"लौंग": अवतरणों में अंतर
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===परिचय=== | ===परिचय=== | ||
भारतीय रसोई घर और मसाले तथा इनमे लौंग और लौंग की उपयोगिता को कौन नहीं जानता। लौंग को दादी नानी के नुस्को में एक विशेष स्थान प्राप्त है। लौंग (Clove, Lawang, Devkusum) का प्रयोग मसाले के तौर पर प्राचीन काल से होता चला आ रहा है। अलग-अलग स्थानों एवं भाषाओं में लौंग को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। लौंग को अंग्रेजी में क्लोव्ह / clove कहा जाता है जो कि लैटिन के शब्द clavus, जिसका अर्थ नाखून होता है, का अंग्रेजी रूपान्तर है। लौंग के नाखून के सदृश होने के कारण ही उसका यह अंग्रेजी नाम पड़ा। लौंग का रंग काला होता है। यह एक खुशबूदार मसाला है। जिसे भोजन में स्वाद के लिए डाला जाता है। लौंग का उद्गम स्थान इंडोनेशिया को माना जाता है। ऐतिहासिक रूप से लौंग का पेड़ मोलुक्का द्वीपों का देशी वृक्ष है, जहाँ चीन ने ईसा से लगभग तीन शताब्दी पूर्व इसे खोजा और अलेक्सैन्ड्रिया में इसका आयात तक होने लगा। आज | भारतीय रसोई घर और मसाले तथा इनमे लौंग और लौंग की उपयोगिता को कौन नहीं जानता। लौंग को दादी नानी के नुस्को में एक विशेष स्थान प्राप्त है। लौंग (Clove, Lawang, Devkusum) का प्रयोग मसाले के तौर पर प्राचीन काल से होता चला आ रहा है। अलग-अलग स्थानों एवं भाषाओं में लौंग को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। लौंग को अंग्रेजी में क्लोव्ह / clove कहा जाता है जो कि लैटिन के शब्द clavus, जिसका अर्थ नाखून होता है, का अंग्रेजी रूपान्तर है। लौंग के नाखून के सदृश होने के कारण ही उसका यह अंग्रेजी नाम पड़ा। लौंग का रंग [[काला रंग|काला]] होता है। यह एक खुशबूदार मसाला है। जिसे भोजन में स्वाद के लिए डाला जाता है। लौंग का उद्गम स्थान इंडोनेशिया को माना जाता है। ऐतिहासिक रूप से लौंग का पेड़ मोलुक्का द्वीपों का देशी वृक्ष है, जहाँ चीन ने ईसा से लगभग तीन शताब्दी पूर्व इसे खोजा और अलेक्सैन्ड्रिया में इसका आयात तक होने लगा। आज जंजीबार लौंग का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला देश है। लौंग का अधिक मात्रा में उत्पादन जंजीबार और मलाक्का द्वीप में होता है। इसका उपयोग भारत और चीन में 2000 वर्षों से भी अधिक समय से हो रहा है। लौंग का उत्पादन मुख्य रूप से इंडोनेशिया, मेडागास्कर, [[भारत]], [[पाकिस्तान]], [[श्रीलंका]] आदि देशों में होता है। आपको शायद यह जानकर आश्चर्य हो कि अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में लौंग का मूल्य उसके वजन के सोने के बराबर हुआ करता था। | ||
===लौंग का वृक्ष=== | ===लौंग का वृक्ष=== | ||
लौंग मध्यम आकार का सदाबहार वृक्ष से पाया जाने वाला, सूखा, अनखुला एक ऐसा पुष्प अंकुर होता है जिसके वृक्ष का तना सीधा और पेड़ भी 10-12 मीटर की ऊँचाई | लौंग मध्यम आकार का सदाबहार वृक्ष से पाया जाने वाला, सूखा, अनखुला एक ऐसा पुष्प अंकुर होता है जिसके वृक्ष का तना सीधा और पेड़ भी 10-12 मीटर की ऊँचाई वाला होता है और जिसके पत्ते बड़े-बड़े तथा दीर्घवृताकार होते हैं। इसके पेड़ को लगाने के आठ या नौ वर्ष के बाद ही फल देते है। लौंग के पेड़ों के शाखों के अन्तिम छोरों में लौंग के फूल समूह में खिलते हैं। लौंग की कलियों का रंग खिलना आरम्भ होते समय पीला होता है जो कि धीरे-धीरे हरा होते जाता है और पूर्णतः खिल जाने पर इसका रंग लाल हो जाता है। इन कलियों में चार पँखुड़ियों के मध्य एक वृताकार फल होता है। | ||
===लौंग के प्रकार=== | ===लौंग के प्रकार=== | ||
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===लौंग की पहचान=== | ===लौंग की पहचान=== | ||
अच्छे लवंग की पहचान है उसकी खुशबू एवं तैलीयपन। लौंग | अच्छे लवंग की पहचान है उसकी खुशबू एवं तैलीयपन। लौंग ख़रीदते समय उसे दातों में दबाकर देखना चाहिए इससे लवंग की गुणवत्ता पता चल जाती है। जो लौंग सुगन्ध में तेज, स्वाद में तीखी हो और दबाने में तेल का आभास हो उसी लौंग को अच्छा मानना चाहिए। व्यापारी लौंग में तेल निकाला हुआ लौंग मिला देते है। अगर लौंग में झुर्रिया पड़ी हो तो समझे कि यह तेल निकाली हुई लौंग है। | ||
===लौंग के तत्व=== | ===लौंग के तत्व=== | ||
लौंग में मौजूद तत्वों का विश्लेषण किया जाए तो इसमें कार्बोहाइड्रेट, नमी, प्रोटीन, वाष्पशील तेल, गैर-वाष्पशील ईथर निचोड़ (वसा) और रेशों से बना होता है। इसके अलावा खनिज पदार्थ, हाइड्रोक्लोरिक एसिड में न घुलने वाली राख, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, सोडियम, पोटेशियम, थायामाइन, राइबोफ्लेविन, नियासिन, विटामिन 'सी' और 'ए' जैसे तत्व भी लौंग में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अलावा कई तरह के औषधीय तत्व होते हैं। इसका ऊष्मीय मान 43 डिग्री है और इससे कई तरह के औषधीय व भौतिक तत्व लिए जा सकते हैं। | लौंग में मौजूद तत्वों का विश्लेषण किया जाए तो इसमें [[कार्बोहाइड्रेट]], नमी, [[प्रोटीन]], वाष्पशील तेल, गैर-वाष्पशील ईथर निचोड़ ([[वसा]]) और रेशों से बना होता है। इसके अलावा खनिज पदार्थ, हाइड्रोक्लोरिक एसिड में न घुलने वाली राख, [[कैल्शियम]], [[फास्फोरस]], [[लोहा]], [[सोडियम]], [[पोटेशियम]], थायामाइन, राइबोफ्लेविन, नियासिन, [[विटामिन|विटामिन 'सी']] और [[विटामिन|'ए']] जैसे तत्व भी लौंग में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अलावा कई तरह के औषधीय तत्व होते हैं। इसका ऊष्मीय मान 43 डिग्री है और इससे कई तरह के औषधीय व भौतिक तत्व लिए जा सकते हैं। | ||
===लौंग एक औषधी=== | ===लौंग एक औषधी=== | ||
आयुर्वेद में लौंग का प्रयोग अनेक प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियों के बनाने में भी किया जाता है। भारत के प्राचीन चिकित्सा विज्ञान में लौंग का उपयोग चिकित्सा के लिए किये जाने का | आयुर्वेद में लौंग का प्रयोग अनेक प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियों के बनाने में भी किया जाता है। भारत के प्राचीन चिकित्सा विज्ञान में लौंग का उपयोग चिकित्सा के लिए किये जाने का ज़िक्र हुआ है। चीन के साथ ही साथ पश्चिम के अनेक देशों में हर्बल दवाइयाँ बनाने के लिए लौंग का प्रयोग किया जाता है। भारतीय औषधीय प्रणाली में लौंग का उपयोग कई स्थितियों में किया जाता है। अनेक रोगों के निदान के लिए आयुर्वेद में लौंग का प्रयोग साबुत, पीसकर, चूर्ण, काढ़ा तथा तेल के रूप में किया जाता है। लौंग का तेल एक महत्त्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधि है। लौंग के तेल को औषधि के रूप में भी उपयोग में लाया जाता है। लौंग के तेल में भी ऐसे अंश होते हैं जो रक्त परिसंचरण को स्थिर करते हैं और शरीर के तापमान को नियंत्रित रखते हैं। लौंग के तेल को बाहरी त्वचा पर लगाने से त्वचा पर उत्तेजक प्रभाव दिखाई देते हैं। त्वचा लाल हो जाती है और उष्मा उत्पन्न होती है। इसके अलावा लौंग एंजाइम के बहाव को बढ़ावा देती है भूख बढ़ाती है और पाचन क्रिया को भी तेज करती है। लौंग का तेल पानी की तुलना में भारी होता है। इसका रंग लाल होता है। सिगरेट की तम्बाकू को सुगन्धित बनाने के लिए लौंग के तेल का उपयोग होता है। इसके तेल को त्वचा पर लगाने से त्वचा के कीड़े नष्ट होते हैं। | ||
===आयुर्वेदिक गुण=== | ===आयुर्वेदिक गुण=== | ||
लौंग में अनेक प्रकार के औषधीय गुण होते हैं। आयुर्वेदिक मतानुसार लौंग तीखा, लघु, आंखों के लिए लाभकारी, शीतल, पाचनशक्तिवर्द्धक, पाचक और रुचिकारक होता है। यह प्यास, हिचकी, खांसी, रक्तविकार, टी.बी आदि रोगों को दूर करती है। लौंग का उपयोग मुंह से लार का अधिक आना, दर्द और विभिन्न रोगों में किया जाता है। यह दांतों के दर्द में भी लाभकारी है। ये उत्तेजना देते हैं और ऐंठनयुक्त अव्यवस्थाओं, तथा पेट फूलने की स्थिति को कम करते हैं। धीमे परिसंचरण को तेज करती है और हाजमा तथा चयापचय को बढ़ावा देती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि भारतीय मसालों में लौंग सबसे अच्छा एंटी ऑक्सीडेंट का काम करता है। भोजन में प्राकृतिक एंटी ऑक्सीडेंट का इस्तेमाल करना स्वास्थ के लिए बेहतर है। यह कृत्रिम एंटी ऑक्सीडेंट से ज्यादा बेहतर है। एंटीसेप्टिक गुणों के कारण यह चोट, घाव, खुजली और संक्रमण में कीटों के काटने या डंक मारने पर भी किया जाता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार : लौंग खुश्क, उत्तेजक और गर्म है। इसको खाने से सिर दर्द होता है। यह पाचनशक्ति को बढ़ाता है। दांतों के मसूढ़ों को | लौंग में अनेक प्रकार के औषधीय गुण होते हैं। आयुर्वेदिक मतानुसार लौंग तीखा, लघु, आंखों के लिए लाभकारी, शीतल, पाचनशक्तिवर्द्धक, पाचक और रुचिकारक होता है। यह प्यास, हिचकी, खांसी, रक्तविकार, टी.बी आदि रोगों को दूर करती है। लौंग का उपयोग मुंह से लार का अधिक आना, दर्द और विभिन्न रोगों में किया जाता है। यह दांतों के दर्द में भी लाभकारी है। ये उत्तेजना देते हैं और ऐंठनयुक्त अव्यवस्थाओं, तथा पेट फूलने की स्थिति को कम करते हैं। धीमे परिसंचरण को तेज करती है और हाजमा तथा चयापचय को बढ़ावा देती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि भारतीय मसालों में लौंग सबसे अच्छा एंटी ऑक्सीडेंट का काम करता है। भोजन में प्राकृतिक एंटी ऑक्सीडेंट का इस्तेमाल करना स्वास्थ के लिए बेहतर है। यह कृत्रिम एंटी ऑक्सीडेंट से ज्यादा बेहतर है। एंटीसेप्टिक गुणों के कारण यह चोट, घाव, खुजली और संक्रमण में कीटों के काटने या डंक मारने पर भी किया जाता है। [[यूनानी चिकित्सा पद्धति]] के अनुसार : लौंग खुश्क, उत्तेजक और गर्म है। इसको खाने से सिर दर्द होता है। यह पाचनशक्ति को बढ़ाता है। दांतों के मसूढ़ों को मज़बूत बनाता है। इसको पीसकर मालिश करने से ज़हर दूर होता है। ईरान और चीन में तो ऐसा भी माना जाता था कि लौंग में कामोत्तेजक गुण होते हैं। | ||
===लौंग का खानपान में इस्तेमाल=== | ===लौंग का खानपान में इस्तेमाल=== | ||
