"राम वी. सुतार": अवतरणों में अंतर
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'''राम वनजी सुतार''' ([[अंग्रेजी]]: ''Ram Vanji Sutar'', जन्म: [[19 फ़रवरी]], [[1925]], [[महाराष्ट्र]]) [[भारत]] के सुप्रसिद्ध शिल्पकार हैं। उन्होंने कई महापुरुषों की बहुत विशाल मूर्तियाँ बनायीं है और उनके माध्यम से बहुत नाम कमाया है। उनके द्वारा बनाई गई [[महात्मा गांधी]] की प्रतिमा अब तक विश्व के तीन सौ से अधिक शहरों में लग चुकी हैं। 91 वर्ष के हो चुके राम वी. सुतार अभी भी हर दिन 8 से 10 घंटे कार्य करते हैं। राम सुतार के कलात्मक शिल्प साधना को सम्मानित करते हुए [[भारत सरकार]] ने उन्हें [[1999]] में [[पद्म श्री]] और [[2016]] में [[पद्म भूषण]] पुरस्कार से सम्मानित किया। | |||
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राम सुतार का जन्म 19 फ़रवरी 1925 को महाराष्ट्र में धूलिया ज़िले के गोन्दुर गाँव में एक | राम सुतार का जन्म 19 फ़रवरी 1925 को महाराष्ट्र में धूलिया ज़िले के गोन्दुर गाँव में एक ग़रीब [[परिवार]] में हुआ। उनका पूरा नाम राम वनजी सुतार है। उनके पिता वनजी हंसराज जाति व कर्म से बढ़ई थे। राम सुतार का विवाह [[1952]] में प्रमिला के साथ हुआ। जिनसे उन्हें [[1957]] में एकमात्र पुत्र अनिल राम सुतार हुआ, जो पेशे से वास्तुकार हैं परन्तु अब वह भी नोएडा स्थित अपने पिता के स्टूडियो व कार्यशाला की देखरेख का कार्य करते हैं। | ||
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राम सुतार अपने गुरु रामकृष्ण जोशी से प्रेरणा लेकर [[बम्बई]] (वर्तमान मुम्बई) गये, जहाँ उन्होंने जे०जे०स्कूल ऑफ़ आर्ट में दाखिला लिया। [[1953]] में इसी स्कूल से मॉडलिंग में उन्होंने सर्वोच्च अंक अर्जित करते हुए मेयो गोल्ड मेडल हासिल किया। मॉडलर के रूप में [[औरंगाबाद]] के आर्कियोलोजी विभाग में रहते हुए राम सुतार ने [[1954]] से [[1958]] तक [[अजन्ता]] व [[एलोरा]] की प्राचीन गुफ़ाओं में मूर्तियों के पुनर्स्थापन का कार्य किया। [[1958]]-[[1959]] में वह सूचना व प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के दृश्य श्रव्य विभाग में तकनीकी सहायक भी रहे। 1959 में उन्होंने अपनी मर्ज़ी से सरकारी नौकरी त्याग दी और पेशेवर मूर्तिकार बन गये। आजकल वह अपने परिवार के साथ नोएडा में निवास करते हैं और इस आयु में भी पूर्णत: सक्रिय हैं। | राम सुतार अपने गुरु रामकृष्ण जोशी से प्रेरणा लेकर [[बम्बई]] (वर्तमान मुम्बई) गये, जहाँ उन्होंने जे०जे०स्कूल ऑफ़ आर्ट में दाखिला लिया। [[1953]] में इसी स्कूल से मॉडलिंग में उन्होंने सर्वोच्च अंक अर्जित करते हुए मेयो गोल्ड मेडल हासिल किया। मॉडलर के रूप में [[औरंगाबाद]] के आर्कियोलोजी विभाग में रहते हुए राम सुतार ने [[1954]] से [[1958]] तक [[अजन्ता]] व [[एलोरा]] की प्राचीन गुफ़ाओं में मूर्तियों के पुनर्स्थापन का कार्य किया। [[1958]]-[[1959]] में वह सूचना व प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के दृश्य श्रव्य विभाग में तकनीकी सहायक भी रहे। 1959 में उन्होंने अपनी मर्ज़ी से सरकारी नौकरी त्याग दी और पेशेवर मूर्तिकार बन गये। आजकल वह अपने परिवार के साथ नोएडा में निवास करते हैं और इस आयु में भी पूर्णत: सक्रिय हैं। | ||
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06:00, 19 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण
राम वी. सुतार
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पूरा नाम | राम वनजी सुतार |
प्रसिद्ध नाम | राम वी सुतार |
जन्म | 19 फ़रवरी, 1925 |
जन्म भूमि | महाराष्ट्र |
अभिभावक | पिता- वनजी हंसराज |
पति/पत्नी | प्रमिला |
संतान | अनिल राम सुतार |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | शिल्पकार |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म श्री, 1999 |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | गुजरात में स्थापित होने वाली सरदार वल्लभ भाई पटेल की विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' राम सुतार के नेतृत्व में ही तैयार हो रही है। |
