"शिवपूजन सहाय": अवतरणों में अंतर

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{{सूचना बक्सा साहित्यकार
आचार्य शिवपूजन सहाय हिंदी साहित्य में एक उपन्यासकार, कहानीकार, सम्पादक के रुपमें जाने जाते हैं।
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'''आचार्य शिवपूजन सहाय''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Acharya Shivpujan Sahay'', जन्म- [[9 अगस्त]], [[1893]], शाहाबाद, [[बिहार]]; मृत्यु- [[21 जनवरी]], [[1963]], [[पटना]]) [[हिन्दी साहित्य]] में एक [[उपन्यासकार]], [[कहानीकार]], सम्पादक और पत्रकार के रूप में प्रसिद्ध थे। इनके लिखे हुए प्रारम्भिक लेख 'लक्ष्मी', 'मनोरंजन' तथा 'पाटलीपुत्र' आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे। शिवपूजन सहाय ने [[1934]] ई. में 'लहेरियासराय' (दरभंगा) जाकर मासिक पत्र 'बालक' का सम्पादन किया। स्वतंत्रता के बाद शिवपूजन सहाय '[[बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना|बिहार राष्ट्रभाषा परिषद]]' के संचालक तथा 'बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन' की ओर से प्रकाशित 'साहित्य' नामक शोध-समीक्षाप्रधान त्रैमासिक पत्र के सम्पादक थे।
==जन्म और शिक्षा==
==जन्म और शिक्षा==
शिवपूजन सहाय का जन्म सन् 1893 ई. ग्राम [[उनवास]], सब डिवीजन बक्सर, [[शाहाबाद­ ज़िला|­ज़िला शाहाबाद]] ([[बिहार]]) में हुआ था। [[1912]] ई. में आरा नगर के एक हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। सामाजिक जीवन का शुभारम्भ हिन्दी शिक्षक के रूप में किया और साहित्य के क्षेत्र में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आये। आपके आरम्भिक लेख तथा कहानियाँ 'शिक्षा', 'लक्ष्मी', 'मनोरंजन' तथा 'पाटलीपुत्र' आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।
शिवपूजन सहाय का जन्म सन 1893 ई. उनवास ग्राम, उपसंभाग [[बक्सर ज़िला|बक्सर]], शाहाबाद­ ज़िला ([[बिहार]]) में हुआ था। [[1912]] ई. में [[आरा|आरा नगर]] के एक हाईस्कूल से शिवपूजन सहाय ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। उन्होंने सामाजिक जीवन का शुभारम्भ [[हिन्दी]] शिक्षक के रूप में किया और [[साहित्य]] के क्षेत्र में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आये। शिवपूजन सहाय के आरम्भिक लेख तथा कहानियाँ 'शिक्षा', 'लक्ष्मी', 'मनोरंजन' तथा 'पाटलीपुत्र' आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे।
==सेवाएँ==
==सेवाएँ==
शिवपूजन सहाय की सेवाएँ हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय हैं। [[1921]]-22 ई. के आसपास आपने आरा से निकलने वाले 'मारवाड़ी सुधार' नामक मासिक का सम्पादन किया। [[1923]] ई. में [[कलकत्ता]] के 'मतवाला मण्डल' के सदस्य हुए और कुछ समय के लिए 'आदर्श', 'उपन्यास तरंग', तथा 'समन्वय' आदि पत्रों में सम्पादन का कार्य किया। [[1925]] ई. में कुछ मास के लिए 'माधुरी' के सम्पादकीय विभाग को अपनी सेवाएँ अर्पित कीं। [[1930]] ई. में [[सुल्तानगंज]]-[[भागलपुर]] से प्रकाशित होने वाली 'गंगा' नामक मासिक पत्रिका के सम्पादक मण्डल के सदस्य हुए। एक वर्ष के उपरान्त [[काशी]] में रहकर साहित्यिक पाक्षिक 'जागरण' का सम्पादन किया। आप काशी में कई वर्ष तक रहे। [[1934]] ई. में लहेरियासराय (दरभंगा) जाकर मासिक पत्र 'बालक' का सम्पादन किया। स्वतंत्रता के बाद आप [[बिहार]] राष्ट्रभाषा परिषद् के संचालक तथा बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से प्रकाशित 'साहित्य' नामक शोध-समीक्षाप्रधान त्रैमासिक पत्र के सम्पादक थे।
शिवपूजन सहाय की सेवाएँ [[हिन्दी पत्रकारिता]] के क्षेत्र में उल्लेखनीय हैं। [[1921]]-[[1922]] ई. के आस-पास शिवपूजन सहाय ने आरा से निकलने वाले 'मारवाड़ी सुधार' नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन किया। उन्होंने [[1923]] ई. में वे [[कलकत्ता]] के 'मतवाला मण्डल' के सदस्य हुए और कुछ समय के लिए 'आदर्श', 'उपन्यास तरंग', तथा 'समन्वय' आदि पत्रों में सम्पादन का कार्य किया। शिवपूजन सहाय ने [[1925]] ई. में कुछ मास के लिए 'माधुरी' के सम्पादकीय विभाग को अपनी सेवाएँ अर्पित कीं। वह [[1930]] ई. में [[सुल्तानगंज]]-[[भागलपुर]] से प्रकाशित होने वाली 'गंगा' नामक मासिक पत्रिका के सम्पादक मण्डल के सदस्य भी हुए। एक [[वर्ष]] के उपरान्त [[काशी]] में रहकर उन्होंने साहित्यिक पाक्षिक 'जागरण' का सम्पादन किया। शिवपूजन सहाय काशी में कई वर्ष तक रहे। [[1934]] ई. में लहेरियासराय (दरभंगा) जाकर मासिक पत्र 'बालक' का सम्पादन किया। [[भारत]] की स्वतंत्रता के बाद शिवपूजन सहाय '[[बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना|बिहार राष्ट्रभाषा परिषद]]' के संचालक तथा 'बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन' की ओर से प्रकाशित 'साहित्य' नामक शोध-समीक्षाप्रधान त्रैमासिक पत्र के सम्पादक थे।
==लिखी हुई पुस्तकें==
==लेखन कार्य==