दुनिया भर के व्यञ्जनों को बनाने में प्रायः लौंग का प्रयोग एक मसाले के रूप में किया जाता है। मसाले के तौर पर लौंग का इस्तेमाल गरम मसाला में होता है। चूँकि लौंग के प्रयोग से भोजन सुस्वादु हो जाता है, सम्पूर्ण भारत में प्रायः लौंग का प्रयोग विभिन्न प्रकार के व्यञ्जन बनाने में होता है। रसोईघर में लवंग को पीसकर रसदार सब्जियों में इस्तेमाल किया जाता है। पुलाव एवं मिट, मछली पकाते समय भी मसाले के तौर लौंग का इस्तेमाल कर सकते हैं। आजकल बहुत सी मिठाईयों को सजाने के लिए भी लौंग का प्रयोग किया जाने लगा है। कोको, | दुनिया भर के व्यञ्जनों को बनाने में प्रायः लौंग का प्रयोग एक मसाले के रूप में किया जाता है। मसाले के तौर पर लौंग का इस्तेमाल गरम मसाला में होता है। चूँकि लौंग के प्रयोग से भोजन सुस्वादु हो जाता है, सम्पूर्ण भारत में प्रायः लौंग का प्रयोग विभिन्न प्रकार के व्यञ्जन बनाने में होता है। रसोईघर में लवंग को पीसकर रसदार सब्जियों में इस्तेमाल किया जाता है। पुलाव एवं मिट, मछली पकाते समय भी मसाले के तौर लौंग का इस्तेमाल कर सकते हैं। आजकल बहुत सी मिठाईयों को सजाने के लिए भी लौंग का प्रयोग किया जाने लगा है। कोको, चॉकलेट, आइसक्रीम आदि खाद्य-पदार्थों में पाया जाने वाला बनावटी वेनीला एसेन्स लौंग से ही तैयार किया जाता है। लौंग को पान के साथ भी खाया जाता है, प्रायः पान के बीड़े में लौंग को खोंस दिया जाता है जिससे बीड़े की सुन्दरता भी बढ़ जाती है। भारत के कुछ क्षेत्रों में बिना लौंग वाला पान बीड़ा देने को अशुभ माना जाता है। लौंग की तासीर गर्म होने के कारण गर्मियों के दिनों में इसका प्रयोग कम किया जाता है। मसाला चाय बनाने के लिए भी लौंग का इस्तेमाल किया जाता है। लौंग का आसव बनाकर उसमें से सुगन्धित पदार्थ तैयार किये जाते हैं। चीन और जापान में भी एक खुशबूदार पदार्थ के रूप में लौंग को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। [[यूरोप]], [[एशिया]] और [[संयुक्त राज्य अमरीका|संयुक्त राज्य अमेरिका]] के कई क्षेत्रों में लौंग का प्रयोग एक प्रकार के सिगरेट, जिसे कि क्रिटेक (kretek) कहा जाता है, बनाने के लिए भी किया जाता है। | ||
===लौंग का चिकित्सा में उपयोग=== | ===लौंग का चिकित्सा में उपयोग=== | ||
*मतली, हिचकी, पेट फूलना, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, गठिया, दांत दर्द, डायरिया, संक्रमण, के रूप में उपयोगी यह एंटीसेप्टिक; कीट नाशक, उत्तेजक, पुनःशक्ति दायक, शारीरिक गर्मीदायक, कामोद्दीपक टॉनिक भी है। | *मतली, हिचकी, पेट फूलना, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, गठिया, दांत दर्द, डायरिया, संक्रमण, के रूप में उपयोगी यह एंटीसेप्टिक; कीट नाशक, उत्तेजक, पुनःशक्ति दायक, शारीरिक गर्मीदायक, कामोद्दीपक टॉनिक भी है। | ||
*संक्रमण - एंटीसेप्टिक गुणों के कारण यह चोट, घाव, खुजली और संक्रमण में भी | *संक्रमण - एंटीसेप्टिक गुणों के कारण यह चोट, घाव, खुजली और संक्रमण में भी काफ़ी उपयोगी होता है। इसका उपयोग कीटों के काटने या डंक मारने पर भी किया जाता है। लेकिन संवेदनशील त्वचा पर इसे नहीं लगाना चाहिए। | ||
*नासूर - लौंग और हल्दी पीस कर लगाने से नासूर मिटता है। | *नासूर - लौंग और [[हल्दी]] पीस कर लगाने से नासूर मिटता है। | ||
*लौंग के तेल को त्वचा पर लगाने से सर्दी, फ्लू और पैरों में होने वाल फंगल इन्फेक्शन और त्वचा के कीड़े भी नष्ट होते हैं। | *लौंग के तेल को त्वचा पर लगाने से सर्दी, फ्लू और पैरों में होने वाल फंगल इन्फेक्शन और त्वचा के कीड़े भी नष्ट होते हैं। | ||
*गुहेरी - आंखों के पास या चेहरे पर निकली छोटी-छोटी फुंसियों पर लौंग घिस कर लगाने से फुंसियाँ और सूजन भी ठीक हो जाती हैं। | *गुहेरी - आंखों के पास या चेहरे पर निकली छोटी-छोटी फुंसियों पर लौंग घिस कर लगाने से फुंसियाँ और सूजन भी ठीक हो जाती हैं। | ||
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*ज्वर - एक लौंग पीस कर गर्म पानी से फंकी लें। दो तीन बार लेने से ही सामान्य बुखार उतर जाएगा। चार लौंग पाउडर पानी में घोल कर पिलाने में तेज बुखार भी कम हो जाता है। | *ज्वर - एक लौंग पीस कर गर्म पानी से फंकी लें। दो तीन बार लेने से ही सामान्य बुखार उतर जाएगा। चार लौंग पाउडर पानी में घोल कर पिलाने में तेज बुखार भी कम हो जाता है। | ||
*पित्त ज्वर - चार लौंग पीस कर पानी में घोल कर पिलाने में तेज ज्वर कम हो जाता है। | *पित्त ज्वर - चार लौंग पीस कर पानी में घोल कर पिलाने में तेज ज्वर कम हो जाता है। | ||
*कान में दर्द - लौंग के तेल को तिल के तेल (सेसमी आयल) के साथ मिलाकर | *कान में दर्द - लौंग के तेल को तिल के तेल (सेसमी आयल) के साथ मिलाकर डालने से [[कान]] के दर्द में राहत मिलती है। | ||
*तनाव - लौंग मानसिक दबाव और थकान को कम करने का काम करता है। यह अनिद्रा के मरीजों और मानसिक बीमारियों जैसे कम होती याददाश्त, अवसाद और तनाव में उपयोगी होता है। | *तनाव - लौंग मानसिक दबाव और थकान को कम करने का काम करता है। यह अनिद्रा के मरीजों और मानसिक बीमारियों जैसे कम होती याददाश्त, अवसाद और तनाव में उपयोगी होता है। | ||
*डायबिटीज - लौंग का तेल | *डायबिटीज - लौंग का तेल ख़ून को साफ़ करके ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है। लौंग का तेल रक्त संचार सामान्य और शरीर का तापमान नियंत्रित रखता हैं। | ||
