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|पाठ 1=एक छड़ी लें। उसे सीधा जमीन में गाड़ दें। जहाँ उसकी छाया की नोंक पड़े, वहाँ पर निशान लगा दें। 15 मिनट बाद छाया की नोंक पर दोबारा निशान लगा लें। दोनों निशानों के बीच में रेखा खींच कर उन्हें जोड़ दे। यह रेखा पूर्व से पश्चिम की ओर दिशा ज्ञान कराती है और पहला निशान पश्चिम की ओर और दूसरा निशान पूर्व की ओर होगा।  
|पाठ 1=एक छड़ी लें। उसे सीधा जमीन में गाड़ दें। जहाँ उसकी छाया की नोंक पड़े, वहाँ पर निशान लगा दें। 15 मिनट बाद छाया की नोंक पर दोबारा निशान लगा लें। दोनों निशानों के बीच में रेखा खींच कर उन्हें जोड़ दे। यह रेखा पूर्व से पश्चिम की ओर दिशा ज्ञान कराती है और पहला निशान पश्चिम की ओर और दूसरा निशान पूर्व की ओर होगा।  
|शीर्षक 2=दस दिशाओं के 10 दिग्पाल
|शीर्षक 2=दस दिशाओं के 10 दिग्पाल
|पाठ 2=उर्ध्व के [[ब्रह्मा]], ईशान्य के [[शिव]] व ईश, पूर्व के [[इंद्र]], आग्नेय के [[अग्नि देव|अग्नि]] या वह्रि, दक्षिण के [[यम]], नैऋत्य के नऋति, पश्चिम के [[वरुण]], वायव्य के [[वायु देव|वायु]] और मारुत, उत्तर के [[कुबेर]] और अधो के अनंत।
|पाठ 2=उर्ध्व के [[ब्रह्मा]], ईशान्य के [[शिव]] व ईश, पूर्व के [[इंद्र]], आग्नेय के [[अग्नि देव|अग्नि]], दक्षिण के [[यम]], नैऋत्य के नैऋत देव, पश्चिम के [[वरुण]], वायव्य के [[वायु देव|वायु]] और मारुत, उत्तर के [[कुबेर]] और अधो के [[शेषनाग|शेष]]।
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प्राचीनकाल में दिशा निर्धारण प्रातःकाल व मध्याह्न के पश्चात एक बिन्दू पर एक छड़ी लगाकर सूर्य रश्मियों द्वारा पड़ रही छड़ी की परछाई तथा [[उत्तरायण]] व [[दक्षिणायन]] काल की गणना के आधार पर किया जाता था। वर्तमान में चुम्बकीय सुई की सहायता से बने [[दिशा सूचक यंत्र]] (Compass) से यह काफी सुगम हो गया है।
प्राचीनकाल में दिशा निर्धारण प्रातःकाल व मध्याह्न के पश्चात एक बिन्दू पर एक छड़ी लगाकर सूर्य रश्मियों द्वारा पड़ रही छड़ी की परछाई तथा [[उत्तरायण]] व [[दक्षिणायन]] काल की गणना के आधार पर किया जाता था। वर्तमान में चुम्बकीय सुई की सहायता से बने [[दिशा सूचक यंत्र]] (Compass) से यह काफी सुगम हो गया है।
==दिशा ज्ञान==
==दिशा ज्ञान==
[[पृथ्वी]] एक बहुत बड़े चुंबक की भांति कार्य करती है। इस चुंबक का दक्षिण ध्रुव पृथ्वी के उत्तर ध्रुव की ओर रहता है लेकिन चुंबकीय ध्रुव और पृथ्वी के भौगोलिक ध्रुव में अंतर रहता है। पृथ्वी का भौगोलिक ध्रुव हमेशा स्थिर रहता है, जबकि चुंबकीय धु्रव लगभग 40 किमी. प्रति किमी की गति से, वायव्य कोण की ओर, गतिशील है। चुंबकीय उत्तरी धुव्र कनाडा के पास लगभग 96° पश्चिम तथा 70.5° उत्तर पर पड़ता है। चुंबकीय भूमध्य रेखा [[भारत]] में [[मध्य प्रदेश]] के पास से गुजरती है। चुंबकीय उत्तर में एवं भौगोलिक उत्तर में एक कोण रहता है, जिसे ‘मैग्नेटिक डिक्लनेशन’ कहते हैं क्योंकि भारत के ऊपर से चुंबकीय भूमध्य रेखा गुजरती है, इसलिए ‘मैग्नेटिक डिक्लनेशन’ भारत में काफी कम है। यह एक अंश से भी कम है। इसलिए दिशासूचक यंत्र द्वारा दर्शायी गयी दिशा लगभग सटीक होती है। ऐसा अन्य देशों में नहीं है। [[अमेरिका]] में यह ‘मैगनेटिक डिक्लनेशन’ 10°, कनाडा में 14°, [[दक्षिण अफ्रीका]] में 23°, [[चीन]] में 