"कापालिक सम्प्रदाय": अवतरणों में अंतर
(''''कापालिक सम्प्रदाय''' के लोग शैव सम्प्रदाय के अनुया...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "पृथक " to "पृथक् ") |
||
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
'''कापालिक सम्प्रदाय''' के लोग [[शैव सम्प्रदाय]] के अनुयायी होते हैं। क्योंकि ये लोग मानव खोपड़ियों (कपाल) के माध्यम से खाते-पीते हैं, इसीलिए इन्हें 'कापालिक' कहा जाता है। | '''कापालिक सम्प्रदाय''' के लोग [[शैव सम्प्रदाय]] के अनुयायी होते हैं। क्योंकि ये लोग मानव खोपड़ियों ([[कपाल]]) के माध्यम से खाते-पीते हैं, इसीलिए इन्हें 'कापालिक' कहा जाता है। [[यामुनाचार्य|यामुनमुनि]] के '[[आगम प्रामाण्य]]', [[शिवपुराण]] तथा आगमपुराण में विभिन्न तान्त्रिक सम्प्रदायों के भेद दिखाय गये हैं। [[वाचस्पतिमिश्र]] ने चार माहेश्वर सम्प्रदायों के नाम लिये हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि [[श्रीहर्ष]] ने 'नैषध'<ref>नैषध 10, 88</ref> में 'समसिद्धान्त' नाम से जिसका उल्लेख किया है, वह कापालिक सम्प्रदाय ही है। | ||
{{tocright}} | {{tocright}} | ||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
कापालिक साधना को विलास तथा वैभव का परिरूप मानकर आकर्षणबद्ध कई साधक इसमें शामिल हुए। इस तरह इस मार्ग को भोग मार्ग का ही एक विकृत रूप बना दिया गया। मूल अर्थों मे कापालिकों की चक्र साधना को भोग विलास तथा काम पिपासा शांत करने का साधन बना दिया गया। इस प्रकार इस मार्ग को घृणा भाव से देखा जाने लगा। जो सही अर्थों मे कापालिक थे, उन्होंने पृथक- | कापालिक साधना को विलास तथा वैभव का परिरूप मानकर आकर्षणबद्ध कई साधक इसमें शामिल हुए। इस तरह इस मार्ग को भोग मार्ग का ही एक विकृत रूप बना दिया गया। मूल अर्थों मे कापालिकों की चक्र साधना को भोग विलास तथा काम पिपासा शांत करने का साधन बना दिया गया। इस प्रकार इस मार्ग को घृणा भाव से देखा जाने लगा। जो सही अर्थों मे कापालिक थे, उन्होंने पृथक-पृथक् हो कर व्यक्तिगत साधनाएँ शुरू कर दीं। आदि शंकराचार्य ने कापालिक सम्प्रदाय में अनैतिक आचरण का विरोध किया, जिससे इस सम्प्रदाय का एक बहुत बड़ा हिस्सा [[नेपाल]] के सीमावर्ती इलाके मे तथा [[तिब्बत]] मे चला गया। यह सम्प्रदाय तिब्बत में लगातार गतिशील रहा, जिससे की बौद्ध कापालिक साधना के रूप मे यह सम्प्रदाय जीवित रह सका।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://nikhil-alchemy2.blogspot.in/2012/02/2kapalik-sampraday-2.html |title=कापालिक सम्प्रदाय |accessmonthday=10 अक्टूबर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दू]]}}</ref> | ||
====साधना==== | ====साधना==== | ||
असंख्य इतिहासकार यह मानते हैं कि इसी पंथ से शैवशाक्त कौल मार्ग का प्रचलन हुआ। इस सम्प्रदाय से सबंधित साधनाएँ अत्यधिक | असंख्य इतिहासकार यह मानते हैं कि इसी पंथ से शैवशाक्त कौल मार्ग का प्रचलन हुआ। इस सम्प्रदाय से सबंधित साधनाएँ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण रही हैं। कापालिक चक्र मे मुख्य साधक 'भैरव' तथा साधिका को 'त्रिपुरसुंदरी' कहा जाता है, तथा कामशक्ति के विभिन्न साधन से इनमें असीम शक्तियाँ आ जाती हैं। फल की इच्छा मात्र से अपने शारीरिक अवयवों पर नियंत्रण रखना या किसी भी प्रकार के निर्माण तथा विनाश करने की बेजोड़ शक्ति इस मार्ग से प्राप्त की जा सकती थी। इस मार्ग मे कापालिक अपनी भैरवी साधिका को पत्नी के रूप मे भी स्वीकार कर सकता था। इनके मठ जीर्णशीर्ण अवस्था मे उत्तरीपूर्व राज्यों मे आज भी देखे जाते है। | ||
==इष्टदेव== | ==इष्टदेव== | ||
