"मुक्तहरा सवैया": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
कात्या सिंह (वार्ता | योगदान) (''''मुक्तहरा सवैया में 8 जगण होते हैं।''' मत्तगयन्द आदि - ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
*"सुलच्छन राजन के सो सुहाई अनोखि अकृत्रिम सुन्दरताई।"<ref> सत्यनारायण</ref> | *"सुलच्छन राजन के सो सुहाई अनोखि अकृत्रिम सुन्दरताई।"<ref> सत्यनारायण</ref> | ||
{{लेख प्रगति|आधार= | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
{{संदर्भ ग्रंथ}} | {{संदर्भ ग्रंथ}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{छन्द}} | |||
[[Category:व्याकरण]][[Category:हिन्दी भाषा]][[Category:भाषा कोश]][[Category: | [[Category:व्याकरण]][[Category:हिन्दी भाषा]][[Category:भाषा कोश]][[Category:छन्द]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
14:04, 1 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
मुक्तहरा सवैया में 8 जगण होते हैं। मत्तगयन्द आदि - अन्त में एक-एक लघुवर्ण जोड़ने से यह छन्द बनता है; 11, 13 वर्णों पर यती होती है। देव, दास तथा सत्यनारायण ने इसका प्रयोग किया है।
- "दिना दस जोबन जीवन री, मरिये पचि होइ, जुपै मरियै न।"[1]
- "सुलच्छन राजन के सो सुहाई अनोखि अकृत्रिम सुन्दरताई।"[2]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 1 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 741।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख