"छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-8": अवतरणों में अंतर

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*एक बार परस्पर चर्चा करते हुए शिलक ने पूछा- 'साम की गति (आश्रय) क्या है?'
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*इसी प्रकार प्रश्न पूछने पर [[जल]] की गति 'स्वर्ग, ' स्वर्ग की गति पूछने पर दालभ्य ने कहा कि- "स्वर्ग से बाहर साम को किसी अन्य आश्रम में नहीं रखा जा सकता। साम की स्वर्ग-रूप में ही स्तुति की गयी है, परन्तु शिलक इससे सन्तुष्ट नहीं हुआ।
*तब दालभ्य के पूछने पर शिलक ने कहा- 'यह लोक।' परन्तु शिलक के उत्तर से प्रवाहण सन्तुष्ट नहीं हुआ। तब इस लोक की गति के बारे में प्रवाहण से प्रश्न पूछा गया।
 
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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-8
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय प्रथम
कुल खण्ड 13 (तेरह)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय प्रथम का यह आठवाँ खण्ड है। इस खण्ड में बताया गया है कि तीन ऋषि उद्गीथ सम्बन्धी विद्या में पारंगत थे- शालवान पुत्र शिलक, चिकितायन के पुत्र दालभ्य और जीवल के पुत्र प्रवाहण।

  • एक बार परस्पर चर्चा करते हुए शिलक ने पूछा- 'साम की गति (आश्रय) क्या है?'
दालभ्य ने उत्तर दिया- 'स्वर।'
शिलक- 'स्वर की गति क्या है?'
दालभ्य- 'प्राण।'
शिलक- 'प्राण की गति क्या है?'
दालभ्य- 'अन्न।'
शिलक- 'अन्न की गति क्या है?'
दालभ्य- 'जल।'
  • इसी प्रकार प्रश्न पूछने पर जल की गति 'स्वर्ग, ' स्वर्ग की गति पूछने पर दालभ्य ने कहा कि- "स्वर्ग से बाहर साम को किसी अन्य आश्रम में नहीं रखा जा सकता। साम की स्वर्ग-रूप में ही स्तुति की गयी है, परन्तु शिलक इससे सन्तुष्ट नहीं हुआ।
  • तब दालभ्य के पूछने पर शिलक ने कहा- 'यह लोक।' परन्तु शिलक के उत्तर से प्रवाहण सन्तुष्ट नहीं हुआ। तब इस लोक की गति के बारे में प्रवाहण से प्रश्न पूछा गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7

खण्ड-1 से 15 | खण्ड-16 से 26

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8

खण्ड-1 से 6 | खण्ड-7 से 15