तुला संक्रांति (अंग्रेज़ी: Tula Sankranti) का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इसे कार्तिक संक्रांति भी कहते हैं। इस दिन सूर्य देव कन्या राशि को छोड़कर तुला राशि में प्रवेश करते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार तुला संक्रांति के दिन तीर्थ स्नान, दान और सूर्य की पूजा अर्चना करने से जातक की उम्र और आजीविका में वृद्धि होती है तथा सभी ग्रह दोष से मुक्ति मिलती है।
पूजा विधान
तुला संक्रांति के दिन धन की देवी महालक्ष्मी की पूजा का विधान है, मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना करने से धन की कमी नहीं होती और हमेशा पद प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। सूर्य देव को सभी ग्रहों का स्वामी कहा जाता है। ज्योतिषशास्त्र में राशि परिवर्तन को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। कहा जाता है कि राशि परिवर्त का अन्य राशियों पर भी असर पड़ता है।[1]
साल में 12 संक्रांति
सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति कहते हैं। संक्रांति एक सौर घटना है। हिन्दू कैलेंडर और ज्योतिष के मुताबिक पूरे साल में 12 संक्रान्तियां होती हैं। हर राशि में सूर्य के प्रवेश करने पर उस राशि का संक्रांति पर्व मनाया जाता है। हर संक्रांति का अलग महत्व होता है। शास्त्रों में संक्रांति की तिथि एवं समय को बहुत महत्व दिया गया है। संक्रांति पर पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि का बहुत महत्व है।
क्या है तुला संक्रांति
सूर्य का तुला राशि में प्रवेश करना तुला संक्रांति कहलाता है। यह त्योहार हिंदू कैलेंडर के कार्तिक महीने में पड़ता। कुछ राज्य में इस पर्व का अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। इनमें मुख्य उड़ीसा और कर्नाटक है। यहां के किसान इस दिन को अपनी चावल की फसल के दाने के आने की खुशी के रूप में मनाते हैं। इन राज्यों में इस पर्व को बहुत अच्छे ढंग से मनाया जाता है। तुला संक्रांति का कर्नाटक और उड़िसा में खास महत्व है। इसे तुला संक्रमण भी कहा जाता है। इस दिन कावेरी नदी के तट पर मेला लगता है, जहां स्नान और दान-पुण्य किया जाता है।
चढ़ाए जाते हैं ताजे धान
- तुला संक्रांति और सूर्य के तुला राशि में रहने वाले पूरे एक महीने तक पवित्र जलाशयों में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है।
- तुला संक्रांति का वक्त जो होता है, उस दौरान धान के पौधों में दाने आना शुरू हो जाते हैं। इसी खुशी में मां लक्ष्मी का आभार जताने के लिए ताजे धान चढ़ाए जाते हैं।
- कई इलाकों में गेहूँ और कारा पौधे की टहनियां भी चढ़ाई जाती हैं। मां लक्ष्मी से प्रार्थना की जाती है कि वो उनकी फसल को सूखा, बाढ़, कीट और बीमारियों से बचाकर रखें और हर साल उन्हें लहलहाती हुई ज्यादा फसल दें।[1]
- इस दिन देवी लक्ष्मी की विशेष पूजन का भी विधान है। माना जाता है इस दिन देवी लक्ष्मी का परिवार सहित पूजन करने और उन्हें चावल अर्पित करने से भविष्य में कभी भी अन्न की कमी नहीं आती।
कथा
प्राचीन भारतीय साहित्य स्कंदपुराण में कावेरी नदी की उत्पत्ति से संबंधित कई कहानियां शामिल हैं। इसमें से एक कहानी विष्णु माया नामक एक लड़की के बारे में है। जो भगवान ब्रह्मा की बेटी थी जो बाद में कावेरा मुनि की बेटी बन गई थी। कावेरा मुनि ने ही विष्णु माया को कावेरी नाम दिया था। अगस्त्य मुनि को कावेरी से प्रेम हो गया और उन्होंने उससे विवाह कर लिया था। एक दिन अगस्त्य मुनि अपने कामों में इतने व्यस्त थे कि वे अपनी पत्नी कावेरी से मिलना भूल जाते हैं। उनकी लापरवाही के कारण, कावेरी अगस्त्य मुनि के स्नान क्षेत्र में गिर जाती है और कावेरी नदी के रूप में भूमि पर उद्धृत होती है। तभी से इस दिन को 'कावेरी संक्रमण' या फिर 'तुला संक्रांति' के रूप में जाना जाता है।[2]
पूजा विधि
तुला संक्रांति के दिन देवी लक्ष्मी और देवी पार्वती का पूजन करें। इस दिन देवी लक्ष्मी को ताजे चावल, अनाज, गेहूं और कराई पौधों की शाखाओं के साथ भोग लगायें। देवी पार्वती को सुपारी के पत्ते, चंदन के लेप के साथ भोग लगायें। तुला संक्रांति का पर्व अकाल तथा सूखे को कम करने के लिए मनाया जाता है, ताकि फसल अच्छी हो और किसानों को अधिक से अधिक कमाई करने का लाभ प्राप्त हो। कर्नाटक में नारियल को एक रेशम के कपड़े से ढका जाता है और देवी पार्वती का प्रतिनिधित्व मालाओं से सजाया जाता है। उड़ीसा में एक और अनुष्ठान चावल, गेहूं और दालों की उपज को मापना है ताकि कोई कमी ना हो।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 सूर्य के तुला राशि में प्रवेश करने पर पूजा करने से नहीं आती है अन्न की कमी (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 02 सितंबर, 2021।
- ↑ जानिए तुला संक्रांति की कथा और पूजन विधि (हिंदी) amarujala.com। अभिगमन तिथि: 16 सितंबरaccessyear=2021, {{{accessyear}}}।
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