6°, [[जापान]] में 7° इत्यादि है | अतः सही दिशा जानने के लिए इस ‘डिक्लनेशन’ का ज्ञान होना अति आवश्यक है। लेकिन यह ‘डिक्लनेशन’ भी समयानुसार बदलता रहता है। अतः दिशासूचक यंत्र द्वारा बिल्कुल सही दिशा ज्ञान करने के लिए सूक्ष्म गणनाओं की जरूरत पड़ती है। दिशासूचक यंत्र से दिशा का ज्ञान करने के लिए और भी कुछ सावधानियां बरतनी आवश्यक है, जैसे दिशासूचक के आसपास चुंबकीय पदार्थ, या चुंबक नहीं होना चाहिए। उनके बीच कम से कम एक फुट की दूरी अवश्य होनी चाहिए।
[[पृथ्वी]] एक बहुत बड़े चुंबक की भांति कार्य करती है। इस चुंबक का दक्षिण ध्रुव पृथ्वी के उत्तर ध्रुव की ओर रहता है लेकिन चुंबकीय ध्रुव और पृथ्वी के भौगोलिक ध्रुव में अंतर रहता है। पृथ्वी का भौगोलिक ध्रुव हमेशा स्थिर रहता है, जबकि चुंबकीय धु्रव लगभग 40 किमी. प्रति किमी की गति से, वायव्य कोण की ओर, गतिशील है। चुंबकीय उत्तरी धुव्र कनाडा के पास लगभग 96° पश्चिम तथा 70.5° उत्तर पर पड़ता है। चुंबकीय भूमध्य रेखा [[भारत]] में [[मध्य प्रदेश]] के पास से गुजरती है। चुंबकीय उत्तर में एवं भौगोलिक उत्तर में एक कोण रहता है, जिसे ‘मैग्नेटिक डिक्लनेशन’ कहते हैं क्योंकि भारत के ऊपर से चुंबकीय भूमध्य रेखा गुजरती है, इसलिए ‘मैग्नेटिक डिक्लनेशन’ भारत में काफी कम है। यह एक अंश से भी कम है। इसलिए दिशासूचक यंत्र द्वारा दर्शायी गयी दिशा लगभग सटीक होती है। ऐसा अन्य देशों में नहीं है। [[अमेरिका]] में यह ‘मैगनेटिक डिक्लनेशन’ 10°, कनाडा में 14°, [[दक्षिण अफ्रीका]] में 23°, [[चीन]] में 6°, [[जापान]] में 7° इत्यादि है। अतः सही दिशा जानने के लिए इस ‘डिक्लनेशन’ का ज्ञान होना अति आवश्यक है। लेकिन यह ‘डिक्लनेशन’ भी समयानुसार बदलता रहता है। अतः दिशासूचक यंत्र द्वारा बिल्कुल सही दिशा ज्ञान करने के लिए सूक्ष्म गणनाओं की जरूरत पड़ती है। दिशासूचक यंत्र से दिशा का ज्ञान करने के लिए और भी कुछ सावधानियां बरतनी आवश्यक है, जैसे दिशासूचक के आसपास चुंबकीय पदार्थ, या चुंबक नहीं होना चाहिए। उनके बीच कम से कम एक फुट की दूरी अवश्य होनी चाहिए।
====दिशा ज्ञात करने के तरीके====
====दिशा ज्ञात करने के तरीके====
एक छड़ी लें। उसे सीधा जमीन में गाड़ दें। जहां उसकी छाया की नोंक पड़े, वहां पर निशान लगा दें। 15 मिनट बाद छाया की नोंक पर दोबारा निशान लगा लें। दोनों निशानों के बीच में रेखा खींच कर उन्हें जोड़ दे। यह रेखा पूर्व से पश्चिम की ओर दिशा ज्ञान कराती है और पहला निशान पश्चिम की ओर और दूसरा निशान पूर्व की ओर होगा। यदि बिल्कुल सही दिशा ज्ञान करना चाहते हैं, तो सुबह उपर्युक्त विधि द्वारा निशान लगाएं और, छड़ी को केंद्रबिंदु मानते हुए, निशान के बराबर त्रिज्या लेते हुए, एक वृत्त बना दें। शाम को जब भी छड़ी की छाया इस वृत्त को जहां भी छुए, वहां पर भी निशान लगा दें और दोनों बिंदुओं को जोड़ दें। यह रेखा पश्चिम से पूर्व की ओर बिल्कुल सही दिशा दर्शाती है।
