"सोरियासिस": अवतरणों में अंतर
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अपरस रोग / छाल रोग | '''सोरियासिस''' / अपरस रोग / छाल रोग ([[अंग्रेज़ी]]: ''PSORIASIS'') एक प्रकार का असंक्रामक दीर्घकालिक त्वचा विकार (चर्मरोग) है जो कि [[परिवार|परिवारों]] के बीच चलता रहता है। यह रोग [[सर्दी|सर्दियों]] के मौसम में होता है। यह रोग उन व्यक्तियों को होता है जो अधिक परेशानियों से घिरे रहते हैं। छाल रोग सामान्यतया बहुत ही मंद स्थिति का होता है। इसके कारण त्वचा पर लाल-लाल खुरदरे धब्बे बन जाते हैं। यह ऐसा दीर्घकालिक विकार है जिसका यह अर्थ होता है कि इसके लक्षण वर्षों तक बने रहेंगे। ये पूरे जीवन में आते-जाते रहते हैं। यह स्त्री-पुरुष दोनों ही को समान रूप से हो सकता है। सोरियासिस में त्वचा में कोशिकाओं की संख्या बढने लगती है। चमडी मोटी होने लगती है और उस पर खुरंड और पपडियां उत्पन्न हो जाती हैं। इस रोग के भयानक रुप में पूरा शरीर मोटी [[लाल रंग]] की पपडीदार चमडी से ढक जाता है। इस रोग का प्रभाव अधिकतर व्यक्तियों की हाथों-पैरों, कलाइयों, कोहनियों, कमर, हथेलियों, घुटनों, खोपडी तथा कंधों पर होता है। | ||
==सोरियासिस का कारण== | |||
सोरियासिस में त्वचा में | चिकित्सकों को अभी तक इस रोग की असली वजह का पता नहीं चला है। फिर भी अनुमान लगाया जाता है कि शरीर के इम्युन सिस्टम में व्यवधान आ जाने से यह रोग जन्म लेता है। इम्युन सिस्टम का मतलब शरीर की रोगों से लड़ने की प्रतिरक्षा प्रणाली से है। यह रोग आनुवांशिक (वंशानुगत पूर्ववृत्ति) भी होता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। इस रोग का विस्तार सारी दुनिया में है। सर्दी के दिनों में इस रोग का उग्र रूप देखा जाता है। कुछ रोगी बताते हैं कि [[गर्मी]] के मौसम में और धूप से उनको राहत मिलती है। | ||
====लाल खुरदरे धब्बे होने का कारण==== | |||
== | लाल खुरदरे धब्बे, त्वचा के अनुपयोगी परत में त्वचा कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाने के कारण पैदा होते हैं। सामान्यतया त्वचा कोशिकाएं पुरानी होकर शरीर के तल से झड़ती रहती है। इस प्रक्रिया में लगभग 4 [[सप्ताह]] का समय लग जाता है। कुछ व्यक्तियों को सोरियासिस होने पर त्वचा कोशिकाएं 3 से 4 दिन में ही झड़ने लगती है। यही अधिकाधिक त्वचा कोशिकाओं का झड़ाव त्वचा पर छालरोग के घाव पैदा कर देता है। | ||
====अति शीघ्र बढ़ने या ख़राब होने का कारण==== | |||
लाल खुरदरे धब्बे, त्वचा के अनुपयोगी परत में त्वचा कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाने के कारण पैदा होते हैं। सामान्यतया त्वचा कोशिकाएं पुरानी होकर शरीर के तल से झड़ती रहती है। इस प्रक्रिया में लगभग 4 सप्ताह का समय लग जाता है। कुछ व्यक्तियों को | |||
कुछ कारक है जिनसे छाल रोग से पीड़ित व्यक्तियों में चकते पड़ सकते हैं। इन कारकों में त्वचा की ख़राबी (रसायन, संक्रमण, खुरचना, धूप से जलन) मद्यसार, हार्मोन परिवर्तन, धूम्रपान, बेटा-ब्लाकर जैसी औषधी तथा तनाव सम्मिलित हैं। | कुछ कारक है जिनसे छाल रोग से पीड़ित व्यक्तियों में चकते पड़ सकते हैं। इन कारकों में त्वचा की ख़राबी (रसायन, संक्रमण, खुरचना, धूप से जलन) मद्यसार, हार्मोन परिवर्तन, धूम्रपान, बेटा-ब्लाकर जैसी औषधी तथा तनाव सम्मिलित हैं। | ||
==सामान्य लक्षण== | |||
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[[चित्र:cure-psoriasis.jpg|सोरियासिस का शरीर पर प्रभाव क्षेत्र|thumb|350px]] | [[चित्र:cure-psoriasis.jpg|सोरियासिस का शरीर पर प्रभाव क्षेत्र|thumb|350px]] | ||
