"बालपन-बाँसुरी बजैया का -नज़ीर अकबराबादी": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) ('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Nazeer-Akbarabadi....' के साथ नया पन्ना बनाया) |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 34: | पंक्ति 34: | ||
मोहन-सरूप निरत करैया का बालपन । | मोहन-सरूप निरत करैया का बालपन । | ||
बन-बन के ग्वाल गौएँ चरैया का बालपन ।। | बन-बन के ग्वाल गौएँ चरैया का बालपन ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।1।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।1।। | |||
ज़ाहिर में सुत वो नंद जसोदा के आप थे । | ज़ाहिर में सुत वो नंद जसोदा के आप थे । | ||
पंक्ति 42: | पंक्ति 41: | ||
परदे में बालपन के यह उनके मिलाप थे । | परदे में बालपन के यह उनके मिलाप थे । | ||
जोती सरूप कहिए जिन्हें सो वह आप थे ।। | जोती सरूप कहिए जिन्हें सो वह आप थे ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।2।। | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।2।। | ||
पंक्ति 50: | पंक्ति 48: | ||
मालिक थे वो तो आपी उन्हें बालपन से क्या । | मालिक थे वो तो आपी उन्हें बालपन से क्या । | ||
वाँ बालपन, जवानी, बुढ़ापा, सब एक सा ।। | वाँ बालपन, जवानी, बुढ़ापा, सब एक सा ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।3।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।3।। | |||
मालिक जो होवे उसको सभी ठाठ याँ सरे । | मालिक जो होवे उसको सभी ठाठ याँ सरे । | ||
पंक्ति 65: | पंक्ति 62: | ||
इस बालपन के रूप में कितनों को भा गए । | इस बालपन के रूप में कितनों को भा गए । | ||
इक यह भी लहर थी कि जहाँ को जता गए ।। | इक यह भी लहर थी कि जहाँ को जता गए ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।5।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।5।। | |||
यूँ बालपन तो होता है हर तिफ़्ल का भला । | यूँ बालपन तो होता है हर तिफ़्ल का भला । | ||
पंक्ति 80: | पंक्ति 76: | ||
आप ही वह प्रभू नाथ थे आप ही वह दौर थे । | आप ही वह प्रभू नाथ थे आप ही वह दौर थे । | ||
उनके तो बालपन ही में तेवर कुछ और थे ।। | उनके तो बालपन ही में तेवर कुछ और थे ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।7।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।7।। | |||
वह बालपन में देखते जिधर नज़र उठा । | वह बालपन में देखते जिधर नज़र उठा । | ||
पंक्ति 95: | पंक्ति 90: | ||
झाड़ और पहाड़ देते सभी अपना सर झुका । | झाड़ और पहाड़ देते सभी अपना सर झुका । | ||
पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था ।। | पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।9।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।9।। | |||
मोहन, मदन, गोपाल, हरी, बंस, मन हरन । | मोहन, मदन, गोपाल, हरी, बंस, मन हरन । | ||
पंक्ति 110: | पंक्ति 104: | ||
नन्द उनको देख होवे था जी जान से निसार । | नन्द उनको देख होवे था जी जान से निसार । | ||
माई जसोदा पीती थी पानी को वार वार ।। | माई जसोदा पीती थी पानी को वार वार ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।11।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।11।। | |||
जब तक कि दूध पीते रहे ग्वाल ब्रज राज । | जब तक कि दूध पीते रहे ग्वाल ब्रज राज । | ||
पंक्ति 125: | पंक्ति 118: | ||
जिन नारियों से उनके ग़मो-दर्द बँटते थे । | जिन नारियों से उनके ग़मो-दर्द बँटते थे । | ||
उनके तो दौड़-दौड़ गले से लिपटते थे ।। | उनके तो दौड़-दौड़ गले से लिपटते थे ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।13।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।13।। | |||
अब घुटनियों का उनके मैं चलना बयाँ करूँ । | अब घुटनियों का उनके मैं चलना बयाँ करूँ । | ||
पंक्ति 140: | पंक्ति 132: | ||
बासुक चरन छूने को चले छोड़ कर पताल । | बासुक चरन छूने को चले छोड़ कर पताल । | ||
अकास पर भी धूम मची देख उनकी चाल ।। | अकास पर भी धूम मची देख उनकी चाल ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।15।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।15।। | |||
थी उनकी चाल की जो अ़जब, यारो चाल-ढाल । | थी उनकी चाल की जो अ़जब, यारो चाल-ढाल । | ||
पंक्ति 155: | पंक्ति 146: | ||