एक छड़ी लें। उसे सीधा जमीन में गाड़ दें। जहां उसकी छाया की नोंक पड़े, वहां पर निशान लगा दें। 15 मिनट बाद छाया की नोंक पर दोबारा निशान लगा लें। दोनों निशानों के बीच में रेखा खींच कर उन्हें जोड़ दे। यह रेखा पूर्व से पश्चिम की ओर दिशा ज्ञान कराती है और पहला निशान पश्चिम की ओर और दूसरा निशान पूर्व की ओर होगा। यदि बिल्कुल सही दिशा ज्ञान करना चाहते हैं, तो सुबह उपर्युक्त विधि द्वारा निशान लगाएं और, छड़ी को केंद्रबिंदु मानते हुए, निशान के बराबर त्रिज्या लेते हुए, एक वृत्त बना दें। शाम को जब भी छड़ी की छाया इस वृत्त को जहां भी छुए, वहां पर भी निशान लगा दें और दोनों बिंदुओं को जोड़ दें। यह रेखा पश्चिम से पूर्व की ओर बिल्कुल सही दिशा दर्शाती है।
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;पेड़ों द्वारा दिशा ज्ञान
;पेड़ों द्वारा दिशा ज्ञान
पेड़ों को ध्यान से देखने पर पता चलेगा कि उनकी उत्तरी दिशा दक्षिणी दिशा से ज्यादा गीली होती है और वहां पर ज्यादा काई भी पायी जाती है। दक्षिण की ओर उनकी अधिक शाखाएं होती हैं। यह इसलिए, क्योंकि उत्तरी अक्ष में सूर्य दक्षिण दिशा में रहता है। यदि ध्यान से देखें, तो पाएंगे कि चीटियां भी अपने बिल दक्षिण दिशा की ओर बनाती हैं। यदि कोई पहाड़ी इलाके में हो, तो वह पाएगा कि दक्षिण दिशा में अधिक हरियाली और घनी घास होती है। फल भी दक्षिण दिशा में जल्दी पकते हैं। उपर्युक्त विधि द्वारा दिशा का केवल अनुमान लगा सकते हैं, लेकिन पूर्ण ज्ञान नहीं मिलता, क्योंकि कभी-कभी, वायु के कारण, उपर्युक्त तथ्यों में अंतर आ जाता है।<ref>{{cite web |url=http://www.futureforyou.co/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8 |title=दिशा ज्ञान |accessmonthday=20 जनवरी|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=फ़्यूचर फ़ॉर यू|language=हिंदी }}</ref>
पेड़ों को ध्यान से देखने पर पता चलेगा कि उनकी उत्तरी दिशा दक्षिणी दिशा से ज्यादा गीली होती है और वहां पर ज्यादा काई भी पायी जाती है। दक्षिण की ओर उनकी अधिक शाखाएं होती हैं। यह इसलिए, क्योंकि उत्तरी अक्ष में सूर्य दक्षिण दिशा में रहता है। यदि ध्यान से देखें, तो पाएंगे कि चीटियां भी अपने बिल दक्षिण दिशा की ओर बनाती हैं। यदि कोई पहाड़ी इलाके में हो, तो वह पाएगा कि दक्षिण दिशा में अधिक हरियाली और घनी घास होती है। फल भी दक्षिण दिशा में जल्दी पकते हैं। उपर्युक्त विधि द्वारा दिशा का केवल अनुमान लगा सकते हैं, लेकिन पूर्ण ज्ञान नहीं मिलता, क्योंकि कभी-कभी, वायु के कारण, उपर्युक्त तथ्यों में अंतर आ जाता है।<ref>{{cite web |url=http://www.futureforyou.co/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E%E0%A4%BE%E0%A4%A8 |title=दिशा ज्ञान |accessmonthday=20 जनवरी|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=फ़्यूचर फ़ॉर यू|language=हिंदी }}</ref>
==दस दिशाओं के 10 दिग्पाल==
==दस दिशाओं के 10 दिग्पाल==
[[वराह पुराण]] के अनुसार दिग्पालों की उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है- जब [[ब्रह्मा]] सृष्टि करने के विचार में चिंतनरत थे, उस समय उनके कान से 10 कन्याएं उत्पन्न हुईं जिनमें मुख्य 6 और 4 गौण थीं।   
[[वराह पुराण]] के अनुसार दिग्पालों की उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है- जब [[ब्रह्मा]] सृष्टि करने के विचार में चिंतनरत थे, उस समय उनके कान से 10 कन्याएं उत्पन्न हुईं जिनमें मुख्य 6 और 4 गौण थीं।  <br />
1. पूर्वा: जो पूर्व दिशा कहलाई।<br />
1. पूर्वा: जो [[पूर्व दिशा]] कहलाई।<br />
2. आग्नेयी: जो आग्नेय दिशा कहलाई।<br />
