"ग्यारहवीं लोकसभा (1996)": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replace - "श्रृंखला" to "शृंखला")
छो (Text replacement - "शृंखला" to "श्रृंखला")
 
(एक दूसरे सदस्य द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
वर्ष [[1996]] में हुए ग्यारहवीं लोकसभा चुनावों के परिणामस्वरूप त्रिशंकु संसद का गठन हुआ। देश में दो वर्ष तक राजनीतिक अस्थिरता का दौर रहा और तीन [[प्रधानमंत्री]] बने। प्रधानमंत्री [[पी. वी. नरसिंह राव]] की कांग्रेस (आई) सरकार ने सुधारों की एक शृंखला को लागू किया। इससे विदेशी निवेशकों के लिए देश की अर्थव्यवस्था के द्वार खुल गए। पी. वी. नरसिंह राव के समर्थकों ने उन्हें देश की अर्थव्यवस्था को बचाने और देश की विदेश नीति को तेज़ी देने का श्रेय दिया। हालाँकि उनकी सरकार [[अप्रैल]] से [[मई]] में चुनाव से पहले ही अनिश्चित और कमज़ोर स्थिति में थी।
वर्ष [[1996]] में हुए ग्यारहवीं लोकसभा चुनावों के परिणामस्वरूप त्रिशंकु संसद का गठन हुआ। देश में दो वर्ष तक राजनीतिक अस्थिरता का दौर रहा और तीन [[प्रधानमंत्री]] बने। प्रधानमंत्री [[पी. वी. नरसिंह राव]] की कांग्रेस (आई) सरकार ने सुधारों की एक श्रृंखला को लागू किया। इससे विदेशी निवेशकों के लिए देश की अर्थव्यवस्था के द्वार खुल गए। पी. वी. नरसिंह राव के समर्थकों ने उन्हें देश की अर्थव्यवस्था को बचाने और देश की विदेश नीति को तेज़ी देने का श्रेय दिया। हालाँकि उनकी सरकार [[अप्रैल]] से [[मई]] में चुनाव से पहले ही अनिश्चित और कमज़ोर स्थिति में थी।
{{tocright}}
{{tocright}}
==मुख्य प्रतिद्वंद्वी==
==मुख्य प्रतिद्वंद्वी==
पार्टी के प्रमुख नेता अर्जुन सिंह और नारायण दत्त तिवारी ने [[मई]], [[1995]] में [[कांग्रेस]] छोड़ दी। उन्होंने अपनी अलग पार्टी का गठन कर लिया। हर्षद मेहता घोटाला, राजनीति के अपराधीकरण पर वोहरा की रिपोर्ट, जैन हवाला कांड और तंदूर हत्याकांड जैसे मामलों ने नरसिंह राव सरकार की विश्वसनीयता को धूमिल किया। [[भारतीय जनता पार्टी]] तथा उसके सहयोगी दल और संयुक्त मोर्चा, वाम मोर्चा और जनता दल का गठबंधन, चुनावों में कांग्रेस के मुख्य प्रतिद्वंद्वी थे। अपने तीन सप्ताह के चुनावी अभियान के दौरान नरसिंह राव ने अपने द्वारा लागू किए गए आर्थिक सुधारों को मुद्दा बनाकर मतदाताओं को आकर्षित किया, जबकि दूसरी ओर [[भाजपा]] ने हिन्दुत्व का मुद्दा उठाया और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की।  
पार्टी के प्रमुख नेता अर्जुन सिंह और [[नारायण दत्त तिवारी]] ने [[मई]], [[1995]] में [[कांग्रेस]] छोड़ दी। उन्होंने अपनी अलग पार्टी का गठन कर लिया। हर्षद मेहता घोटाला, राजनीति के अपराधीकरण पर वोहरा की रिपोर्ट, जैन हवाला कांड और तंदूर हत्याकांड जैसे मामलों ने नरसिंह राव सरकार की विश्वसनीयता को धूमिल किया। [[भारतीय जनता पार्टी]] तथा उसके सहयोगी दल और संयुक्त मोर्चा, वाम मोर्चा और जनता दल का गठबंधन, चुनावों में कांग्रेस के मुख्य प्रतिद्वंद्वी थे। अपने तीन सप्ताह के चुनावी अभियान के दौरान नरसिंह राव ने अपने द्वारा लागू किए गए आर्थिक सुधारों को मुद्दा बनाकर मतदाताओं को आकर्षित किया, जबकि दूसरी ओर [[भाजपा]] ने हिन्दुत्व का मुद्दा उठाया और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की।  
==तीन प्रधानमंत्री==
==तीन प्रधानमंत्री==
इस लोकसभा चुनाव में मतदाता किसी भी पार्टी से प्रभावित नहीं लगते थे। भाजपा ने 161 सीटें जीतीं और कांग्रेस ने 140। [[राष्ट्रपति]] ने [[अटल बिहारी वाजपेयी]] को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया, क्योंकि वे [[संसद]] में सबसे बड़ी पार्टी के मुखिया थे। अटल बिहारी वाजपेयी ने [[16 मई]] को [[प्रधानमंत्री]] का पद संभाला और संसद में क्षेत्रीय दलों से समर्थन पाने की कोशिश की। लेकिन अपने इस कार्य में वे विफल रहे और केवल 13 दिनों के बाद ही उन्हें पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। जनता दल के नेता [[एच. डी. देवेगौडा]] ने [[1 जून]] को एक संयुक्त मोर्चा गठबंधन सरकार का गठन किया। लेकिन उनकी सरकार भी 18 महीने ही चली। देवेगौड़ा के कार्यकाल में ही विदेश मंत्री रहे [[इन्द्र कुमार गुजराल]] ने अगले प्रधानमंत्री के रूप में [[अप्रैल]], [[1997]] में पदभार संभाला, जब [[कांग्रेस]] बाहर से एक नई संयुक्त मोर्चा सरकार का समर्थन करने के लिए राजी हो गई। किंतु इन्द्र कुमार गुजराल केवल कामचलाऊ व्यवस्था के रूप में ही थे। वर्ष [[1998]] में फिर से चुनाव होना लगभग निश्चित था।
इस लोकसभा चुनाव में मतदाता किसी भी पार्टी से प्रभावित नहीं लगते थे। भाजपा ने 161 सीटें जीतीं और कांग्रेस ने 140। [[राष्ट्रपति]] ने [[अटल बिहारी वाजपेयी]] को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया, क्योंकि वे [[संसद]] में सबसे बड़ी पार्टी के मुखिया थे। अटल बिहारी वाजपेयी ने [[16 मई]] को [[प्रधानमंत्री]] का पद संभाला और संसद में क्षेत्रीय दलों से समर्थन पाने की कोशिश की। लेकिन अपने इस कार्य में वे विफल रहे और केवल 13 दिनों के बाद ही उन्हें पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। जनता दल के नेता [[एच. डी. देवेगौडा]] ने [[1 जून]] को एक संयुक्त मोर्चा गठबंधन सरकार का गठन किया। लेकिन उनकी सरकार भी 18 महीने ही चली। देवेगौड़ा के कार्यकाल में ही विदेश मंत्री रहे [[इन्द्र कुमार गुजराल]] ने अगले प्रधानमंत्री के रूप में [[अप्रैल]], [[1997]] में पदभार संभाला, जब [[कांग्रेस]] बाहर से एक नई संयुक्त मोर्चा सरकार का समर्थन करने के लिए राजी हो गई। किंतु इन्द्र कुमार गुजराल केवल कामचलाऊ व्यवस्था के रूप में ही थे। वर्ष [[1998]] में फिर से चुनाव होना लगभग निश्चित था।
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{भारत में चुनाव}}{{ग्यारहवीं लोकसभा सांसद}}
{{भारत में चुनाव}}{{ग्यारहवीं लोकसभा सांसद}}
[[Category:लोकसभा]][[Category:भारत सरकार]][[Category:भारत गणराज्य संरचना]]
[[Category:लोकसभा]][[Category:भारत सरकार]]
[[Category:गणराज्य संरचना कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