अद्यतन | 11:30, 19 फ़रवरी 2022 (IST)
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राम वनजी सुतार (अंग्रेजी: Ram Vanji Sutar, जन्म: 19 फ़रवरी, 1925, महाराष्ट्र) भारत के सुप्रसिद्ध शिल्पकार हैं। उन्होंने कई महापुरुषों की बहुत विशाल मूर्तियाँ बनायीं है और उनके माध्यम से बहुत नाम कमाया है। उनके द्वारा बनाई गई महात्मा गांधी की प्रतिमा अब तक विश्व के तीन सौ से अधिक शहरों में लग चुकी हैं। 91 वर्ष के हो चुके राम वी. सुतार अभी भी हर दिन 8 से 10 घंटे कार्य करते हैं। राम सुतार के कलात्मक शिल्प साधना को सम्मानित करते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1999 में पद्म श्री और 2016 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया।
परिचय
राम सुतार का जन्म 19 फ़रवरी 1925 को महाराष्ट्र में धूलिया ज़िले के गोन्दुर गाँव में एक ग़रीब परिवार में हुआ। उनका पूरा नाम राम वनजी सुतार है। उनके पिता वनजी हंसराज जाति व कर्म से बढ़ई थे। राम सुतार का विवाह 1952 में प्रमिला के साथ हुआ। जिनसे उन्हें 1957 में एकमात्र पुत्र अनिल राम सुतार हुआ, जो पेशे से वास्तुकार हैं परन्तु अब वह भी नोएडा स्थित अपने पिता के स्टूडियो व कार्यशाला की देखरेख का कार्य करते हैं।
कॅरियर
राम सुतार अपने गुरु रामकृष्ण जोशी से प्रेरणा लेकर बम्बई (वर्तमान मुम्बई) गये, जहाँ उन्होंने जे०जे०स्कूल ऑफ़ आर्ट में दाखिला लिया। 1953 में इसी स्कूल से मॉडलिंग में उन्होंने सर्वोच्च अंक अर्जित करते हुए मेयो गोल्ड मेडल हासिल किया। मॉडलर के रूप में औरंगाबाद के आर्कियोलोजी विभाग में रहते हुए राम सुतार ने 1954 से 1958 तक अजन्ता व एलोरा की प्राचीन गुफ़ाओं में मूर्तियों के पुनर्स्थापन का कार्य किया। 1958-1959 में वह सूचना व प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के दृश्य श्रव्य विभाग में तकनीकी सहायक भी रहे। 1959 में उन्होंने अपनी मर्ज़ी से सरकारी नौकरी त्याग दी और पेशेवर मूर्तिकार बन गये। आजकल वह अपने परिवार के साथ नोएडा में निवास करते हैं और इस आयु में भी पूर्णत: सक्रिय हैं।
योगदान
राम सुतार ने वैसे तो बहुत-सी मूर्तियाँ बनायीं है, किन्तु उनमें से कुछ उल्लेखनीय मूर्तियों का योगदान इस प्रकार है-
- 45 फ़ुट ऊँची चम्बल देवी की मूर्ति गंगासागर बाँध मध्य प्रदेश, भारत
- 17 फ़ुट ऊँची मोहनदास कर्मचन्द गाँधी की मूर्ति गाँधीनगर, गुजरात
- 21 फ़ुट ऊँची महाराजा रणजीत सिंह की मूर्ति अमृतसर
- 18 फ़ुट ऊँची सरदार बल्लभ भाई पटेल की मूर्ति संसद भवन, नई दिल्ली
- 9 फ़ुट ऊँची भीमराव अम्बेडकर की मूर्ति जम्मू
- भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा की आवक्ष प्रतिमा
पुरस्कार
राम सुतार के कलात्मक शिल्प साधना को सम्मानित करते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1999 में पद्म श्री और 2016 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया।
काम के प्रति कर्मनिष्ठ
राम सुतार 91 वर्ष के हो चुके हैं, लेकिन आज भी उनके अन्दर बैठा मूर्तिकार अपने कला-कर्म के प्रति निष्ठावान है। राम सुतार बड़ी संख्या में मूर्तियों के साथ-साथ साठ से अधिक देशों में महात्मा गाँधी की ढाई सौ से अधिक प्रतिमाएं बनाकर अपनी शिल्पकला का अद्भुत नमूना प्रस्तुत कर चुके हैं। गुजरात में स्थापित होने वाली सरदार वल्लभ भाई पटेल की विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' राम सुतार के नेतृत्व में ही तैयार हो रही है। यह प्रतिमा अगले दो सालों में तैयार हो जाएगी। इसके अलावा वह विश्व की सबसे ऊँची तलवार भी तैयार कर रहे हैं, जो अमृतसर के वॉर मेमोरियल में लगेगी।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राम वी. सुतार naidunia.jagran.com। अभिगमन तिथि: 23 सितम्बर, 2017।
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