अपरस रोग में रोगी की त्वचा पर जगह-जगह लाल-लाल से खुरदरे दाग-धब्बे हो जाते हैं। जितने यह दाग-धब्बे भयानक लगते हैं उतनी ज़्यादा इनमें खुजली नहीं होती है। जब यह रोग किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग पर होता है तो उस भाग की त्वचा का रंग गुलाबी (लाल) | अपरस रोग में रोगी की त्वचा पर जगह-जगह लाल-लाल से खुरदरे दाग-धब्बे हो जाते हैं। जितने यह दाग-धब्बे भयानक लगते हैं उतनी ज़्यादा इनमें खुजली नहीं होती है। जब यह रोग किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग पर होता है तो उस भाग की त्वचा का [[रंग]] [[गुलाबी रंग|गुलाबी]] (लाल) होकर सूज जाता है और फिर त्वचा के ऊपर सफेद सादी, सूखी एवं कड़ी खाल (त्वचा की पतली परत) जम जाते हैं। त्वचा सूखकर फट सी जाती है। जब ऊपर की पपड़ी उतरती हैं तो त्वचा से [[रक्त]] निकलने लगता हैं। लेकिन इसमें से कुछ मवाद आदि नहीं निकलता। ये लक्षण हल्के-फुल्के से लेकर भारी मात्रा में होते हैं। इससे विकृति और अशक्तता की स्थिति पैदा हो सकती है। | ||
====दीर्घकालिक प्रभाव==== | |||
== | छाल रोग से व्यक्तियों पर भावनात्मक तथा शारीरिक प्रभाव पड़ सकते हैं। छाल रोग ऑर्थरायटिस वाले व्यक्तियों को होते हैं। इससे दर्द होता है तथा इससे व्यक्ति अशक्त भी हो सकता है। छाल रोग संक्रामक नहीं है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को नहीं लगता। | ||
छाल रोग से व्यक्तियों पर भावनात्मक तथा शारीरिक प्रभाव पड़ सकते हैं। छाल रोग | ==रोक थाम== | ||
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* धूप तीव्रता सहित त्वचा को चोट न पहुंचने दें। धूप में जाना इतना सीमित रखें कि धूप से जलन न होने पाएं। | * धूप तीव्रता सहित त्वचा को चोट न पहुंचने दें। धूप में जाना इतना सीमित रखें कि धूप से जलन न होने पाएं। | ||
* मद्यपान और धूम्रपान न करें। | * मद्यपान और धूम्रपान न करें। | ||
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* संक्रमण और अन्य बीमारियाँ हो तो डाक्टर को दिखाएं। | * संक्रमण और अन्य बीमारियाँ हो तो डाक्टर को दिखाएं। | ||
* ज़्यादा मिर्च मसालेदार चीज़ें न खाएं। | * ज़्यादा मिर्च मसालेदार चीज़ें न खाएं। | ||
==आहार का महत्त्व== | |||
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व्यक्ति को जो आहार अच्छा लगे, वही उसके लिए उत्तम आहार है क्योंकि छाल रोग से पीड़ित व्यक्ति खान-पान की आदतों से उसी प्रकार लाभान्वित होता है जैसे हम सभी होते हैं। कई लोगों ने यह कहा है कि कुछ खाद्य पदार्थों से उनकी त्वचा में निखार आया है या त्वचा बेरंग हो गई है। | व्यक्ति को जो आहार अच्छा लगे, वही उसके लिए उत्तम आहार है क्योंकि छाल रोग से पीड़ित व्यक्ति खान-पान की आदतों से उसी प्रकार लाभान्वित होता है जैसे हम सभी होते हैं। कई लोगों ने यह कहा है कि कुछ खाद्य पदार्थों से उनकी त्वचा में निखार आया है या त्वचा बेरंग हो गई है। | ||
==प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार== | |||
== | * सोरियासिस या अपरस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कम से कम 7 से 15 दिनों तक फलों का सेवन करना चाहिए और उसके बाद [[फल]]-[[दूध]] पर रहना चाहिए। | ||
