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'''कुंटागोडू विभूति सुबन्ना''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kuntagodu Vibhuthi Subbanna'', (जन्म: 20 फ़रवरी 1932 - मृत्यु: 16 जुलाई 2005) [[भारत]] के जाने-माने नाटककार और 'निनासम धर्म संस्था' के संस्थापक तथा [[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार]] से सम्मानित कन्नड़ थिएटर के लिए मील का पत्थर थे।  
'''कुंटागोडू विभूति सुबन्ना''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Kuntagodu Vibhuthi Subbanna'', (जन्म: [[20 फ़रवरी]], [[1932]]; मृत्यु: [[16 जुलाई]], [[2005]]) [[भारत]] के जाने-माने नाटककार और 'निनासम धर्म संस्था' के संस्थापक तथा '[[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार]]' से सम्मानित कन्नड़ थिएटर के लिए मील का पत्थर थे।  
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
के. वी. सुब्बन्ना का जन्म [[20 फ़रवरी]] [[1932]] को [[मैसूर]] (अब [[कर्नाटक]]) के पश्चिमी घाट में हेग्गुडो गाँव में हुआ था। वहाँ की भाषा [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]] थी। लोकप्रियता की दृष्टि से नीनासाम में शुरू में प्रचलित ऐतिहासिक नाटक ही किए गए, जिसमें नाटकीयता सें भरपूर रंग बिरंगे परिधानों में संगीतमय प्रस्तुतियाँ की जाती थीं। उसके बाद वह यूनिवर्सिटी में पढ़ने मैसूर चले गए। अपने [[परिवार]] के इस स्तर तक पहुँचने वाले वह पहले व्यक्ति थे। विश्वविद्यालय में विज्ञान के छात्र थे लेकिन उनका दृष्टिकोण दार्शनिक था। मतलब कि वह विज्ञान की स्थूल रूपता से आगे भी जाकर सोचते थे तथा उनका गहरा रुझान साहित्य की ओर था। उनका कहना था-थियेटर मेरे लिए बस थियेटर भर नहीं है, साहित्य भी मेरे लिए बस साहित्य तक ही सीमित नहीं है, इसी तरह मेरे लिए विज्ञान भी मेरे पाठयक्रम तक नहीं जाती, मैं इन सबको एक समूचेपन में अपनाते हुए एक विशाल भारत का निर्माण करना चाहता हूँ। अपनी इस अवधारणा के साथ सुब्बन्ना यूनिवर्सिटी में साहित्यिक अभिरूचि वाले साथियों के साथ मिलकर पढ़ाई में डूब गए। इसके बावजूद थियेटर उनका जुनून था।
के. वी. सुब्बन्ना का जन्म [[20 फ़रवरी]], [[1932]] को [[मैसूर]] (अब [[कर्नाटक]]) के पश्चिमी घाट में हेग्गुडो गाँव में हुआ था। वहाँ की [[भाषा]] [[कन्नड़ भाषा|कन्नड़]] थी। लोकप्रियता की दृष्टि से नीनासाम में शुरू में प्रचलित ऐतिहासिक [[नाटक]] ही किए गए, जिसमें नाटकीयता सें भरपूर [[रंग]] बिरंगे परिधानों में संगीतमय प्रस्तुतियाँ की जाती थीं। उसके बाद वह यूनिवर्सिटी में पढ़ने मैसूर चले गए। अपने [[परिवार]] के इस स्तर तक पहुँचने वाले वह पहले व्यक्ति थे। विश्वविद्यालय में [[विज्ञान]] के छात्र थे, लेकिन उनका दृष्टिकोण दार्शनिक था। मतलब कि वह विज्ञान की स्थूल रूपता से आगे भी जाकर सोचते थे तथा उनका गहरा रुझान [[साहित्य]] की ओर था। उनका कहना था- "थियेटर मेरे लिए बस थियेटर भर नहीं है, साहित्य भी मेरे लिए बस साहित्य तक ही सीमित नहीं है, इसी तरह मेरे लिए विज्ञान भी मेरे पाठयक्रम तक नहीं जाती, मैं इन सबको एक समूचेपन में अपनाते हुए एक विशाल भारत का निर्माण करना चाहता हूँ।" अपनी इस अवधारणा के साथ सुब्बन्ना यूनिवर्सिटी में साहित्यिक अभिरुचि वाले साथियों के साथ मिलकर पढ़ाई में डूब गए। इसके बावजूद थियेटर उनका जुनून था।
====नीनासाम थियेटर की स्थापना====
====नीनासाम थियेटर की स्थापना====
