"तारकासुर": अवतरणों में अंतर
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#यदि मैं मारा जाऊँ तो उसी के हाथ से जो शिव से उत्पन्न हो। | #यदि मैं मारा जाऊँ तो उसी के हाथ से जो शिव से उत्पन्न हो। | ||
ब्रह्मा से ये दोनों वर प्राप्त करके तारकासुर घोर अन्याय करने लगा। अब सारे [[देवता]] ब्रह्मा के पास आये। ब्रह्माजी ने कहा कि भगवान शिव के पुत्र के अतिरिक्त तारकासुर को और कोई नहीं मार सकता। [[पार्वती]] शिव के लिए तप कर रही थीं और देवताओं की प्रेरणा से [[कामदेव]] द्वारा शंकर का [[विवाह]] पार्वती से हो गया। किंतु विवाह होने के बहुत दिनों तक भी कोई संतान नहीं होने पर देवताओं को बड़ी चिंता होने लगी। तब उन्होंने [[अग्नि देव|अग्नि]] को शंकर के पास भेजा। कपोत के वेश में अग्नि को देखकर शिव बोले- "तुम्हीं हमारे वीर्य को धारण करो"। यह कह कर उन्होंने अग्नि पर वीर्य छिड़क दिया। उसी वीर्य से [[कार्तिकेय]] का जन्म हुआ और यह देवताओं के सेनानायक बने।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= |संपादन=राणा प्रसाद शर्मा|पृष्ठ संख्या=197|url=}}</ref> एक घोर युद्ध के | ब्रह्मा से ये दोनों वर प्राप्त करके तारकासुर घोर अन्याय करने लगा। अब सारे [[देवता]] ब्रह्मा के पास आये। ब्रह्माजी ने कहा कि भगवान शिव के पुत्र के अतिरिक्त तारकासुर को और कोई नहीं मार सकता। [[पार्वती]] शिव के लिए तप कर रही थीं और देवताओं की प्रेरणा से [[कामदेव]] द्वारा शंकर का [[विवाह]] पार्वती से हो गया। किंतु विवाह होने के बहुत दिनों तक भी कोई संतान नहीं होने पर देवताओं को बड़ी चिंता होने लगी। तब उन्होंने [[अग्नि देव|अग्नि]] को शंकर के पास भेजा। कपोत के वेश में अग्नि को देखकर शिव बोले- "तुम्हीं हमारे वीर्य को धारण करो"। यह कह कर उन्होंने अग्नि पर वीर्य छिड़क दिया। उसी वीर्य से [[कार्तिकेय]] का जन्म हुआ और यह देवताओं के सेनानायक बने।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= |संपादन=राणा प्रसाद शर्मा|पृष्ठ संख्या=197|url=}}</ref> एक घोर युद्ध के पश्चात् कार्तिकेय के हाथों से तारकासुर मारा गया।<ref>शिवपुराण</ref> | ||
07:50, 23 जून 2017 के समय का अवतरण
तारकासुर एक प्रसिद्ध असुर था, जो तार का पुत्र तथा तारा का भाई था। इसने ब्रह्मा से वर पाने के लिए घोर तप किया और उन्हें प्रसन्न करके दो वर प्राप्त किये थे। तारकासुर ब्रह्मा से वरदान पाने के बाद और भी अत्याचारी और बलवान हो गया था। क्योंकि ब्रह्माजी के वरदान के अनुसार तारकासुर का वध केवल शिव से उत्पन्न होने वाला ही कोई कर सकता था, इसीलिए कार्तिकेय का जन्म हुआ, जिन्होंने तारकासुर का वध किया।
तारकासुर ने ब्रह्माजी की घोर तपस्या की थी। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उससे वर माँगने के लिए कहा। तब तारकासुर ने दो वरदान माँगे-
- मेरे समान कोई बलवान न हो।
- यदि मैं मारा जाऊँ तो उसी के हाथ से जो शिव से उत्पन्न हो।
ब्रह्मा से ये दोनों वर प्राप्त करके तारकासुर घोर अन्याय करने लगा। अब सारे देवता ब्रह्मा के पास आये। ब्रह्माजी ने कहा कि भगवान शिव के पुत्र के अतिरिक्त तारकासुर को और कोई नहीं मार सकता। पार्वती शिव के लिए तप कर रही थीं और देवताओं की प्रेरणा से कामदेव द्वारा शंकर का विवाह पार्वती से हो गया। किंतु विवाह होने के बहुत दिनों तक भी कोई संतान नहीं होने पर देवताओं को बड़ी चिंता होने लगी। तब उन्होंने अग्नि को शंकर के पास भेजा। कपोत के वेश में अग्नि को देखकर शिव बोले- "तुम्हीं हमारे वीर्य को धारण करो"। यह कह कर उन्होंने अग्नि पर वीर्य छिड़क दिया। उसी वीर्य से कार्तिकेय का जन्म हुआ और यह देवताओं के सेनानायक बने।[1] एक घोर युद्ध के पश्चात् कार्तिकेय के हाथों से तारकासुर मारा गया।[2]
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