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'''शुक्ल''' [[हिन्दू धर्म]] में मान्य संवत्सरों में से एक है। यह 60 संवत्सरों में तीसरा है। इस [[संवत्सर]] के आने पर विश्व में धान्य प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होता है, प्रजा आनंद से रहती है और उसमें शत्रुता की भावना भी नहीं रहती। इस संवत्सर के स्वामी [[ | '''शुक्ल''' [[हिन्दू धर्म]] में मान्य संवत्सरों में से एक है। यह 60 संवत्सरों में तीसरा है। इस [[संवत्सर]] के आने पर विश्व में धान्य प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होता है, प्रजा आनंद से रहती है और उसमें शत्रुता की भावना भी नहीं रहती। इस संवत्सर के स्वामी [[इन्द्र|देवराज इन्द्र]] हैं। | ||
*शुक्ल संवत्सर में जन्म लेने वाला शिशु शुद्ध, शांतचित्त, सुशील, उदार, उत्तम भाग्य और सम्पूर्ण गुणों से युक्त होता है। | *शुक्ल संवत्सर में जन्म लेने वाला शिशु शुद्ध, शांतचित्त, सुशील, उदार, उत्तम भाग्य और सम्पूर्ण गुणों से युक्त होता है। |
12:48, 28 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
शुक्ल हिन्दू धर्म में मान्य संवत्सरों में से एक है। यह 60 संवत्सरों में तीसरा है। इस संवत्सर के आने पर विश्व में धान्य प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होता है, प्रजा आनंद से रहती है और उसमें शत्रुता की भावना भी नहीं रहती। इस संवत्सर के स्वामी देवराज इन्द्र हैं।
- शुक्ल संवत्सर में जन्म लेने वाला शिशु शुद्ध, शांतचित्त, सुशील, उदार, उत्तम भाग्य और सम्पूर्ण गुणों से युक्त होता है।
- ब्रह्माजी ने सृष्टि का आरम्भ चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से किया था, अतः नव संवत का प्रारम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है।
- हिन्दू परंपरा में समस्त शुभ कार्यों के आरम्भ में संकल्प करते समय उस समय के संवत्सर का उच्चारण किया जाता है।
- संवत्सर 60 हैं। जब 60 संवत पूरे हो जाते हैं तो फिर पहले से संवत्सर का प्रारंभ हो जाता है।
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