शिव पूजन सहाय की लिखी हुई पुस्तकें विभिन्न विषयों से सम्बद्ध हैं तथा उनकी विधाएँ भी भिन्न-भिन्न हैं। 'बिहार का बिहार' बिहार प्रान्त का भौगोलिक एवं ऐतिहासिक वर्णन प्रस्तुत करती है। 'विभूति' में कहानियाँ संकलित हैं। 'देहाती दुनियाँ' ([[1926]] ई.) प्रयोगात्मक चरित्र प्रधान औपन्यासिक कृति है। इसकी पहली पाण्डुलिपि [[लखनऊ]] के हिन्दू मुस्लिम दंगे में नष्ट हो गयी थी। इसका शिवपूजन सहाय जी को बहुत दु:ख था। उन्होंने दुबारा वही पुस्तक फिर लिखकर प्रकाशित करायी किन्तु उससे आपको पूरा संतोष नहीं हुआ। आप कहा करते थे कि पहले की लिखी हुई चीज़ कुछ और ही थी। 'ग्राम सुधार' तथा 'अन्नापूर्णा के मन्दिर में' नामक दो पुस्तकें ग्रामोद्धारसम्बन्धी लेखों के संग्रह हैं। इनके अतिरिक्त 'दो पड़ी' एक हास्यरसात्मक कृति है, 'माँ के सपूत' बालोपयोगी तथा 'अर्जुन' और 'भीष्म' नामक दो पुस्तकें [[महाभारत]] के दो पात्रों की जीवनी के रूप में लिखी गयी हैं। शिव पूजन सहाय ने अनेक पुस्तकों का सम्पादन भी किया है, जिनमें 'राजेन्द्र अभिनन्दन ग्रन्थ' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् (पटना) ने इनकी विभिन्न रचनाओं को अब तक चार खण्डों में 'शिवपूजन रचनावली' के नाम से प्रकाशित किया है।
शिवपूजन सहाय की लिखी हुई पुस्तकें विभिन्न विषयों से सम्बद्ध हैं तथा उनकी विधाएँ भी भिन्न-भिन्न हैं। 'बिहार का बिहार' [[बिहार]] प्रान्त का भौगोलिक एवं ऐतिहासिक वर्णन प्रस्तुत करती है। 'विभूति' में कहानियाँ संकलित हैं। 'देहाती दुनियाँ' ([[1926]] ई.) प्रयोगात्मक चरित्र प्रधान औपन्यासिक कृति है। इसकी पहली [[पाण्डुलिपि]] [[लखनऊ]] के [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] दंगे में नष्ट हो गयी थी। इसका शिवपूजन सहाय जी को बहुत दु:ख था। उन्होंने दुबारा वही पुस्तक फिर लिखकर प्रकाशित करायी, किन्तु उससे शिवपूजन सहाय को पूरा संतोष नहीं हुआ। शिवपूजन सहाय कहा करते थे कि- "पहले की लिखी हुई चीज़ कुछ और ही थी।" 'ग्राम सुधार' तथा 'अन्नपूर्णा के मन्दिर में' नामक दो पुस्तकें ग्रामोद्धारसम्बन्धी लेखों के संग्रह हैं। इनके अतिरिक्त 'दो पड़ी' एक हास्यरसात्मक कृति है, 'माँ के सपूत' बालोपयोगी तथा 'अर्जुन' और 'भीष्म' नामक दो पुस्तकें [[महाभारत]] के दो पात्रों की जीवनी के रूप में लिखी गयी हैं। शिवपूजन सहाय ने अनेक पुस्तकों का सम्पादन भी किया, जिनमें 'राजेन्द्र अभिनन्दन ग्रन्थ' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। 'बिहार राष्ट्रभाषा परिषद', ([[पटना]]) ने इनकी विभिन्न रचनाओं को अब तक चार खण्डों में 'शिवपूजन रचनावली' के नाम से प्रकाशित किया है।
==विशिष्ट स्थान==
==विशिष्ट स्थान==
शिवपूजन सहाय का हिन्दी के गद्य साहित्य में एक विशिष्ट स्थान है। इनकी भाषा बड़ी सहज रही है। इन्होंने उर्दू शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से किया है और प्रचलित मुहावरों के सन्तुलित उपयोग द्वारा लोकरुचि का स्पर्श करने की चेष्टा की है। कहीं-कहीं अनंकरणप्रधान अनुप्रास बहुल भाषा का भी व्यवहार किया है और गद्य में पद्य की सी छटा उत्पन्न करने की चेष्टा की है। भाषा के इस पद्यात्मक स्वरूप के बावजूद इनके गद्य लेखन में गाम्भीर्य का अभाव नहीं है। शैली ओज-गुण सम्पन्न है और यत्र-तत्र उसमें वक्तृत्व कला की विशेषताएँ उपलब्ध होती हैं।  
शिवपूजन सहाय का [[हिन्दी]] के गद्य साहित्य में एक विशिष्ट स्थान है। उनकी [[भाषा]] बड़ी सहज थी। इन्होंने [[उर्दू]] के शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से किया है और प्रचलित मुहावरों के सन्तुलित उपयोग द्वारा लोकरुचि का स्पर्श करने की चेष्टा की है। शिवपूजन सहाय ने कहीं-कहीं [[अलंकार]] प्रधान [[अनुप्रास अलंकार|अनुप्रास]] बहुल भाषा का भी व्यवहार किया है और गद्य में पद्य की सी छटा उत्पन्न करने की चेष्टा की है। भाषा के इस पद्यात्मक स्वरूप के बावज़ूद शिवपूजन सहाय के गद्य लेखन में गाम्भीर्य का अभाव नहीं है। शिवपूजन सहाय की शैली ओज-गुण सम्पन्न है और यत्र-तत्र उसमें वक्तृत्व कला की विशेषताएँ उपलब्ध होती हैं।
==हिन्दी-सेवा==
==हिन्दी-सेवा==
शिवपूजन सहाय का समस्त जीवन हिन्दी-सेवा की कहानी है। इन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग [[हिन्दी भाषा]] की उन्नति एवं उसके प्रचार-प्रसार में व्यतीत किया है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन तथा बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् नामक हिन्दी की दो प्रसिद्ध संस्थाएँ इनकी कीर्ति कथा के अमूल्य स्मारक के रूप में हैं। इनके संस्मरण में बिहार से 'स्मृति ग्रन्थ' भी प्रकाशित हुआ है।
शिवपूजन सहाय का समस्त जीवन [[हिन्दी]] की सेवा की कहानी है। इन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग हिन्दी भाषा की उन्नति एवं उसके प्रचार-प्रसार में व्यतीत किया है। 'बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन' तथा 'बिहार राष्ट्रभाषा परिषद' नामक हिन्दी की दो प्रसिद्ध संस्थाएँ इनकी कीर्ति कथा के अमूल्य स्मारक के रूप में हैं। इनके संस्मरण में बिहार से [[स्मृतियाँ|स्मृति ग्रन्थ]] भी प्रकाशित हुआ है।
==रचनाएँ==
==रचनाएँ==
देहाती दुनियाँ  (1926), 
आचार्य शिवपूजन सहाय की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
मतवाला माधुरी (1924),
#'देहाती दुनियाँ' - [[1926]]
गंगा (1931), 
#'मतवाला माधुरी' - [[1924]]
जागरण (1932),
#'गंगा' - [[1931]]
हिमालय (1946), 
#'जागरण' - [[1932]]
साहित्य (1950)
#'हिमालय' - [[1946]]
वही दिन वही लोग (1965), 
#'साहित्य' - [[1950]]
मेरा जीवन (1985), 
#'वही दिन वही लोग' - [[1965]]
स्मृति शेश (1994),
#'मेरा जीवन' - [[1985]]
हिंदी भाषा और साहित्य (1996), 
#'स्मृति शेश' - [[1994]]
#'हिन्दी भाषा और साहित्य' - [[1996]]


