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'''श्यामा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shyama'', मूल नाम- 'ख़ुर्शीद अख़्तर', जन्म- [[12 जून]], [[1935]], [[लाहौर]]) भारतीय सिनेमा की प्रसिद्ध अभिनेत्रियों में से एक थीं। सन [[1950]] के दशक की मशहूर अभिनेत्री श्यामा का नाम सुनते ही आज भी उस दौर के [[हिंदी सिनेमा]] के चाहने वालों के ज़हन में एक बेहद ख़ूबसूरत, चुलबुली और बेहतरीन अभिनेत्री का चेहरा कौंध उठता है; लेकिन ज़्यादातर लोग शायद ही इस बात से परिचित होंगे कि अभिनेत्री बनने से पहले श्यामा क़रीब 50 फ़िल्मों में बाल और अतिरिक्त कलाकार के तौर पर छोटे-मोटे रोल कर चुकी थीं। | {{श्यामा विषय सूची}} | ||
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|चित्र का नाम=श्यामा | |||
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|प्रसिद्ध नाम=श्यामा | |||
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|मुख्य फ़िल्में='श्रीमतीजी', 'आरपार', 'हथियार', 'खेल खिलाड़ी का', 'अज़नबी', 'हनीमून', 'मिलन', 'बरसात की रात', 'भाभी' आदि। | |||
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'''श्यामा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Shyama'', मूल नाम- 'ख़ुर्शीद अख़्तर', जन्म- [[12 जून]], [[1935]], [[लाहौर]]) [[भारतीय सिनेमा]] की प्रसिद्ध [[अभिनेत्री|अभिनेत्रियों]] में से एक थीं। सन [[1950]] के दशक की मशहूर अभिनेत्री श्यामा का नाम सुनते ही आज भी उस दौर के [[हिंदी सिनेमा]] के चाहने वालों के ज़हन में एक बेहद ख़ूबसूरत, चुलबुली और बेहतरीन अभिनेत्री का चेहरा कौंध उठता है; लेकिन ज़्यादातर लोग शायद ही इस बात से परिचित होंगे कि अभिनेत्री बनने से पहले श्यामा क़रीब 50 फ़िल्मों में बाल और अतिरिक्त कलाकार के तौर पर छोटे-मोटे रोल कर चुकी थीं। | |||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
अभिनेत्री श्यामा का जन्म 12 जून सन 1935 को लाहौर, [[पाकिस्तान]] में हुआ था। उनका वास्तविक नाम ख़ुर्शीद अख़्तर था। उनके अब्बा [[फल|फलों]] के कारोबारी थे। श्यामा महज़ दो साल की थीं, जब उनके अब्बा कारोबार के सिलसिले में लाहौर छोड़कर [[परिवार]] के साथ [[मुंबई]] चले आए थे। नौ भाई-बहनों में वह सबसे छोटी थीं। एक मुलाक़ात के दौरान श्यामा ने बताया था कि फ़िल्में उन्हें आकर्षित तो करती थीं, लेकिन उस जमाने की सामाजिक सोच को देखते हुए फ़िल्मों में काम करने की बात वह सोच भी नहीं सकती थीं। इसके बावजूद उनका इस क्षेत्र में आना महज़ इत्तेफ़ाक़ ही था, जिसे लेकर घर में और ख़ासतौर से अब्बा की तरफ़ से थोड़ा-बहुत विरोध भी हुआ था। लेकिन वह विरोध ज़्यादा दिन तक नहीं टिक पाया। | {{main|श्यामा का परिचय}} | ||
