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:[[वाल्मीकि रामायण]] में भी गिरिव्रज के पंचशैलों का वर्णन है- 'एते शैलवरा: पंच प्रकाशन्ते: समन्तत:'।<ref>बाल. 32, 80</ref> | |||
[[पाली|पाली साहित्य]] में ऋषिगिरि को [[इसिगिलि]] कहा गया है। | |||
<blockquote><poem>'वैहारो विपुल: शैलो वराहो वृषभस्तथा, | |||
तथा ऋषिगिरिस्तात शुभाश्चैत्यक पंचामा:, | |||
एते पंच महाश्रृंगा पर्वता: शीतलद्रुमा:, | |||
रक्षन्तीवाभिसंहत्य संहतांगा गिरिव्रजम्'।<ref>[[महाभारत]] [[सभा पर्व महाभारत|सभापर्व]] 21,2-3</ref></poem></blockquote> | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
*ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 107| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार | |||
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09:22, 11 मई 2018 के समय का अवतरण
महाभारत के अनुसार ऋषिगिरि, ऋसिगिरि, गिरिव्रज या राजगृह-वर्तमान राजगीर (बिहार) की पांच पहाड़ियों में से एक है।
- वाल्मीकि रामायण में भी गिरिव्रज के पंचशैलों का वर्णन है- 'एते शैलवरा: पंच प्रकाशन्ते: समन्तत:'।[1]
पाली साहित्य में ऋषिगिरि को इसिगिलि कहा गया है।
'वैहारो विपुल: शैलो वराहो वृषभस्तथा,
तथा ऋषिगिरिस्तात शुभाश्चैत्यक पंचामा:,
एते पंच महाश्रृंगा पर्वता: शीतलद्रुमा:,
रक्षन्तीवाभिसंहत्य संहतांगा गिरिव्रजम्'।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 107| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
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