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'''केशव चन्द्र सेन''' (जन्म: [[19 नवम्बर]], 1838; मृत्यु: [[8 जनवरी]], [[1884]]) एक प्रसिद्ध धार्मिक व सामाजिक सुधारक, जो '[[ब्रह्म समाज]]' के संस्थापकों में से एक थे। केशवचन्द्र सेन ने ही [[आर्यसमाज]] के संस्थापक [[स्वामी दयानन्द सरस्वती]] को सलाह दी थी की वे [[सत्यार्थ प्रकाश]] की रचना हिन्दी में करें।
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'''केशव चन्द्र सेन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Keshab Chandra Sen'', जन्म- [[19 नवम्बर]], 1838, [[कलकत्ता]], [[पश्चिम बंगाल]], ब्रिटिश भारत; मृत्यु- [[8 जनवरी]], [[1884]], [[कलकत्ता]], बंगाल प्रेसीडेंसी) एक प्रसिद्ध धार्मिक व सामाज सुधारक, जो '[[ब्रह्मसमाज]]' के संस्थापकों में से एक थे। वे बड़े तीव्र बुद्धि, तार्किक और विद्वान् युवक थे। उन्होंने उत्साहपूर्वक समाज को संगठित करना प्रारम्भ किया और इस कारण वे शीघ्र ही आचार्य पद पर नियुक्त हो गये। केशव चन्द्र सेन ने ही [[आर्य समाज]] के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती को सलाह दी थी की वे '[[सत्यार्थ प्रकाश]]' की रचना [[हिन्दी]] में करें। केशव चन्द्र सेन और स्वामीजी के विचार आपस में नहीं मिलते थे, जिस कारण ब्रह्म समाज का विभाजन 'आदि ब्रह्मसमाज' और 'भारतीय ब्रह्मसमाज' में हो गया।
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
केशवचंद्र सेन का जन्म 19 नवंबर, 1838 को [[कोलकाता]] में हुआ था। उनके पिता का नाम प्यारेमोहन था, वह प्रसिद्ध वैष्णव एवं विद्वान दीवान रामकमल के पुत्र थे। केशवचंद्र के आकर्षक व्यक्तित्व ने ही ब्रह्मसमाज आंदोलन को स्फूर्ति प्रदान की थी। उन्होंने भारत के शैक्षिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक पुनर्जन्म में चिर स्थायी योगदान दिया। [[1866]] में केशवचंद्र ने 'भारतवर्षीय ब्रह्मसमाज' की स्थापना की। इसे देख देवेंद्रनाथ ने अपने समाज का नाम भी आदि ब्रह्मसमाज रख दिया था।
केशव चन्द्र सेन का जन्म 19 नवंबर, 1838 को [[कलकत्ता]] (आधुनिक कोलकाता), ब्रिटिश भारत में हुआ था। उनके [[पिता]] का नाम प्यारेमोहन था। वह प्रसिद्ध [[वैष्णव]] एवं विद्वान् दीवान रायकमल सेन के पुत्र थे। रायकमल सेन बंगाल की एशियाटिक सोसायटी के मंत्री नियुक्त होने वाले पहले भारतीय थे। जब केशव चन्द्र सेन मात्र दस वर्ष के बालक ही थे, तभी इनके पिता का निधन हो गया था। ऐसे में इनके चाचा ने इन्हें पाला। केशव चन्द्र के आकर्षक व्यक्तित्व ने ही ब्रह्मसमाज आंदोलन को स्फूर्ति प्रदान की थी। उन्होंने [[भारत]] के शैक्षिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक पुनर्जन्म में चिर स्थायी योगदान दिया। [[1866]] में केशव चन्द्र ने 'भारतीय ब्रह्मसमाज' की स्थापना की। इसे देखकर देवेंद्रनाथ ने अपने समाज का नाम भी आदि ब्रह्मसमाज रख दिया था।
 
====आचार्य का पद====
बाल्यावस्था से ही केशव चन्द्र का उच्च आध्यात्मिक जीवन था। वे बड़े तीव्र बुद्धि, तार्किक और विद्वान् युवक थे। महर्षि देवेन्द्रनाथ को वे [[ब्रह्मसमाज]] के लिए बड़े उपयोगी जान पड़े। [[1857]] में वे ब्रह्मसमाज में सम्मिलित हो गये। उन्होंने उत्साहपूर्वक समाज को संगठित करना प्रारम्भ किया और इस कारण महर्षि के कृपापात्र होकर वे शीघ्र ही उसके आचार्य पद पर नियुक्त हो गये, परन्तु केशव बाबू का आना ब्रह्म समाज के संगठन और स्वरूप के लिए अभिशाप बन गया। महर्षि देवेन्द्रनाथ और केशवबाबू के विचार नहीं मिलते थे, परिणामत: ब्रह्मसमाज का विभाजन हो गया। मूल ब्रह्मसमाज 'आदि ब्रह्मसमाज' के नाम से जाना जाने लगा और केशवबाबू का नवगठित समाज 'भारतवर्षीय ब्रह्मसमाज' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।<ref name="aa">{{cite web |url=http://www.aryasamajindore.com/index.php/arya-bharat-2 |title=भाग्य विधाता महर्षि दयानंद सरस्वती- 2|accessmonthday= 07 नवम्बर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
==योगदान==
केशव चन्द्र के प्रेरक नेतृत्व में [[भारत]] का [[ब्रह्मसमाज]] देश की एक महती शक्ति बन गया। इसकी विस्तृताधारीय सर्वव्याप्ति की अभिव्यक्ति श्लोक संग्रह में हुई, जो एक अपूर्व संग्रह है तथा सभी राष्ट्रों एवं सभी युगों के धर्म ग्रंथों में अपने प्रकार की प्रथम कृति है। सर्वांग उपासना की दीक्षा केशव चन्द्र द्वारा ही गई, जिसके भीतर उद्बोधन, आराधना, ध्यान, साधारण प्रार्थना, तथा शांतिवाचन, पाठ एवं उपदेश प्रार्थना का समावेश है। सभी भक्तों के लिए यह उनका अमूल्य दान है। धर्मतत्व ने तत्कालीन दार्शनिक विचारधारा को नवीन रूप दिया। [[1870]] में केशव चन्द्र ने [[इंग्लैंड]] की यात्रा की। इस यात्रा से पूर्व तथा पश्चिम एक दूसरे के निकट आए तथा अंतरराष्ट्रीय एकता का मार्ग प्रशस्त हुआ। [[1875]] में केशव चन्द्र ने ईश्वर के नीवन स्वरूप-नव विधान समरूप धर्म<ref>औपचारिक रूप से 1880 में घोषित</ref> नवीन धर्म की संपूर्णता का संदेश दिया।
==ईसाइयत के प्रति प्रेम==
केशव चन्द्र सेन की शिक्षा-दीक्षा पाश्चात्य संस्कारों के साथ हुई थी। स्वभावत: ईसाइयत के प्रति उनमें अपार उत्साह था। वे ईसा को [[एशिया]] का महापुरुष ही नहीं, समस्त मानव जाति का त्राता मानते थे और अपने अनुयायियों को [[ईसाई धर्म|ईसाई मत]] की धार्मिक एवं आचार मूलक शिक्षाओं को खुलेआम अपनाने की प्रेरणा देते थे। ‘Prophets of New India’ नामक पुस्तक में रोम्यॉं रोलॉं लिखते हैं- "Keshab Chandra Sen ran counter to the rising tide of national conciousness then feverishly awakening" अर्थात्‌ केशवचन्द्र सेन देश में बड़ी तेज़ीसे उभरती हुई राष्ट्रीय चेतना के विरुद्ध दौड़े। जब नेता में ही देशभक्ति की भावना न हो तो उसके अनुयायियों का क्या कहना ! वस्तुत: केशव बाबू के अपने कोई सिद्धान्त नहीं थे। [[हिन्दू धर्म]] की मान्यताओं को नकारने के कारण उनके द्वार सबके लिए खुले थे। किन्तु वे पूरी तरह ईसाइयत के [[रंग]] में रंगे हुए थे और इस कारण [[ब्रह्मसमाज]] को ईसाई समाज का भारतीय संस्करण बनाना चाहते थे। अपनी प्रखर बुद्धि तथा ओजस्वी वाणी के कारण वे [[बंगाल]] में ही नहीं, समूचे देश में प्रसिद्ध हो गये थे।<ref name="aa"/>
====ब्रह्मसमाजियों की कट्टरता====
केशव चन्द्र का विधान (दैवी संव्यवहार विधि), आवेश (साकार ब्रह्म की प्रत्यक्ष प्रेरणा), तथा साधुसमागम (संतों तथा धर्मगुरुओं से आध्यात्मिक संयोग) पर विशेष बल देना ब्रह्मसमाजियों के एक दल विशेष को, जो नितांत तर्कवादी एवं कट्टर विधानवादी था, अच्छा न लगा। यह तथा केशव चन्द्र की पुत्री के [[कूचबिहार]] के महाराज के साथ [[विवाह]] विषयक मतभेद विघटन के कारण बने, जिसका परिणाम यह हुआ कि पंडित शिवनाथ शास्त्री के सशक्त नेतृत्व में [[1878]] में 'साधारण ब्रह्मसमाज' की स्थापना हुई।
====सामाजिक कार्य====
[[1870]] में इंग्लैण्ड से वापस लौटने पर केशव चन्द्र सेन ने 'इण्डियन रिफ़ोर्म ऐसोसियेशन' नामक संस्था बनाई थी। इसकी सदस्यता सभा जाति और [[धर्म]] के लोगों के लिए खुली थी। संस्था की ओर से 'सुलभ समाचार' नामक पत्र भी निकाला गया। स्त्रियों के लिए स्कूल और एक कॉलेज भी खोला गया। उनके प्रयत्न से ही [[1872]] ई. में लड़कियों की [[विवाह]] की उम्र बढ़ाने का एक कानून भी बना।
==निधन==
केशव चन्द्र सेन का निधन [[8 जनवरी]], [[1884]] को [[कोलकाता]] में हुआ।