यूनिवर्सिटी से लौटकर सुब्बन्ना फिर 1954 में अपने गाँव आए और उनके साथियों ने मिलकर उनकी नाट्य संस्था को फिर जिन्दा कर दिया। इस बार सुब्बन्ना ने उसी तरह के आधुनिक नाटक देने का प्रयास किया, जिन्हें उन्होंने मैसूर यूनिवर्सिटी में मंचित किया था। उनका यह अनुभव निराशाजनक रहा। गाँव की जनता अभी भी वही पुराने पौराणिक विषयों के, रंग-बिरंगी पोशाक में नाटकीयता से भरे संगीत रूपक देखने की आदी थी। उस जनता को नए थियेटर में रस नहीं मिला। इस पर सुब्बन्ना ने हार नहीं मानी और प्रयोग किया। नए दौर के नाटकों को उनके विषय को सुब्बन्ना ने उसी शिल्प में रूपांतरित सुब्बन्ना ने गाँव के युवक-युवतियों को थियेटर के लिए प्रशिक्षित भी करना शुरू किया और इसके लिए उन्होंने 1980 में नीनासाम थियेटर इन्स्टीटूयूट स्थापित किया। 1983 में नीनासाम को एक और नया आयाम मिला।  
यूनिवर्सिटी से लौटकर सुब्बन्ना फिर [[1954]] में अपने [[गाँव]] आए और उनके साथियों ने मिलकर उनकी नाट्य संस्था को फिर जिन्दा कर दिया। इस बार सुब्बन्ना ने उसी तरह के आधुनिक [[नाटक]] देने का प्रयास किया, जिन्हें उन्होंने मैसूर यूनिवर्सिटी में मंचित किया था। उनका यह अनुभव निराशाजनक रहा। गाँव की जनता अभी भी वही पुराने पौराणिक विषयों के, रंग-बिरंगी पोशाक में नाटकीयता से भरे संगीत रूपक देखने की आदी थी। उस जनता को नए थियेटर में रस नहीं मिला। इस पर सुब्बन्ना ने हार नहीं मानी और प्रयोग किया। नए दौर के नाटकों को उनके विषय को सुब्बन्ना ने उसी शिल्प में रूपांतरित सुब्बन्ना ने गाँव के युवक-युवतियों को थियेटर के लिए प्रशिक्षित भी करना शुरू किया और इसके लिए उन्होंने [[1980]] में नीनासाम थियेटर इन्स्टीटूयूट स्थापित किया। [[1983]] में नीनासाम को एक और नया आयाम मिला।  
==विवाह==
==विवाह==
[[3 मार्च]] [[1956]] को सुब्बन्ना का विवाह शैलजा से हुआ और तीन वर्ष के बाद वह एक पुत्र के पिता बने जिसका नाम उन लोगों ने 'अक्षर' रखा। इस पुत्र के नाम पर 1958 में इन्होंने अपना प्रशकान भी शुरू किया।  
[[3 मार्च]], [[1956]] को सुब्बन्ना का [[विवाह]] शैलजा से हुआ और तीन [[वर्ष]] के बाद वह एक पुत्र के [[पिता]] बने, जिसका नाम उन लोगों ने 'अक्षर' रखा। इस पुत्र के नाम पर [[1958]] में इन्होंने अपना प्रशकान भी शुरू किया।  
==सम्मान और पुरस्कार==
==सम्मान और पुरस्कार==
वर्ष 2004 में के. वी. सुब्बन्ना को भारत सरकार की ओर से [[पद्म श्री]] की उपाधि दी गई। इनके अद्भुत कार्य के लिए इन्हें संगीत नाटक अकादमी ने भी 1994 में पुरस्कृत किया। 1991 में उन्हें [[पत्रकारिता]], [[साहित्य]] तथा [[कला]] के सृजनात्मक आयामों के लिए [[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार|'रेमन मैग्सेसे]]' सम्मान मिला।
वर्ष [[2004]] में के. वी. सुब्बन्ना को [[भारत सरकार]] की ओर से '[[पद्म श्री]]' की उपाधि दी गई। इनके अद्भुत कार्य के लिए इन्हें [[संगीत नाटक अकादमी]] ने भी [[1994]] में पुरस्कृत किया। [[1991]] में उन्हें [[पत्रकारिता]], [[साहित्य]] तथा [[कला]] के सृजनात्मक आयामों के लिए [[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार|'रेमन मैग्सेसे]]' सम्मान मिला।
==निधन==
==निधन==
[[16 जुलाई]] [[2005]] को 74 वर्ष की उम्र में हृदयगति रुकने से उनका निधन हुआ। उनकी पत्नी तथा पुत्र और रंगकर्म संसार में शोक संतप्त रह गए।  
[[16 जुलाई]], [[2005]] को 74 वर्ष की उम्र में हृदयगति रुकने से उनका निधन हुआ। उनकी पत्नी तथा पुत्र और रंगकर्म संसार में शोक संतप्त रह गए।
 


