"तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के -कबीर": अवतरणों में अंतर

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दुख में सुमिरन सब करें सुख में करे न कोय रे ।
दुख में सुमिरन सब करें सुख में करे न कोय रे ।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय रे ।
जो सुख में सुमिरन करे तो दु:ख काहे को होय रे ।
सुख में सुमिरन ना किया दुख में करता याद रे ।
सुख में सुमिरन ना किया दु:ख में करता याद रे ।
दुख में करता याद रे ।
दुख में करता याद रे ।
कहे कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद ॥
कहे कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद ॥

14:03, 2 जून 2017 के समय का अवतरण

तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के -कबीर
संत कबीरदास
संत कबीरदास
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के ।
हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय ॥

सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल रे ।
बाहर का पट बंद कर ले अंतर का पट खोल रे ।
माला फेरत जुग हुआ गया ना मन का फेर रे ।
गया ना मन का फेर रे ।
हाथ का मनका छाँड़ि दे मन का मनका फेर ॥

दुख में सुमिरन सब करें सुख में करे न कोय रे ।
जो सुख में सुमिरन करे तो दु:ख काहे को होय रे ।
सुख में सुमिरन ना किया दु:ख में करता याद रे ।
दुख में करता याद रे ।
कहे कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद ॥









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