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08:20, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

केशव चन्द्र सेन
केशव चन्द्र सेन
केशव चन्द्र सेन
पूरा नाम केशव चन्द्र सेन
जन्म 19 नवम्बर, 1838
जन्म भूमि कलकत्ता, पश्चिम बंगाल, ब्रिटिश भारत
मृत्यु 8 जनवरी, 1884
मृत्यु स्थान कलकत्ता, बंगाल प्रेसीडेंसी
अभिभावक प्यारेमोहन
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र समाज सेवा
प्रसिद्धि सामाज सुधारक
विशेष योगदान सर्वांग उपासना की दीक्षा केशव चन्द्र द्वारा ही गई, जिसके भीतर उद्बोधन, आराधना, ध्यान, साधारण प्रार्थना, तथा शांतिवाचन, पाठ एवं उपदेश प्रार्थना का समावेश है।
नागरिकता भारतीय
विशेष केशव चन्द्र सेन के प्रयत्न से ही 1872 ई. में लड़कियों की विवाह की उम्र बढ़ाने का एक कानून बना।
अन्य जानकारी इंग्लैण्ड से वापस लौटने पर केशव चन्द्र सेन ने 'इण्डियन रिफ़ोर्म ऐसोसियेशन' नामक संस्था बनाई थी। इसकी सदस्यता सभा जाति और धर्म के लोगों के लिए खुली थी।

