"बाघ": अवतरणों में अंतर
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|अन्य जानकारी= | |अन्य जानकारी='पेंथेरा टाइग्रिस' भारतीय या बंगाल टाइगर नाम सबसे अधिक लोकप्रिय है। ये अधिकतर पूर्वी भारत और [[बांग्लादेश]] के [[सुंदरवन]] के मंग्रोव जंगलों में रहते हैं। | ||
|बाहरी कड़ियाँ=[http://www.dudhwalive.com/2010/09/world-tiger-day.html विश्व बाघ दिवस] | |बाहरी कड़ियाँ=[http://www.dudhwalive.com/2010/09/world-tiger-day.html विश्व बाघ दिवस] | ||
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'''राष्ट्रीय पशु'''<br /> | '''राष्ट्रीय पशु'''<br /> | ||
'''बाघ''' ''पैंथरा टाइग्रिस-लिन्नायस'', [[पीला रंग|पीले रंगों]] और धारीदार लोमचर्म वाला एक पशु है। राजसी बाघ, [[तेंदुआ]], टाइग्रिस धारीदार जानवर है। अपनी शालीनता, दृढ़ता, फुर्ती और अपार शक्ति के लिए बाघ को 'राष्ट्रीय पशु' कहलाने का गौरव प्राप्त है। बाघ की आठ प्रजातियों में से [[भारत]] में पाई जाने वाली प्रजाति को '''रॉयल बंगाल टाइगर''' के नाम से जाना जाता है। उत्तर-पश्चिम भारत को छोड़कर बाकी सारे देशों में यह प्रजाति पायी जाती है। [[भारत]] के अतिरिक्त यह [[नेपाल]], [[भूटान]] और [[बंगलादेश]] जैसे पड़ोसी देशों में भी पाया जाता है। बाघ कहलाए जाने वाले अन्य जानवर है:- | |||
#मेघश्याम [[तेंदुआ]] या मेघश्याम बाघ | #मेघश्याम [[तेंदुआ]] या मेघश्याम बाघ | ||
#प्यूमा | #प्यूमा<ref>[[लाल रंग|लाल]]-[[भूरा रंग|भूरे रंग]] का बिलाव</ref> या हिरन बाघ | ||
#असिदंत | #असिदंत विडाल | ||
*वर्ष 2010 में 'वर्ल्ड वाइड फ़ंड फ़ॉर नेचर' ने बाघों की आबादी महज 3,500 बताई। इसके पहले डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ. ने दुनिया भर में बाघों की संख्या 4000 के लगभग बताई थी। | *वर्ष [[2010]] में ''वर्ल्ड वाइड फ़ंड फ़ॉर नेचर'' ने बाघों की आबादी महज 3,500 बताई। इसके पहले ''डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ.'' ने दुनिया भर में बाघों की संख्या 4000 के लगभग बताई थी। | ||
==उत्पत्ति== | ==उत्पत्ति== | ||
*ऐसा समझा जाता है कि बाघ की उत्पत्ति उत्तरी यूरेशिया में हुई और यह दक्षिण की ओर चला आया था। | *ऐसा समझा जाता है कि बाघ की उत्पत्ति उत्तरी यूरेशिया में हुई और यह दक्षिण की ओर चला आया था। | ||
*वर्तमान में यह रूस के सुदूर पूर्वी इलाक़े से [[चीन]], भारत और दक्षिण पूर्वी एशिया तक पाया जाता है। | *वर्तमान में यह [[रूस]] के सुदूर पूर्वी इलाक़े से [[चीन]], भारत और दक्षिण पूर्वी [[एशिया]] तक पाया जाता है। | ||
*इसकी सामान्य रूप से मान्य आठ | *इसकी सामान्य रूप से मान्य आठ प्रजातियाँ होती हैं। | ||
*इनमें से जावा बाघ, बाली बाघ और कैरिबयाई बाघ विलुप्त हो गए है। | *इनमें से जावा बाघ, बाली बाघ और कैरिबयाई बाघ विलुप्त हो गए है। | ||
*चीनी बाघ विलुप्त होने के क़रीब हैं और सुमात्राई, साइबेरियाई एवं भारतीय | *चीनी बाघ विलुप्त होने के क़रीब हैं और सुमात्राई, साइबेरियाई एवं भारतीय उपप्रजातियाँ रेड डेटा बुक में निश्चित तौर पर संकटापन्न बताई गई हैं। | ||
[[चित्र:Tiger-Kanha-National-Park.jpg|thumb|left|250px|बाघ, [[कान्हा राष्ट्रीय उद्यान]]]] | |||
==रूप और आकृति== | ==रूप और आकृति== | ||
*बाघ पर मोटी पीली लोमचर्म का कोट होता है जिस पर गहरी धारीदार | *बाघ पर मोटी पीली लोमचर्म का कोट होता है जिस पर गहरी धारीदार पट्टियाँ होती हैं। | ||
*लावण्यता, ताकत, फुर्तीलापन और आपार शक्ति के कारण बाघ को भारत के 'राष्ट्रीय जानवर' के रूप में गौरवान्वित किया है। | *लावण्यता, ताकत, फुर्तीलापन और आपार शक्ति के कारण बाघ को भारत के 'राष्ट्रीय जानवर' के रूप में गौरवान्वित किया है। | ||
*बाघ की अयाल नहीं होती, लेकिन बूढ़े नर के गाल के बाल अपेक्षाकृत लंबे और फैले हुए होते हैं। | *बाघ की अयाल नहीं होती, लेकिन बूढ़े नर के गाल के बाल अपेक्षाकृत लंबे और फैले हुए होते हैं। | ||
*नर बाघ मादा से बड़ा होता है और इसकी कंधे तक की | *नर बाघ मादा से बड़ा होता है और इसकी कंधे तक की ऊँचाई क़रीब 1 मीटर, लंबाई लगभग 2.2 मीटर, पूंछ क़रीब 1 मीटर लंबी, और वज़न लगभग 160 से 230 किलोग्राम या ज़्यादा से ज़्यादा लगभग 290 किलोग्राम होता है। | ||
*सफ़ेद बाघों में सभी पूर्णत सफ़ेद नहीं होते, इनमें से लगभग सभी भारत में विंध्य और कैमूर पर्वत श्रृंखलाओं में पाए जाते हैं। | *सफ़ेद बाघों में सभी पूर्णत सफ़ेद नहीं होते, इनमें से लगभग सभी भारत में विंध्य और [[कैमूर पहाड़ियाँ|कैमूर पर्वत श्रृंखलाओं]] में पाए जाते हैं। | ||
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! colspan="2"| बाघ | ! colspan="2"| बाघ | ||
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|विलुप्ति का ख़तरा | |विलुप्ति का ख़तरा | ||
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*काले बाघ के पाए जाने की भी ख़बर है, ये [[म्यांमार]], [[बांग्लादेश]] और पूर्वी भारत के घने जंगलों में कभी-कभी पाए जाते हैं। | *[[काला रंग|काले]] बाघ के पाए जाने की भी ख़बर है, ये [[म्यांमार]], [[बांग्लादेश]] और पूर्वी भारत के घने जंगलों में कभी-कभी पाए जाते हैं। | ||
*बाघ घास वाले दलदली इलाक़ों और जंगलों में रहता है; यह महलों या मंदिरों जैसी इमारतों के खंडहरों में भी पाया जाता है। | *बाघ घास वाले दलदली इलाक़ों और जंगलों में रहता है; यह महलों या मंदिरों जैसी इमारतों के खंडहरों में भी पाया जाता है। | ||
*शक्तिशाली और आमतौर पर एकांत प्रिय यह विडाल एक अच्छा तैराक है और लगता है कि इसे नहाने में मज़ा आता है, विपत्ति में यह पेड़ पर चढ़ सकता है। | *शक्तिशाली और आमतौर पर एकांत प्रिय यह विडाल एक अच्छा तैराक है और लगता है कि इसे नहाने में मज़ा आता है, विपत्ति में यह पेड़ पर चढ़ सकता है। | ||
*स्थान और प्रजाति के अनुसार बाघ के आकार और विशिष्ट रंग एवं धारीदार चिह्न में भी परिवर्तन होता है। उत्तर के मुक़ाबले दक्षिण के बाघ छोटे और ज़्यादा भड़कीले रंग के होते हैं। | *स्थान और प्रजाति के अनुसार बाघ के आकार और विशिष्ट रंग एवं धारीदार चिह्न में भी परिवर्तन होता है। उत्तर के मुक़ाबले दक्षिण के बाघ छोटे और ज़्यादा भड़कीले रंग के होते हैं। | ||
*बंगाल टाइगर (पी. टाइग्रिस) और दक्षिण-पूर्वी | *बंगाल टाइगर (''पी. टाइग्रिस'') और दक्षिण-पूर्वी एशिया के द्वीपों के बाघ, उदाहरण के तौर पर, कुछ-कुछ लाल और भूरे रंग के, लगभग गहरी काली सुंदर अनुप्रस्थ धारियों वाले होते हैं। भीतरी हिस्से, पैर के अंदर की ओर, गाल और दोनों आंखों के ऊपर एक बड़ा सफ़ेद सा धब्बा होता है। लेकिन उत्तरी [[चीन]] और रूस के बहुत बड़े और दुर्लभ साईबेरियाई बाघों (''पी. टाइग्रिस एल्टाइका'') के बाल लंबे, मुलायम और हल्के पीले होते हैं। | ||
*कुछ काले और सफ़ेद बाघ भी होते है और केवल एक पूर्णतः सफ़ेद बाघ की ही जानकारी मिली है। | *कुछ काले और सफ़ेद बाघ भी होते है और केवल एक पूर्णतः सफ़ेद बाघ की ही जानकारी मिली है। | ||
==भोजन== | ==भोजन== | ||
शिकार करने और भर पेट खाने के बाद बाघ बची हुई लाश को गिद्ध और अन्य अपमार्जकों से छुपाने का जान-बूझकर प्रयास करता है, जिससे भविष्य में भी खाना मिल सके। वह अन्य बाघों या तेंदुओं द्वारा मारे गए शिकार को ले जाने में भी नहीं झिझकता और कभी-कभी वह सड़ा मांस भी खा लेता है। बाघ रात को शिकार करता है। [[चीतल]] हिरन, जंगली सूअर एवं [[मोर]] सहित विभिन्न प्रकार के जानवरों को अपना शिकार बनाता है। साधारणत: यह हृष्ट-पुष्ट बड़े स्तनधारियों पर हमला नहीं करता, यद्यपि ऐसी | शिकार करने और भर पेट खाने के बाद बाघ बची हुई लाश को गिद्ध और अन्य अपमार्जकों से छुपाने का जान-बूझकर प्रयास करता है, जिससे भविष्य में भी खाना मिल सके। वह अन्य बाघों या [[तेंदुआ|तेंदुओं]] द्वारा मारे गए शिकार को ले जाने में भी नहीं झिझकता और कभी-कभी वह सड़ा मांस भी खा लेता है। बाघ रात को शिकार करता है। [[चीतल]], हिरन, जंगली सूअर एवं [[मोर]] सहित विभिन्न प्रकार के जानवरों को अपना शिकार बनाता है। साधारणत: यह हृष्ट-पुष्ट बड़े स्तनधारियों पर हमला नहीं करता, यद्यपि ऐसी घटनाएँ हैं, जब बाघ ने [[हाथी]] या जवान भैंसे पर हमला किया। बाघ कभी-कभी मानव बस्तियों से भी पालतू जानवरों को उठाकर ले जाता है। बूढ़ा या विकलांग बाघ या शावकों वाली बाघिन आदमी का आसानी से शिकार कर सकते हैं तथा नरभक्षी बन जाते हैं। | ||