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
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==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://rmaward.asia/awardees/subbanna-k-v/ Subbanna, K. V.]
*[http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/literature/sansmatan/0705/05/1070505050_1.htm सुबन्ना : रंगकर्म प्रयोगधर्मिता का युगांत]
*[http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/literature/sansmatan/0705/05/1070505050_1.htm सुबन्ना : रंगकर्म प्रयोगधर्मिता का युगांत]
*[http://books.google.co.in/books?id=o-3BKdTIk3kC&lpg=PA77&ots=jXhNrCo9qn&dq=%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%88%20%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%88&pg=PA97#v=onepage&q=%E0%A4%95%E0%A5%87.%E0%A4%B5%E0%A5%80.%20%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE&f=true के. वी. सुबन्ना (गूगल बुक्स)]
*[http://books.google.co.in/books?id=o-3BKdTIk3kC&lpg=PA77&ots=jXhNrCo9qn&dq=%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%88%20%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%88&pg=PA97#v=onepage&q=%E0%A4%95%E0%A5%87.%E0%A4%B5%E0%A5%80.%20%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE&f=true के. वी. सुबन्ना (गूगल बुक्स)]
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के. वी. सुबन्ना
के. वी. सुबन्ना
के. वी. सुबन्ना
पूरा नाम कुंटागोडू विभूति सुबन्ना
प्रसिद्ध नाम के. वी. सुबन्ना
जन्म 20 फ़रवरी, 1932
जन्म भूमि मैसूर
मृत्यु 16 जुलाई, 2005
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र साहित्य, पत्रकारिता
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, 'रेमन मैग्सेसे, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी के. वी. सुब्बन्ना 'निनासम धर्म संस्था' के संस्थापक थे। 1991 में उन्हें पत्रकारिता, साहित्य तथा कला के सृजनात्मक आयामों के लिए 'रेमन मैग्सेसे' सम्मान मिला था।