केशव चन्द्र सेन (अंग्रेज़ी: Keshab Chandra Sen, जन्म- 19 नवम्बर, 1838, कलकत्ता, पश्चिम बंगाल, ब्रिटिश भारत; मृत्यु- 8 जनवरी, 1884, कलकत्ता, बंगाल प्रेसीडेंसी) एक प्रसिद्ध धार्मिक व सामाज सुधारक, जो 'ब्रह्मसमाज' के संस्थापकों में से एक थे। वे बड़े तीव्र बुद्धि, तार्किक और विद्वान् युवक थे। उन्होंने उत्साहपूर्वक समाज को संगठित करना प्रारम्भ किया और इस कारण वे शीघ्र ही आचार्य पद पर नियुक्त हो गये। केशव चन्द्र सेन ने ही आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती को सलाह दी थी की वे 'सत्यार्थ प्रकाश' की रचना हिन्दी में करें। केशव चन्द्र सेन और स्वामीजी के विचार आपस में नहीं मिलते थे, जिस कारण ब्रह्म समाज का विभाजन 'आदि ब्रह्मसमाज' और 'भारतीय ब्रह्मसमाज' में हो गया।

जीवन परिचय

केशव चन्द्र सेन का जन्म 19 नवंबर, 1838 को कलकत्ता (आधुनिक कोलकाता), ब्रिटिश भारत में हुआ था। उनके पिता का नाम प्यारेमोहन था। वह प्रसिद्ध वैष्णव एवं विद्वान् दीवान रायकमल सेन के पुत्र थे। रायकमल सेन बंगाल की एशियाटिक सोसायटी के मंत्री नियुक्त होने वाले पहले भारतीय थे। जब केशव चन्द्र सेन मात्र दस वर्ष के बालक ही थे, तभी इनके पिता का निधन हो गया था। ऐसे में इनके चाचा ने इन्हें पाला। केशव चन्द्र के आकर्षक व्यक्तित्व ने ही ब्रह्मसमाज आंदोलन को स्फूर्ति प्रदान की थी। उन्होंने भारत के शैक्षिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक पुनर्जन्म में चिर स्थायी योगदान दिया। 1866 में केशव चन्द्र ने 'भारतीय ब्रह्मसमाज' की स्थापना की। इसे देखकर देवेंद्रनाथ ने अपने समाज का नाम भी आदि ब्रह्मसमाज रख दिया था।

आचार्य का पद

बाल्यावस्था से ही केशव चन्द्र का उच्च आध्यात्मिक जीवन था। वे बड़े तीव्र बुद्धि, तार्किक और विद्वान् युवक थे। महर्षि देवेन्द्रनाथ को वे ब्रह्मसमाज के लिए बड़े उपयोगी जान पड़े। 1857 में वे ब्रह्मसमाज में सम्मिलित हो गये। उन्होंने उत्साहपूर्वक समाज को संगठित करना प्रारम्भ किया और इस कारण महर्षि के कृपापात्र होकर वे शीघ्र ही उसके आचार्य पद पर नियुक्त हो गये, परन्तु केशव बाबू का आना ब्रह्म समाज के संगठन और स्वरूप के लिए अभिशाप बन गया। महर्षि देवेन्द्रनाथ और केशवबाबू के विचार नहीं मिलते थे, परिणामत: ब्रह्मसमाज का विभाजन हो गया। मूल ब्रह्मसमाज 'आदि ब्रह्मसमाज' के नाम से जाना जाने लगा और केशवबाबू का नवगठित समाज 'भारतवर्षीय ब्रह्मसमाज' के नाम से प्रसिद्ध हुआ।[1]

योगदान

केशव चन्द्र के प्रेरक नेतृत्व में भारत का ब्रह्मसमाज देश की एक महती शक्ति बन गया। इसकी विस्तृताधारीय सर्वव्याप्ति की अभिव्यक्ति श्लोक संग्रह में हुई, जो एक अपूर्व संग्रह है तथा सभी राष्ट्रों एवं सभी युगों के धर्म ग्रंथों में अपने प्रकार की प्रथम कृति है। सर्वांग उपासना की दीक्षा केशव चन्द्र द्वारा ही गई, जिसके भीतर उद्बोधन, आराधना, ध्यान, साधारण प्रार्थना, तथा शांतिवाचन, पाठ एवं उपदेश प्रार्थना का समावेश है। सभी भक्तों के लिए यह उनका अमूल्य दान है। धर्मतत्व ने तत्कालीन दार्शनिक विचारधारा को नवीन रूप दिया। 1870 में केशव चन्द्र ने इंग्लैंड की यात्रा की। इस यात्रा से पूर्व तथा पश्चिम एक दूसरे के निकट आए तथा अंतरराष्ट्रीय एकता का मार्ग प्रशस्त हुआ। 1875 में केशव चन्द्र ने ईश्वर के नीवन स्वरूप-नव विधान समरूप धर्म[2] नवीन धर्म की संपूर्णता का संदेश दिया।