2. आग्नेयी: जो [[आग्नेय दिशा]] कहलाई।<br />
3. दक्षिणा: जो दक्षिण दिशा कहलाई।<br />
3. दक्षिणा: जो [[दक्षिण दिशा]] कहलाई।<br />
4. नैऋती: जो नैऋत्य दिशा कहलाई।<br />
4. नैऋती: जो [[नैऋत्य दिशा]] कहलाई।<br />
5. पश्चिमा: जो पश्चिम दिशा कहलाई।<br />
5. पश्चिमा: जो [[पश्चिम दिशा]] कहलाई।<br />
6. वायवी: जो वायव्य दिशा कहलाई।<br />
6. वायवी: जो [[वायव्य दिशा]] कहलाई।<br />
7. उत्तर: जो उत्तर दिशा कहलाई।<br />
7. उत्तर: जो [[उत्तर दिशा]] कहलाई।<br />
8. ऐशानी: जो ईशान दिशा कहलाई।<br />
8. ऐशानी: जो [[ईशान दिशा]] कहलाई।<br />
9. उर्ध्व: जो उर्ध्व दिशा कहलाई।<br />
9. उर्ध्व: जो [[उर्ध्व दिशा]] कहलाई।<br />
10. अधस्‌: जो अधो दिशा कहलाई।<br />
10. अधस्‌: जो [[अधो दिशा]] कहलाई।<br />
उन कन्याओं ने ब्रह्मा को नमन कर उनसे रहने का स्थान और उपयुक्त पतियों की याचना की। ब्रह्मा ने कहा- 'तुम लोगों की जिस ओर जाने की इच्छा हो, जा सकती हो। शीघ्र ही तुम लोगों को तदनुरूप पति भी दूंगा।' इसके अनुसार उन कन्याओं ने 1-1 दिशा की ओर प्रस्थान किया। इसके पश्चात ब्रह्मा ने 8 दिग्पालों की सृष्टि की और अपनी कन्याओं को बुलाकर प्रत्येक दिग्पाल को 1-1 कन्या प्रदान कर दी। इसके बाद वे सभी दिग्पाल उन कन्याओं के साथ अपनी-अपनी दिशाओं में चले गए। इन दिग्पालों के नाम पुराणों में दिशाओं के क्रम से निम्नांकित है-
उन कन्याओं ने ब्रह्मा को नमन कर उनसे रहने का स्थान और उपयुक्त पतियों की याचना की। ब्रह्मा ने कहा- 'तुम लोगों की जिस ओर जाने की इच्छा हो, जा सकती हो। शीघ्र ही तुम लोगों को तदनुरूप पति भी दूंगा।' इसके अनुसार उन कन्याओं ने 1-1 दिशा की ओर प्रस्थान किया। इसके पश्चात ब्रह्मा ने 8 दिग्पालों की सृष्टि की और अपनी कन्याओं को बुलाकर प्रत्येक दिग्पाल को 1-1 कन्या प्रदान कर दी। इसके बाद वे सभी दिग्पाल उन कन्याओं के साथ अपनी-अपनी दिशाओं में चले गए। इन दिग्पालों के नाम पुराणों में दिशाओं के क्रम से निम्नांकित है-
* पूर्व के इंद्र
* पूर्व के [[इंद्र]]
* आग्नेय के अग्नि
* आग्नेय के [[अग्नि देव|अग्नि]]
* दक्षिण के यम
* दक्षिण के [[यमराज|यम]]
* नैऋत्य के सूर्य
* नैऋत्य के नैऋत देव
* पश्चिम के वरुण
* पश्चिम के [[वरुण देवता|वरुण]]
* वायव्य के वायु
* वायव्य के [[वायु देव|वायु]]
* उत्तर के कुबेर
* उत्तर के [[कुबेर]]
* ईशान्य के सोम।
* ईशान्य के [[सोम देव|सोम]]।
शेष 2 दिशाओं अर्थात उर्ध्व या आकाश की ओर वे स्वयं चले गए और नीचे की ओर उन्होंने शेष या अनंत को प्रतिष्ठित किया।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-article/das-digpal-115120200013_1.html |title=दस दिशाओं के 10 दिग्पाल |accessmonthday=20 जनवरी|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेब दुनिया|language=हिंदी }}</ref>
शेष 2 दिशाओं अर्थात उर्ध्व या आकाश की ओर वे स्वयं ([[ब्रह्मा]]) चले गए और नीचे की ओर उन्होंने [[शेषनाग|शेष]] या अनंत को प्रतिष्ठित किया।<ref>{{cite web |url=http://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-article/das-digpal-115120200013_1.html |title=दस दिशाओं के 10 दिग्पाल |accessmonthday=20 जनवरी|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=वेब दुनिया|language=हिंदी }}</ref>


