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'''सुचित्रा सेन''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Suchitra Sen'', जन्म: [[6 अप्रैल]], [[1931]] - मृत्यु: [[17 जनवरी]] [[2014]]) [[हिन्दी]] एवं [[बांग्ला]] फ़िल्मों की एक [[अभिनेत्री]] थीं। वह मुनमुन सेन की माँ थी। विशेषकर [[उत्तम कुमार]] के साथ अभिनय करने के कारण वे सारे [[पश्चिम बंगाल]] में अत्यन्त जनप्रिय हुईं। उत्तम-सुचित्रा की जोड़ी आज भी बांग्ला चलचित्र की श्रेष्ठ जोड़ी मानी जाती है। वे प्रथम भारतीय अभिनेत्री हैं जिनको किसी अंतर्राष्ट्रीय चलचित्र महोत्सव में पुरस्कार प्रदान किया गया।  
'''सुचित्रा सेन''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Suchitra Sen'', जन्म: [[6 अप्रैल]], [[1931]]; मृत्यु: [[17 जनवरी]] [[2014]]) [[हिन्दी]] एवं [[बांग्ला]] फ़िल्मों की एक [[अभिनेत्री]] थीं। वह मुनमुन सेन की माँ थी। विशेषकर [[उत्तम कुमार]] के साथ अभिनय करने के कारण वे सारे [[पश्चिम बंगाल]] में अत्यन्त जनप्रिय हुईं। उत्तम-सुचित्रा की जोड़ी आज भी बांग्ला चलचित्र की श्रेष्ठ जोड़ी मानी जाती है। वे प्रथम भारतीय अभिनेत्री हैं जिनको किसी अंतर्राष्ट्रीय चलचित्र महोत्सव में पुरस्कार प्रदान किया गया।  
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
सुचित्रा सेन का जन्म [[6 अप्रैल]], [[1931]] को [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] के पबना ज़िले में हुआ था, जो अब [[बांग्लादेश]] में है। सुचित्रा के पिता करुणामॉय दासगुप्ता एक स्थानीय स्कूल में हेड मास्टर थे। यह भी अजीब विडंबना रही कि सुचित्रा की पहली फ़िल्म 'शेष कथाय (बंगाली)' कभी रिलीज ही नहीं हुई।  
सुचित्रा सेन का जन्म [[6 अप्रैल]], [[1931]] को [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] के पबना ज़िले में हुआ था, जो अब [[बांग्लादेश]] में है। सुचित्रा के पिता करुणामॉय दासगुप्ता एक स्थानीय स्कूल में हेड मास्टर थे। यह भी अजीब विडंबना रही कि सुचित्रा की पहली फ़िल्म 'शेष कथाय (बंगाली)' कभी रिलीज ही नहीं हुई।  
==कैरियर==  
==कैरियर==  
सुचित्रा सेन ने अपने कैरियर की शुरुआत 1952 में बंगाली फ़िल्म 'शेष कोठई' से की थी। उन्हें 1955 में [[बिमल राय]] की हिन्दी फ़िल्म '[[देवदास (1955 फ़िल्म)|देवदास]]' में उन्होंने 'पारो' की भूमिका निभाई थी। इसमें उनके साथ [[दिलीप कुमार]] थे। दिग्गज अभिनेता [[उत्तम कुमार]] और सुचित्रा सेन की जोड़ी को कोई नहीं भुला सकता। दोनों ने 1953 से लेकर 1975 तक 30 फ़िल्मों में साथ काम किया। [[1959]] की बंगाली फ़िल्म 'दीप जवेले जाई' को सुचित्रा की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में गिना जाता है। [[चित्र:Devdas-1955.jpg|thumb|left|फ़िल्म '[[देवदास (1955 फ़िल्म)|देवदास]]' में [[दिलीप कुमार]] और सुचित्र सेन]] दस साल बाद यह फ़िल्म हिंदी में बनी थी, जिसमें सुचित्रा वाला रोल [[वहीदा रहमान]] ने किया था। [[1975]] की फ़िल्म 'आंधी' में सुचित्रा का रोल [[इंदिरा गांधी]] से प्रेरित बताया गया था। सुचित्रा ने इतना जबरदस्त अभिनय किया था कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए नामित किया गया