*चोट लगने पर लौंग की कुछ कलियों को सरसों तेल / कपूर के तेल में पकाकर मालिश करने से लाभ मिलता है। सूजन होने पर लौंग के तेल से मालिश करनी चाहिए। मांस पेशियों में ऐंठन हो तो प्रभावित क्षेत्र पर लौंग के तेल की मालिस करने से आराम मिलता है। | *चोट लगने पर लौंग की कुछ कलियों को सरसों तेल / कपूर के तेल में पकाकर मालिश करने से लाभ मिलता है। सूजन होने पर लौंग के तेल से मालिश करनी चाहिए। मांस पेशियों में ऐंठन हो तो प्रभावित क्षेत्र पर लौंग के तेल की मालिस करने से आराम मिलता है। | ||
*जल्दी-जल्दी प्यास लगने पर मिश्री एवं लौंग को पीसकर खाने से जल्दी प्यास नहीं लगती है। प्यास की तीव्रता होने पर उबलते पानी में लौंग डाल कर पिलाएँ। इससे प्यास कम हो जाती है। | *जल्दी-जल्दी प्यास लगने पर मिश्री एवं लौंग को पीसकर खाने से जल्दी प्यास नहीं लगती है। प्यास की तीव्रता होने पर उबलते पानी में लौंग डाल कर पिलाएँ। इससे प्यास कम हो जाती है। | ||
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;त्वचा की बीमारी | ;त्वचा की बीमारी | ||
*त्वचा के किसी भी प्रकार के रोग में इसका चंदन बूरा के साथ मिलाकर लेप लगाने से | *त्वचा के किसी भी प्रकार के रोग में इसका चंदन बूरा के साथ मिलाकर लेप लगाने से फ़ायदा मिलता है। लौंग के तेल का इस्तेमाल मुंहासे के उपचार में भी किया जाता है। | ||
;मुँह और गले की बीमारी | ;मुँह और गले की बीमारी | ||
*गले में दर्द हो तो कुछ लौंग की कलियों को पानी में उबालकर गरारा करने से गले की | *गले में दर्द हो तो कुछ लौंग की कलियों को पानी में उबालकर गरारा करने से गले की ख़राबी और पायरिया में लाभ मिलता है। गले की खराश में लौंग का चूसना असरकारक होता है। | ||
*दांत दर्द होने पर लौंग की एक कली दांत के नीचे रखने से दर्द से तुरंत आराम मिलता है। और इसके एन्टिसेप्टिक गुण दाँतों के संक्रमण को कम करता है। लौंग एक ऐसा मसाला है जो दंत क्षय को रोकता है और मुँह की दुर्गंध को दूर भगाता है। | *दांत दर्द होने पर लौंग की एक कली दांत के नीचे रखने से दर्द से तुरंत आराम मिलता है। और इसके एन्टिसेप्टिक गुण दाँतों के संक्रमण को कम करता है। लौंग एक ऐसा मसाला है जो दंत क्षय को रोकता है और मुँह की दुर्गंध को दूर भगाता है। | ||
*दांत में कीड़ा है तो लौंग को कीड़े लगे दांतों पर रखना चाहिए या लौंग का तेल की फुरेरी लगाना चाहिए, इससे दांत दर्द भी मिट जाता है। कटी जीभ पर लौंग को पीसकर रखने से कटी जीभ भी ठीक हो जाती है। | *दांत में कीड़ा है तो लौंग को कीड़े लगे दांतों पर रखना चाहिए या लौंग का तेल की फुरेरी लगाना चाहिए, इससे दांत दर्द भी मिट जाता है। कटी जीभ पर लौंग को पीसकर रखने से कटी जीभ भी ठीक हो जाती है। | ||
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;सांस की बीमारी | ;सांस की बीमारी | ||
*नमक के साथ लौंग चबाने से कफोत्सारण (थूकने) में आसानी होती है, गले का दर्द कम हो जाता है और ग्रसनी की जलन भी बंद हो जाती है। ग्रसनी शोथ के कारण होने वाली खाँसी को दूर करने के लिए जले हुए लौंग को चबाना अच्छा होता है। | *नमक के साथ लौंग चबाने से कफोत्सारण (थूकने) में आसानी होती है, गले का दर्द कम हो जाता है और ग्रसनी की जलन भी बंद हो जाती है। ग्रसनी शोथ के कारण होने वाली खाँसी को दूर करने के लिए जले हुए लौंग को चबाना अच्छा होता है। | ||
*खांसी होने पर लौंग को चूसने से | *खांसी होने पर लौंग को चूसने से फ़ायदा होता है। लौंग को भुनकर चबाने से या लौंग को नमक के साथ चबाकर खाने से खांसी कफ गले दर्द में तुरन्त आराम मिलता है। लौंग कफ-पित्त नाशक होती है। | ||
*लौंग मुँह में रखने से कफ आराम से निकलता है तथा कफ की दुर्गन्ध दूर हो जाती है। मुँह और साँस की दुर्गन्ध भी इससे मिटती है। लौंग और अनार के छिलके समान मात्रा में पीस कर चुटकी भर चूर्ण शहद से नित्य तीन बार चाटने से खाँसी ठीक हो जाती है। दो लौंग तवे पर सेंक कर चूसें। इससे खाँसी के साथ कफ (बलगम) आना ठीक हो जाता है। | *लौंग मुँह में रखने से कफ आराम से निकलता है तथा कफ की दुर्गन्ध दूर हो जाती है। मुँह और साँस की दुर्गन्ध भी इससे मिटती है। लौंग और अनार के छिलके समान मात्रा में पीस कर चुटकी भर चूर्ण शहद से नित्य तीन बार चाटने से खाँसी ठीक हो जाती है। दो लौंग तवे पर सेंक कर चूसें। इससे खाँसी के साथ कफ (बलगम) आना ठीक हो जाता है। | ||
*क्षय रोग, दमा और श्रवसनी शोथ से होने वाली दर्दभरी खाँसियों को कम करने के लिए [[लहसुन]] की एक कली को शहद के साथ मिलाएँ और उसमें तीन से पाँच लौंग के तेल की बूँदें डालें। सोने से पहले इसे एक बार लेने से काफ़ी आराम मिलेगा। लौंग का तेल सांस की बीमारीयों में खांसी, जुकाम, दमा, अस्थमा, [[तपेदिक]], [[फेफड़ा|फेफड़े]] में सूजन में बहुत उपयोगी होता है। | |||