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
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==बाहरी कड़ियाँ==
*[https://hindi.speakingtree.in/blog/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%81-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%89%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AD दिशाएँ और उनके लाभ ]
*[http://www.jagrantoday.com/2016/03/dason-dishaon-ka-gyan-knowledge-of-all.html जाने कौन कौन सी होती है 10 दिशायें]
*[https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/photos/meaning-of-directions-their-importance-and-prosperity/east/photomazaashow/29953513.cms दिशाओं का अर्थ, महत्व और सुख-समृद्धि]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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13:42, 21 जनवरी 2018 के समय का अवतरण

दिशा
दिशाओं के नाम
दिशाओं के नाम
विवरण हिन्दू धर्म के अनुसार मुख्यत: चार दिशाएँ होती हैं- पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण। इनके अतिरिक्त इन दिशाओं से 45 डिग्री कोण पर स्थित चार दिशाएँ तथा ऊर्ध्व (ऊपर) और अधो (नीचे) मिलाकर कुल दस दिशाएं हैं।
दिशा ज्ञात करने का तरीक़ा एक छड़ी लें। उसे सीधा जमीन में गाड़ दें। जहाँ उसकी छाया की नोंक पड़े, वहाँ पर निशान लगा दें। 15 मिनट बाद छाया की नोंक पर दोबारा निशान लगा लें। दोनों निशानों के बीच में रेखा खींच कर उन्हें जोड़ दे। यह रेखा पूर्व से पश्चिम की ओर दिशा ज्ञान कराती है और पहला निशान पश्चिम की ओर और दूसरा निशान पूर्व की ओर होगा।
दस दिशाओं के 10 दिग्पाल उर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान्य के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नैऋत देव, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारुत, उत्तर के कुबेर और अधो के शेष
अन्य जानकारी प्राचीनकाल में दिशा निर्धारण प्रातःकाल व मध्याह्न के पश्चात एक बिन्दु पर एक छड़ी लगाकर सूर्य रश्मियों द्वारा पड़ रही छड़ी की परछाई तथा उत्तरायणदक्षिणायन काल की गणना के आधार पर किया जाता था।