* अपरस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कम से कम 7 से 15 दिनों तक फलों का सेवन करना चाहिए और उसके बाद फल-दूध पर रहना चाहिए। | * अपरस रोग से पीड़ित व्यक्ति को यदि [[कब्ज]] की शिकायत हो तो उसे गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ़ करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप रोगी का यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। | ||
* अपरस रोग से पीड़ित व्यक्ति को यदि कब्ज की शिकायत हो तो उसे गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को | *अपरस रोग से पीड़ित रोगी को उपचार करने के लिए सबसे पहले उसके शरीर के दाद वाले भाग पर थोड़ी देर गर्म तथा थोड़ी देर ठण्डी सिकाई करके गीली [[मिट्टी]] का लेप करना चाहिए। इसके फलस्वरूप अपरस रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। | ||
*अपरस रोग से पीड़ित रोगी को उपचार करने के लिए सबसे पहले उसके शरीर के दाद वाले भाग पर थोड़ी देर गर्म तथा थोड़ी देर ठण्डी | |||
* रोगी व्यक्ति के अपरस वाले भाग को आधे घण्टे तक गर्म पानी में डुबोकर रखना चाहिए तथा इसके बाद उस पर गर्म गीली मिट्टी की पट्टी लगाने से लाभ होता है। | * रोगी व्यक्ति के अपरस वाले भाग को आधे घण्टे तक गर्म पानी में डुबोकर रखना चाहिए तथा इसके बाद उस पर गर्म गीली मिट्टी की पट्टी लगाने से लाभ होता है। | ||
* रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को | * रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ़ करना चाहिए और फलों का रस पीकर [[उपवास]] रखना चाहिए। इसके फलस्वरूप अपरस रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। | ||
* अपरस रोग से पीड़ित रोगी को | * अपरस रोग से पीड़ित रोगी को [[नीबू]] का रस पानी में मिलाकर प्रतिदिन कम से कम 5 बार पीना चाहिए और सादा भोजन करना चाहिए। | ||
* अपरस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को दाद वाले भाग पर रोजाना कम से कम 2 घण्टे तक नीला प्रकाश डालना चाहिए। | * अपरस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को दाद वाले भाग पर रोजाना कम से कम 2 घण्टे तक नीला प्रकाश डालना चाहिए। | ||
* अपरस रोग से पीड़ित रोगी को आसमानी रंग की बोतल के सूर्यतप्त जल को 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन दिन में 4 बार पीने से अपरस रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। | * अपरस रोग से पीड़ित रोगी को [[आसमानी रंग]] की बोतल के सूर्यतप्त जल को 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन दिन में 4 बार पीने से अपरस रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है। | ||
* अपरस रोग से पीड़ित रोगी को नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। | * अपरस रोग से पीड़ित रोगी को [[नमक]] का सेवन नहीं करना चाहिए। | ||
* रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में स्नान करना चाहिए और उसके बाद घर्षण स्नान करना चाहिए और सप्ताह में 2 बार पानी में नमक मिलाकर स्नान करना चाहिए। | * रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में [[स्नान]] करना चाहिए और उसके बाद घर्षण स्नान करना चाहिए और सप्ताह में 2 बार पानी में नमक मिलाकर स्नान करना चाहिए। | ||
* रोगी को अपने शरीर के अपरस वाले भाग को प्रतिदिन नमक मिले गर्म पानी से धोना चाहिए और उस पर जैतून का तेल या हरे रंग की बोतल व नीली बोतल का सूर्यतप्त तेल लगाना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है। | * रोगी को अपने शरीर के अपरस वाले भाग को प्रतिदिन नमक मिले गर्म पानी से धोना चाहिए और उस पर जैतून का तेल या [[हरा रंग|हरे रंग]] की बोतल व नीली बोतल का सूर्यतप्त तेल लगाना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है। | ||
* रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन अपने शरीर के रोगग्रस्त भाग पर नीला प्रकाश डालना चाहिए। इसके अलावा रोगी को रोजाना हल्का व्यायाम तथा गहरी सांस लेनी चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है। | * रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन अपने शरीर के रोगग्रस्त भाग पर नीला प्रकाश डालना चाहिए। इसके अलावा रोगी को रोजाना हल्का व्यायाम तथा गहरी सांस लेनी चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है। | ||
==सोरियासिस (छाल रोग) का घरेलू नुस्खों से इलाज== | |||
==सोरियासिस (छाल रोग) का घरेलू नुस्खों से | * [[बादाम]] 10 नग का पावडर बनाले। इसे पानी में उबालें। यह दवा सोरियासिस रोग की जगह पर लगावें। रात भर लगी रहने के बाद सुबह मे पानी से धो डालें। यह नुस्खा अच्छे परिणाम प्रदर्शित करता है। | ||
* एक चम्मच [[चंदन]] का पावडर लें। इसे आधा लिटर में पानी मे उबालें। तीसरा हिस्सा रहने पर उतार लें। अब इसमें थोडा गुलाब जल और शक्कर मिला दें। यह दवा दिन में 3 बार पियें। बहुत कारगर उपाय है। | |||
* बादाम 10 नग का पावडर बनाले। इसे पानी में उबालें। यह दवा सोरियासिस रोग की जगह पर लगावें। रात भर लगी रहने के बाद सुबह मे पानी से धो डालें। यह नुस्खा अच्छे परिणाम प्रदर्शित करता है। | * पत्ता गोभी सोरियासिस में अच्छा प्रभाव दिखाता है। ऊपर का पत्ता लें। इसे पानी से धोलें। हथेली से दबाकर सपाट कर लें। इसे थोडा सा गरम करके प्रभावित हिस्से पर रखकर उपर सूती कपडा लपेट दें। यह उपचार लम्बे समय तक दिन में दो बार करने से जबर्दस्त फ़ायदा होता है। | ||
* एक चम्मच चंदन का पावडर लें। इसे आधा लिटर में पानी मे उबालें। तीसरा हिस्सा रहने पर | * पत्ता गोभी का सूप सुबह शाम पीने से सोरियासिस में लाभ होता है। | ||
* पत्ता गोभी सोरियासिस में अच्छा प्रभाव दिखाता है। | |||
* पत्ता गोभी का सूप सुबह शाम पीने से सोरियासिस में लाभ | |||
* नींबू के रस में थोडा पानी मिलाकर रोग स्थल पर लगाने से सुकून मिलता है। | * नींबू के रस में थोडा पानी मिलाकर रोग स्थल पर लगाने से सुकून मिलता है। | ||
* शिकाकाई पानी | * शिकाकाई पानी में उबालकर रोग के धब्बों पर लगाने से नियंत्रण होता है। | ||
* केले का पत्ता प्रभावित जगह पर रखें। ऊपर | * [[केला|केले]] का पत्ता प्रभावित जगह पर रखें। ऊपर कपड़ा लपेटें। | ||
* इस रोग को ठीक करने के लिये जीवन शैली में बदलाव करना ज़रूरी है। सर्दी के दिनों में 3 लीटर और गर्मी के मौसम मे 5 से 6 लीटर पानी पीने की आदत बनावें। इससे विजातीय पदार्थ शरीर से बाहर निकलेंगे। | |||
* इस रोग को ठीक करने के लिये जीवन शैली में बदलाव करना | |||
==रोग में औषधियों का प्रयोग== | ==रोग में औषधियों का प्रयोग== | ||
;सल्फर या आर्सेनिक - | ;सल्फर या आर्सेनिक - | ||
इस रोग में सल्फर औषधि की 30 शक्ति या आर्सेनिक औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग किया जाता है। | इस रोग में सल्फर औषधि की 30 शक्ति या आर्सेनिक औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग किया जाता है। | ||
;रेडियम ब्रोम - | ;रेडियम ब्रोम - | ||
