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10:57, 5 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण
सरदूल सिकंदर
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पूरा नाम | सरदूल सिकंदर |
जन्म | 15 जनवरी, 1961 |
जन्म भूमि | गांव खेड़ी नौद, पंजाब |
मृत्यु | 24 फ़रवरी, 2021 |
मृत्यु स्थान | चंडीगढ़, पंजाब |
अभिभावक | पिता- सागर मस्ताना |
पति/पत्नी | अमर नूरी |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | गायिकी |
मुख्य फ़िल्में | 'जग्गा डाकू', 'पुलिस इन पॉलीवुड' आदि। |
प्रसिद्धि | पंजाबी गायक व अभिनेता |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | सरदूल सिकंदर ने सिंगिंग कॅरियर में 25 से ज़्यादा अल्बम रिकॉर्ड किए। गायकी में अपने कदम जमाने के बाद उन्होंने दूसरी पारी की शुरुआत सन 1991 में आई फ़िल्म ‘जग्गा डाकू’ से की थी। |
सरदूल सिकंदर (अंग्रेज़ी: Sardool Sikander, जन्म- 15 जनवरी, 1961; मृत्यु- 24 फ़रवरी, 2021, चंडीगढ़) पंजाबी भाषा के लोक और पॉप संगीत से जुड़े प्रसिद्ध गायक तथा अभिनेता थे। सन 1980 के दशक में सरदूल सिकंदर ने अपनी पहली अलबम "रोडवेज दी लारी" निकाली थी। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने कई हिट गाने दिए। इसके अलावा फ़िल्मों में भी अपने अभिनय का लोहा मनवाया। सरदूल सिकंदर ने पंजाबी फ़िल्म 'जग्गा डाकू' में शानदार अभिनय से अपनी अभिनय कला से सबका दिल जीत लिया था।
परिचय
पंजाब का फतेहगढ़ ज़िला। उसी का छोटा सा गांव खेड़ी नौद सिंह। 15 जनवरी, 1961 में सागर मस्ताना के घर एक लड़के का जन्म हुआ। नाम रखा गया सरदूल सिकंदर। सरदूल के अलावा सागर मस्ताना के दो बड़े बेटे भी थे। गम्दूर अमन और भरपूर। गम्दूर एक सूफी सिंगर थे। वहीं, भरपूर का वास्ता रहता था तबले से। पेशे से एक तबला वादक थे। खुद इनके पिता सागर मस्ताना अपने समय के महान तबला वादकों में गिने जाते हैं। संगीत से जुड़ी क्रिएटिविटी को सिर्फ सुरों में ही नहीं उतारते थे। बल्कि, नए-नए तबले बनाने की कोशिश में भी लगे रहते थे। इसी कोशिश में एक अलग किस्म का तबला भी ईजाद किया। जिसे बारीक बांस की लड़की से भी बजाया जा सकता था।[1]
दाम्पत्य
30 जनवरी, 1993 को सरदूल सिकंदर की शादी गायिका अमर नूरी से हुई। दोनों लंबे वक्त से साथ गा रहे थे। इसी दौरान प्यार हुआ। सरदूल की तरह अमर ने भी छोटी उम्र से म्यूज़िक सीखना शुरू कर दिया था। नौ साल की उम्र में गाना शुरू किया और 13 साल की उम्र में पहली रिकॉर्डिंग की। आगे चलकर सिंगिंग की दुनिया में खूब नाम कमाया। दोनों पति-पत्नी ने साथ मिलकर कई इंटरनेशनल म्यूज़िक टूर किए। जुगलबंदी ऐसी कि दोनों के सुर लय में दौड़ते। लेकिन इनकी ये केमिस्ट्री सिर्फ स्टेज तक ही नहीं थी। रियल लाइफ में भी उतनी ही मज़बूत थी।
कुछ साल पहले ही इसका नमूना भी देखने को मिला। दरअसल, सरदूल की किडनी में खराबी की वजह से ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ी। यानि किसी को अपनी किडनी उन्हें डोनेट करनी पड़ेगी। दोस्तों, रिश्तेदारों की तरफ देखा। लेकिन सब ने चुपचाप दूरी बना ली। ऐसे मुश्किल वक्त पर करीबियों का ऐसा बर्ताव देखकर सरदूल तनाव में आ गए। चिंता होने लगी कि अब पता नहीं क्या होगा। अमर नूरी ने उन्हें हिम्मत दी। वादा किया कि जब तक मैं हूं, आपको कुछ नहीं होने दूंगी। और फिर अपनी बात साबित करके दिखाई। सरदूल का ब्लड ग्रुप ए पॉज़िटिव था। वहीं, अमर का ब्लड ग्रुप ओ पॉज़िटिव था। ओ पॉज़िटिव को यूनिवर्सल डोनर कहा जाता है। यानि कि वो ब्लड ग्रुप जो किसी को भी डोनेट कर सकता है। अमर को विश्वास था कि जहां दिल मिल सकते हैं, तो क्या किडनियां नहीं मिलेंगी। सुनने में शायद फ़िल्मी लगे। लेकिन उनका ये विश्वास सही साबित हुआ और सरदूल के लिए उन्होंने अपनी किडनी डोनेट की।[1]
