त्रिवेणी (काव्य विधा)
त्रिवेणी एक तीन पंक्तियों वाली कविता है। ऐसा माना जाता है कि प्रसिद्ध गीतकार और कवि गुलज़ार साहब ने इस विधा को विकसित किया था। कुछ लोग इस विधा की तुलना जापान की एक काव्य विधा 'हाइकु' से करते हैं।
- कुछ लोग 'त्रिवेणी' को इसे जापानी 'हाइकु' का स्वदेशी संस्करण भी कहते हैं, परन्तु यह पूर्णतः स्वदेश में विकसित विधा है तथा जापानी काव्य विधा हाइकु से भिन्न स्वतंत्र विधा है।
- 'हाइकु' और 'त्रिवेणी' में केवल इतनी समानता है कि दोनों में मात्र तीन पंक्तियां होती हैं। इन तीन पक्तियों की साम्यता के अतिरिक्त अधिक इन दोनों विधाओं में अन्य कोई साम्य नहीं है।
- 'त्रिवेणी' की रचना का मूल प्रेरणा स्रोत भी जापानी काव्य ही कहा जाता है। वैसे गुलज़ार साहब ने इसके संबंध में अपनी त्रिवेणी संग्रह रचना 'त्रिवेणी' के प्रकाशन के अवसर पर इसकी परिभाषा इस प्रकार दी थी-
"शुरू-शुरू में तो जब यह फॉर्म बनाई थी, तो पता नहीं था यह किस संगम तक पहुँचेगी। 'त्रिवेणी' नाम इसीलिए दिया था कि पहले दो मिसरे, गंगा-जमुना की तरह मिलते हैं और एक ख़्याल, एक शेर को मुकम्मल करते हैं। लेकिन इन दो धाराओं के नीचे एक और नदी है - सरस्वती, जो गुप्त है नज़र नहीं आती। 'त्रिवेणी' का काम सरस्वती दिखाना है। तीसरा मिसरा कहीं पहले दो मिसरों में गुप्त है, छुपा हुआ है। 1972-1973 में जब कमलेश्वर जी सारिका के एडीटर थे, तब त्रिवेणियाँ सारिका में छपती रहीं और अब 'त्रिवेणी' को बालिग़ होते-होते सत्ताईस-अट्ठाईस साल लग गए।"[1]
जापानी 'हाइकु' में जहां तीन पंक्तियों में क्रमानुसार 5+7+5 कुल मिलाकर केवल 17 वर्णों में विचार अंकित करने की बाध्यता है, वहीं त्रिवेणी विधा में ऐसी कोई बाघ्यता न होकर तीन लयवद्ध पंक्तियों में विचार व्यक्त करने होते हैं। इस प्रकार तीन पक्तियों की साम्यता के अतिरिक्त इन दोनों विधाओं में अन्य कोई साम्य नहीं है।
- उदाहरण-
ठहर कर
देखी इंसानियत
ठिठुरी हुई[2]
- गुलज़ार साहब की 'त्रिवेणी'-
गोले, बारूद, आग, बम, नारे
बाज़ी आतिश की शहर में गर्म है
बंध खोलो कि आज सब "बंद" है
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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