==संरक्षण | |||
[[चित्र: | ==बाघ संरक्षण== | ||
यद्यपि विगत 1,000 साल से बाघ का शिकार किया जाता रहा है, फिर भी 20वीं सदी के शुरू में जंगलों में रहने वाले | [[चित्र:Tiger-Colag.jpg|thumb|250px|बाघ के विभिन्न दृश]] | ||
विश्व की बाघों की कुल आबादी का 60 फ़ीसदी हिस्सा [[भारत]] में ही रहता है। गति और शक्ति का प्रतीक बाघ हमारा राष्ट्रीय पशु भी है। ऐसे में इसको देखने का शौक़ तो होना स्वाभाविक ही है। देश में सरकार ने 38 टाइगर रिजर्व घोषित किए हुए हैं। [[मध्य प्रदेश]] में स्थित [[बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान|बांधवगढ़]] अपने [[राष्ट्रीय उद्यान]] के लिए प्रसिद्ध है और यहां की ख़ासियत बाघ हैं। यहां पर्यटक रॉयल बंगाल टाइगर, [[तेंदुआ|तेंदुए]], चीतल, सांभर और भी कई प्रजातियों को देख सकते हैं। | |||
====आंकडों पर एक नज़र==== | |||
यद्यपि विगत 1,000 साल से बाघ का शिकार किया जाता रहा है, फिर भी 20वीं सदी के शुरू में जंगलों में रहने वाले बाघों की संख्या 1,00,000 आंकी गई थी। इस [[सदी]] के अवसान पर ऐसी आशंका थी कि विश्व भर में केवल 5,000 से 7,000 बाघ बचे हुए हैं। आज तक बाघों का महत्त्व विजयचिह्न और महंगे कोटों के लिए खाल के स्रोत के रूप में था। बाघों को इस आधार पर भी मारा जाता था कि वे मानव के लिए ख़तरा हैं। [[1970]] के दशक में अधिकतर देशों में शौक़िया शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया तथा बाघ की खाल का व्यापार ग़ैर क़ानूनी बना दिया गया। [[1980]] के दशक में बाघों की गणना से पता चला कि उनकी संख्या बढ़ रही है और ऐसा लगा कि संरक्षण प्रयास सफल हो रहे हैं और उनके विलुप्त होने का कोई ख़तरा नहीं है। किंतु स्थिति ऐसी नहीं थी, जैसी दिखाई देती थी। बाघ के अंगों, खोपड़ी, हड्डियों, गलमुच्छ, स्नायुतंत्र और ख़ून को लंबे समय से एशियाई लोग, विशेष रूप से चीनी, औषधि और शक्तिवर्द्धक पेय बनाने में इस्तेमाल करते रहे हैं, जिसका गठिया, मूषक दंश और विभिन्न बीमारियों को ठीक करने, ताक़त बहाल करने और कामोत्तेजक के रूप में उपयोग किया जाता है। जब तक बाघ के शिकार पर प्रतिबंध नहीं लगा था। उसके शरीर के इन भागों की कभी कमी नहीं रही। लेकिन 1980 के दशक के अंत में इन अंगों के भंडार ख़त्म हो रहे थे और ऐसे सबूत थे कि इनको पाने के लिए तब भी बाघों को मारा जा रहा था। सावधानीपूर्वक की गई गणना से पता चला कि कर्मचारियों ने, जिनकी ग़ैरक़ानूनी शिकारियों से सांठ-गांठ थी या जो उच्चाधिकारियों को खुश करने के लिए उत्सुक थे, पहले की गणना को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया था। इसी समय ग़ैरक़ानूनी शिकार की ख़बरें तेज़ी से बढ़ रही थीं तथा बाघ के अंगों का अवैध व्यापार फल-फूल रहा था और आपूर्ति में कमी के कारण इनकी क़ीमतें और ज़्यादा हो गई थीं। कभी-कभी अपराधी को पकड़ा जाता था और बरामद माल को नष्ट किया जाता था, जिसका अत्यधिक प्रचार भी किया जाता था। वास्तव में तस्करों को रोकने के लिए बहुत कम प्रयास किए गए और कई देशों में चीनी औषधि विक्रेताओं के पास शक्तिवर्धक पेय अब भी उपलब्ध हैं। | |||
==प्रतिबंधित देश== | ==प्रतिबंधित देश== | ||