'''सहायक ग्रन्थ'''-शिवपूजन रचनावली, (चार खण्डों में), बि. रा. भा. परिषद्, पटना।
'''सहायक ग्रन्थ''' - 'शिवपूजन रचनावली' (चार खण्डों में), बिहार राष्ट्रीय भाषा परिषद्, [[पटना]]।
==पत्रकारिता में योगदान==
हिन्दी पत्रकारिता के पुरोधा आचार्य शिवपूजन सहाय [[1910]] से [[1960]] ई. तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, जैसे- 'आज', 'सन्मार्ग', 'आर्यावर्त', 'हिमालय' आदि में सारगर्भित लेख लिखते रहे। उस दौरान उन्होंने हिन्दी पत्रों और पत्रकारिता की स्थिति पर भी गंभीर टिप्पणियाँ की थीं। अपने लेखों के जरिये वे जहाँ [[भाषा]] के प्रति सजग दिखाई देते थे, वहीं पूँजीपतियों के दबाव में संपादकों के अधिकारों पर होते कुठाराघात पर चिंता भी जाहिर करते थे। अपने लेख "हिन्दी के दैनिक पत्र" में आचार्य शिवपूजन सहाय ने लिखा था कि- "लोग दैनिक पत्रों का साहित्यिक महत्व नहीं समझते, बल्कि वे उन्हें राजनीतिक जागरण का साधन मात्र समझते हैं। किंतु हमारे देश के दैनिक पत्रों ने जहाँ देश को उद्बुद्ध करने का अथक प्रयास किया है, वहीं हिन्दी प्रेमी जनता में साहित्यिक चेतना जगाने का श्रेय भी पाया है। आज प्रत्येक श्रेणी की जनता बड़ी लगन और उत्सुकता से दैनिक पत्रों को पढ़ती है। दैनिक पत्रों की दिनोंदिन बढ़ती हुई लोकप्रियता हिन्दी के हित साधन में बहुत सहायक हो रही है। आज हमें हर बात में दैनिक पत्रों की सहायता आवश्यक जान पड़ती है। भाषा और साहित्य की उन्नति में भी दैनिक पत्रों से बहुत सहारा मिल सकता है।"<ref name="ab">{{cite web |url=http://prabhatkhabar.com/node/162404|title=पूँजीवादी मनोवृत्ति और पत्रकार|accessmonthday=13 मई|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
 