संगीत शिक्षा
कहना गलत नहीं होगा कि सरदूल सिकंदर को संगीत विरासत में मिला। उनकी कई पुश्तें खुद को संगीत के प्रति समर्पित कर चुकी थीं। लेकिन सागर मस्ताना नहीं चाहते थे कि छोटा बेटा भी अपनी पूरी ज़िंदगी संगीत के नाम कर दे। कारण था उस समय में शास्त्रीय संगीत का सिकुड़ा हुआ स्कोप। आज के समय की तरह ना ही इतने संसाधन थे, और ना ही इतना पैसा। उधर, सरदूल का म्यूज़िक से सिर्फ प्यार था। उसकी ओर रुझान नहीं। चाहते थे कि बड़े होकर पायलट बनें। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। सरदूल के पिता बच्चों को संगीत सिखाते थे। सरदूल को इजाज़त नहीं थी कि वो भी साथ बैठकर सीख सकें। लेकिन मन में संगीत सीखने की इच्छा भी थी। फिर उसे तृप्त करने का जुगाड़ निकाला। जब पिता बच्चों को संगीत सिखा रहे होते, तो उस समय दीवार की आड़ लेकर खुद भी चुपचाप सुनते रहते। ये सिलसिला कई दिनों तक चला।
एक दिन पिता ने बच्चों को नई सरगम सिखाई। सब से उसे दोहराने को कहा। लेकिन एक भी बच्चा सही से नहीं दोहराया पाया। सब के जाने के बाद सरदूल उस सरगम को दोहराने की कोशिश करने लगे। तभी उनके पिता की नज़र पड़ी। सरदूल को लगा कि अब तो जमकर पिटाई होगी। पर ऐसा हुआ नहीं। पिता ने सरदूल से वही सरगम गाने को कहा। डरते-डरते सरदूल ने कोशिश की। इसके बाद पिता ने नन्हें सरदूल को गोद में उठा लिया। क्यूंकि सरदूल ने बिना किसी प्रैक्टिस के सही गाया था। पिता को बेटे का हुनर नज़र आ गया। जिसके बाद सरदूल को संगीत सीखने की इजाज़त दे दी।
संघर्ष का समय
एचएमवी उस दौर की बहुत बड़ी म्यूज़िक कंपनी थी। यानि जिस सिंगर को एचएमवी ने साइन कर लिया, उसके तो दिन फिर गए। सरदूल भी ऐसे ही सिंगर्स की लिस्ट में अपना नाम देखना चाहते थे। सरदूल सिकंदर के परिवार की आर्थिक स्थिति ज़्यादा मज़बूत नहीं थी एचएमवी का ऑफिस था दिल्ली में। जाने लायक किराये का जुगाड़ करना भी मुश्किल। थोड़ा बहुत पैसा दोस्तों से उधार ले लेते। फिर भी पूरा नहीं हो पाता। न्यूज़ पेपर वाली वैन दिल्ली तक जाती थी। सोचा कि क्यूं ना उसी से सफर किया जाए। बस के मुकाबले तो कम ही पैसे देने पड़ेंगे। लेकिन न्यूज़ पेपर वैन के साथ एक समस्या थी कि ये सुबह 4:30 बजे दिल्ली पहुंच जाती थी और एचएमवी का ऑफिस खुलता था 10 बजे के बाद। इस बीच सरदूल किसी पार्क में जाकर सो जाया करते। अक्सर गश्त पर निकली पुलिस पार्क में सोए लोगों को उठा देती। डंडे मारती। कहती कि रात को यहां सोते हो और दिन में चोरियां करते हो। पार्क में सोने से सरदूल सिकंदर को एक और नुकसान होता। कपड़े गंदे हो जाते और इन गंदे कपड़ों के साथ जब भी HMV के दफ्तर पहुंचते, तो वापस ही लौटा दिए जाते।[1]
सफलता
