी के साथ घुल-मिल जाना लालू यादव की खासियत थी और फिर उसी बांकीपुर जेल में जब से लालू यादव से मुलाकात हुई तभी से लालू-रघुवंश में दोस्ती शुरू हो गई।[1]
राजनीतिक सफर
रघुवंश प्रसाद सिंह 1977 से 1979 तक वे बिहार सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे। इसके बाद उन्हें लोकदल का अध्यक्ष भी बनाया गया, फिर साल 1985 से 1990 के दौरान रघुवंश प्रसाद लोक लेखांकन समिति के अध्यक्ष भी रहे। लोकसभा के सदस्य के तौर पर उनका पहला कार्यकाल साल 1996 से शुरू हुआ। साल 1996 के लोकसभा चुनाव में वो निर्वाचित हुए और उन्हें बिहार राज्य के लिए केंद्रीय पशुपालन और डेयरी उद्योग राज्यमंत्री बनाया गया। लोकसभा में दूसरी बार रघुवंश प्रसाद सिंह साल 1998 में निर्वाचित हुए और साल 1999 में तीसरी बार वो लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। साल 2004 में चौथी बार उन्हें लोकसभा सदस्य के रूप में चुना गया और 23 मई, 2004 से 2009 तक वे ग्रामीण विकास के केंद्रीय मंत्री रहे। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने पांचवी बार जीत दर्ज की। ==लालू के संकटमोचक रघुवंश बाबू (रघुवंश प्रसाद सिंह) को लालू प्रसाद यादव का संकटमोचक कहा जाता था। वह बिहार में पिछड़ों की पार्टी का तमगा हासिल करने वाले आरजेडी का सबसे बड़ा सवर्ण चेहरा भी थे। बिहार और समूचे देश भर में रघुवंश प्रसाद सिंह की पहचान एक प्रखर समाजवादी नेता के तौर पर थी। बेदाग और बेबाक अंदाज़वाले रघुवंश बाबू को शुरू से ही पढ़ने और लोगों के बीच में रहने का शौक रहा था।
पार्टी के उपाध्यक्ष पद से पहले ही इस्तीफा दे चुके रघुवंश बाबू ने लालू प्रसाद को चिठ्ठी भेजकर राजद से इस्तीफा दे दिया था। आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को संबोधित करते हुए लिखा था कि- "जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीछे-पीछे खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं। पार्टी नेता कार्यकर्ता और आमजनों ने बड़ा स्नेह दिया। मुझे क्षमा करें।" हालांकि राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने रघुवंश बाबू की इस चिट्ठी का जवाब देते हुए कहा था कि- "वे कहीं नहीं जा रहे।"[1]
निधन
'राष्ट्रीय जनता दल' के संस्थापकों में से एक रघुवंश प्रसाद सिंह का निधन 13 सितंबर, 2020 (रविवार) को दिल्ली में हुआ। उन्होंने दिल्ली स्थित एम्स में इलाज के दौरान दम तोड़ा। वह काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। उन्हें आईसीयू में रखा गया था, जहां उन्होंने अंतिम सांसें लीं।
प्रेरक प्रसंग
पत्रकारों के लिए भी रघुवंश प्रसाद सिंह कई यादें छोड़ गए। बात 2005 के सितंबर की है जब बिहार में आरजेडी की सत्ता जाने के कगार पर थी। उसी वक्त पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में आरजेडी की एक बैठक बुलाई गई थी। माइक और कैमरा लिए कई पत्रकार सीढ़ियों पर इंतजार करने लगे। कई नेता गुजरे लेकिन अचानक रघुवंश बाबू पर एक पत्रकार की नजर पड़ी। वह उनके सामने आ गया और लॉ एंड ऑर्डर से जोड़ते हुए खटाक से उनसे सवाल पूछा कि 'सर, बिहार के अफसरों को अगर नंबर देने की बात आए तो आप निजी तौर पर क्या नंबर देंगे।' रघुवंश बाबू ने आरजेडी के बड़े नेताओं की मौजूदगी में एक लाइन कही और सब भौंचक्के रह गए। उन्होंने कहा कि 'मैं तो बिहार के अफसरों को पास मार्का भी नहीं दूंगा।' बिहारी शब्दावली में पास मार्का न देना मतलब फेल से भी बदतर होता है। पत्रकार के लिए इतना जवाब काफी था तो कैमरा बंद कर दिया। तभी रघुवंश बाबू ने उसके सिर पर हाथ रखा और एक बच्चे की तरह सहलाकर बोले कि 'अगर सीधे-सीधे बिहार के लॉ एंड ऑर्डर के लिए आरजेडी की नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए भी सवाल पूछता तो भी उनका जवाब ठीक वही होता जो मेरे घुमाकर पूछे गए सवाल का था।'
जात न पूछो साधु की
एक कहावत है कि "जात न पूछो साधु की"। रघुवंश बाबू भी कुछ ऐसे ही थे। 1977 में जब बिहार में मुख्यमंत्री पद के लिए रघुवंश बाबू के सजातीय यानि राजपूत बिरादरी के सत्येंद्र नारायण सिंह और पिछड़े वर्ग के कर्पूरी ठाकुर के नाम की चर्चा थी, तब रघुवंश बाबू ने कुछ ऐसा किया कि सब उनके मुरीद हो गए। सीएम चुनने के लिए जब विधायकों की वोटिंग हुई तो 33 में से 17 राजपूत विधायकों ने कर्पूरी ठाकुर के पक्ष में वोट दिया। उन 17 विधायकों में से एक रघुवंश प्रसाद सिंह भी थे, जिन्होंने अपनी जाति को समाजवाद के लिए ताक पर रख दिया।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 गणित के प्रोफेसर से लेकर केंद्रीय मंत्री तक, कुछ ऐसा था रघुवंश बाबू का राजनीतिक सफर (हिंदी) news18.com। अभिगमन तिथि: 14 सितंबर, 2020।
- ↑ ऐसे थे प्रोफेसर साहब (हिंदी) navbharattimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 14 सितंबर, 2020।
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