शिवपूजन सहाय का यह भी कहना था कि "[[भारत]] की साधारण जनता तक पहुँचने के लिए दैनिक पत्र ही सर्वोत्तम साधन हैं। देश-देशांतर के समाचारों के साथ [[भाषा]] और [[साहित्य]] का संदेश भी दैनिक पत्रों द्वारा आसानी से जनता तक पहुँचा सकते हैं और पहुँचाते आये हैं। कुछ दैनिक पत्र तो प्रति [[सप्ताह]] अपना एक विशेष संस्करण भी निकालते हैं, जिसमें कितने ही साप्ताहिकों और मासिकों से भी अच्छी साहित्यिक सामग्री रहती है। दैनिक पत्रों द्वारा हम रोज-ब-रोज की राजनीतिक प्रगति का विस्तृत विवरण ही नहीं पाते, बल्कि समाज की वैचारिक स्थितियों का विवरण भी पाते हैं। हालांकि कभी-कभी कुछ साहित्यिक समाचारों को पढ़कर ही संतोष कर लेते हैं। भाषा और साहित्य से संबंध रखने वाली बहुत कुछ ऐसी समस्याएँ हैं, जिनकी ओर जनता का ध्यान आकृष्ट करने की बड़ी आवश्यकता है, किंतु यह काम दैनिक पत्रों ने शायद उन साप्ताहिकों व मासिकों पर छोड़ दिया है, जिनकी पहुँच व पैठ जनता में आज उतनी नहीं है, जितनी दैनिक पत्रों की। दैनिक पत्र आजकल नित्य के अन्न-[[जल]] की भांति जनता के जीवन के अंग बनते जा रहे हैं। यद्यपि ये पत्र भाषा-साहित्य संबंधी प्रश्नों को भी जनता के सामने रोज-रोज रखते जाते, तो निश्चित रूप से कितने ही अभाव दूर हो जाते।"
==सम्मान==
==सम्मान==
शिवपूजन सहाय को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन [[1960]]  में [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया गया था।
शिवपूजन सहाय को [[साहित्य]] एवं शिक्षा के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए सन [[1960]] ई. में '[[पद्म भूषण]]' से सम्मानित किया गया था।
==निधन==
==निधन==
इस महान साहित्यकार का निधन [[21 जनवरी]], [[1963]] में [[पटना]] में हुआ ।
एक कहानीकार, सम्पादक और पत्रकार के रुप में विशिष्ट स्थान बनाने वाले इस महान् साहित्यकार का निधन [[21 जनवरी]], [[1963]] में [[पटना]], [[बिहार]] में हुआ।