अपरस रोग से पीड़ित रोगी को रेडियम ब्रोम औषधि की 30 शक्ति का सेवन सप्ताह में एक बार कुछ महीनों तक करना चाहिए। | अपरस रोग से पीड़ित रोगी को रेडियम ब्रोम औषधि की 30 शक्ति का सेवन [[सप्ताह]] में एक बार कुछ [[महीना|महीनों]] तक करना चाहिए। | ||
;टियुबरक्यूलिनम - | ;टियुबरक्यूलिनम - | ||
यदि अपरस रोग पुराना हो तो टियुबरक्यूलिनम औषधि की 200 शक्ति का सेवन करना चाहिए। | यदि अपरस रोग पुराना हो तो टियुबरक्यूलिनम औषधि की 200 शक्ति का सेवन करना चाहिए। | ||
;अतिरिक्त लक्षणों के आधार पर विभिन्न औषधियों - | ;अतिरिक्त लक्षणों के आधार पर विभिन्न औषधियों - | ||
औषधियों के अतिरिक्त लक्षणों के आधार पर विभिन्न औषधियों का भी प्रयोग किया जा सकता है :- फास्फोरस-6, नाइट्रिक एसिड-6, साइक्यूटा-3, कैलकेरिया-6, सीपिया-30, ग्रैफाइटिस-6, थूजा-6 एवं क्राइसोफैनिक एसिड आदि। | औषधियों के अतिरिक्त लक्षणों के आधार पर विभिन्न औषधियों का भी प्रयोग किया जा सकता है जैसे:- फास्फोरस-6, नाइट्रिक एसिड-6, साइक्यूटा-3, कैलकेरिया-6, सीपिया-30, ग्रैफाइटिस-6, थूजा-6 एवं क्राइसोफैनिक एसिड आदि। | ||
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10:48, 2 जनवरी 2018 के समय का अवतरण
सोरियासिस / अपरस रोग / छाल रोग (अंग्रेज़ी: PSORIASIS) एक प्रकार का असंक्रामक दीर्घकालिक त्वचा विकार (चर्मरोग) है जो कि परिवारों के बीच चलता रहता है। यह रोग सर्दियों के मौसम में होता है। यह रोग उन व्यक्तियों को होता है जो अधिक परेशानियों से घिरे रहते हैं। छाल रोग सामान्यतया बहुत ही मंद स्थिति का होता है। इसके कारण त्वचा पर लाल-लाल खुरदरे धब्बे बन जाते हैं। यह ऐसा दीर्घकालिक विकार है जिसका यह अर्थ होता है कि इसके लक्षण वर्षों तक बने रहेंगे। ये पूरे जीवन में आते-जाते रहते हैं। यह स्त्री-पुरुष दोनों ही को समान रूप से हो सकता है। सोरियासिस में त्वचा में कोशिकाओं की संख्या बढने लगती है। चमडी मोटी होने लगती है और उस पर खुरंड और पपडियां उत्पन्न हो जाती हैं। इस रोग के भयानक रुप में पूरा शरीर मोटी लाल रंग की पपडीदार चमडी से ढक जाता है। इस रोग का प्रभाव अधिकतर व्यक्तियों की हाथों-पैरों, कलाइयों, कोहनियों, कमर, हथेलियों, घुटनों, खोपडी तथा कंधों पर होता है।
सोरियासिस का कारण
चिकित्सकों को अभी तक इस रोग की असली वजह का पता नहीं चला है। फिर भी अनुमान लगाया जाता है कि शरीर के इम्युन सिस्टम में व्यवधान आ जाने से यह रोग जन्म लेता है। इम्युन सिस्टम का मतलब शरीर की रोगों से लड़ने की प्रतिरक्षा प्रणाली से है। यह रोग आनुवांशिक (वंशानुगत पूर्ववृत्ति) भी होता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। इस रोग का विस्तार सारी दुनिया में है। सर्दी के दिनों में इस रोग का उग्र रूप देखा जाता है। कुछ रोगी बताते हैं कि गर्मी के मौसम में और धूप से उनको राहत मिलती है।
लाल खुरदरे धब्बे होने का कारण
लाल खुरदरे धब्बे, त्वचा के अनुपयोगी परत में त्वचा कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाने के कारण पैदा होते हैं। सामान्यतया त्वचा कोशिकाएं पुरानी होकर शरीर के तल से झड़ती रहती है। इस प्रक्रिया में लगभग 4 सप्ताह का समय लग जाता है। कुछ व्यक्तियों को सोरियासिस होने पर त्वचा कोशिकाएं 3 से 4 दिन में ही झड़ने लगती है। यही अधिकाधिक त्वचा कोशिकाओं का झड़ाव त्वचा पर छालरोग के घाव पैदा कर देता है।
अति शीघ्र बढ़ने या ख़राब होने का कारण