*क्षय रोग, दमा और श्रवसनी शोथ से होने वाली दर्दभरी खाँसियों को कम करने के लिए लहसुन की एक कली को शहद के साथ मिलाएँ और उसमें तीन से पाँच लौंग के तेल की बूँदें डालें। सोने से पहले इसे एक बार लेने से | *लौंग से दमे का बहुत प्रभावी इलाज होता है। दमा के रोगी को 4-6 लौंग की कलियों को पीसकर 30 मि.ली. / एक कप पानी में उबाल कर इसका काढ़ा बना ले और शहद के साथ दिन में तीन बार पीएं। इससे जमी हुई कफ निकल जाएगी और दमा से राहत मिलेगी। लहसुन की एक कली को पीसे इसे शहद के साथ मिलाएँ और 4-5 लौंग के तेल की बूँदें डालें, सोने से पहले इसे एक बार ले दमा सांस टी बी की तकलीफ भरी खांसी में काफ़ी आराम मिलेगा। | ||
*लौंग से दमे का बहुत प्रभावी इलाज होता है। दमा के रोगी को 4-6 लौंग की कलियों को पीसकर 30 मि.ली. / एक कप पानी में उबाल कर इसका काढ़ा बना ले और शहद के साथ दिन में तीन बार पीएं। इससे जमी हुई कफ निकल जाएगी और दमा से राहत मिलेगी। लहसुन की एक कली को पीसे इसे शहद के साथ मिलाएँ और 4-5 लौंग के तेल की बूँदें डालें, सोने से पहले इसे एक बार ले दमा सांस टी बी की तकलीफ भरी खांसी में | *कूकर खाँसी - 2 लौंग आग में भून कर [[शहद]] में मिलाकर चाटने से कूकर खाँसी ठीक हो जाती है। | ||
कूकर खाँसी - 2 लौंग आग में भून कर शहद में मिलाकर चाटने से कूकर खाँसी ठीक हो जाती है। | |||
;सिर की बीमारी | ;सिर की बीमारी | ||
*नमक के क्रिस्टल और लौंग को दूध में मिलाकर तैयार विलेप लगाने से सिरदर्द ठीक हो जाता है। बरौनी के आसपास की जलन को ठीक करने के लिए भी लौंग प्रभावी होती है। | *नमक के क्रिस्टल और लौंग को दूध में मिलाकर तैयार विलेप लगाने से सिरदर्द ठीक हो जाता है। बरौनी के आसपास की जलन को ठीक करने के लिए भी लौंग प्रभावी होती है। | ||
*पानी में लौंग को घिसकर प्रभावित जगह पर लगाने से सुकून मिलता है। | *पानी में लौंग को घिसकर प्रभावित जगह पर लगाने से सुकून मिलता है। | ||
*नारियल तेल में लौंग के तेल की 8-10 बूंदें डाले इसमें एक चुटकी नमक | *नारियल तेल में लौंग के तेल की 8-10 बूंदें डाले इसमें एक चुटकी नमक मिलाकर सिर पर मालिश करे जिससे सिर में ठंडक आती है और दर्द भी जाता रहता है। | ||
*लौंग के तेल की | *लौंग के तेल की मालिश अथवा लौंग को पीस कर माथे पर लगाये सिर दर्द तुरन्त ठीक होता है। 4-5 लौंग पीस कर एक कप पानी में मिला कर आधा पानी रहने तक गर्म करें। छान कर चीनी या शहद मिला कर सुबह और शाम पिलाएँ इससे सर का दर्द ठीक हो जाता है। | ||
===हानिकारक=== | ===हानिकारक=== | ||
लौंग की प्रवृत्ति बेहद गर्म होती है अत: अपने शरीर की प्रकृति को समझते हुए ही इसका सेवन करना चाहिए। अत: अधिक मात्रा में इसका सेवन करना नुकसानदेय हो सकता है अत: लौंग | लौंग की प्रवृत्ति बेहद गर्म होती है अत: अपने शरीर की प्रकृति को समझते हुए ही इसका सेवन करना चाहिए। अत: अधिक मात्रा में इसका सेवन करना नुकसानदेय हो सकता है अत: लौंग ज़रूरत से अधिक नहीं खाना चाहिए। ज़्यादा लौंग खाने से गुर्दे और आंतों को नुकसान पहुंच सकता है। बबूल का गोंद, लौंग में व्याप्त दोषों को दूर करता है। मात्रा :- 1 ग्राम से 3 ग्राम तक। | ||
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{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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10:44, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
लौंग |
लौंग का वृक्ष |
लौंग का फूल |
लौंग |
परिचय
भारतीय रसोई घर और मसाले तथा इनमे लौंग और लौंग की उपयोगिता को कौन नहीं जानता। लौंग को दादी नानी के नुस्को में एक विशेष स्थान प्राप्त है। लौंग (Clove, Lawang, Devkusum) का प्रयोग मसाले के तौर पर प्राचीन काल से होता चला आ रहा है। अलग-अलग स्थानों एवं भाषाओं में लौंग को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। लौंग को अंग्रेजी में क्लोव्ह / clove कहा जाता है जो कि लैटिन के शब्द clavus, जिसका अर्थ नाखून होता है, का अंग्रेजी रूपान्तर है। लौंग के नाखून के सदृश होने के कारण ही उसका यह अंग्रेजी नाम पड़ा। लौंग का रंग काला होता है। यह एक खुशबूदार मसाला है। जिसे भोजन में स्वाद के लिए डाला जाता है। लौंग का उद्गम स्थान इंडोनेशिया को माना जाता है। ऐतिहासिक रूप से लौंग का पेड़ मोलुक्का द्वीपों का देशी वृक्ष है, जहाँ चीन ने ईसा से लगभग तीन शताब्दी पूर्व इसे खोजा और अलेक्सैन्ड्रिया में इसका आयात तक होने लगा। आज जंजीबार लौंग का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला देश है। लौंग का अधिक मात्रा में उत्पादन जंजीबार और मलाक्का द्वीप में होता है। इसका उपयोग भारत और चीन में 2000 वर्षों से भी अधिक समय से हो रहा है। लौंग का उत्पादन मुख्य रूप से इंडोनेशिया, मेडागास्कर, भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका आदि देशों में होता है। आपको शायद यह जानकर आश्चर्य हो कि अठारहवीं शताब्दी में ब्रिटेन में लौंग का मूल्य उसके वजन के सोने के बराबर हुआ करता था।
लौंग का वृक्ष
लौंग मध्यम आकार का सदाबहार वृक्ष से पाया जाने वाला, सूखा, अनखुला एक ऐसा पुष्प अंकुर होता है जिसके वृक्ष का तना सीधा और पेड़ भी 10-12 मीटर की ऊँचाई वाला होता है और जिसके पत्ते बड़े-बड़े तथा दीर्घवृताकार होते हैं। इसके पेड़ को लगाने के आठ या नौ वर्ष के बाद ही फल देते है। लौंग के पेड़ों के शाखों के अन्तिम छोरों में लौंग के फूल समूह में खिलते हैं। लौंग की कलियों का रंग खिलना आरम्भ होते समय पीला होता है जो कि धीरे-धीरे हरा होते जाता है और पूर्णतः खिल जाने पर इसका रंग लाल हो जाता है। इन कलियों में चार पँखुड़ियों के मध्य एक वृताकार फल होता है।