था। हालांकि सुचित्रा तो सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री नहीं चुनी गई, लेकिन फ़िल्म के उनके साथी कलाकार [[संजीव कुमार]] सर्वश्रेष्ठ अभिनेता जरूर बन गए। उनकी बेटी मुनमुन सेन भी माँ के नक्शे कदम पर चलते हुए बंगाली फ़िल्मों के साथ हिंदी फ़िल्मों में भी आई। लगभग 25 साल के अभियन कैरियर के बाद उन्होंने [[1978]] में बड़े पर्दे से ऐसी दूरी बनाई कि उन्होंने लाइमलाइट से खुद को बिल्कुल अलग कर लिया।<ref>{{cite web |url=http://www.jagran.com/entertainment/bollywood-a-tribute-to-suchitra-sen-11017341.html |title=इंटरनेशनल अवॉर्ड जीतने वाली पहली बंगाली अभिनेत्री थीं सुचित्रा |accessmonthday=18 जनवरी |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जागरण डॉट कॉम |language=हिंदी }}</ref>
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====बंगाली सिनेमा की 'दिलों की रानी'====
====बंगाली सिनेमा की 'दिलों की रानी'====
सुचित्रा सेन बंगाली सिनेमा की एक ऐसी हस्ती थीं, जिन्होंने अपनी अलौकिक सुंदरता और बेहतरीन अभिनय के दम पर लगभग तीन दशक तक दर्शकों के दिलों पर राज किया और 'अग्निपरीक्षा', '[[देवदास (1955 फ़िल्म)|देवदास]]' तथा 'सात पाके बंधा' जैसी यादगार फ़िल्में कीं। हिरणी जैसी आंखों वाली सुचित्रा 1970 के दशक के अंत में फ़िल्म जगत को छोड़कर एकांत जीवन जीने लगीं। उनकी तुलना अक्सर हॉलीवुड की ग्रेटा गाबरे से की जाती थी, जिन्होंने लोगों से मिलना-जुलना छोड़ दिया था। [[कानन देवी]] के बाद बंगाली सिनेमा की कोई अन्य नायिका सुचित्रा की तरह प्रसिद्धि हासिल नहीं कर पाई। श्वेत-श्याम फ़िल्मों के युग में सुचित्रा के जबर्दस्त अभिनय ने उन्हें दर्शकों के दिलों की रानी बना दिया था। उनकी प्रसिद्धि का आलम यह था कि दुर्गा पूजा के दौरान देवी [[लक्ष्मी]] और [[सरस्वती देवी|सरस्वती]] की प्रतिमाओं के चेहरे सुचित्रा के चेहरे की तरह बनाए जाते थे।<ref>{{cite web |url=http://khabar.ndtv.com/news/filmy/suchitra-sen-queen-of-hearts-of-bengali-films-377932 |title=सुचित्रा सेन : बंगाली सिनेमा की 'दिलों की रानी' |accessmonthday=18 जनवरी |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=NDTV ख़बर |language=हिंदी }}</ref>
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सुचित्रा सेन
सुचित्रा सेन
सुचित्रा सेन
पूरा नाम सुचित्रा सेन
जन्म 6 अप्रैल, 1931
जन्म भूमि पबना ज़िला, बंगाल (अब बांग्लादेश)
मृत्यु 17 जनवरी 2014
मृत्यु स्थान कोलकाता, पश्चिम बंगाल
अभिभावक करुणामॉय दासगुप्ता
संतान पुत्री- मुनमुन सेन
कर्म भूमि मुम्बई, कोलकाता
कर्म-क्षेत्र फ़िल्म अभिनेत्री
मुख्य फ़िल्में 'सात पाके बांधा' (बांग्ला), देवदास, आंधी, ममता, 'दीप जवेले जाई' (बांग्ला) आदि।
पुरस्कार-उपाधि पद्मश्री, बंगो बिभूषण
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सुचित्रा सेन प्रथम भारतीय अभिनेत्री थीं, जिनको किसी अंतर्राष्ट्रीय चलचित्र महोत्सव में पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्होंने 1963 के मॉस्को फ़िल्म फेस्टिवल में अपनी फ़िल्म 'सात पाके बांधा' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता था।