कुछ कारक है जिनसे छाल रोग से पीड़ित व्यक्तियों में चकते पड़ सकते हैं। इन कारकों में त्वचा की ख़राबी (रसायन, संक्रमण, खुरचना, धूप से जलन) मद्यसार, हार्मोन परिवर्तन, धूम्रपान, बेटा-ब्लाकर जैसी औषधी तथा तनाव सम्मिलित हैं।
सामान्य लक्षण
अपरस रोग में रोगी की त्वचा पर जगह-जगह लाल-लाल से खुरदरे दाग-धब्बे हो जाते हैं। जितने यह दाग-धब्बे भयानक लगते हैं उतनी ज़्यादा इनमें खुजली नहीं होती है। जब यह रोग किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग पर होता है तो उस भाग की त्वचा का रंग गुलाबी (लाल) होकर सूज जाता है और फिर त्वचा के ऊपर सफेद सादी, सूखी एवं कड़ी खाल (त्वचा की पतली परत) जम जाते हैं। त्वचा सूखकर फट सी जाती है। जब ऊपर की पपड़ी उतरती हैं तो त्वचा से रक्त निकलने लगता हैं। लेकिन इसमें से कुछ मवाद आदि नहीं निकलता। ये लक्षण हल्के-फुल्के से लेकर भारी मात्रा में होते हैं। इससे विकृति और अशक्तता की स्थिति पैदा हो सकती है।
दीर्घकालिक प्रभाव
छाल रोग से व्यक्तियों पर भावनात्मक तथा शारीरिक प्रभाव पड़ सकते हैं। छाल रोग ऑर्थरायटिस वाले व्यक्तियों को होते हैं। इससे दर्द होता है तथा इससे व्यक्ति अशक्त भी हो सकता है। छाल रोग संक्रामक नहीं है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को नहीं लगता।
रोक थाम
- धूप तीव्रता सहित त्वचा को चोट न पहुंचने दें। धूप में जाना इतना सीमित रखें कि धूप से जलन न होने पाएं।
- मद्यपान और धूम्रपान न करें।
- स्थिति को और बिगाड़ने वाली औषधी का सेवन न करें।
- तनाव पर नियंत्रण रखें।
- त्वचा का पानी से संपर्क सीमित रखें।
- फुहारा और स्नान को सीमित करें, तैरना सीमित करें।
- त्वचा को खरोंचे नहीं।
- ऐसे कपड़े पहने जो त्वचा के संपर्क में आकर उसे नुकसान न पहुंचाएँ।
- संक्रमण और अन्य बीमारियाँ हो तो डाक्टर को दिखाएं।
- ज़्यादा मिर्च मसालेदार चीज़ें न खाएं।
आहार का महत्त्व
व्यक्ति को जो आहार अच्छा लगे, वही उसके लिए उत्तम आहार है क्योंकि छाल रोग से पीड़ित व्यक्ति खान-पान की आदतों से उसी प्रकार लाभान्वित होता है जैसे हम सभी होते हैं। कई लोगों ने यह कहा है कि कुछ खाद्य पदार्थों से उनकी त्वचा में निखार आया है या त्वचा बेरंग हो गई है।
प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार
- सोरियासिस या अपरस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कम से कम 7 से 15 दिनों तक फलों का सेवन करना चाहिए और उसके बाद फल-दूध पर रहना चाहिए।
- अपरस रोग से पीड़ित व्यक्ति को यदि कब्ज की शिकायत हो तो उसे गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ़ करना चाहिए। जिसके फलस्वरूप रोगी का यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
- अपरस रोग से पीड़ित रोगी को उपचार करने के लिए सबसे पहले उसके शरीर के दाद वाले भाग पर थोड़ी देर गर्म तथा थोड़ी देर ठण्डी सिकाई करके गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए। इसके फलस्वरूप अपरस रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
- रोगी व्यक्ति के अपरस वाले भाग को आधे घण्टे तक गर्म पानी में डुबोकर रखना चाहिए तथा इसके बाद उस पर गर्म गीली मिट्टी की पट्टी लगाने से लाभ होता है।
- रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक प्रतिदिन गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ़ करना चाहिए और फलों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए। इसके फलस्वरूप अपरस रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