कापालिक साधनाओं में [[महाकाली]], भैरव, चांडाली, [[चामुंडा]], [[शिव]] तथा त्रिपुरा जैसे [[हिन्दू देवी-देवता|देवी-देवताओं]] की साधना होती है। वहीं [[बौद्ध]] कापालिक साधना मे वज्रभैरव, महाकाल, हेवज्रा जैसे तिब्बती देवी-देवताओ की साधना होती है। पहले के समय मे [[मंत्र]] मात्र से मुख्य कापालिक साथी कापालिकों की कामशक्ति को न्यूनता तथा उद्वेग देते थे, जिससे योग्य मापदंड मे यह साधना पूरी होती थी। इस प्रकार यह अद्भुत मार्ग लुप्त होते हुए भी गुप्त रूप से सुरक्षित है। विभिन्न तांत्रिक मठों मे आज भी गुप्त रूप से कापालिक अपनी तंत्र साधनाओ को करते हैं।<ref name="mcc"> | कापालिक साधनाओं में [[महाकाली]], भैरव, चांडाली, [[चामुंडा]], [[शिव]] तथा त्रिपुरा जैसे [[हिन्दू देवी-देवता|देवी-देवताओं]] की साधना होती है। वहीं [[बौद्ध]] कापालिक साधना मे वज्रभैरव, महाकाल, हेवज्रा जैसे तिब्बती देवी-देवताओ की साधना होती है। पहले के समय मे [[मंत्र]] मात्र से मुख्य कापालिक साथी कापालिकों की कामशक्ति को न्यूनता तथा उद्वेग देते थे, जिससे योग्य मापदंड मे यह साधना पूरी होती थी। इस प्रकार यह अद्भुत मार्ग लुप्त होते हुए भी गुप्त रूप से सुरक्षित है। विभिन्न तांत्रिक मठों मे आज भी गुप्त रूप से कापालिक अपनी तंत्र साधनाओ को करते हैं।<ref name="mcc"/> | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{धर्म}} | {{धर्म}} | ||
[[Category:हिन्दू सम्प्रदाय]] | [[Category:हिन्दू सम्प्रदाय]] | ||
[[Category:हिन्दू धर्म]] | [[Category:हिन्दू धर्म]] | ||
[[Category:हिन्दू धर्म कोश]] | [[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
13:27, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
कापालिक सम्प्रदाय के लोग शैव सम्प्रदाय के अनुयायी होते हैं। क्योंकि ये लोग मानव खोपड़ियों (कपाल) के माध्यम से खाते-पीते हैं, इसीलिए इन्हें 'कापालिक' कहा जाता है। यामुनमुनि के 'आगम प्रामाण्य', शिवपुराण तथा आगमपुराण में विभिन्न तान्त्रिक सम्प्रदायों के भेद दिखाय गये हैं। वाचस्पतिमिश्र ने चार माहेश्वर सम्प्रदायों के नाम लिये हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि श्रीहर्ष ने 'नैषध'[1] में 'समसिद्धान्त' नाम से जिसका उल्लेख किया है, वह कापालिक सम्प्रदाय ही है।
इतिहास
कापालिक साधना को विलास तथा वैभव का परिरूप मानकर आकर्षणबद्ध कई साधक इसमें शामिल हुए। इस तरह इस मार्ग को भोग मार्ग का ही एक विकृत रूप बना दिया गया। मूल अर्थों मे कापालिकों की चक्र साधना को भोग विलास तथा काम पिपासा शांत करने का साधन बना दिया गया। इस प्रकार इस मार्ग को घृणा भाव से देखा जाने लगा। जो सही अर्थों मे कापालिक थे, उन्होंने पृथक-पृथक् हो कर व्यक्तिगत साधनाएँ शुरू कर दीं। आदि शंकराचार्य ने कापालिक सम्प्रदाय में अनैतिक आचरण का विरोध किया, जिससे इस सम्प्रदाय का एक बहुत बड़ा हिस्सा नेपाल के सीमावर्ती इलाके मे तथा तिब्बत मे चला गया। यह सम्प्रदाय तिब्बत में लगातार गतिशील रहा, जिससे की बौद्ध कापालिक साधना के रूप मे यह सम्प्रदाय जीवित रह सका।[2]
साधना
असंख्य इतिहासकार यह मानते हैं कि इसी पंथ से शैवशाक्त कौल मार्ग का प्रचलन हुआ। इस सम्प्रदाय से सबंधित साधनाएँ अत्यधिक महत्त्वपूर्ण रही हैं। कापालिक चक्र मे मुख्य साधक 'भैरव' तथा साधिका को 'त्रिपुरसुंदरी' कहा जाता है, तथा कामशक्ति के विभिन्न साधन से इनमें असीम शक्तियाँ आ जाती हैं। फल की इच्छा मात्र से अपने शारीरिक अवयवों पर नियंत्रण रखना या किसी भी प्रकार के निर्माण तथा विनाश करने की बेजोड़ शक्ति इस मार्ग से प्राप्त की जा सकती थी। इस मार्ग मे कापालिक अपनी भैरवी साधिका को पत्नी के रूप मे भी स्वीकार कर सकता था। इनके मठ जीर्णशीर्ण अवस्था मे उत्तरीपूर्व राज्यों मे आज भी देखे जाते है।
इष्टदेव
कापालिक साधनाओं में महाकाली, भैरव, चांडाली, चामुंडा, शिव तथा त्रिपुरा जैसे देवी-देवताओं की साधना होती है। वहीं बौद्ध कापालिक साधना मे वज्रभैरव, महाकाल, हेवज्रा जैसे तिब्बती देवी-देवताओ की साधना होती है। पहले के समय मे मंत्र मात्र से मुख्य कापालिक साथी कापालिकों की कामशक्ति को न्यूनता तथा उद्वेग देते थे, जिससे योग्य मापदंड मे यह साधना पूरी होती थी। इस प्रकार यह अद्भुत मार्ग लुप्त होते हुए भी गुप्त रूप से सुरक्षित है। विभिन्न तांत्रिक मठों मे आज भी गुप्त रूप से कापालिक अपनी तंत्र साधनाओ को करते हैं।[2]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नैषध 10, 88
- ↑ इस तक ऊपर जायें: 2.0 2.1 कापालिक सम्प्रदाय (हिन्दू)। । अभिगमन तिथि: 10 अक्टूबर, 2012।
संबंधित लेख