"दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ -कबीर": अवतरणों में अंतर

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दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ ॥  
दिवाने मन, भजन बिना दु:ख पैहौ ॥  


पहिला जनम भूत का पै हौ, सात जनम पछिताहौउ ।
पहिला जनम भूत का पै हौ, सात जनम पछिताहौउ ।
काँटा पर का पानी पैहौ, प्यासन ही मरि जैहौ ॥ 1 ॥
काँटा पर का पानी पैहौ, प्यासन ही मरि जैहौ ॥ 1 ॥


दूजा जनम सुवा का पैहौ, बाग बसेरा लैहौ ।
दूजा जनम सुवा का पैहौ, बाग़ बसेरा लैहौ ।
टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ ॥ 2 ॥
टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ ॥ 2 ॥



14:03, 2 जून 2017 के समय का अवतरण

दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ -कबीर
संत कबीरदास
संत कबीरदास
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

दिवाने मन, भजन बिना दु:ख पैहौ ॥

पहिला जनम भूत का पै हौ, सात जनम पछिताहौउ ।
काँटा पर का पानी पैहौ, प्यासन ही मरि जैहौ ॥ 1 ॥

दूजा जनम सुवा का पैहौ, बाग़ बसेरा लैहौ ।
टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ ॥ 2 ॥

बाजीगर के बानर होइ हौ, लकडिन नाच नचैहौ ।
ऊच नीच से हाय पसरि हौ, माँगे भीख न पैहौ ॥ 3 ॥

तेली के घर बैला होइहौ, आखिन ढाँपि ढॅंपैहौउ ।
कोस पचास घरै माँ चलिहौ, बाहर होन न पैहौ ॥ 4 ॥

पॅंचवा जनम ऊट का पैहौ, बिन तोलन बोझ लदैहौ ।
बैठे से तो उठन न पैहौ, खुरच खुरच मरि जैहौ ॥ 5 ॥

धोबी घर गदहा होइहौ, कटी घास नहिं पैंहौ ।
लदी लादि आपु चढि बैठे, लै घटे पहुँचैंहौ ॥ 6 ॥

पंछिन माँ तो कौवा होइहौ, करर करर गुहरैहौ ।
उडि के जय बैठि मैले थल, गहिरे चोंच लगैहौ ॥ 7 ॥

सत्तनाम की हेर न करिहौ, मन ही मन पछितैहौउ ।
कहै कबीर सुनो भै साधो, नरक नसेनी पैहौ ॥ 8 ॥

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