- अपरस रोग से पीड़ित रोगी को नीबू का रस पानी में मिलाकर प्रतिदिन कम से कम 5 बार पीना चाहिए और सादा भोजन करना चाहिए।
- अपरस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को दाद वाले भाग पर रोजाना कम से कम 2 घण्टे तक नीला प्रकाश डालना चाहिए।
- अपरस रोग से पीड़ित रोगी को आसमानी रंग की बोतल के सूर्यतप्त जल को 25 मिलीलीटर की मात्रा में प्रतिदिन दिन में 4 बार पीने से अपरस रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
- अपरस रोग से पीड़ित रोगी को नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
- रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह के समय में स्नान करना चाहिए और उसके बाद घर्षण स्नान करना चाहिए और सप्ताह में 2 बार पानी में नमक मिलाकर स्नान करना चाहिए।
- रोगी को अपने शरीर के अपरस वाले भाग को प्रतिदिन नमक मिले गर्म पानी से धोना चाहिए और उस पर जैतून का तेल या हरे रंग की बोतल व नीली बोतल का सूर्यतप्त तेल लगाना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।
- रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन अपने शरीर के रोगग्रस्त भाग पर नीला प्रकाश डालना चाहिए। इसके अलावा रोगी को रोजाना हल्का व्यायाम तथा गहरी सांस लेनी चाहिए। जिसके फलस्वरूप यह रोग ठीक हो जाता है।
सोरियासिस (छाल रोग) का घरेलू नुस्खों से इलाज
- बादाम 10 नग का पावडर बनाले। इसे पानी में उबालें। यह दवा सोरियासिस रोग की जगह पर लगावें। रात भर लगी रहने के बाद सुबह मे पानी से धो डालें। यह नुस्खा अच्छे परिणाम प्रदर्शित करता है।
- एक चम्मच चंदन का पावडर लें। इसे आधा लिटर में पानी मे उबालें। तीसरा हिस्सा रहने पर उतार लें। अब इसमें थोडा गुलाब जल और शक्कर मिला दें। यह दवा दिन में 3 बार पियें। बहुत कारगर उपाय है।
- पत्ता गोभी सोरियासिस में अच्छा प्रभाव दिखाता है। ऊपर का पत्ता लें। इसे पानी से धोलें। हथेली से दबाकर सपाट कर लें। इसे थोडा सा गरम करके प्रभावित हिस्से पर रखकर उपर सूती कपडा लपेट दें। यह उपचार लम्बे समय तक दिन में दो बार करने से जबर्दस्त फ़ायदा होता है।
- पत्ता गोभी का सूप सुबह शाम पीने से सोरियासिस में लाभ होता है।
- नींबू के रस में थोडा पानी मिलाकर रोग स्थल पर लगाने से सुकून मिलता है।
- शिकाकाई पानी में उबालकर रोग के धब्बों पर लगाने से नियंत्रण होता है।
- केले का पत्ता प्रभावित जगह पर रखें। ऊपर कपड़ा लपेटें।
- इस रोग को ठीक करने के लिये जीवन शैली में बदलाव करना ज़रूरी है। सर्दी के दिनों में 3 लीटर और गर्मी के मौसम मे 5 से 6 लीटर पानी पीने की आदत बनावें। इससे विजातीय पदार्थ शरीर से बाहर निकलेंगे।
रोग में औषधियों का प्रयोग
- सल्फर या आर्सेनिक -
इस रोग में सल्फर औषधि की 30 शक्ति या आर्सेनिक औषधि की 30 शक्ति का प्रयोग किया जाता है।
- रेडियम ब्रोम -
अपरस रोग से पीड़ित रोगी को रेडियम ब्रोम औषधि की 30 शक्ति का सेवन सप्ताह में एक बार कुछ महीनों तक करना चाहिए।
- टियुबरक्यूलिनम -
यदि अपरस रोग पुराना हो तो टियुबरक्यूलिनम औषधि की 200 शक्ति का सेवन करना चाहिए।
- अतिरिक्त लक्षणों के आधार पर विभिन्न औषधियों -
औषधियों के अतिरिक्त लक्षणों के आधार पर विभिन्न औषधियों का भी प्रयोग किया जा सकता है जैसे:- फास्फोरस-6, नाइट्रिक एसिड-6, साइक्यूटा-3, कैलकेरिया-6, सीपिया-30, ग्रैफाइटिस-6, थूजा-6 एवं क्राइसोफैनिक एसिड आदि।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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