ईसाइयत के प्रति प्रेम

केशव चन्द्र सेन की शिक्षा-दीक्षा पाश्चात्य संस्कारों के साथ हुई थी। स्वभावत: ईसाइयत के प्रति उनमें अपार उत्साह था। वे ईसा को एशिया का महापुरुष ही नहीं, समस्त मानव जाति का त्राता मानते थे और अपने अनुयायियों को ईसाई मत की धार्मिक एवं आचार मूलक शिक्षाओं को खुलेआम अपनाने की प्रेरणा देते थे। ‘Prophets of New India’ नामक पुस्तक में रोम्यॉं रोलॉं लिखते हैं- "Keshab Chandra Sen ran counter to the rising tide of national conciousness then feverishly awakening" अर्थात्‌ केशवचन्द्र सेन देश में बड़ी तेज़ीसे उभरती हुई राष्ट्रीय चेतना के विरुद्ध दौड़े। जब नेता में ही देशभक्ति की भावना न हो तो उसके अनुयायियों का क्या कहना ! वस्तुत: केशव बाबू के अपने कोई सिद्धान्त नहीं थे। हिन्दू धर्म की मान्यताओं को नकारने के कारण उनके द्वार सबके लिए खुले थे। किन्तु वे पूरी तरह ईसाइयत के रंग में रंगे हुए थे और इस कारण ब्रह्मसमाज को ईसाई समाज का भारतीय संस्करण बनाना चाहते थे। अपनी प्रखर बुद्धि तथा ओजस्वी वाणी के कारण वे बंगाल में ही नहीं, समूचे देश में प्रसिद्ध हो गये थे।[1]

ब्रह्मसमाजियों की कट्टरता

केशव चन्द्र का विधान (दैवी संव्यवहार विधि), आवेश (साकार ब्रह्म की प्रत्यक्ष प्रेरणा), तथा साधुसमागम (संतों तथा धर्मगुरुओं से आध्यात्मिक संयोग) पर विशेष बल देना ब्रह्मसमाजियों के एक दल विशेष को, जो नितांत तर्कवादी एवं कट्टर विधानवादी था, अच्छा न लगा। यह तथा केशव चन्द्र की पुत्री के कूचबिहार के महाराज के साथ विवाह विषयक मतभेद विघटन के कारण बने, जिसका परिणाम यह हुआ कि पंडित शिवनाथ शास्त्री के सशक्त नेतृत्व में 1878 में 'साधारण ब्रह्मसमाज' की स्थापना हुई।

सामाजिक कार्य

1870 में इंग्लैण्ड से वापस लौटने पर केशव चन्द्र सेन ने 'इण्डियन रिफ़ोर्म ऐसोसियेशन' नामक संस्था बनाई थी। इसकी सदस्यता सभा जाति और धर्म के लोगों के लिए खुली थी। संस्था की ओर से 'सुलभ समाचार' नामक पत्र भी निकाला गया। स्त्रियों के लिए स्कूल और एक कॉलेज भी खोला गया। उनके प्रयत्न से ही 1872 ई. में लड़कियों की विवाह की उम्र बढ़ाने का एक कानून भी बना।

निधन

केशव चन्द्र सेन का निधन 8 जनवरी, 1884 को कोलकाता में हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 भाग्य विधाता महर्षि दयानंद सरस्वती- 2 (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 07 नवम्बर, 2013।
  2. औपचारिक रूप से 1880 में घोषित

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