दिशा (अंग्रेज़ी: Cardinal direction) हिन्दू धर्म के अनुसार मुख्यत: चार होती हैं- पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण। इनके अतिरिक्त इन दिशाओं से 45 डिग्री कोण पर स्थित चार दिशाएँ तथा ऊर्ध्व (ऊपर) और अधो (नीचे) मिलाकर कुल दस दिशाएं हैं।

दिशाओं के नाम

अंग्रेज़ी संस्कृत (हिन्दी)
East पूरब, प्राची, प्राक्
West पश्चिम, प्रतीचि, अपरा
North उत्तर, उदीचि
South दक्षिण, अवाचि
North-East ईशान्य
South-East आग्नेय
North-West वायव्य
South-West नैऋत्य
Zenith ऊर्ध्व
Nadir अधो

दिशा निर्धारण

प्राचीनकाल में दिशा निर्धारण प्रातःकाल व मध्याह्न के पश्चात एक बिन्दू पर एक छड़ी लगाकर सूर्य रश्मियों द्वारा पड़ रही छड़ी की परछाई तथा उत्तरायणदक्षिणायन काल की गणना के आधार पर किया जाता था। वर्तमान में चुम्बकीय सुई की सहायता से बने दिशा सूचक यंत्र (Compass) से यह काफी सुगम हो गया है।

दिशा ज्ञान

पृथ्वी एक बहुत बड़े चुंबक की भांति कार्य करती है। इस चुंबक का दक्षिण ध्रुव पृथ्वी के उत्तर ध्रुव की ओर रहता है लेकिन चुंबकीय ध्रुव और पृथ्वी के भौगोलिक ध्रुव में अंतर रहता है। पृथ्वी का भौगोलिक ध्रुव हमेशा स्थिर रहता है, जबकि चुंबकीय धु्रव लगभग 40 किमी. प्रति किमी की गति से, वायव्य कोण की ओर, गतिशील है। चुंबकीय उत्तरी धुव्र कनाडा के पास लगभग 96° पश्चिम तथा 70.5° उत्तर पर पड़ता है। चुंबकीय भूमध्य रेखा भारत में मध्य प्रदेश के पास से गुजरती है। चुंबकीय उत्तर में एवं भौगोलिक उत्तर में एक कोण रहता है, जिसे ‘मैग्नेटिक डिक्लनेशन’ कहते हैं क्योंकि भारत के ऊपर से चुंबकीय भूमध्य रेखा गुजरती है, इसलिए ‘मैग्नेटिक डिक्लनेशन’ भारत में काफी कम है। यह एक अंश से भी कम है। इसलिए दिशासूचक यंत्र द्वारा दर्शायी गयी दिशा लगभग सटीक होती है। ऐसा अन्य देशों में नहीं है। अमेरिका में यह ‘मैगनेटिक डिक्लनेशन’ 10°, कनाडा में 14°, दक्षिण अफ्रीका में 23°, चीन में 6°, जापान में 7° इत्यादि है। अतः सही दिशा जानने के लिए इस ‘डिक्लनेशन’ का ज्ञान होना अति आवश्यक है। लेकिन यह ‘डिक्लनेशन’ भी समयानुसार बदलता रहता है। अतः दिशासूचक यंत्र द्वारा बिल्कुल सही दिशा ज्ञान करने के लिए सूक्ष्म गणनाओं की जरूरत पड़ती है। दिशासूचक यंत्र से दिशा का ज्ञान करने के लिए और भी कुछ सावधानियां बरतनी आवश्यक है, जैसे दिशासूचक के आसपास चुंबकीय पदार्थ, या चुंबक नहीं होना चाहिए। उनके बीच कम से कम एक फुट की दूरी अवश्य होनी चाहिए।