सरकारों पर उन देशों के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाने के लिए दबाव डाला गया, जो बाघ के अंगों के व्यापार को समाप्त करने के लिए समुचित उपाय करने में विफल रहे। संरक्षणकर्ताओं ने यह विश्वास करते हुए कि [[संयुक्त राज्य अमरीका]] द्वारा दंडात्मक उपाय की धमकी ही परिवर्तन लाने में मदद करेगी, राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के प्रशासन से कार्रवाई करने का आग्रह किया और [[अप्रैल]] 1994 में उन्होंने ऐसा किया भी। ताइवान से क़रीब 2 करोड़ 50 लाख डॉलर सालाना मूल्य के वन्य जीव उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया। कुछ सरकारों ने सहयोग का प्रयास किया। मार्च 1994 में [[भारत]] ने बाघों को बचाने के एक संगठित प्रयास के तहत 10 राष्ट्रों के 'विश्व बाघ मंच' की पहली बैठक बुलाई। ग़ैर क़ानूनी शिकार बंद हो जाने के बावजूद बाघ के लिए ख़तरा समाप्त नहीं होगा। भारत में, जहाँ सबसे अधिक संख्या में बाघ रहते हैं। तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या की अधिक भूमि की आवश्यकता के कारण बाघों के आवास और भोजन आपूर्ति में कमी आ रही है। इसके बावजूद प्रकृति के प्रति वास्तविक सम्मान क़ायम है और बाघों को बचाने के लिए भारत पहले ही बड़ी राशि ख़र्च कर चुका है। आशा है कि शायद मानव और बाघ सहअस्तित्व जारी रखने के लिए कोई रास्ता ढूंढ निकालेंगे। | सरकारों पर उन देशों के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाने के लिए दबाव डाला गया, जो बाघ के अंगों के व्यापार को समाप्त करने के लिए समुचित उपाय करने में विफल रहे। संरक्षणकर्ताओं ने यह विश्वास करते हुए कि [[संयुक्त राज्य अमरीका]] द्वारा दंडात्मक उपाय की धमकी ही परिवर्तन लाने में मदद करेगी, राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के प्रशासन से कार्रवाई करने का आग्रह किया और [[अप्रैल]] 1994 में उन्होंने ऐसा किया भी। ताइवान से क़रीब 2 करोड़ 50 लाख डॉलर सालाना मूल्य के वन्य जीव उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया। कुछ सरकारों ने सहयोग का प्रयास किया। [[मार्च]] 1994 में [[भारत]] ने बाघों को बचाने के एक संगठित प्रयास के तहत 10 राष्ट्रों के 'विश्व बाघ मंच' की पहली बैठक बुलाई। [[चित्र:Tiger-2.jpg|thumb|left|बाघ<br />Tiger]] ग़ैर क़ानूनी शिकार बंद हो जाने के बावजूद बाघ के लिए ख़तरा समाप्त नहीं होगा। भारत में, जहाँ सबसे अधिक संख्या में बाघ रहते हैं। तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या की अधिक भूमि की आवश्यकता के कारण बाघों के आवास और भोजन आपूर्ति में कमी आ रही है। इसके बावजूद प्रकृति के प्रति वास्तविक सम्मान क़ायम है और बाघों को बचाने के लिए भारत पहले ही बड़ी राशि ख़र्च कर चुका है। आशा है कि शायद मानव और बाघ सहअस्तित्व जारी रखने के लिए कोई रास्ता ढूंढ निकालेंगे। | ||
==भारत में बाघ== | ==भारत में बाघ== | ||
खत्म होते जंगल और शिकारियों पर अंकुश न होने से राष्ट्रीय पशु और जंगल के राजा बाघ की संख्या लगातार कम होती जा रही है। देश के सभी अभयारण्य में लगातार इनकी संख्या कम होती जा रही है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार बीसवीं सदी के शुरू में देश में 40 हज़ार से ज़्यादा बाघ थे। सदी के | खत्म होते जंगल और शिकारियों पर अंकुश न होने से राष्ट्रीय पशु और जंगल के राजा बाघ की संख्या लगातार कम होती जा रही है। देश के सभी अभयारण्य में लगातार इनकी संख्या कम होती जा रही है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार बीसवीं सदी के शुरू में देश में 40 हज़ार से ज़्यादा बाघ थे। [[सदी]] के शुरुआती सात दशकों में अंधाधुंध शिकार और जंगलों के सिमटने के कारण [[1972]] में बाघों की संख्या घटकर [[1872]] रह गई। बाघों की इस तरह गिरती संख्या पर केन्द्र सरकार ने [[1973]] में ''नौ टाइगर रिजर्व'' इलाकों में "बाघ बचाओ योजना" शुरू की। इसमें [[उत्तर प्रदेश]] तथा अब [[उत्तराखंड]] का जिम कार्बेट बाघ संरक्षित वन क्षेत्र भी शामिल था। [[उत्तर प्रदेश]] में राज्य में 26 हज़ार हेक्टयर से ज़्यादा वन इलाके पर अतिक्रमण हो गया है। राज्य में बाघों के रहने का एकमात्र स्थान "दुधवा टाइगर रिजर्व" में भी 827 हेक्टयर ज़मीन पर गैरक़ानूनी क़ब्ज़ा हो चुका है। | ||
