"खून अपना हो या पराया हो -साहिर लुधियानवी": अवतरणों में अंतर

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कोख धरती की बाँझ होती है
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग
जिंदगी मय्यतों पे रोती है
ज़िंदगी मय्यतों पे रोती है


इसलिए ऐ शरीफ इंसानो
इसलिए ऐ शरीफ इंसानो

17:09, 30 दिसम्बर 2013 के समय का अवतरण

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खून अपना हो या पराया हो -साहिर लुधियानवी
कवि साहिर लुधियानवी
जन्म 8 मार्च, 1921
जन्म स्थान लुधियाना, पंजाब
मृत्यु 25 अक्तूबर, 1980
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
मुख्य रचनाएँ तल्ख़ियाँ (नज़्में), परछाईयाँ (ग़ज़ल संग्रह)
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
साहिर लुधियानवी की रचनाएँ

ख़ून अपना हो या पराया हो
नस्ले-आदम का ख़ून है आख़िर
जंग मग़रिब में हो कि मशरिक में
अमने आलम का ख़ून है आख़िर

बम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूहे-तामीर ज़ख़्म खाती है
खेत अपने जलें या औरों के
ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है

टैंक आगे बढें कि पीछे हटें
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़तह का जश्न हो कि हार का सोग
ज़िंदगी मय्यतों पे रोती है

इसलिए ऐ शरीफ इंसानो
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शमा जलती रहे तो बेहतर है।


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