सुचित्रा सेन (अंग्रेज़ी:Suchitra Sen, जन्म: 6 अप्रैल, 1931; मृत्यु: 17 जनवरी 2014) हिन्दी एवं बांग्ला फ़िल्मों की एक अभिनेत्री थीं। वह मुनमुन सेन की माँ थी। विशेषकर उत्तम कुमार के साथ अभिनय करने के कारण वे सारे पश्चिम बंगाल में अत्यन्त जनप्रिय हुईं। उत्तम-सुचित्रा की जोड़ी आज भी बांग्ला चलचित्र की श्रेष्ठ जोड़ी मानी जाती है। वे प्रथम भारतीय अभिनेत्री हैं जिनको किसी अंतर्राष्ट्रीय चलचित्र महोत्सव में पुरस्कार प्रदान किया गया।

जीवन परिचय

सुचित्रा सेन का जन्म 6 अप्रैल, 1931 को बंगाल के पबना ज़िले में हुआ था, जो अब बांग्लादेश में है। सुचित्रा के पिता करुणामॉय दासगुप्ता एक स्थानीय स्कूल में हेड मास्टर थे। यह भी अजीब विडंबना रही कि सुचित्रा की पहली फ़िल्म 'शेष कथाय (बंगाली)' कभी रिलीज ही नहीं हुई।

कैरियर

सुचित्रा सेन ने अपने कैरियर की शुरुआत 1952 में बंगाली फ़िल्म 'शेष कोठई' से की थी। उन्हें 1955 में बिमल राय की हिन्दी फ़िल्म 'देवदास' में उन्होंने 'पारो' की भूमिका निभाई थी। इसमें उनके साथ दिलीप कुमार थे। दिग्गज अभिनेता उत्तम कुमार और सुचित्रा सेन की जोड़ी को कोई नहीं भुला सकता। दोनों ने 1953 से लेकर 1975 तक 30 फ़िल्मों में साथ काम किया। 1959 की बंगाली फ़िल्म 'दीप जवेले जाई' को सुचित्रा की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में गिना जाता है।

फ़िल्म 'देवदास' में दिलीप कुमार और सुचित्र सेन

दस साल बाद यह फ़िल्म हिंदी में बनी थी, जिसमें सुचित्रा वाला रोल वहीदा रहमान ने किया था। 1975 की फ़िल्म 'आंधी' में सुचित्रा का रोल इंदिरा गांधी से प्रेरित बताया गया था। सुचित्रा ने इतना जबरदस्त अभिनय किया था कि उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए नामित किया गया था। हालांकि सुचित्रा तो सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री नहीं चुनी गई, लेकिन फ़िल्म के उनके साथी कलाकार संजीव कुमार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता ज़रूर बन गए। उनकी बेटी मुनमुन सेन भी माँ के नक्शे कदम पर चलते हुए बंगाली फ़िल्मों के साथ हिंदी फ़िल्मों में भी आई। लगभग 25 साल के अभियन कैरियर के बाद उन्होंने 1978 में बड़े पर्दे से ऐसी दूरी बनाई कि उन्होंने लाइमलाइट से खुद को बिल्कुल अलग कर लिया।[1]

बंगाली सिनेमा की 'दिलों की रानी'