लौंग के प्रकार
लौंग, जिसे कि लवांग के नाम से भी जाना जाता है, Myrtaceae परिवार से सम्बन्धित एक पेड़ की सूखी कली को कहते हैं जो कि खुशबूदार होता है। लौंग उष्ण प्रकृति का मसाला है। लौंग दो प्रकार के होते हैं। एक काले रंग की एवं दूसरी नीले रंग की। आमतौर पर घरों में मसाले के तौर पर इस्तेमाल होने वाला लौंग काले रंग का होता है। नीले रंग का लौंग अधिक तैलीय होता है अत: इनसे मशीन द्वारा तेल निकाला जाता है जिनका उपयोग चिकित्सा में किया जाता है। इसके पत्ते भी मसाले के तौर पर इस्तेमाल किये जाते हैं। लवंग एक खुशबूदार मसाला होता है।
लौंग की पहचान
अच्छे लवंग की पहचान है उसकी खुशबू एवं तैलीयपन। लौंग ख़रीदते समय उसे दातों में दबाकर देखना चाहिए इससे लवंग की गुणवत्ता पता चल जाती है। जो लौंग सुगन्ध में तेज, स्वाद में तीखी हो और दबाने में तेल का आभास हो उसी लौंग को अच्छा मानना चाहिए। व्यापारी लौंग में तेल निकाला हुआ लौंग मिला देते है। अगर लौंग में झुर्रिया पड़ी हो तो समझे कि यह तेल निकाली हुई लौंग है।
लौंग के तत्व
लौंग में मौजूद तत्वों का विश्लेषण किया जाए तो इसमें कार्बोहाइड्रेट, नमी, प्रोटीन, वाष्पशील तेल, गैर-वाष्पशील ईथर निचोड़ (वसा) और रेशों से बना होता है। इसके अलावा खनिज पदार्थ, हाइड्रोक्लोरिक एसिड में न घुलने वाली राख, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, सोडियम, पोटेशियम, थायामाइन, राइबोफ्लेविन, नियासिन, विटामिन 'सी' और 'ए' जैसे तत्व भी लौंग में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अलावा कई तरह के औषधीय तत्व होते हैं। इसका ऊष्मीय मान 43 डिग्री है और इससे कई तरह के औषधीय व भौतिक तत्व लिए जा सकते हैं।
लौंग एक औषधी
आयुर्वेद में लौंग का प्रयोग अनेक प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियों के बनाने में भी किया जाता है। भारत के प्राचीन चिकित्सा विज्ञान में लौंग का उपयोग चिकित्सा के लिए किये जाने का ज़िक्र हुआ है। चीन के साथ ही साथ पश्चिम के अनेक देशों में हर्बल दवाइयाँ बनाने के लिए लौंग का प्रयोग किया जाता है। भारतीय औषधीय प्रणाली में लौंग का उपयोग कई स्थितियों में किया जाता है। अनेक रोगों के निदान के लिए आयुर्वेद में लौंग का प्रयोग साबुत, पीसकर, चूर्ण, काढ़ा तथा तेल के रूप में किया जाता है। लौंग का तेल एक महत्त्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधि है। लौंग के तेल को औषधि के रूप में भी उपयोग में लाया जाता है। लौंग के तेल में भी ऐसे अंश होते हैं जो रक्त परिसंचरण को स्थिर करते हैं और शरीर के तापमान को नियंत्रित रखते हैं। लौंग के तेल को बाहरी त्वचा पर लगाने से त्वचा पर उत्तेजक प्रभाव दिखाई देते हैं। त्वचा लाल हो जाती है और उष्मा उत्पन्न होती है। इसके अलावा लौंग एंजाइम के बहाव को बढ़ावा देती है भूख बढ़ाती है और पाचन क्रिया को भी तेज करती है। लौंग का तेल पानी की तुलना में भारी होता है। इसका रंग लाल होता है। सिगरेट की तम्बाकू को सुगन्धित बनाने के लिए लौंग के तेल का उपयोग होता है। इसके तेल को त्वचा पर लगाने से त्वचा के कीड़े नष्ट होते हैं।
आयुर्वेदिक गुण
लौंग में अनेक प्रकार के औषधीय गुण होते हैं। आयुर्वेदिक मतानुसार लौंग तीखा, लघु, आंखों के लिए लाभकारी, शीतल, पाचनशक्तिवर्द्धक, पाचक और रुचिकारक होता है। यह प्यास, हिचकी, खांसी, रक्तविकार, टी.बी आदि रोगों को दूर करती है। लौंग का उपयोग मुंह से लार का अधिक आना, दर्द और विभिन्न रोगों में किया जाता है। यह दांतों के दर्द में भी लाभकारी है। ये उत्तेजना देते हैं और ऐंठनयुक्त अव्यवस्थाओं, तथा पेट फूलने की स्थिति को कम करते हैं। धीमे परिसंचरण को तेज करती है और हाजमा तथा चयापचय को बढ़ावा देती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि भारतीय मसालों में लौंग सबसे अच्छा एंटी ऑक्सीडेंट का काम करता है। भोजन में प्राकृतिक एंटी ऑक्सीडेंट का इस्तेमाल करना स्वास्थ के लिए बेहतर है। यह कृत्रिम एंटी ऑक्सीडेंट से ज्यादा बेहतर है। एंटीसेप्टिक गुणों के कारण यह चोट, घाव, खुजली और संक्रमण में कीटों के काटने या डंक मारने पर भी किया जाता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार : लौंग खुश्क, उत्तेजक और गर्म है। इसको खाने से सिर दर्द होता है। यह पाचनशक्ति को बढ़ाता है। दांतों के मसूढ़ों को मज़बूत बनाता है। इसको पीसकर मालिश करने से ज़हर दूर होता है। ईरान और चीन में तो ऐसा भी माना जाता था कि लौंग में कामोत्तेजक गुण होते हैं।
लौंग का खानपान में इस्तेमाल
