"जीवन-मृतक का अंग -कबीर": अवतरणों में अंतर

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तब पैंडे लागा हरि फिरै, कहत कबीर ,कबीर ॥1॥
तब पैंडे लागा हरि फिरै, कहत कबीर ,कबीर ॥1॥


जीवन थैं मरिबो भलौ, जो मरि जानैं कोइ ।
जीवन तै मरिबो भलौ, जो मरि जानैं कोइ ।
मरनैं पहली जे मरै, तो कलि अजरावर होइ ॥2॥
मरनैं पहली जे मरै, तो कलि अजरावर होइ ॥2॥



11:23, 8 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

जीवन-मृतक का अंग -कबीर
संत कबीरदास
संत कबीरदास
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

`कबीर मन मृतक भया, दुर्बल भया सरीर ।
तब पैंडे लागा हरि फिरै, कहत कबीर ,कबीर ॥1॥

जीवन तै मरिबो भलौ, जो मरि जानैं कोइ ।
मरनैं पहली जे मरै, तो कलि अजरावर होइ ॥2॥

आपा मेट्या हरि मिलै, हरि मेट्या सब जाइ ।
अकथ कहाणी प्रेम की, कह्यां न कोउ पत्याइ ॥3॥

`कबीर' चेरा संत का, दासनि का परदास ।
कबीर ऐसैं होइ रह्या, ज्यूं पाऊँ तलि घास ॥4॥

रोड़ा ह्वै रहो बाट का, तजि पाषंड अभिमान ।
ऐसा जे जन ह्वै रहै, ताहि मिलै भगवान ॥5॥








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