दिशा ज्ञात करने के तरीके

एक छड़ी लें। उसे सीधा जमीन में गाड़ दें। जहां उसकी छाया की नोंक पड़े, वहां पर निशान लगा दें। 15 मिनट बाद छाया की नोंक पर दोबारा निशान लगा लें। दोनों निशानों के बीच में रेखा खींच कर उन्हें जोड़ दे। यह रेखा पूर्व से पश्चिम की ओर दिशा ज्ञान कराती है और पहला निशान पश्चिम की ओर और दूसरा निशान पूर्व की ओर होगा। यदि बिल्कुल सही दिशा ज्ञान करना चाहते हैं, तो सुबह उपर्युक्त विधि द्वारा निशान लगाएं और, छड़ी को केंद्रबिंदु मानते हुए, निशान के बराबर त्रिज्या लेते हुए, एक वृत्त बना दें। शाम को जब भी छड़ी की छाया इस वृत्त को जहां भी छुए, वहां पर भी निशान लगा दें और दोनों बिंदुओं को जोड़ दें। यह रेखा पश्चिम से पूर्व की ओर बिल्कुल सही दिशा दर्शाती है।

घड़ी से दिशा ज्ञान

यदि कोई उत्तरी अक्ष में है, तो अपनी घड़ी के घंटे की सुईं को सूर्य की ओर घुमा कर खड़े जो जाएं। घंटे और 12 बजे के बीच के कोण को अर्ध विभक्त कर जो रेखा आएगी, वह ठीक दक्षिण की ओर इशारा करेगी। यदि कोई दक्षिण अक्ष में है, तो घड़ी के 12 को सूर्य की ओर घुमा लें एवं घंटे की सुईं और 12 के बीच के कोण को विभाजित करें, तो यह रेखा उत्तर की दिशा बताएगी।

सुई द्वारा दिशा ज्ञान

एक सुईं लें। इसको किसी धागे से लटका दें और एक चुंबक, या रेशम के कपड़े के ऊपर इसकी नोक को एक दिशा में घिसें। इससे यह एक चुंबक की भांति हो जाएगी और दिशासूचक यंत्र की तरह दिशा का ज्ञान कराएगी।

चन्द्रमा द्वारा दिशा ज्ञान

यदि चंद्रमा सूर्यास्त से पहले उदय हो चुका है, तो चंद्रमा का प्रकाशयुक्त भाग पश्चिम की ओर होता है और यदि अर्द्ध रात्रि के बाद चंद्रमा उदय हुआ है, तो पूर्व की ओर होता है। इस प्रकार से रात्रि में भी पूर्व और पश्चिम दिशा का आकलन किया जा सकता है।

तारों द्वारा दिशा ज्ञान

सप्तर्षि मंडल द्वारा ध्रुव तारे को पहचान सकते हैं। यह हमेशा उत्तरी ध्रुव में दिखाई देता है और हमेशा उत्तर की ओर का दिशा ज्ञान कराता है। दक्षिणी ध्रुव में दक्षिणी क्राॅस को पहचानें। उस क्राॅस से लगभग साढ़े चार गुना लंबी एक कल्पना रेखा बना लें। वही दक्षिण दिशा है।