जाता था होश देख के शाही वज़ीर का । | जाता था होश देख के शाही वज़ीर का । | ||
मैं किस तरह कहूँ इसे चॊरा अहीर का ।। | मैं किस तरह कहूँ इसे चॊरा अहीर का ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।17।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।17।। | |||
जब पाँवों चलने लागे बिहारी न किशोर । | जब पाँवों चलने लागे बिहारी न किशोर । | ||
पंक्ति 170: | पंक्ति 160: | ||
माखन दही चुराने लगे सबके देख भाल । | माखन दही चुराने लगे सबके देख भाल । | ||
की अपनी दधि की चोरी घर घर में धूम डाल ।। | की अपनी दधि की चोरी घर घर में धूम डाल ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।19।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।19।। | |||
थे घर जो ग्वालिनों के लगे घर से जा-बजा । | थे घर जो ग्वालिनों के लगे घर से जा-बजा । | ||
पंक्ति 185: | पंक्ति 174: | ||
ऊँचा हो तो भी कांधे पै चढ़ कर न छोड़ना । | ऊँचा हो तो भी कांधे पै चढ़ कर न छोड़ना । | ||
पहुँचा न हाथ तो उसे मुरली से फोड़ना ।। | पहुँचा न हाथ तो उसे मुरली से फोड़ना ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।21।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।21।। | |||
गर चोरी करते आ गई ग्वालिन कोई वहाँ । | गर चोरी करते आ गई ग्वालिन कोई वहाँ । | ||
पंक्ति 200: | पंक्ति 188: | ||
चिल्लाते गाली देते, मचल जाते जा बजा । | चिल्लाते गाली देते, मचल जाते जा बजा । | ||
हर तरह वाँ से भाग निकलते उड़ा छुड़ा ।। | हर तरह वाँ से भाग निकलते उड़ा छुड़ा ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।23।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।23।। | |||
ग़ुस्से में कोई हाथ पकड़ती जो आन कर । | ग़ुस्से में कोई हाथ पकड़ती जो आन कर । | ||
पंक्ति 215: | पंक्ति 202: | ||
ज़ाहिर में उनके हाथ से वह ग़ुल मचाती थीं । | ज़ाहिर में उनके हाथ से वह ग़ुल मचाती थीं । | ||
पर्दे में सब वह किशन के बलिहारी जाती थीं ।। | पर्दे में सब वह किशन के बलिहारी जाती थीं ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।25।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।25।। | |||
कहतीं थीं दिल में दूध जो अब हम छिपाएँगे । | कहतीं थीं दिल में दूध जो अब हम छिपाएँगे । | ||
पंक्ति 230: | पंक्ति 216: | ||
देता है हमको गालियाँ फिर फाड़ता है चीर । | देता है हमको गालियाँ फिर फाड़ता है चीर । | ||
छोड़े दही न दूध, न माखन, मही न खीर ।। | छोड़े दही न दूध, न माखन, मही न खीर ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।27।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।27।। | |||
माता जसोदा उनकी बहुत करती मिनतियाँ । | माता जसोदा उनकी बहुत करती मिनतियाँ । | ||
पंक्ति 245: | पंक्ति 230: | ||
आप ही मुझे रुठातीं हैं आपी मनाती हैं । | आप ही मुझे रुठातीं हैं आपी मनाती हैं । | ||
मारो इन्हें ये मुझको बहुत सा सताती हैं ।। | मारो इन्हें ये मुझको बहुत सा सताती हैं ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।29।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।29।। | |||
माता कभी यह मुझको पकड़ कर ले जाती हैं । | माता कभी यह मुझको पकड़ कर ले जाती हैं । | ||
पंक्ति 260: | पंक्ति 244: | ||
मुँह खोल तीन लोक का आलम दिखा दिया । | मुँह खोल तीन लोक का आलम दिखा दिया । | ||
एक आन में दिखा दिया और फिर भुला दिया । | एक आन में दिखा दिया और फिर भुला दिया । | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।31।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।31।। | |||
थे कान्ह जी तो नंद जसोदा के घर के माह । | थे कान्ह जी तो नंद जसोदा के घर के माह । | ||
पंक्ति 275: | पंक्ति 258: | ||
दधिचोर गोपी नाथ, बिहारी की बोलो जै । | दधिचोर गोपी नाथ, बिहारी की बोलो जै । | ||
तुम भी 'नज़ीर' किशन बिहारी की बोलो जै ।। | तुम भी 'नज़ीर' किशन बिहारी की बोलो जै ।। | ||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | |||
ऐसा था बाँसुरी के बजैया का बालपन । | क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।33।। | ||
क्या-क्या कहूँ मैं किशन कन्हैया का बालपन ।।33।। | |||
</poem> | </poem> | ||
{{Poemclose}} | {{Poemclose}} |
12:21, 27 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण
| ||||||||||||||||||
|
यारो सुनो ! ये दधि के लुटैया का बालपन । |
|
|
|
|
|