कुंटागोडू विभूति सुबन्ना (अंग्रेज़ी: Kuntagodu Vibhuthi Subbanna, (जन्म: 20 फ़रवरी, 1932; मृत्यु: 16 जुलाई, 2005) भारत के जाने-माने नाटककार और 'निनासम धर्म संस्था' के संस्थापक तथा 'रेमन मैग्सेसे पुरस्कार' से सम्मानित कन्नड़ थिएटर के लिए मील का पत्थर थे।

जीवन परिचय

के. वी. सुब्बन्ना का जन्म 20 फ़रवरी, 1932 को मैसूर (अब कर्नाटक) के पश्चिमी घाट में हेग्गुडो गाँव में हुआ था। वहाँ की भाषा कन्नड़ थी। लोकप्रियता की दृष्टि से नीनासाम में शुरू में प्रचलित ऐतिहासिक नाटक ही किए गए, जिसमें नाटकीयता सें भरपूर रंग बिरंगे परिधानों में संगीतमय प्रस्तुतियाँ की जाती थीं। उसके बाद वह यूनिवर्सिटी में पढ़ने मैसूर चले गए। अपने परिवार के इस स्तर तक पहुँचने वाले वह पहले व्यक्ति थे। विश्वविद्यालय में विज्ञान के छात्र थे, लेकिन उनका दृष्टिकोण दार्शनिक था। मतलब कि वह विज्ञान की स्थूल रूपता से आगे भी जाकर सोचते थे तथा उनका गहरा रुझान साहित्य की ओर था। उनका कहना था- "थियेटर मेरे लिए बस थियेटर भर नहीं है, साहित्य भी मेरे लिए बस साहित्य तक ही सीमित नहीं है, इसी तरह मेरे लिए विज्ञान भी मेरे पाठयक्रम तक नहीं जाती, मैं इन सबको एक समूचेपन में अपनाते हुए एक विशाल भारत का निर्माण करना चाहता हूँ।" अपनी इस अवधारणा के साथ सुब्बन्ना यूनिवर्सिटी में साहित्यिक अभिरुचि वाले साथियों के साथ मिलकर पढ़ाई में डूब गए। इसके बावजूद थियेटर उनका जुनून था।

नीनासाम थियेटर की स्थापना

यूनिवर्सिटी से लौटकर सुब्बन्ना फिर 1954 में अपने गाँव आए और उनके साथियों ने मिलकर उनकी नाट्य संस्था को फिर जिन्दा कर दिया। इस बार सुब्बन्ना ने उसी तरह के आधुनिक नाटक देने का प्रयास किया, जिन्हें उन्होंने मैसूर यूनिवर्सिटी में मंचित किया था। उनका यह अनुभव निराशाजनक रहा। गाँव की जनता अभी भी वही पुराने पौराणिक विषयों के, रंग-बिरंगी पोशाक में नाटकीयता से भरे संगीत रूपक देखने की आदी थी। उस जनता को नए थियेटर में रस नहीं मिला। इस पर सुब्बन्ना ने हार नहीं मानी और प्रयोग किया। नए दौर के नाटकों को उनके विषय को सुब्बन्ना ने उसी शिल्प में रूपांतरित सुब्बन्ना ने गाँव के युवक-युवतियों को थियेटर के लिए प्रशिक्षित भी करना शुरू किया और इसके लिए उन्होंने 1980 में नीनासाम थियेटर इन्स्टीटूयूट स्थापित किया। 1983 में नीनासाम को एक और नया आयाम मिला।

विवाह

3 मार्च, 1956 को सुब्बन्ना का विवाह शैलजा से हुआ और तीन वर्ष के बाद वह एक पुत्र के पिता बने, जिसका नाम उन लोगों ने 'अक्षर' रखा। इस पुत्र के नाम पर 1958 में इन्होंने अपना प्रशकान भी शुरू किया।

सम्मान और पुरस्कार

वर्ष 2004 में के. वी. सुब्बन्ना को भारत सरकार की ओर से 'पद्म श्री' की उपाधि दी गई। इनके अद्भुत कार्य के लिए इन्हें संगीत नाटक अकादमी ने भी 1994 में पुरस्कृत किया। 1991 में उन्हें पत्रकारिता, साहित्य तथा कला के सृजनात्मक आयामों के लिए 'रेमन मैग्सेसे' सम्मान मिला।

निधन

16 जुलाई, 2005 को 74 वर्ष की उम्र में हृदयगति रुकने से उनका निधन हुआ। उनकी पत्नी तथा पुत्र और रंगकर्म संसार में शोक संतप्त रह गए।


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