उत्तर प्रदेश में जब 1990 में गिनती हुई तो बाघों की संख्या 240 थी। वर्ष 2001 में हुई गणना में 284 बाघ थे जिनमें 123 नर,132 मादा और 29 शावक थे। दो साल बाद 2003 में हुई गिनती में इनकी संख्या स्थिर रही और दो साल में | उत्तर प्रदेश में जब [[1990]] में गिनती हुई तो बाघों की संख्या 240 थी। वर्ष [[2001]] में हुई गणना में 284 बाघ थे जिनमें 123 नर, 132 मादा और 29 शावक थे। दो साल बाद [[2003]] में हुई गिनती में इनकी संख्या स्थिर रही और दो साल में सिर्फ़ एक बाघ कम मिला। उस समय पाए गए 283 बाघ में 92 नर, 162 मादा और 29 शावक थे। वर्ष [[2005]] की गिनती में दस बाघ कम हुए और इनकी संख्या 273 हो गई। वर्ष [[2007]] में कराई गई गिनती के परिणाम [[2008]] में आए और इनकी संख्या 109 हो गई। [[चित्र:Tiger.jpg|thumb|300px|बाघ<br />Tiger]] बाघों की गिनती पहले उनके पंजों के निशान के आघार पर होती थी लेकिन 2007 की गणना में नयी पद्धति का इस्तेमाल किया गया। गिनती के इस तरीके को ज़्यादा विश्वसनीय माना गया। कुछ लोगों ने ''कैमरा ट्रैप पद्धति'' पर यह कह कर सवाल उठाया कि इसमें कैमरे ज़मीन से डेढ़ फुट ऊपर लगे होते हैं और शावक उसकी रेंज में नहीं आ पाते। शहरीकरण, औद्योगिकी विकास की रफ्तार ने दुनिया भर में [[जल]], जंगल, ज़मीन को नुक़सान पहुँचाया है। इससे सर्वाधिक हानि पर्यावरण एवं उसको बनाए रखने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले अन्य प्राणियों की हुई। जंगल में जबरन घुसे विकास ने जानवरों के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। परिणाम स्वरूप वन्य प्राणी लगातार खत्म होते जा रहे हैं। कुछ जीव जंतु समाप्त हो गये और कुछ जानवरों की कई प्रजातियाँ लुप्तप्राय होने की कगार पर है। ऐसे में छोटे-छोटे वन्य प्राणियों से लेकर जंगल के राजा शेर (बाघ) तक सबके लिए अपनी जान बचाए रखना मुश्किल हो गया है। बाघ संरक्षण के सरकारी इंतज़ाम "सफ़ेद हाथी" साबित हो रहे हैं। | ||
*पेंथेरा टाइग्रिस, नियोफ़ेलिस टाइग्रिस या लियो टाइग्रिस, एशिया की विशालकाय बिल्ली, विडाल कुल (फ़ीलीडी) का सबसे बड़ा सदस्य है। शेर, तेंदुआ और अन्य की तरह बाघ बड़े और दहाड़ने वाले विडालों में से एक हैं। ताक़त और उग्रता में इसका एकमात्र प्रतिद्वंद्वी केवल सिंह है। | *पेंथेरा टाइग्रिस, नियोफ़ेलिस टाइग्रिस या लियो टाइग्रिस, एशिया की विशालकाय बिल्ली, विडाल कुल (फ़ीलीडी) का सबसे बड़ा सदस्य है। शेर, तेंदुआ और अन्य की तरह बाघ बड़े और दहाड़ने वाले विडालों में से एक हैं। ताक़त और उग्रता में इसका एकमात्र प्रतिद्वंद्वी केवल [[सिंह]] है। | ||
*मनुष्य के अनुसार विश्व में सबसे बड़े विडाल वंशी, बाघ (पेंथेरा टाइग्रिस) से अधिक हिंसक कोई जानवर नहीं है और कोई भी इससे ज़्यादा डर पैदा नहीं करता। ऐमूर बाघ (पी.टी. अटलांटिका) की प्रजाति का वज़न 300 | *मनुष्य के अनुसार विश्व में सबसे बड़े विडाल वंशी, बाघ (''पेंथेरा टाइग्रिस'') से अधिक हिंसक कोई जानवर नहीं है और कोई भी इससे ज़्यादा डर पैदा नहीं करता। ऐमूर बाघ (''पी.टी. अटलांटिका'') की प्रजाति का वज़न 300 किलोग्राम तक और नाक से पूंछ तक लंबाई चार मीटर पाई गई है। | ||
*ज्ञात आठ किस्मों की प्रजाति में से शाही बंगाल टाइगर (बाघ) उत्तर पूर्वी क्षेत्रों को छोड़कर देश भर में पाया जाता है और पड़ोसी देशों में भी पाया जाता है जैसे [[नेपाल]], [[भूटान]] और [[बंगलादेश]]। भारत में बाघों की घटती जनसंख्या की जांच करने के लिए अप्रैल 1973 में 'प्रोजेक्ट टाइगर' (बाह्य परियोजना) शुरू की गई। अब तक इस परियोजना के अधीन बाघ के 27 आरक्षित क्षेत्रों की स्थापना की गई है जिनमें 37,761 वर्ग | *ज्ञात आठ किस्मों की प्रजाति में से शाही बंगाल टाइगर (बाघ) उत्तर पूर्वी क्षेत्रों को छोड़कर देश भर में पाया जाता है और पड़ोसी देशों में भी पाया जाता है जैसे [[नेपाल]], [[भूटान]] और [[बंगलादेश]]। भारत में बाघों की घटती जनसंख्या की जांच करने के लिए [[अप्रैल]] [[1973]] में ''प्रोजेक्ट टाइगर'' (बाह्य परियोजना) शुरू की गई। अब तक इस परियोजना के अधीन बाघ के 27 आरक्षित क्षेत्रों की स्थापना की गई है जिनमें 37,761 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र शामिल है। | ||