दुनिया भर के व्यञ्जनों को बनाने में प्रायः लौंग का प्रयोग एक मसाले के रूप में किया जाता है। मसाले के तौर पर लौंग का इस्तेमाल गरम मसाला में होता है। चूँकि लौंग के प्रयोग से भोजन सुस्वादु हो जाता है, सम्पूर्ण भारत में प्रायः लौंग का प्रयोग विभिन्न प्रकार के व्यञ्जन बनाने में होता है। रसोईघर में लवंग को पीसकर रसदार सब्जियों में इस्तेमाल किया जाता है। पुलाव एवं मिट, मछली पकाते समय भी मसाले के तौर लौंग का इस्तेमाल कर सकते हैं। आजकल बहुत सी मिठाईयों को सजाने के लिए भी लौंग का प्रयोग किया जाने लगा है। कोको, चॉकलेट, आइसक्रीम आदि खाद्य-पदार्थों में पाया जाने वाला बनावटी वेनीला एसेन्स लौंग से ही तैयार किया जाता है। लौंग को पान के साथ भी खाया जाता है, प्रायः पान के बीड़े में लौंग को खोंस दिया जाता है जिससे बीड़े की सुन्दरता भी बढ़ जाती है। भारत के कुछ क्षेत्रों में बिना लौंग वाला पान बीड़ा देने को अशुभ माना जाता है। लौंग की तासीर गर्म होने के कारण गर्मियों के दिनों में इसका प्रयोग कम किया जाता है। मसाला चाय बनाने के लिए भी लौंग का इस्तेमाल किया जाता है। लौंग का आसव बनाकर उसमें से सुगन्धित पदार्थ तैयार किये जाते हैं। चीन और जापान में भी एक खुशबूदार पदार्थ के रूप में लौंग को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यूरोप, एशिया और संयुक्त राज्य अमेरिका के कई क्षेत्रों में लौंग का प्रयोग एक प्रकार के सिगरेट, जिसे कि क्रिटेक (kretek) कहा जाता है, बनाने के लिए भी किया जाता है।
लौंग का चिकित्सा में उपयोग
- मतली, हिचकी, पेट फूलना, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, गठिया, दांत दर्द, डायरिया, संक्रमण, के रूप में उपयोगी यह एंटीसेप्टिक; कीट नाशक, उत्तेजक, पुनःशक्ति दायक, शारीरिक गर्मीदायक, कामोद्दीपक टॉनिक भी है।
- संक्रमण - एंटीसेप्टिक गुणों के कारण यह चोट, घाव, खुजली और संक्रमण में भी काफ़ी उपयोगी होता है। इसका उपयोग कीटों के काटने या डंक मारने पर भी किया जाता है। लेकिन संवेदनशील त्वचा पर इसे नहीं लगाना चाहिए।
- नासूर - लौंग और हल्दी पीस कर लगाने से नासूर मिटता है।
- लौंग के तेल को त्वचा पर लगाने से सर्दी, फ्लू और पैरों में होने वाल फंगल इन्फेक्शन और त्वचा के कीड़े भी नष्ट होते हैं।
- गुहेरी - आंखों के पास या चेहरे पर निकली छोटी-छोटी फुंसियों पर लौंग घिस कर लगाने से फुंसियाँ और सूजन भी ठीक हो जाती हैं।
- आंत्र ज्वर - आंत्र ज्वर में दो किलो पानी में पाँच लौंग आधा रहने तक उबालकर छानकर इस पानी को दिन में कई बार पिलाएँ।
- ज्वर - एक लौंग पीस कर गर्म पानी से फंकी लें। दो तीन बार लेने से ही सामान्य बुखार उतर जाएगा। चार लौंग पाउडर पानी में घोल कर पिलाने में तेज बुखार भी कम हो जाता है।
- पित्त ज्वर - चार लौंग पीस कर पानी में घोल कर पिलाने में तेज ज्वर कम हो जाता है।
- कान में दर्द - लौंग के तेल को तिल के तेल (सेसमी आयल) के साथ मिलाकर डालने से कान के दर्द में राहत मिलती है।
- तनाव - लौंग मानसिक दबाव और थकान को कम करने का काम करता है। यह अनिद्रा के मरीजों और मानसिक बीमारियों जैसे कम होती याददाश्त, अवसाद और तनाव में उपयोगी होता है।
- डायबिटीज - लौंग का तेल ख़ून को साफ़ करके ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है। लौंग का तेल रक्त संचार सामान्य और शरीर का तापमान नियंत्रित रखता हैं।
- चोट लगने पर लौंग की कुछ कलियों को सरसों तेल / कपूर के तेल में पकाकर मालिश करने से लाभ मिलता है। सूजन होने पर लौंग के तेल से मालिश करनी चाहिए। मांस पेशियों में ऐंठन हो तो प्रभावित क्षेत्र पर लौंग के तेल की मालिस करने से आराम मिलता है।
- जल्दी-जल्दी प्यास लगने पर मिश्री एवं लौंग को पीसकर खाने से जल्दी प्यास नहीं लगती है। प्यास की तीव्रता होने पर उबलते पानी में लौंग डाल कर पिलाएँ। इससे प्यास कम हो जाती है।
- गर्भवती स्त्रियों को उल्टी होने पर लौंग को गर्म पानी में भिगोकर उसका पानी पिलाने से लाभ होता है। यदि भुने हुए लौंग के चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर ले लिया जाए तो उल्टियों पर काबू पाया जा सकता है क्योंकि लौंग के संज्ञाहारी प्रभाव से पेट और हलक सुन्न हो जाते हैं और उल्टियाँ रुक जाती हैं।
- उल्टी - चार लौंग कूट कर एक कप पानी में डाल कर उबालें। आधा पानी रहने पर छान कर स्वाद के अनुसार मीठा मिला कर पी कर करवट लेकर सो जाएँ। दिन भर में ऐसी चार मात्रा लें। उल्टियाँ बंद हो जाएँगी।
- हैजे के उपचार में भी लौंग बहुत उपयोगी सिद्ध होती है। हैजे में प्यास और उलटी में लौंग का पानी बनाकर देते है इससे प्यास और उलटी कम होती है तथा पेशाब खुलकर आता है। इसके लिए चार ग्राम लौंग को तीन लीटर पानी में तब तक उबाला जाता है जब तक कि आधा पानी भाप बनकर गायब न हो जाए। इस पानी को पीने से रोग के तीव्र लक्षण तुरंत काबू में आ जाते हैं।
- खसरा - खसरा निकलने पर दो लौंग को घिसकर शहद के साथ लेने से खसरा ठीक हो जाता है।
- यह पेट के दर्द को मिटाने वाला माना जाता है। लौंग पाचन क्रिया को दुरुस्त रखता है।
- अम्लपित्त - खाना खाने के बाद 1-1 लौंग सुबह, शाम खाने से या शर्बत में लेने से अम्लपित्त से होने वाले सभी रोगों में लाभ होता है और अम्लपित्त ठीक हो जाता है। 15 ग्राम हरे आँवलों का रस, पाँच पिसी हुई लौंग, एक चम्मच शहद और एक चम्मच चीनी मिलाकर रोगी को पिलाएँ। ऐसी तीन मात्रा सुबह, दोपहर, रात को सोते समय पिलाएँ। कुछ ही दिनों में आशातीत लाभ होगा।
