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'''अश्मदंशना''' पौराणिक धर्म ग्रंथों और [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार भवमालिनी की अनुयायिनी एक मातृका देवी का नाम है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणाप्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=36|url=}}</ref> | '''अश्मदंशना''' पौराणिक धर्म ग्रंथों और [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार भवमालिनी की अनुयायिनी एक मातृका देवी का नाम है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणाप्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=36|url=}}</ref> | ||
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07:00, 30 नवम्बर 2012 के समय का अवतरण
अश्मदंशना पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भवमालिनी की अनुयायिनी एक मातृका देवी का नाम है।[1]
अन्धकासुर संग्राम में अंधक के रुधिर से उत्पन्न हज़ारों अन्धकों का रुधिर पान कर विनाश करने के लिए भगवान शंकर द्वारा सृष्ट मानस मातृकाएँ जब शंकर की अनुमति के विरुद्ध त्रैलोक्य का भक्षण करने को उद्यत हुईं, तब शंकर जी की प्रार्थना पर नृसिंह भगवान ने पूर्वोक्त मातृकाओं से त्रैलोक्य की रक्षा करने के लिए अपने विभिन्न अंगों से 'वागीश्वरी' (या 'बाणीश्वरी'), माया, भवमालिनी (भगमालिनी) तथा काली- इन चार प्रधान देवियों की सृष्टि कर फिर प्रत्येक की आठ-आठ अनुचरी देवियों की सृष्टि की।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पौराणिक कोश |लेखक: राणाप्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, आज भवन, संत कबीर मार्ग, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 36 |
- ↑ मत्स्यपुराण 179.71