"आलपिन कांड -अशोक चक्रधर": अवतरणों में अंतर
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{{सूचना बक्सा कविता | |||
|चित्र=Ashok chakradhar-1.jpg | |||
|चित्र का नाम=अशोक चक्रधर | |||
|कवि =[[अशोक चक्रधर]] | |||
|जन्म=8 फ़रवरी, 1951 | |||
|जन्म स्थान=खुर्जा, [[उत्तर प्रदेश]] | |||
|मृत्यु= | |||
|मृत्यु स्थान= | |||
|मुख्य रचनाएँ=बूढ़े बच्चे, भोले भाले, तमाशा, बोल-गप्पे, मंच मचान, कुछ कर न चम्पू , अपाहिज कौन , मुक्तिबोध की काव्यप्रक्रिया | |||
|यू-ट्यूब लिंक= | |||
|शीर्षक 1= | |||
|पाठ 1= | |||
|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|बाहरी कड़ियाँ=[http://chakradhar.in/ आधिकारिक वेबसाइट] | |||
}} | |||
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<div style="border:thin solid #a7d7f9; margin:10px"> | |||
{| align="center" | |||
! अशोक चक्रधर की रचनाएँ | |||
|} | |||
<div style="height: 250px; overflow:auto; overflow-x: hidden; width:99%"> | |||
{{अशोक चक्रधर की रचनाएँ}} | |||
</div></div> | |||
|} | |||
===आलपिन कांड=== | |||
[[चित्र:Chair-neta.jpg|250px]] | |||
{{Poemopen}} | |||
<poem> | |||
बंधुओ, उस बढ़ई ने | |||
चक्कू तो ख़ैर नहीं लगाया | |||
पर आलपिनें लगाने से | |||
बाज़ नहीं आया। | |||
ऊपर चिकनी-चिकनी रैग्ज़ीन | |||
अंदर ढेर सारे आलपीन। | |||
तैयार कुर्सी | |||
नेताजी से पहले दफ़्तर में आ गई, | |||
नेताजी आए | |||
तो देखते ही भा गई। | |||
और, | |||
बैठने से पहले | |||
एक ठसक, एक शान के साथ | |||
मुस्कान बिखेरते हुए | |||
उन्होंने टोपी संभालकर | |||
मालाएं उतारीं, | |||
गुलाब की कुछ पत्तियां भी | |||
कुर्ते से झाड़ीं, | |||
फिर गहरी उसांस लेकर | |||
चैन की सांस लेकर | |||
कुर्सी सरकाई | |||
और भाई, बैठ गए। | |||
बैठते ही ऐंठ गए। | |||
दबी हुई चीख़ निकली, सह गए | |||
पर बैठे-के-बैठे ही रह गए। | |||
उठने की कोशिश की | |||
तो साथ में कुर्सी उठ आई | |||
उन्होंने ज़ोर से आवाज़ लगाई- | |||
किसने बनाई है? | |||
चपरासी ने पूछा- क्या? | |||
क्या के बच्चे कुर्सी! | |||
क्या तेरी शामत आई है? | |||
जाओ फ़ौरन उस बढ़ई को बुलाओ। | |||
बढ़ई बोला- | |||
सर मेरी क्या ग़लती है | |||
यहां तो ठेकेदार साब की चलती है। | |||
उन्होंने कहा- | |||
कुर्सियों में वेस्ट भर दो | |||
सो भर दी | |||
कुर्सी आलपिनों से लबरेज़ कर दी। | |||
मैंने देखा कि आपके दफ़्तर में | |||
काग़ज़ बिखरे पड़े रहते हैं | |||
कोई भी उनमें | |||
आलपिनें नहीं लगाता है | |||
प्रत्येक बाबू | |||
दिन में कम-से-कम | |||
डेढ़ सौ आलपिनें नीचे गिराता है। | |||
और बाबूजी, | |||
नीचे गिरने के बाद तो | |||
हर चीज़ वेस्ट हो जाती है | |||
कुर्सियों में भरने के ही काम आती है। | |||
तो हुज़ूर, | |||
उसी को सज़ा दें | |||
जिसका हो कुसूर। | |||
ठेकेदार साब को बुलाएं | |||
वे ही आपको समझाएं। | |||
अब ठेकेदार बुलवाया गया, | |||
सारा माजरा समझाया गया। | |||
ठेकेदार बोला- | |||
बढ़ई इज़ सेइंग वैरी करैक्ट सर! | |||
हिज़ ड्यूटी इज़ ऐब्सोल्यूटली | |||
परफ़ैक्ट सर! | |||
सरकारी आदेश है | |||
कि सरकारी सम्पत्ति का सदुपयोग करो | |||
इसीलिए हम बढ़ई को बोला | |||
कि वेस्ट भरो। | |||
ब्लंडर मिस्टेक तो आलपिन कंपनी के | |||
प्रोपराइटर का है | |||
जिसने वेस्ट जैसा चीज़ को | |||
इतना नुकीली बनाया | |||
और आपको | |||
धरातल पे कष्ट पहुंचाया। | |||
वैरी वैरी सॉरी सर। | |||
अब बुलवाया गया | |||
आलपिन कंपनी का प्रोपराइटर | |||
पहले तो वो घबराया | |||
समझ गया तो मुस्कुराया। | |||
बोला- | |||
श्रीमान, | |||
मशीन अगर इंडियन होती | |||
तो आपकी हालत ढीली न होती, | |||
क्योंकि | |||
पिन इतनी नुकीली न होती। | |||
पर हमारी मशीनें तो | |||
अमरीका से आती हैं | |||
और वे आलपिनों को | |||
बहुत ही नुकीला बनाती हैं। | |||
अचानक आलपिन कंपनी के | |||
मालिक ने सोचा | |||
अब ये अमरीका से | |||
किसे बुलवाएंगे | |||
ज़ाहिर है मेरी ही | |||
चटनी बनवाएंगे। | |||
इसलिए बात बदल दी और | |||
अमरीका से भिलाई की तरफ | |||
डायवर्ट कर दी- | |||
</poem> | |||
{{Poemclose}} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==बाहरी कड़ियाँ== | |||
==संबंधित लेख== | |||
{{समकालीन कवि}} | |||
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14:46, 19 अगस्त 2011 के समय का अवतरण
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आलपिन कांड
बंधुओ, उस बढ़ई ने |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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