"ख़ून फिर ख़ून है -साहिर लुधियानवी": अवतरणों में अंतर
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बरतरी के सुबूत की ख़ातिर | बरतरी के सुबूत की ख़ातिर | ||
खूँ बहाना हीं क्या | खूँ बहाना हीं क्या ज़रूरी है | ||
घर की तारीकियाँ मिटाने को | घर की तारीकियाँ मिटाने को | ||
घर जलाना हीं क्या | घर जलाना हीं क्या ज़रूरी है | ||
टैंक आगे बढें कि पीछे हटें | टैंक आगे बढें कि पीछे हटें |
10:47, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
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ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है, बढ़ता है तो मिट जाता है |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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