"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-3": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "==संबंधित लेख==" to "==संबंधित लेख== {{छान्दोग्य उपनिषद}}") |
No edit summary |
||
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय | |||
|चित्र=Chandogya-Upanishad.jpg | |||
|चित्र का नाम=छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ | |||
|विवरण='छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस [[उपनिषद|उपनिषदों]] में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार [[छन्द]] है। | |||
|शीर्षक 1=अध्याय | |||
|पाठ 1=प्रथम | |||
|शीर्षक 2=कुल खण्ड | |||
|पाठ 2=13 (तेरह) | |||
|शीर्षक 3=सम्बंधित वेद | |||
|पाठ 3=[[सामवेद]] | |||
|शीर्षक 4= | |||
|पाठ 4= | |||
|शीर्षक 5= | |||
|पाठ 5= | |||
|शीर्षक 6= | |||
|पाठ 6= | |||
|शीर्षक 7= | |||
|पाठ 7= | |||
|शीर्षक 8= | |||
|पाठ 8= | |||
|शीर्षक 9= | |||
|पाठ 9= | |||
|शीर्षक 10= | |||
|पाठ 10= | |||
|संबंधित लेख=[[उपनिषद]], [[वेद]], [[वेदांग]], [[वैदिक काल]], [[संस्कृत साहित्य]] | |||
|अन्य जानकारी= [[सामवेद]] की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं। | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
|अद्यतन= | |||
}} | |||
[[छान्दोग्य उपनिषद]] के [[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1|अध्याय प्रथम]] का यह तीसरा खण्ड है। इस खण्ड में आधिदैविक रूप से [[ॐ|ॐकार]] की उपासना की गई है। | |||
*ॐकार मधुर उद्गान प्राणी में प्राणों को संचार करता है। इस प्रकार वह अन्धकार और सभी प्रकार के भय से प्राणी को मुक्त करने की चेष्टा करता है। प्राण और [[सूर्य]] को वह समान मानता है। अत: इस प्राण और उस सूर्य में ही ॐकार को मानकर उपासना करनी चाहिए। | |||
*उद्गाता जिस 'साम' के द्वारा उद्गीथ की उपासना करे, सदा उसी का चिन्तन भी करे। जिस [[छन्द]] के द्वारा स्तुति करता हो, उस छन्द का चिन्तन करे। जिन स्तोत्रों से स्तुति करता हो, उस स्तोत्रों का चिन्तन करे। जिस दिशा का चिन्तन करता हो, उस दिशा का चिन्तन करे। इस प्रकार अन्त में अपने आत्म-स्वरूप और कामना आदि का चिन्तन प्रमाद-रहित होकर करे। तभी उसे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। | |||
{{लेख प्रगति|आधार= | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{छान्दोग्य उपनिषद}} | {{छान्दोग्य उपनिषद}} | ||
[[Category:छान्दोग्य उपनिषद]] | [[Category:छान्दोग्य उपनिषद]][[Category:दर्शन कोश]][[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]] | ||
[[Category:दर्शन कोश]] | |||
[[Category:उपनिषद]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
12:50, 12 अगस्त 2016 के समय का अवतरण
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-3
| |
विवरण | 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है। |
अध्याय | प्रथम |
कुल खण्ड | 13 (तेरह) |
सम्बंधित वेद | सामवेद |
संबंधित लेख | उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य |
अन्य जानकारी | सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं। |
छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय प्रथम का यह तीसरा खण्ड है। इस खण्ड में आधिदैविक रूप से ॐकार की उपासना की गई है।
- ॐकार मधुर उद्गान प्राणी में प्राणों को संचार करता है। इस प्रकार वह अन्धकार और सभी प्रकार के भय से प्राणी को मुक्त करने की चेष्टा करता है। प्राण और सूर्य को वह समान मानता है। अत: इस प्राण और उस सूर्य में ही ॐकार को मानकर उपासना करनी चाहिए।
- उद्गाता जिस 'साम' के द्वारा उद्गीथ की उपासना करे, सदा उसी का चिन्तन भी करे। जिस छन्द के द्वारा स्तुति करता हो, उस छन्द का चिन्तन करे। जिन स्तोत्रों से स्तुति करता हो, उस स्तोत्रों का चिन्तन करे। जिस दिशा का चिन्तन करता हो, उस दिशा का चिन्तन करे। इस प्रकार अन्त में अपने आत्म-स्वरूप और कामना आदि का चिन्तन प्रमाद-रहित होकर करे। तभी उसे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 | खण्ड-14 | खण्ड-15 | खण्ड-16 | खण्ड-17 | खण्ड-18 | खण्ड-19 | खण्ड-20 | खण्ड-21 | खण्ड-22 | खण्ड-23 | खण्ड-24 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 |
खण्ड-1 से 5 | खण्ड-6 से 10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 से 19 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-5 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 |
खण्ड-1 से 2 | खण्ड-3 से 4 | खण्ड-5 से 6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 से 13 | खण्ड-14 से 16 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8 |