[[चित्र:Tiger-Hunting-2.jpg|thumb|300px|left|[[हाथी|हाथियों]] पर बैठकर बाघ का शिकार करते [[अंग्रेज़]]-[[1876]]]] | |||
बाघ | ====बाघ की प्रजातियाँ==== | ||
बाघ प्रजाति कुल 8 थी, जिनमें से 5 ही बची हैं। | |||
# | #'''टीग्रीज (पेंथेरा टाइग्रिस)'''- भारतीय या बंगाल टाइगर सबसे पॉपुलर है। अधिकतर पूर्वी भारत और [[बांग्लादेश]] के [[सुंदरवन]] के मंग्रोव फॉरेस्ट में रहते हैं। कुछ [[भूटान]], [[म्यांमार]] और [[नेपाल]] में रहते हैं। नर बाघों स का वज़न क़रीब 227 किलो और मादा बाघों का क़रीब 137 किलो होता है। सफ़ेद बाघ नर की श्रेणी का होता है। यह लुप्तप्राय की श्रेणी में आता है। | ||
#'''पी.टी. कोर्बेटाई या भारतीय चीनी बाघ'''- ये मुख्यतः [[थाईलैंड]] में पाए जाते हैं लेकिन [[म्यांमार]], दक्षिण [[चीन]], कंबोडिया, लाओस, वियतनाम और मलेशिया में भी हैं। ये बंगाल टाइगर्स से आकार में छोटे और गहरे होते हैं। ये नर बाघ का वज़न क़रीब 182 किलो और मादा का क़रीब 137 किलो होता है। नर 9 फुट लंबे और मादा 8 फुट लंबी होती हैं। यह भी लुप्तप्राय हैं। | |||
#पी.टी. | #'''पी.टी. सुमात्राई या सुमात्राई बाघ'''- ये सबसे छोटे और डार्क (गहरे) होते हैं, [[लाल रंग]] के और इनके शरीर पर पास-पास धारियाँ होती हैं। इनका वज़न 114 किलो होता है। ये सुमात्रा में पाए जाते हैं। ये भी लुप्तप्राय हैं। | ||
#'''साइबेरियन (एलटेशिया)'''- ये सबसे ऊँचे होते हैं। इनका वज़न 307 किलो और ऊँचाई 11 फुट होती है। रिकॉर्ड में अब तक सबसे भारी साइबेरियन बाघ 466 किलो का रहा है। ये मुख्यतः उत्तरी-पूर्व [[रूस]] के इलाके में पाए जाते हैं। ये 33 फुट ऊँची छलांग लगा सकने की क्षमता वाले होते हैं। ये भी खतरे में हैं। | |||
#'''जवन (सोनडायका)'''- जावा में कभी ये पाए जाते थे। 1972 में अंतिम बार दिखने वाले इन बाघों को लुप्त मान लिया गया है। | |||
#'''दक्षिणी चीन (एमोयेनसिस)''' - चीन के चिड़ियाघरों में ये बचे हैं और कुछ वहाँ के जंगलों में। चीन के मध्य और पूर्वी हिस्से में पाए जाते हैं। ये भी खतरे में हैं। | |||
#पी.टी. | #'''कैस्पियन (वरगाटा)'''- तुर्की से [[एशिया]] के केंद्रीय हिस्से तक विचरने वाले ये टाइगर्स [[ईरान]], [[मंगोलिया]] और [[रूस|केंद्रीय रूस]] तक दिखते थे। [[1950]] वें दशक के बाद ये दिखे ही नहीं। | ||
# '''बाली (बलिका)'''- बाली द्वीप पर रहने वाले अंतिम बाली टाइगर को [[1937]] में मार दिया। ज़िंदा बाली टाइगर की तो कोई तस्वीर ही नहीं है। | |||
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====जंगली विडाल==== | |||
[[चित्र:Tiger-8.jpg|thumb|250px|बाघ]] | |||
बाघ | एशियाई जंगली विडालों में तेंदुए के बाद बाघ भौगोलिक रूप से सबसे ज़्यादा फैला हुआ है और व्यापक आवासीय विविधता के अनुरूप उसने अपने आप को ढाल लिया है। बाघ की सबसे ज़्यादा आबादी घने वनों के अतिरिक्त उस भूभाग में पाई जाती है, जहाँ बड़ी संख्या में शिकार पाया जाता है, जैसे ऊँची घास के मैदान, मिश्रित घास के मैदानी जंगल और पतझड़ एवं अर्द्ध पतझड़ वन। पूर्वी एशिया के शीतोष्ण और उष्णोष्ण वनों में विकसित विडालवंशियों में सबसे विशालकाय यह बाघ गर्मी को अब भी अपेक्षाकृत कम ही सहन कर पाता है। यह एक कुशल तैराक है, फिर भी न तो मेघश्याम तेंदुए (नियोफ़ेलिस नेबुलोसा) की तरह ताइवान और बोर्नियो द्वीप में और न ही तेंदुए (पेंथेरा पार्डस) की तरह [[श्रीलंका]] (भूतपूर्व [[सीलोन]]) द्वीप में बस सका। इससे संकेत मिलता है कि बाघ इस द्वीपों के मुख्यभूमि से अलग होने के बाद यहाँ पहुँचे, हालांकि बाघ इंडोनेशियाई द्वीपसमूह के सुमात्रा, जावा और बाली में पाया जाता है। लेकिन अन्य कई जंतु प्रजातियों की तरह यह बाली के पूर्व में गहरे जल मार्ग वैलेस रेखा को पार नहीं कर पाया। अन्य जंतुओं की तरह इन द्वीपों में बाघ औसतन छोटे शरीर का था। विलुप्त बाली बाघ सभी 8 उपप्रजातियों में सबसे छोटा था, शरीर और पूंछ को मिलाकर उसकी औसत लंबाई 2.5 मीटर थ। उपयुक्त आवास की तलाश में यह पश्चिम की ओर तुर्की और काला सागर तक चला आया था। | ||
