"नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार -कबीर": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " गरीब" to " ग़रीब") |
||
पंक्ति 41: | पंक्ति 41: | ||
मैं अपराधी जन्म को मन में भरा विकार । | मैं अपराधी जन्म को मन में भरा विकार । | ||
तुम दाता दु:ख भंजन मेरी करो सम्हार । | तुम दाता दु:ख भंजन मेरी करो सम्हार । | ||
अवगुन दास कबीर के बहुत | अवगुन दास कबीर के बहुत ग़रीब निवाज़ । | ||
जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज ॥ | जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज ॥ | ||
गुरु बिन कैसे लागे पार ॥ | गुरु बिन कैसे लागे पार ॥ |
09:17, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
| ||||||||||||||||||||
|
नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार ॥ |
संबंधित लेख