सुचित्रा सेन बंगाली सिनेमा की एक ऐसी हस्ती थीं, जिन्होंने अपनी अलौकिक सुंदरता और बेहतरीन अभिनय के दम पर लगभग तीन दशक तक दर्शकों के दिलों पर राज किया और 'अग्निपरीक्षा', 'देवदास' तथा 'सात पाके बंधा' जैसी यादगार फ़िल्में कीं। हिरणी जैसी आंखों वाली सुचित्रा 1970 के दशक के अंत में फ़िल्म जगत को छोड़कर एकांत जीवन जीने लगीं। उनकी तुलना अक्सर हॉलीवुड की ग्रेटा गाबरे से की जाती थी, जिन्होंने लोगों से मिलना-जुलना छोड़ दिया था। कानन देवी के बाद बंगाली सिनेमा की कोई अन्य नायिका सुचित्रा की तरह प्रसिद्धि हासिल नहीं कर पाई। श्वेत-श्याम फ़िल्मों के युग में सुचित्रा के जबर्दस्त अभिनय ने उन्हें दर्शकों के दिलों की रानी बना दिया था। उनकी प्रसिद्धि का आलम यह था कि दुर्गा पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी और सरस्वती की प्रतिमाओं के चेहरे सुचित्रा के चेहरे की तरह बनाए जाते थे।[2]

रोचक तथ्य

  • सुचित्रा सेन पहली ऐसी बंगाली अदाकारा बनीं जिन्हें इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल में सम्मानित किया गया। उन्हें 'सात पाके बांधा' के लिए 1963 में मॉस्को फ़िल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला था।
  • सुचित्रा सेन ने 1955 में 'देवदास' में पारो का किरदार निभाया था, ये उनकी पहली हिंदी फ़िल्म भी थी।
  • लोगों की नज़रों से दूर और एकांत में रहने के लिए 2005 में सुचित्रा सेन ने दादा साहब फालके पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था।
  • सुचित्रा सेन अभिनीत फ़िल्म 'आंधी' के रिलीज के 20 हफ्तों बाद ही इसे गुजरात में प्रतिबंधित कर दिया गया था। 1977 में जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद ही इससे रोक हटाई गई।
  • फ़िल्मों से अपने रिटायरमेंट के बाद से ही सुचित्रा सेन लोगों की नजरों से दूर रहीं और अपना समय रामकृष्ण मिशन में लगाया।
  • सुचित्रा सेन ने फ़िल्म 'देवी चौधराइन' के लिए सत्यजीत रे का ऑफर ठुकरा दिया था। जिसके बाद सत्यजीत रे ने ये फ़िल्म कभी नहीं बनाई।
  • आर.के. बैनर के तले राज कपूर के फ़िल्म प्रस्ताव को भी सुचित्रा सेन ठुकरा चुकी हैं।
  • फ़िल्मफेयर में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए उन्हें दो बार नामित किया गया। 1963 में फ़िल्म 'ममता' और 1976 में फ़िल्म 'आंधी' के लिए।[3]

सम्मान और पुरस्कार

  • सुचित्रा सेन पहली बंगाली अभिनेत्री थीं, जिन्होंने इंटरनेशल फ़िल्म फेस्टिवल अवॉर्ड जीता। उन्होंने 1963 के मॉस्को फ़िल्म फेस्टिवल में अपनी फ़िल्म 'सात पाके बांधा' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता था।
  • 1972 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार मिला।
  • 2012 में उन्हें पश्चिम बंगाल सरकार का सर्वोच्च पुरस्कार 'बंगो बिभूषण' दिया गया।

निधन

सुचित्रा सेन का शुक्रवार 17 जनवरी 2014 को 82 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से कोलकाता के एक अस्पताल में निधन हो गया। सुचित्रा सेन मधुमेह नामक रोग से पीड़ित थीं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इंटरनेशनल अवॉर्ड जीतने वाली पहली बंगाली अभिनेत्री थीं सुचित्रा (हिंदी) जागरण डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 18 जनवरी, 2014।
  2. सुचित्रा सेन : बंगाली सिनेमा की 'दिलों की रानी' (हिंदी) NDTV ख़बर। अभिगमन तिथि: 18 जनवरी, 2014।
  3. नही रहीं अपने समय की मशहूर अदाकारा सुचित्रा सेन (हिंदी) आजतक। अभिगमन तिथि: 18 जनवरी, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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