ओरियन तारा द्वारा दिशा ज्ञान

ओरियन तारा की पहचान के लिए आकाश में तीन चमकते हुए तारों से डमरू बना हुआ देखें। यह उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव दोनों से देखा जा सकता है क्योंकि यह सर्वदा भूमध्य रेखा के ऊपर रहता है, इसलिए यह सर्वदा पूर्व से उदय होता है और पश्चिम में छुपता है। व्यक्ति चाहे पृथ्वी पर कहीं पर भी हो, इसके उदय होने से पूर्व दिशा का ज्ञान हो जाता है।

पेड़ों द्वारा दिशा ज्ञान

पेड़ों को ध्यान से देखने पर पता चलेगा कि उनकी उत्तरी दिशा दक्षिणी दिशा से ज्यादा गीली होती है और वहां पर ज्यादा काई भी पायी जाती है। दक्षिण की ओर उनकी अधिक शाखाएं होती हैं। यह इसलिए, क्योंकि उत्तरी अक्ष में सूर्य दक्षिण दिशा में रहता है। यदि ध्यान से देखें, तो पाएंगे कि चीटियां भी अपने बिल दक्षिण दिशा की ओर बनाती हैं। यदि कोई पहाड़ी इलाके में हो, तो वह पाएगा कि दक्षिण दिशा में अधिक हरियाली और घनी घास होती है। फल भी दक्षिण दिशा में जल्दी पकते हैं। उपर्युक्त विधि द्वारा दिशा का केवल अनुमान लगा सकते हैं, लेकिन पूर्ण ज्ञान नहीं मिलता, क्योंकि कभी-कभी, वायु के कारण, उपर्युक्त तथ्यों में अंतर आ जाता है।[1]

दस दिशाओं के 10 दिग्पाल

वराह पुराण के अनुसार दिग्पालों की उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है- जब ब्रह्मा सृष्टि करने के विचार में चिंतनरत थे, उस समय उनके कान से 10 कन्याएं उत्पन्न हुईं जिनमें मुख्य 6 और 4 गौण थीं।
1. पूर्वा: जो पूर्व दिशा कहलाई।
2. आग्नेयी: जो आग्नेय दिशा कहलाई।
3. दक्षिणा: जो दक्षिण दिशा कहलाई।
4. नैऋती: जो नैऋत्य दिशा कहलाई।
5. पश्चिमा: जो पश्चिम दिशा कहलाई।
6. वायवी: जो वायव्य दिशा कहलाई।
7. उत्तर: जो उत्तर दिशा कहलाई।
8. ऐशानी: जो ईशान दिशा कहलाई।
9. उर्ध्व: जो उर्ध्व दिशा कहलाई।
10. अधस्‌: जो अधो दिशा कहलाई।
उन कन्याओं ने ब्रह्मा को नमन कर उनसे रहने का स्थान और उपयुक्त पतियों की याचना की। ब्रह्मा ने कहा- 'तुम लोगों की जिस ओर जाने की इच्छा हो, जा सकती हो। शीघ्र ही तुम लोगों को तदनुरूप पति भी दूंगा।' इसके अनुसार उन कन्याओं ने 1-1 दिशा की ओर प्रस्थान किया। इसके पश्चात ब्रह्मा ने 8 दिग्पालों की सृष्टि की और अपनी कन्याओं को बुलाकर प्रत्येक दिग्पाल को 1-1 कन्या प्रदान कर दी। इसके बाद वे सभी दिग्पाल उन कन्याओं के साथ अपनी-अपनी दिशाओं में चले गए। इन दिग्पालों के नाम पुराणों में दिशाओं के क्रम से निम्नांकित है-

शेष 2 दिशाओं अर्थात उर्ध्व या आकाश की ओर वे स्वयं (ब्रह्मा) चले गए और नीचे की ओर उन्होंने शेष या अनंत को प्रतिष्ठित किया।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दिशा ज्ञान (हिंदी) फ़्यूचर फ़ॉर यू। अभिगमन तिथि: 20 जनवरी, 2018।
  2. दस दिशाओं के 10 दिग्पाल (हिंदी) वेब दुनिया। अभिगमन तिथि: 20 जनवरी, 2018।

बाहरी कड़ियाँ

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