- अपच, गैस - दो लौंग पीस कर उबलते हुए आधा कप पानी में डालें, फिर कुछ ठंडा होने पर पी जाएँ। इस प्रकार तीन बार नित्य करें।
- जी मिचलाना - 2 लौंग पीस कर आधा कप पानी में मिला कर गर्म करके पिलाने से जी मिचलाना ठीक हो जाता है। लौंग चबाने से भी जी मिचलाना ठीक हो जाता है।
- त्वचा की बीमारी
- त्वचा के किसी भी प्रकार के रोग में इसका चंदन बूरा के साथ मिलाकर लेप लगाने से फ़ायदा मिलता है। लौंग के तेल का इस्तेमाल मुंहासे के उपचार में भी किया जाता है।
- मुँह और गले की बीमारी
- गले में दर्द हो तो कुछ लौंग की कलियों को पानी में उबालकर गरारा करने से गले की ख़राबी और पायरिया में लाभ मिलता है। गले की खराश में लौंग का चूसना असरकारक होता है।
- दांत दर्द होने पर लौंग की एक कली दांत के नीचे रखने से दर्द से तुरंत आराम मिलता है। और इसके एन्टिसेप्टिक गुण दाँतों के संक्रमण को कम करता है। लौंग एक ऐसा मसाला है जो दंत क्षय को रोकता है और मुँह की दुर्गंध को दूर भगाता है।
- दांत में कीड़ा है तो लौंग को कीड़े लगे दांतों पर रखना चाहिए या लौंग का तेल की फुरेरी लगाना चाहिए, इससे दांत दर्द भी मिट जाता है। कटी जीभ पर लौंग को पीसकर रखने से कटी जीभ भी ठीक हो जाती है।
- लौंग का तेल दांत में दर्द, मसूड़ों में दर्द और मुंह में अल्सर और सांसों की बदबू को दूर करने में रामबाण दवा है। एक गिलास पानी में चार-पाँच लौंग उबाल कर इस पानी से कुल्ला करे या लौंग पीस कर उसमें नीबू का रस मिलाये इसे दांतों पर मलने से दांतों का दर्द ख़त्म हो जाता है।
- सांस की बीमारी
- नमक के साथ लौंग चबाने से कफोत्सारण (थूकने) में आसानी होती है, गले का दर्द कम हो जाता है और ग्रसनी की जलन भी बंद हो जाती है। ग्रसनी शोथ के कारण होने वाली खाँसी को दूर करने के लिए जले हुए लौंग को चबाना अच्छा होता है।
- खांसी होने पर लौंग को चूसने से फ़ायदा होता है। लौंग को भुनकर चबाने से या लौंग को नमक के साथ चबाकर खाने से खांसी कफ गले दर्द में तुरन्त आराम मिलता है। लौंग कफ-पित्त नाशक होती है।
- लौंग मुँह में रखने से कफ आराम से निकलता है तथा कफ की दुर्गन्ध दूर हो जाती है। मुँह और साँस की दुर्गन्ध भी इससे मिटती है। लौंग और अनार के छिलके समान मात्रा में पीस कर चुटकी भर चूर्ण शहद से नित्य तीन बार चाटने से खाँसी ठीक हो जाती है। दो लौंग तवे पर सेंक कर चूसें। इससे खाँसी के साथ कफ (बलगम) आना ठीक हो जाता है।
- क्षय रोग, दमा और श्रवसनी शोथ से होने वाली दर्दभरी खाँसियों को कम करने के लिए लहसुन की एक कली को शहद के साथ मिलाएँ और उसमें तीन से पाँच लौंग के तेल की बूँदें डालें। सोने से पहले इसे एक बार लेने से काफ़ी आराम मिलेगा। लौंग का तेल सांस की बीमारीयों में खांसी, जुकाम, दमा, अस्थमा, तपेदिक, फेफड़े में सूजन में बहुत उपयोगी होता है।
- लौंग से दमे का बहुत प्रभावी इलाज होता है। दमा के रोगी को 4-6 लौंग की कलियों को पीसकर 30 मि.ली. / एक कप पानी में उबाल कर इसका काढ़ा बना ले और शहद के साथ दिन में तीन बार पीएं। इससे जमी हुई कफ निकल जाएगी और दमा से राहत मिलेगी। लहसुन की एक कली को पीसे इसे शहद के साथ मिलाएँ और 4-5 लौंग के तेल की बूँदें डालें, सोने से पहले इसे एक बार ले दमा सांस टी बी की तकलीफ भरी खांसी में काफ़ी आराम मिलेगा।
- कूकर खाँसी - 2 लौंग आग में भून कर शहद में मिलाकर चाटने से कूकर खाँसी ठीक हो जाती है।
- सिर की बीमारी
- नमक के क्रिस्टल और लौंग को दूध में मिलाकर तैयार विलेप लगाने से सिरदर्द ठीक हो जाता है। बरौनी के आसपास की जलन को ठीक करने के लिए भी लौंग प्रभावी होती है।
- पानी में लौंग को घिसकर प्रभावित जगह पर लगाने से सुकून मिलता है।
- नारियल तेल में लौंग के तेल की 8-10 बूंदें डाले इसमें एक चुटकी नमक मिलाकर सिर पर मालिश करे जिससे सिर में ठंडक आती है और दर्द भी जाता रहता है।
- लौंग के तेल की मालिश अथवा लौंग को पीस कर माथे पर लगाये सिर दर्द तुरन्त ठीक होता है। 4-5 लौंग पीस कर एक कप पानी में मिला कर आधा पानी रहने तक गर्म करें। छान कर चीनी या शहद मिला कर सुबह और शाम पिलाएँ इससे सर का दर्द ठीक हो जाता है।
हानिकारक
लौंग की प्रवृत्ति बेहद गर्म होती है अत: अपने शरीर की प्रकृति को समझते हुए ही इसका सेवन करना चाहिए। अत: अधिक मात्रा में इसका सेवन करना नुकसानदेय हो सकता है अत: लौंग ज़रूरत से अधिक नहीं खाना चाहिए। ज़्यादा लौंग खाने से गुर्दे और आंतों को नुकसान पहुंच सकता है। बबूल का गोंद, लौंग में व्याप्त दोषों को दूर करता है। मात्रा :- 1 ग्राम से 3 ग्राम तक।
- विभिन्न भाषाओं में लौंग के नाम
भाषा | नाम |
---|---|
हिन्दी | लौंग। |
अंग्रेज़ी | क्लाब्ज (CLOVES)। |
संस्कृत | लवंग, देवकुसुम। |
मराठी | लवंग। |
गुजराती | लविंग। |
बंगाली | लवंग। |
तैलगी/तेलुगु | लबंगाल,लवांगम। |
मलयालम | ग्राम्पू। |
फारसी | दरख्ते मेहक। |
अरबी | मिखकर्कन, फूल। |
लैटिन | कारेयाफाइलसएरों मटिकस्। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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