11:41, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

वर्ष 1996 में हुए ग्यारहवीं लोकसभा चुनावों के परिणामस्वरूप त्रिशंकु संसद का गठन हुआ। देश में दो वर्ष तक राजनीतिक अस्थिरता का दौर रहा और तीन प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंह राव की कांग्रेस (आई) सरकार ने सुधारों की एक श्रृंखला को लागू किया। इससे विदेशी निवेशकों के लिए देश की अर्थव्यवस्था के द्वार खुल गए। पी. वी. नरसिंह राव के समर्थकों ने उन्हें देश की अर्थव्यवस्था को बचाने और देश की विदेश नीति को तेज़ी देने का श्रेय दिया। हालाँकि उनकी सरकार अप्रैल से मई में चुनाव से पहले ही अनिश्चित और कमज़ोर स्थिति में थी।

मुख्य प्रतिद्वंद्वी

पार्टी के प्रमुख नेता अर्जुन सिंह और नारायण दत्त तिवारी ने मई, 1995 में कांग्रेस छोड़ दी। उन्होंने अपनी अलग पार्टी का गठन कर लिया। हर्षद मेहता घोटाला, राजनीति के अपराधीकरण पर वोहरा की रिपोर्ट, जैन हवाला कांड और तंदूर हत्याकांड जैसे मामलों ने नरसिंह राव सरकार की विश्वसनीयता को धूमिल किया। भारतीय जनता पार्टी तथा उसके सहयोगी दल और संयुक्त मोर्चा, वाम मोर्चा और जनता दल का गठबंधन, चुनावों में कांग्रेस के मुख्य प्रतिद्वंद्वी थे। अपने तीन सप्ताह के चुनावी अभियान के दौरान नरसिंह राव ने अपने द्वारा लागू किए गए आर्थिक सुधारों को मुद्दा बनाकर मतदाताओं को आकर्षित किया, जबकि दूसरी ओर भाजपा ने हिन्दुत्व का मुद्दा उठाया और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की।

तीन प्रधानमंत्री

इस लोकसभा चुनाव में मतदाता किसी भी पार्टी से प्रभावित नहीं लगते थे। भाजपा ने 161 सीटें जीतीं और कांग्रेस ने 140। राष्ट्रपति ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया, क्योंकि वे संसद में सबसे बड़ी पार्टी के मुखिया थे। अटल बिहारी वाजपेयी ने 16 मई को प्रधानमंत्री का पद संभाला और संसद में क्षेत्रीय दलों से समर्थन पाने की कोशिश की। लेकिन अपने इस कार्य में वे विफल रहे और केवल 13 दिनों के बाद ही उन्हें पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। जनता दल के नेता एच. डी. देवेगौडा ने 1 जून को एक संयुक्त मोर्चा गठबंधन सरकार का गठन किया। लेकिन उनकी सरकार भी 18 महीने ही चली। देवेगौड़ा के कार्यकाल में ही विदेश मंत्री रहे इन्द्र कुमार गुजराल ने अगले प्रधानमंत्री के रूप में अप्रैल, 1997 में पदभार संभाला, जब कांग्रेस बाहर से एक नई संयुक्त मोर्चा सरकार का समर्थन करने के लिए राजी हो गई। किंतु इन्द्र कुमार गुजराल केवल कामचलाऊ व्यवस्था के रूप में ही थे। वर्ष 1998 में फिर से चुनाव होना लगभग निश्चित था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख