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13 जुलाई, 1932 को [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]] में जन्मीं बीना राय के [[पिता]] रेलवे में अधिकारी थे। उनके घर में सभी को फ़िल्में देखने का शौक था। बीना जी की पसन्दीदा हिरोईन ख़ुर्शीद थीं। पचास का दशक [[श्यामा]], [[नन्दा]], वैजयन्तीमाला, [[नूतन]], [[आशा पारेख]], माला सिन्हा, [[मीना कुमारी]], [[वहीदा रहमान]] और अमिता जैसी प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों के उदय का गवाह है, जिन्होंने इस दशक में बतौर नायिका कॅरियर की शुरुआत की और अपनी प्रतिभा और सौन्दर्य के बल पर आगे चलकर लाखों दर्शकों को अपना दीवाना बनाया। इन्हीं अभिनेत्रियों में शामिल थीं, निर्माता-निर्देशक किशोर साहू की | {{बीना राय विषय सूची}} | ||
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==फ़िल्मी शुरुआत== | ==फ़िल्मी शुरुआत== | ||
साल [[1950]] में उस ज़माने के मशहूर निर्माता-निर्देशक और अभिनेता किशोर साहू | साल [[1950]] में उस ज़माने के मशहूर निर्माता-निर्देशक और अभिनेता किशोर साहू फ़िल्म ‘काली घटा’ के लिये नयी अभिनेत्रियों की तलाश में थे। इस सिलसिले में उन्होंने सभी बड़े अख़बारों में विज्ञापन छपवा कर नयी प्रतिभाओं को आमन्त्रित किया था। बीना राय उस वक़्त 12वीं में पढ़ रही थीं। प्रेमकिशन जी के मुताबिक़़ बीना राय अपने भाई के साथ [[मुम्बई]] आकर किशोर साहू से मिलीं, ऑडिशन हुआ और उन्हें फ़िल्म ‘काली घटा’ की मुख्य भूमिका के लिये चुन लिया गया। ये फ़िल्म [[1951]] में प्रदर्शित हुई थी। किशोर साहू ने ही उन्हें उनके असली नाम 'कृष्णा सरीन' के स्थान पर फ़िल्मी नाम 'बीना राय' दिया। | ||
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बीना राय ने कहा था, "मैं एक परम्परागत भारतीय [[परिवार]] से आयी थी। [[माता]]-[[पिता]] के दिये [[संस्कार]] मेरे अंदर गहरायी तक जड़ें जमाये हुए थे। यही वजह थी कि एक सफल अभिनेत्री के रूप में स्थापित हो जाने के बावजूद मैंने फ़िल्मी चकाचौंध और ग्लैमर को खुद पर हावी नहीं होने दिया। विवादों से भी मैं हमेशा दूर रही। गृहस्थ जीवन की अहमियत को अच्छी तरह समझती थी, इसीलिये प्रेमनाथ जी के, शादी के प्रस्ताव को स्वीकारने में ज़रा भी देर नहीं की।" | |||
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बीना राय का परिचय
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पूरा नाम | कृष्णा सरीन (मूल नाम) |
प्रसिद्ध नाम | बीना राय |
जन्म | 13 जुलाई, 1932 |
जन्म भूमि | लखनऊ, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 6 दिसम्बर, 2009 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
पति/पत्नी | प्रेमनाथ |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | अभिनय |
मुख्य फ़िल्में | 'काली घटा', ‘शोले’, ‘मैरीन ड्राईव’, ‘चन्द्रकांता’, ‘दुर्गेशनन्दिनी’, ‘बंदी’, ‘मेरा सलाम’, ‘तलाश’, ‘घूंघट’, ‘ताजमहल’, 'औरत' और ‘दादी मां’ आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफेयर पुरस्कार (‘घूंघट’, 1960) |
प्रसिद्धि | अभिनेत्री |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | विवाह के बाद बीना राय ने पति प्रेमनाथ के साथ मिलकर ‘पी.एन.फ़िल्म्स’ के बैनर में ‘शगूफा’, ‘गोलकुण्डा का क़ैदी’ और ‘समुन्दर’ जैसी फ़िल्मों का निर्माण किया। साथ ही पति-पत्नी की इस जोड़ी ने इन फ़िल्मों में अभिनय भी किया। |
अद्यतन | 18:41, 20 जून 2017 (IST)
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13 जुलाई, 1932 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में जन्मीं बीना राय के पिता रेलवे में अधिकारी थे। उनके घर में सभी को फ़िल्में देखने का शौक था। बीना जी की पसन्दीदा हिरोईन ख़ुर्शीद थीं। पचास का दशक श्यामा, नन्दा, वैजयन्तीमाला, नूतन, आशा पारेख, माला सिन्हा, मीना कुमारी, वहीदा रहमान और अमिता जैसी प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों के उदय का गवाह है, जिन्होंने इस दशक में बतौर नायिका कॅरियर की शुरुआत की और अपनी प्रतिभा और सौन्दर्य के बल पर आगे चलकर लाखों दर्शकों को अपना दीवाना बनाया। इन्हीं अभिनेत्रियों में शामिल थीं, निर्माता-निर्देशक किशोर साहू की फ़िल्म ‘काली घटा’ (1951) से फ़िल्मोद्योग में कदम रखने वाली खूबसूरत अभिनेत्री बीना राय। 18 बरस के अपने कॅरियर में बीना राय ने सिर्फ़ अट्ठाईस फ़िल्मों में काम किया और फिर वक़्त के बदलते रुख को भांपकर शालीनता के साथ फ़िल्मोद्योग से किनारा कर लिया और फिर चार दशकों से भी ज़्यादा समय तक उन्होंने मीडिया और अपने प्रशंसकों की नज़रों से खुद को छिपाये रखा।[1]
फ़िल्मी शुरुआत
साल 1950 में उस ज़माने के मशहूर निर्माता-निर्देशक और अभिनेता किशोर साहू फ़िल्म ‘काली घटा’ के लिये नयी अभिनेत्रियों की तलाश में थे। इस सिलसिले में उन्होंने सभी बड़े अख़बारों में विज्ञापन छपवा कर नयी प्रतिभाओं को आमन्त्रित किया था। बीना राय उस वक़्त 12वीं में पढ़ रही थीं। प्रेमकिशन जी के मुताबिक़़ बीना राय अपने भाई के साथ मुम्बई आकर किशोर साहू से मिलीं, ऑडिशन हुआ और उन्हें फ़िल्म ‘काली घटा’ की मुख्य भूमिका के लिये चुन लिया गया। ये फ़िल्म 1951 में प्रदर्शित हुई थी। किशोर साहू ने ही उन्हें उनके असली नाम 'कृष्णा सरीन' के स्थान पर फ़िल्मी नाम 'बीना राय' दिया।
फ़िल्म ‘काली घटा’ की दो अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाओं के लिये जो दो और अभिनेत्रियां चुनी गयीं, वह थीं आशा माथुर और इन्दिरा पांचाल। आशा माथुर ने आगे चलकर निर्माता-निर्देशक मोहन सहगल से विवाह किया तो इन्दिरा पांचाल प्रख्यात उद्योगपति महिन्द्रा परिवार की बहू बनीं। फ़िल्म ‘काली घटा’ के बाद फ़िल्मिस्तान स्टूडियो की फ़िल्म ‘अनारकली’ (1953) ने कामयाबी के नये रिकॉर्ड बनाये। इस फ़िल्म में बीना राय के हीरो प्रदीप कुमार थे।
विवाह
निर्माता भगवानदास वर्मा की फ़िल्म ‘औरत’ (1953) प्रेमनाथ के साथ बीना राय की पहली फ़िल्म थी। आगे चलकर इस जोड़ी ने कई और फ़िल्मों में काम किया। फ़िल्म ‘औरत’ की शूटिंग के दौरान दोनों में प्यार हुआ और फ़िल्म के प्रदर्शित होने से पहले ही साल 1952 में दोनों ने शादी भी कर ली। बीना जी की बातों में बरसों तक खुद में सिमटे रहने से जन्मी झिझक को साफ़तौर पर महसूस किया जा सकता था।
बीना राय ने कहा था, "मैं एक परम्परागत भारतीय परिवार से आयी थी। माता-पिता के दिये संस्कार मेरे अंदर गहरायी तक जड़ें जमाये हुए थे। यही वजह थी कि एक सफल अभिनेत्री के रूप में स्थापित हो जाने के बावजूद मैंने फ़िल्मी चकाचौंध और ग्लैमर को खुद पर हावी नहीं होने दिया। विवादों से भी मैं हमेशा दूर रही। गृहस्थ जीवन की अहमियत को अच्छी तरह समझती थी, इसीलिये प्रेमनाथ जी के, शादी के प्रस्ताव को स्वीकारने में ज़रा भी देर नहीं की।"
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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