सरदूल सिकंदर सिर्फ बेहतरीन गले के ही धनी नहीं थे। बल्कि, वे तुम्बी भी बड़ी अच्छी बजाते थे। अक्सर तुम्बी की रिकॉर्डिंग पर भी जाया करते थे। एक ऐसे ही मौके पर करतार रमला के स्टूडियो में रिकॉर्ड कर रहे थे। रिकॉर्डिंग खत्म कर बाहर निकले और कुछ ऐसे ही गुनगुनाने लगे। उनकी आवाज़ अंदर बैठे म्यूज़िशियन के कानों में पड़ी। जो उठकर बाहर आए। सरदूल सिकंदर से पूछा कि क्या अभी तुम गा रहे थे। सरदूल को लगा कि अंदर रिकॉर्डिंग चल रही थी और उनके गाने से उसमें भंग पड़ गया। म्यूज़िशियन उन्हें सीधा चरणजीत आहूजा के पास ले गए। सरदूल के बारे में उन्हें बताया। चरणजीत ने HMV के मैनेजर को बुलाया। कहा कि इस लड़के को मौका दीजिए। मैनेजर ने साफ इनकार कर दिया। कहा कि नए लड़के के साथ रिस्क नहीं ले सकते।
इसके बाद चरणजीत आहूजा ने खुद सरदूल का पहला अल्बम रिकॉर्ड करवाया जिसका नाम था ‘रोडवेज़ दी लारी’। अल्बम रिलीज़ होते ही लोगों की ज़बान पर इसके गाने चढ़ गए। अल्बम हिट साबित हुआ। इसके लिए सरदूल को 10 हज़ार रुपए मिले। अल्बम हिट होने के बावजूद लोग सरदूल सिकंदर को नहीं पहचानते थे। वजह थी उनकी आवाज़ में वेरिएशन। ज़्यादातर लोगों को लगता था कि ये गाने किसी जमे हुए सिंगर ने गाए हैं। किसी नए सिंगर ने नहीं। लोगों का ये भ्रम भी टूटा। जब सरदूल सिकंदर दूरदर्शन जालंधर के एक प्रोग्राम में परफॉर्म करने पहुंचे। लोग अब जान गए कि ये गाने किसके हैं। उसके बाद कभी सरदूल को पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी।
अभिनय
आगे सरदूल सिकंदर के अल्बम क्लासिक बनने लगे। अपने सिंगिंग करियर में उन्होंने 25 से ज़्यादा अल्बम रिकॉर्ड किए। गायकी में अपने कदम जमाने के बाद उन्होंने दूसरी पारी की शुरुआत की एक्टिंग की दुनिया में। डेब्यू किया 1991 में आई फ़िल्म ‘जग्गा डाकू’ से। बतौर एक्टर, उनकी लास्ट फ़िल्म थी 2014 में आई ‘पुलिस इन पॉलीवुड’।[1]
मृत्यु
24 फ़रवरी, 2021 को सरदूल सिकंदर की मृत्यु हुई। वह मोहाली के फोर्टिस हॉस्पिटल में भर्ती थे। कोरोना विषाणु से पॉज़िटिव पाए जाने के बाद उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई। उससे पहले किडनी ट्रांसप्लांट भी हुआ था। सरदूल सिकंदर को जानने वाले लोग यही कहते हैं कि वो एक ज़िंदादिल इंसान थे। हमेशा ज़मीन से जुड़े रहे। शायद यही कारण था कि जनता के दिलों में ऐसी जगह बना पाए। अपने जाने के बाद ऐसा रिक्त स्थान छोड़ गए, जिसे भरना असंभव है।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सरदूल सिकंदर के निधन पर गहरा दु:ख जताया। अमरिंदर सिंह ने ट्वीट करते हुए लिखा, "महान पंजाबी गायक सरदूल सिकंदर के निधन के बारे में जानकर बहुत दु:ख हुआ। हाल ही में उनकी कोरोना वायरस की जांच की गई थी और उनका इलाज चल रहा था। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति मेरी हार्दिक संवेदना"।
पंजाब के नेता सुखबीर सिंह बादल ने भी सरदूल सिकंदर के निधन पर गहरा दु:ख जताया। उन्होंने ट्वीट के जरिए अपनी संवेदनाएं जाहिर कीं। सुखबीर सिंह बादल ने लिखा, "महान पंजाबी प्लेबैक सिंगर सरदूल सिकंदर के निधन के बारे में जानकर दु:ख हुआ। पंजाबी फ़िल्म और म्यूजिक इंडस्ट्री को भारी नुकसान हुआ है। उनके परिवार, दोस्तों और फैंस के लिए प्रार्थना। भगवान उसकी आत्मा को शांति दे"।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 1.3 कहानी सरदूल सिकंदर की, जिन्होंने छुपकर संगीत सीखा (हिंदी) thelallantop.com। अभिगमन तिथि: 07 मार्च, 2020।
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