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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06:53, 9 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

शिवपूजन सहाय
शिवपूजन सहाय
शिवपूजन सहाय
पूरा नाम आचार्य शिवपूजन सहाय
जन्म 9 अगस्त, 1893
जन्म भूमि शाहाबाद, बिहार
मृत्यु 21 जनवरी, 1963
मृत्यु स्थान पटना
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र साहित्य, पत्रकारिता,
मुख्य रचनाएँ 'देहाती दुनियाँ', 'मतवाला माधुरी', 'गंगा', 'जागरण', 'हिमालय', 'हिन्दी भाषा और साहित्य', 'शिवपूजन रचनावली' आदि।
विषय गद्य, उपन्यास, कहानी
पुरस्कार-उपाधि पद्म भूषण (1960)
प्रसिद्धि कहानीकार, पत्रकार, उपन्यासकार, सम्पादक
विशेष योगदान आप 1910 से 1960 ई. तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सारगर्भित लेख लिखते रहे। उस दौरान उन्होंने हिन्दी पत्रों और पत्रकारिता की स्थिति पर भी गंभीर टिप्पणियाँ की थीं।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी शिवपूजन सहाय की 'देहाती दुनियाँ' (1926 ई.) प्रयोगात्मक चरित्र प्रधान औपन्यासिक कृति है। इसकी पहली पाण्डुलिपि लखनऊ के हिन्दू-मुस्लिम दंगे में नष्ट हो गयी थी। इसका शिवपूजन सहाय को बहुत दु:ख था।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

