"तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के -कबीर": अवतरणों में अंतर
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दुख में सुमिरन सब करें सुख में करे न कोय रे । | दुख में सुमिरन सब करें सुख में करे न कोय रे । | ||
जो सुख में सुमिरन करे तो | जो सुख में सुमिरन करे तो दु:ख काहे को होय रे । | ||
सुख में सुमिरन ना किया | सुख में सुमिरन ना किया दु:ख में करता याद रे । | ||
दुख में करता याद रे । | दुख में करता याद रे । | ||
कहे कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद ॥ | कहे कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद ॥ |
14:03, 2 जून 2017 के समय का अवतरण
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तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के । |
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