[[चित्र:Tiger-Hunting-1.jpg|thumb|300px|left|[[हाथी|हाथियों]] पर बैठकर बाघ का शिकार- 1860]] | |||
====निवास का विशेष इलाका==== | |||
बाघ विशेषकर नर अपान इलाक़ा स्थापित व क़ायम करने की कोशिश करते हैं, जिसका आकार व स्वरूप शिकार की संख्या और फैलाव, इलाक़े में अन्य बाघों की उपस्थिति, भूभाग की प्रकृति, पानी की उपलब्धता, जलवायु तथा व्यक्तिगत विशेषताओं पर निर्भर करता है। बाघ एक-दुसरे से दूरी और अपने इलाक़े का क़ब्ज़ा, दहाड़ने, भूमि खुरचने, पेड़ों पर पंजों के निशान, विष्ठा निक्षेपण, चेहरे की ग्रथियों को रगड़कर गंध निक्षेपण तथा गुदा ग्रंथियों से निकाली गंध एवं मूत्र के [[मिश्रण]] के छिड़काव से हासिल करता है। इस जाति की एकांतप्रियता भी क्षेत्र संघर्ष को टालने में मदद करती है। फिर भी संघर्ष होता है, जो कभी चोट या मृत्यु का भी कारण बन जाता है। बाघ विशेष शिकार को प्राथमिकता देता है। आमतौर पर अपने शरीर के वज़न के बराबर वज़न वाली प्रजातियाँ, जैसे सांबर, दलदली हिरन और जंगली सूअर आदि को। क़ांटों से घायल होने के ख़तरे के बावजूद साही के प्रति विशेष रुचि एक अपवाद है कई इलाक़ों में केवल अपनी अधिक संख्या के कारण चीतल, बाघ के आहार का मुख्य भाग है। | |||
====प्रकृति संतुलन में बाघ की भूमिका==== | |||
[[चित्र:Tiger-9.jpg|thumb|250px|बाघ]] | |||
सर्वोच्च परभक्षी होने के कारण बाघ प्रकृति की नियंत्रण और संतुलन योजना में प्रमुख भूमिका निभाता है। शिकार किए जाने वाले जानवरों के अलावा यह अपने इलाक़े के अन्य परभक्षी तेंदुए की संख्या पर भी नियंत्रण रखता है। इसके विपरीत शिकार होने वाली प्रजातियों की स्थिति का भी बाघ की संख्या और वितरण पर असर पड़ता है, लेकिन उतना नहीं जितना प्राकृतिक शिकार पर पूरी तरह निर्भर परभक्षी प्रजातियों, जैसे जंगली कुत्ते और मेघश्याम तेंदुए पर पड़ता है, क्योंकि बाघ पालतू जानवरों को भी खाता है। | सर्वोच्च परभक्षी होने के कारण बाघ प्रकृति की नियंत्रण और संतुलन योजना में प्रमुख भूमिका निभाता है। शिकार किए जाने वाले जानवरों के अलावा यह अपने इलाक़े के अन्य परभक्षी तेंदुए की संख्या पर भी नियंत्रण रखता है। इसके विपरीत शिकार होने वाली प्रजातियों की स्थिति का भी बाघ की संख्या और वितरण पर असर पड़ता है, लेकिन उतना नहीं जितना प्राकृतिक शिकार पर पूरी तरह निर्भर परभक्षी प्रजातियों, जैसे जंगली कुत्ते और मेघश्याम तेंदुए पर पड़ता है, क्योंकि बाघ पालतू जानवरों को भी खाता है। | ||
==परंपरागत | |||
बाघ देवी [[दुर्गा]] का वाहन है। जीववाद का अनुसरण करने वाले कुछ जनजातीय समुदाय अब भी बाघ को पूजते है और उसके आवासीय क्षेत्र में रहने वाले उसे भय और श्रद्धा से देखते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरों में बाघ को दर्शाया गया है। प्राचीन काल में गुप्त सम्राटों में से सबसे | ====परंपरागत हिन्दू विश्वास के अनुसार==== | ||
==बाघ के अंगों का प्रयोग== | बाघ देवी [[दुर्गा]] का वाहन है। जीववाद का अनुसरण करने वाले कुछ जनजातीय समुदाय अब भी बाघ को पूजते है और उसके आवासीय क्षेत्र में रहने वाले उसे भय और श्रद्धा से देखते हैं। [[सिंधु घाटी सभ्यता]] की मुहरों में बाघ को दर्शाया गया है। प्राचीन काल में [[गुप्त]] सम्राटों में से सबसे महान् [[समुद्रगुप्त]] के विशेष [[सोना|सोने]] के सिक्के में उन्हें बाघ का वध करते हुए दिखाया गया है। अपने प्रबल शत्रु [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] को हरा न सकने के कारण [[टीपू सुल्तान]] ने अपनी कुंठा को दूर करने के लिए अंग्रेज़ सैनिक का शिकार करता हुआ जीवित बाघ जितना बड़ा और आवाज़ निकालने वाला बाघ का खिलौना मंगवाया था। एशियाई कला और दंत कथाओं में [[हाथी]] और [[सिंह]] के बाद बाघ जितना चित्रण किसी अन्य वन्य पशु का नहीं हुआ है। वैज्ञानिक प्रमाणों