आचार्य शिवपूजन सहाय (अंग्रेज़ी: Acharya Shivpujan Sahay, जन्म- 9 अगस्त, 1893, शाहाबाद, बिहार; मृत्यु- 21 जनवरी, 1963, पटना) हिन्दी साहित्य में एक उपन्यासकार, कहानीकार, सम्पादक और पत्रकार के रूप में प्रसिद्ध थे। इनके लिखे हुए प्रारम्भिक लेख 'लक्ष्मी', 'मनोरंजन' तथा 'पाटलीपुत्र' आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे। शिवपूजन सहाय ने 1934 ई. में 'लहेरियासराय' (दरभंगा) जाकर मासिक पत्र 'बालक' का सम्पादन किया। स्वतंत्रता के बाद शिवपूजन सहाय 'बिहार राष्ट्रभाषा परिषद' के संचालक तथा 'बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन' की ओर से प्रकाशित 'साहित्य' नामक शोध-समीक्षाप्रधान त्रैमासिक पत्र के सम्पादक थे।

जन्म और शिक्षा

शिवपूजन सहाय का जन्म सन 1893 ई. उनवास ग्राम, उपसंभाग बक्सर, शाहाबाद­ ज़िला (बिहार) में हुआ था। 1912 ई. में आरा नगर के एक हाईस्कूल से शिवपूजन सहाय ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। उन्होंने सामाजिक जीवन का शुभारम्भ हिन्दी शिक्षक के रूप में किया और साहित्य के क्षेत्र में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से आये। शिवपूजन सहाय के आरम्भिक लेख तथा कहानियाँ 'शिक्षा', 'लक्ष्मी', 'मनोरंजन' तथा 'पाटलीपुत्र' आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे।

सेवाएँ

शिवपूजन सहाय की सेवाएँ हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय हैं। 1921-1922 ई. के आस-पास शिवपूजन सहाय ने आरा से निकलने वाले 'मारवाड़ी सुधार' नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन किया। उन्होंने 1923 ई. में वे कलकत्ता के 'मतवाला मण्डल' के सदस्य हुए और कुछ समय के लिए 'आदर्श', 'उपन्यास तरंग', तथा 'समन्वय' आदि पत्रों में सम्पादन का कार्य किया। शिवपूजन सहाय ने 1925 ई. में कुछ मास के लिए 'माधुरी' के सम्पादकीय विभाग को अपनी सेवाएँ अर्पित कीं। वह 1930 ई. में सुल्तानगंज-भागलपुर से प्रकाशित होने वाली 'गंगा' नामक मासिक पत्रिका के सम्पादक मण्डल के सदस्य भी हुए। एक वर्ष के उपरान्त काशी में रहकर उन्होंने साहित्यिक पाक्षिक 'जागरण' का सम्पादन किया। शिवपूजन सहाय काशी में कई वर्ष तक रहे। 1934 ई. में लहेरियासराय (दरभंगा) जाकर मासिक पत्र 'बालक' का सम्पादन किया। भारत की स्वतंत्रता के बाद शिवपूजन सहाय 'बिहार राष्ट्रभाषा परिषद' के संचालक तथा 'बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन' की ओर से प्रकाशित 'साहित्य' नामक शोध-समीक्षाप्रधान त्रैमासिक पत्र के सम्पादक थे।