== | अभिनेत्री श्यामा का जन्म 12 जून सन 1935 को लाहौर, [[पाकिस्तान]] में हुआ था। उनका वास्तविक नाम ख़ुर्शीद अख़्तर था। उनके अब्बा [[फल|फलों]] के कारोबारी थे। श्यामा महज़ दो साल की थीं, जब उनके अब्बा कारोबार के सिलसिले में लाहौर छोड़कर [[परिवार]] के साथ [[मुंबई]] चले आए थे। नौ भाई-बहनों में वह सबसे छोटी थीं। एक मुलाक़ात के दौरान श्यामा ने बताया था कि फ़िल्में उन्हें आकर्षित तो करती थीं, लेकिन उस जमाने की सामाजिक सोच को देखते हुए फ़िल्मों में काम करने की बात वह सोच भी नहीं सकती थीं। इसके बावजूद उनका इस क्षेत्र में आना महज़ इत्तेफ़ाक़ ही था, जिसे लेकर घर में और ख़ासतौर से अब्बा की तरफ़ से थोड़ा-बहुत विरोध भी हुआ था। लेकिन वह विरोध ज़्यादा दिन तक नहीं टिक पाया। श्यामा का बड़ा बेटा फ़ारूख़ मिस्त्री विज्ञापन जगत का मशहूर कैमरामैन है तो छोटा बेटा [[इंग्लैंड]] में रहता है।<ref>{{cite web |url=http://beetehuedin.blogspot.in/2012/11/lehraye-jiya-bal-khaye-jiya-shyama.html |title=श्यामा|accessmonthday=11 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=beetehuedin.blogspot.in |language=हिन्दी }}</ref> | ||
==कॅरियर== | |||
{{main|श्यामा का फ़िल्मी कॅरियर}} | |||
[[चित्र:Shyama's-Birthday-Party-in-2008.jpg|thumb|left|250px|[[श्यामा|अभिनेत्री श्यामा]] के जन्मदिन पर<br /> | |||
ऊपर से बाईं ओर- [[जबीन जलील]], सुनीता प्रसाद, [[अज़रा]], निशि, [[शशिकला]], [[निम्मी]], यासमिन<br /> | |||
नीचे से बाईं ओर- बेगम पारा, [[श्यामा]], [[सितारा देवी]]]] | |||
श्यामा ने [[1946]] में रिलीज़ हुई ‘घूंघट’, ‘नई मां’ और ‘निशाना’ जैसी कुछ शुरुआती फ़िल्मों में ख़ुर्शीद (जूनियर) और बेबी ख़ुर्शीद के नाम से काम किया। लेकिन चूंकि उस ज़माने में इसी नाम की एक बहुत बड़ी स्टार पहले से फ़िल्मों में काम कर रही थीं, इसलिए उन्हें अपना नाम बदलकर 'बेबी श्यामा' रख लेना पड़ा। अगले छह सालों में श्यामा ने ‘बीते दिन’, ‘मीराबाई’, मेहंदी’, ‘परवाना’, ‘रामबाण’, ‘अनमोल मोती’, ‘बेगुनाह’, ‘चार दिन’, जागृति’, ‘जलतरंग’, ‘जीत’, ‘नाच’, ‘नमूना’, ‘पतंगा’, ‘सावन भादों’, ‘शबनम’, ‘शायर’, ‘आहुति’, ‘नीली’, सबक’ ‘सरताज’, वफ़ा, ‘नज़राना’, सज़ा’, ‘तराना’, जैसी क़रीब 50 फ़िल्मों में छोटे-छोटे रोल किए और फिर साल [[1952]] में बनी फ़िल्म ‘श्रीमतीजी’ में वह पहली बार अभिनेत्री के तौर पर नज़र आयीं। | श्यामा ने [[1946]] में रिलीज़ हुई ‘घूंघट’, ‘नई मां’ और ‘निशाना’ जैसी कुछ शुरुआती फ़िल्मों में ख़ुर्शीद (जूनियर) और बेबी ख़ुर्शीद के नाम से काम किया। लेकिन चूंकि उस ज़माने में इसी नाम की एक बहुत बड़ी स्टार पहले से फ़िल्मों में काम कर रही थीं, इसलिए उन्हें अपना नाम बदलकर 'बेबी श्यामा' रख लेना पड़ा। अगले छह सालों में श्यामा ने ‘बीते दिन’, ‘मीराबाई’, मेहंदी’, ‘परवाना’, ‘रामबाण’, ‘अनमोल मोती’, ‘बेगुनाह’, ‘चार दिन’, जागृति’, ‘जलतरंग’, ‘जीत’, ‘नाच’, ‘नमूना’, ‘पतंगा’, ‘सावन भादों’, ‘शबनम’, ‘शायर’, ‘आहुति’, ‘नीली’, सबक’ ‘सरताज’, वफ़ा, ‘नज़राना’, सज़ा’, ‘तराना’, जैसी क़रीब 50 फ़िल्मों में छोटे-छोटे रोल किए और फिर साल [[1952]] में बनी फ़िल्म ‘श्रीमतीजी’ में वह पहली बार अभिनेत्री के तौर पर नज़र आयीं। | ||
==फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार== | ==फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार== | ||
श्यामा के | श्यामा के मुताबिक़़ उन्होंने कभी भी अपने कॅरियर को प्लान नहीं किया। जो भी अच्छे रोल उन्हें मिलते रहे, वह उन्हें निभाती चली गयीं। [[1957]] में रिलीज़ हुई कुल 11 फ़िल्मों में से सात में वह नायिका थीं तो बाक़ी चार में सहनायिका और चरित्र अभिनेत्री। फ़िल्म ‘शारदा’ में उन्होंने अपनी हमउम्र [[मीना कुमारी]] की मां की भूमिका निभाने से भी परहेज़ नहीं किया। उस भूमिका के लिए श्यामा को [[1957]] का सर्वश्रेष्ठ सहनायिका का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था। | ||
==प्रमुख फ़िल्में== | |||
{{main|श्यामा की प्रमुख फ़िल्में}} | |||
[[1961]] से अगले 3 दशकों के दौरान श्यामा ने ‘दुनिया झुकती है’, ‘बहुरानी’, ‘गुमराह’, ‘जी चाहता है’, ‘जानवर’, ‘दिल दिया दर्द लिया’, ‘आग’, ‘मिलन’, ‘बालक’, ‘मस्ताना’, ‘सावन भादों’, ‘गोमती के किनारे’, ‘प्रभात’, ‘नया दिन नयी रात’, ‘चैताली’, ‘खेल खेल में’, ‘जिनी और जॉनी’, ‘खेल खिलाड़ी का’, ‘हक़दार’, ‘मोहब्बत’, ‘मेरा करम मेरा धरम’ और ‘प्यासे नैना’ जैसी कुल 60 फ़िल्मों में काम किया। उनका कहना था कि- "बढ़ती उम्र के साथ-साथ स्टैमिना ख़त्म होने लगा था। मैं बहुत जल्दी थकने लगी थी। इससे पहले कि लोग कहते, श्यामा से अब काम नहीं होता, मुझे रिटायर हो जाना बेहतर लगा। [[1989]] में रिलीज़ हुई [[जे.पी. दत्ता]] की फ़िल्म ‘हथियार’ मेरी आख़िरी फ़िल्म साबित हुई।" | |||
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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श्यामा
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पूरा नाम | ख़ुर्शीद अख़्तर (मूल नाम) |
प्रसिद्ध नाम | श्यामा |
जन्म | 12 जून, 1935 |
जन्म भूमि | लाहौर |
पति/पत्नी | फ़ली मिस्त्री |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | हिन्दी सिनेमा |
मुख्य फ़िल्में | 'श्रीमतीजी', 'आरपार', 'हथियार', 'खेल खिलाड़ी का', 'अज़नबी', 'हनीमून', 'मिलन', 'बरसात की रात', 'भाभी' आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | 'फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार' (1957) |
प्रसिद्धि | अभिनेत्री |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | फ़िल्म ‘शारदा’ में श्यामा ने अपनी हमउम्र मीना कुमारी की मां की भूमिका निभाने से भी परहेज़ नहीं किया। उस भूमिका के लिए श्यामा को 1957 का सर्वश्रेष्ठ सहनायिका का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था। |
श्यामा (अंग्रेज़ी: Shyama, मूल नाम- 'ख़ुर्शीद अख़्तर', जन्म- 12 जून, 1935, लाहौर) भारतीय सिनेमा की प्रसिद्ध अभिनेत्रियों में से एक थीं। सन 1950 के दशक की मशहूर अभिनेत्री श्यामा का नाम सुनते ही आज भी उस दौर के हिंदी सिनेमा के चाहने वालों के ज़हन में एक बेहद ख़ूबसूरत, चुलबुली और बेहतरीन अभिनेत्री का चेहरा कौंध उठता है; लेकिन ज़्यादातर लोग शायद ही इस बात से परिचित होंगे कि अभिनेत्री बनने से पहले श्यामा क़रीब 50 फ़िल्मों में बाल और अतिरिक्त कलाकार के तौर पर छोटे-मोटे रोल कर चुकी थीं।
परिचय
अभिनेत्री श्यामा का जन्म 12 जून सन 1935 को लाहौर, पाकिस्तान में हुआ था। उनका वास्तविक नाम ख़ुर्शीद अख़्तर था। उनके अब्बा फलों के कारोबारी थे। श्यामा महज़ दो साल की थीं, जब उनके अब्बा कारोबार के सिलसिले में लाहौर छोड़कर परिवार के साथ मुंबई चले आए थे। नौ भाई-बहनों में वह सबसे छोटी थीं। एक मुलाक़ात के दौरान श्यामा ने बताया था कि फ़िल्में उन्हें आकर्षित तो करती थीं, लेकिन उस जमाने की सामाजिक सोच को देखते हुए फ़िल्मों में काम करने की बात वह सोच भी नहीं सकती थीं। इसके बावजूद उनका इस क्षेत्र में आना महज़ इत्तेफ़ाक़ ही था, जिसे लेकर घर में और ख़ासतौर से अब्बा की तरफ़ से थोड़ा-बहुत विरोध भी हुआ था। लेकिन वह विरोध ज़्यादा दिन तक नहीं टिक पाया। श्यामा का बड़ा बेटा फ़ारूख़ मिस्त्री विज्ञापन जगत का मशहूर कैमरामैन है तो छोटा बेटा इंग्लैंड में रहता है।[1]
कॅरियर
श्यामा ने 1946 में रिलीज़ हुई ‘घूंघट’, ‘नई मां’ और ‘निशाना’ जैसी कुछ शुरुआती फ़िल्मों में ख़ुर्शीद (जूनियर) और बेबी ख़ुर्शीद के नाम से काम किया। लेकिन चूंकि उस ज़माने में इसी नाम की एक बहुत बड़ी स्टार पहले से फ़िल्मों में काम कर रही थीं, इसलिए उन्हें अपना नाम बदलकर 'बेबी श्यामा' रख लेना पड़ा। अगले छह सालों में श्यामा ने ‘बीते दिन’, ‘मीराबाई’, मेहंदी’, ‘परवाना’, ‘रामबाण’, ‘अनमोल मोती’, ‘बेगुनाह’, ‘चार दिन’, जागृति’, ‘जलतरंग’, ‘जीत’, ‘नाच’, ‘नमूना’, ‘पतंगा’, ‘सावन भादों’, ‘शबनम’, ‘शायर’, ‘आहुति’, ‘नीली’, सबक’ ‘सरताज’, वफ़ा, ‘नज़राना’, सज़ा’, ‘तराना’, जैसी क़रीब 50 फ़िल्मों में छोटे-छोटे रोल किए और फिर साल 1952 में बनी फ़िल्म ‘श्रीमतीजी’ में वह पहली बार अभिनेत्री के तौर पर नज़र आयीं।
फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार
श्यामा के मुताबिक़़ उन्होंने कभी भी अपने कॅरियर को प्लान नहीं किया। जो भी अच्छे रोल उन्हें मिलते रहे, वह उन्हें निभाती चली गयीं। 1957 में रिलीज़ हुई कुल 11 फ़िल्मों में से सात में वह नायिका थीं तो बाक़ी चार में सहनायिका और चरित्र अभिनेत्री। फ़िल्म ‘शारदा’ में उन्होंने अपनी हमउम्र मीना कुमारी की मां की भूमिका निभाने से भी परहेज़ नहीं किया। उस भूमिका के लिए श्यामा को 1957 का सर्वश्रेष्ठ सहनायिका का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला था।
प्रमुख फ़िल्में
1961 से अगले 3 दशकों के दौरान श्यामा ने ‘दुनिया झुकती है’, ‘बहुरानी’, ‘गुमराह’, ‘जी चाहता है’, ‘जानवर’, ‘दिल दिया दर्द लिया’, ‘आग’, ‘मिलन’, ‘बालक’, ‘मस्ताना’, ‘सावन भादों’, ‘गोमती के किनारे’, ‘प्रभात’, ‘नया दिन नयी रात’, ‘चैताली’, ‘खेल खेल में’, ‘जिनी और जॉनी’, ‘खेल खिलाड़ी का’, ‘हक़दार’, ‘मोहब्बत’, ‘मेरा करम मेरा धरम’ और ‘प्यासे नैना’ जैसी कुल 60 फ़िल्मों में काम किया। उनका कहना था कि- "बढ़ती उम्र के साथ-साथ स्टैमिना ख़त्म होने लगा था। मैं बहुत जल्दी थकने लगी थी। इससे पहले कि लोग कहते, श्यामा से अब काम नहीं होता, मुझे रिटायर हो जाना बेहतर लगा। 1989 में रिलीज़ हुई जे.पी. दत्ता की फ़िल्म ‘हथियार’ मेरी आख़िरी फ़िल्म साबित हुई।"
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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