लेखन कार्य

शिवपूजन सहाय की लिखी हुई पुस्तकें विभिन्न विषयों से सम्बद्ध हैं तथा उनकी विधाएँ भी भिन्न-भिन्न हैं। 'बिहार का बिहार' बिहार प्रान्त का भौगोलिक एवं ऐतिहासिक वर्णन प्रस्तुत करती है। 'विभूति' में कहानियाँ संकलित हैं। 'देहाती दुनियाँ' (1926 ई.) प्रयोगात्मक चरित्र प्रधान औपन्यासिक कृति है। इसकी पहली पाण्डुलिपि लखनऊ के हिन्दू-मुस्लिम दंगे में नष्ट हो गयी थी। इसका शिवपूजन सहाय जी को बहुत दु:ख था। उन्होंने दुबारा वही पुस्तक फिर लिखकर प्रकाशित करायी, किन्तु उससे शिवपूजन सहाय को पूरा संतोष नहीं हुआ। शिवपूजन सहाय कहा करते थे कि- "पहले की लिखी हुई चीज़ कुछ और ही थी।" 'ग्राम सुधार' तथा 'अन्नपूर्णा के मन्दिर में' नामक दो पुस्तकें ग्रामोद्धारसम्बन्धी लेखों के संग्रह हैं। इनके अतिरिक्त 'दो पड़ी' एक हास्यरसात्मक कृति है, 'माँ के सपूत' बालोपयोगी तथा 'अर्जुन' और 'भीष्म' नामक दो पुस्तकें महाभारत के दो पात्रों की जीवनी के रूप में लिखी गयी हैं। शिवपूजन सहाय ने अनेक पुस्तकों का सम्पादन भी किया, जिनमें 'राजेन्द्र अभिनन्दन ग्रन्थ' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। 'बिहार राष्ट्रभाषा परिषद', (पटना) ने इनकी विभिन्न रचनाओं को अब तक चार खण्डों में 'शिवपूजन रचनावली' के नाम से प्रकाशित किया है।

विशिष्ट स्थान

शिवपूजन सहाय का हिन्दी के गद्य साहित्य में एक विशिष्ट स्थान है। उनकी भाषा बड़ी सहज थी। इन्होंने उर्दू के शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से किया है और प्रचलित मुहावरों के सन्तुलित उपयोग द्वारा लोकरुचि का स्पर्श करने की चेष्टा की है। शिवपूजन सहाय ने कहीं-कहीं अलंकार प्रधान अनुप्रास बहुल भाषा का भी व्यवहार किया है और गद्य में पद्य की सी छटा उत्पन्न करने की चेष्टा की है। भाषा के इस पद्यात्मक स्वरूप के बावज़ूद शिवपूजन सहाय के गद्य लेखन में गाम्भीर्य का अभाव नहीं है। शिवपूजन सहाय की शैली ओज-गुण सम्पन्न है और यत्र-तत्र उसमें वक्तृत्व कला की विशेषताएँ उपलब्ध होती हैं।

हिन्दी-सेवा

शिवपूजन सहाय का समस्त जीवन हिन्दी की सेवा की कहानी है। इन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग हिन्दी भाषा की उन्नति एवं उसके प्रचार-प्रसार में व्यतीत किया है। 'बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन' तथा 'बिहार राष्ट्रभाषा परिषद' नामक हिन्दी की दो प्रसिद्ध संस्थाएँ इनकी कीर्ति कथा के अमूल्य स्मारक के रूप में हैं। इनके संस्मरण में बिहार से स्मृति ग्रन्थ भी प्रकाशित हुआ है।

रचनाएँ

आचार्य शिवपूजन सहाय की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. 'देहाती दुनियाँ' - 1926
  2. 'मतवाला माधुरी' - 1924
  3. 'गंगा' - 1931
  4. 'जागरण' - 1932
  5. 'हिमालय' - 1946
  6. 'साहित्य' - 1950
  7. 'वही दिन वही लोग' - 1965
  8. 'मेरा जीवन' - 1985
  9. 'स्मृति शेश' - 1994
  10. 'हिन्दी भाषा और साहित्य' - 1996

सहायक ग्रन्थ - 'शिवपूजन रचनावली' (चार खण्डों में), बिहार राष्ट्रीय भाषा परिषद्, पटना

पत्रकारिता में योगदान

हिन्दी पत्रकारिता के पुरोधा आचार्य शिवपूजन सहाय 1910 से 1960 ई. तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, जैसे- 'आज', 'सन्मार्ग', 'आर्यावर्त', 'हिमालय' आदि में सारगर्भित लेख लिखते रहे। उस दौरान उन्होंने हिन्दी पत्रों और पत्रकारिता की स्थिति पर भी गंभीर टिप्पणियाँ की थीं। अपने लेखों के जरिये वे जहाँ भाषा के प्रति सजग दिखाई देते थे, वहीं पूँजीपतियों के दबाव में संपादकों के अधिकारों पर होते कुठाराघात पर चिंता भी जाहिर करते थे। अपने लेख "हिन्दी के दैनिक पत्र" में आचार्य शिवपूजन सहाय ने लिखा था कि- "लोग दैनिक पत्रों का साहित्यिक महत्व नहीं समझते, बल्कि वे उन्हें राजनीतिक जागरण का साधन मात्र समझते हैं। किंतु हमारे देश के दैनिक पत्रों ने जहाँ देश को उद्बुद्ध करने का अथक प्रयास किया है, वहीं हिन्दी प्रेमी जनता में साहित्यिक चेतना जगाने का श्रेय भी पाया है। आज प्रत्येक श्रेणी की जनता बड़ी लगन और उत्सुकता से दैनिक पत्रों को पढ़ती है। दैनिक पत्रों की दिनोंदिन बढ़ती हुई लोकप्रियता हिन्दी के हित साधन में बहुत सहायक हो रही है। आज हमें हर बात में दैनिक पत्रों की सहायता आवश्यक जान पड़ती है। भाषा और साहित्य की उन्नति में भी दैनिक पत्रों से बहुत सहारा मिल सकता है।"[1]

शिवपूजन सहाय का यह भी कहना था कि "भारत की साधारण जनता तक पहुँचने के लिए दैनिक पत्र ही सर्वोत्तम साधन हैं। देश-देशांतर के समाचारों के साथ भाषा और साहित्य का संदेश भी दैनिक पत्रों द्वारा आसानी से जनता तक पहुँचा सकते हैं और पहुँचाते आये हैं। कुछ दैनिक पत्र तो प्रति सप्ताह अपना एक विशेष संस्करण भी निकालते हैं, जिसमें कितने ही साप्ताहिकों और मासिकों से भी अच्छी साहित्यिक सामग्री रहती है। दैनिक पत्रों द्वारा हम रोज-ब-रोज की राजनीतिक प्रगति का विस्तृत विवरण ही नहीं पाते, बल्कि समाज की वैचारिक स्थितियों का विवरण भी पाते हैं। हालांकि कभी-कभी कुछ साहित्यिक समाचारों को पढ़कर ही संतोष कर लेते हैं। भाषा और साहित्य से संबंध रखने वाली बहुत कुछ ऐसी समस्याएँ हैं, जिनकी ओर जनता का ध्यान आकृष्ट करने की बड़ी आवश्यकता है, किंतु यह काम दैनिक पत्रों ने शायद उन साप्ताहिकों व मासिकों पर छोड़ दिया है, जिनकी पहुँच व पैठ जनता में आज उतनी नहीं है, जितनी दैनिक पत्रों की। दैनिक पत्र आजकल नित्य के अन्न-जल की भांति जनता के जीवन के अंग बनते जा रहे हैं। यद्यपि ये पत्र भाषा-साहित्य संबंधी प्रश्नों को भी जनता के सामने रोज-रोज रखते जाते, तो निश्चित रूप से कितने ही अभाव दूर हो जाते।"

सम्मान

शिवपूजन सहाय को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए सन 1960 ई. में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया था।

निधन

एक कहानीकार, सम्पादक और पत्रकार के रुप में विशिष्ट स्थान बनाने वाले इस महान् साहित्यकार का निधन 21 जनवरी, 1963 में पटना, बिहार में हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पूँजीवादी मनोवृत्ति और पत्रकार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 13 मई, 2013।

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