के विपरीत बाघ के अंगों को तावीज़, खुराक या औषधि के रूप में इस्तेमाल करने की वर्तमान प्रथा बाघ के प्रभामंडल तथा सहस्राब्दियों से उसके प्रति भय से उपजे विश्वास को दर्शाता है। चीनी पंचाग का प्रत्येक 12वां साल व्याघ्र वर्ष के रूप में मनाया जाता है और इसमें जन्मे बच्चे विशेष रूप से भाग्यशाली और शक्तिशाली माने जाते हैं। बाघ दंतकथाओं और अंधविश्वासों का विषय रहा है। खेल और खाल के लिए इसका शिकार किया जात है। जहाँ यह पाया जाता है, वहाँ अपने विभिन्न अंगों के कथित रोगनाशक, संरक्षी या कामोत्तेजक गुणों के कारण इसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है। | ||
[[चित्र:Tiger-Hunting-3.jpg|thumb|300px|left|बाघों का शिकार करते [[अंग्रेज़]]- [[1876]]]] | |||
====बाघ के अंगों का प्रयोग==== | |||
*प्रदर्शन और पूजा के लिए खाल सहित बाघ के अंगों को काफ़ी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। | *प्रदर्शन और पूजा के लिए खाल सहित बाघ के अंगों को काफ़ी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। | ||
*तावीज़ के लिए पंजे, दांत और हंसुली। | *तावीज़ के लिए पंजे, दांत और हंसुली। | ||
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*शक्तिवर्द्धन और पराक्रम के लिए मांस। | *शक्तिवर्द्धन और पराक्रम के लिए मांस। | ||
*संभोग शक्ति के लिए शिश्न। | *संभोग शक्ति के लिए शिश्न। | ||
*सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि औषधि एवं चीनी शराब के लिए | *सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि औषधि एवं चीनी शराब के लिए हड्डियाँ इस्तेमाल की जाती है। एक अच्छी खाल की क़ीमत 15,000 डॉलर तक हो सकती है। एक किग्रा हड्डियाँ 250 डॉलर में बेची जा सकती हैं। | ||
==ग़ैरक़ानूनी शिकार== | ==ग़ैरक़ानूनी शिकार== | ||
[[चित्र:Tiger- | [[चित्र:Tiger-10.jpg|thumb|250px|बाघ]] | ||
ग़ैरक़ानूनी शिकार बाघों की संख्या में कमी का एक प्रमुख कारण रहा है, लेकिन पिछली दो सदियों में उनकी संख्या में भारी कमी के कारण हैं- | ग़ैरक़ानूनी शिकार बाघों की संख्या में कमी का एक प्रमुख कारण रहा है, लेकिन पिछली दो सदियों में उनकी संख्या में भारी कमी के कारण हैं- | ||
*आवासीय इलाक़े में तेज़ी से कटौती, गुणात्मक और परिमाणात्मक दोनो रूप से। | *आवासीय इलाक़े में तेज़ी से कटौती, गुणात्मक और परिमाणात्मक दोनो रूप से। | ||
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*बाघ जातियों की संख्या में कमी के कारण पालतू जानवरों पर ज़्यादा निर्भरता और इस कारण आदमी द्वारा बदले की कार्रवाई। | *बाघ जातियों की संख्या में कमी के कारण पालतू जानवरों पर ज़्यादा निर्भरता और इस कारण आदमी द्वारा बदले की कार्रवाई। | ||
*मानव और पालतू जानवरों की संख्या में वृद्धि से बाघ के आवासीय इलाक़े में अशांति व कटौती। | *मानव और पालतू जानवरों की संख्या में वृद्धि से बाघ के आवासीय इलाक़े में अशांति व कटौती। | ||
*[[कृषि]] के लिए वनों तथा विशेष रूप से बाघ की पसंदीदा | *[[कृषि]] के लिए वनों तथा विशेष रूप से बाघ की पसंदीदा ऊँची घास के मैदानों की कटाई। | ||
*युद्ध और विद्रोह। | *युद्ध और विद्रोह। | ||
*आवासीय इलाक़े के विखंडन और अलगाव तथा परिवर्तित वातावरण के अनुसार अपने को ढालने एवं मनुष्य की निकटता व अपव्यय से तालमेल बिठाने में बाघ की विफलता। | *आवासीय इलाक़े के विखंडन और अलगाव तथा परिवर्तित वातावरण के अनुसार अपने को ढालने एवं मनुष्य की निकटता व अपव्यय से तालमेल बिठाने में बाघ की विफलता। | ||
[[चित्र:Tiger-4.jpg|thumb|250px|left|बाघ]] | |||
===बाघ की केवल पांच जातियाँ शेष=== | ===बाघ की केवल पांच जातियाँ शेष=== | ||
1999 के आकलन के अनुसार, बाघ की शेष पांच जातियों की संख्या इस प्रकार है- | [[1999]] के आकलन के अनुसार, बाघ की शेष पांच जातियों की संख्या इस प्रकार है- | ||
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भारतीय बाघ - 3,000 से 4,550 | भारतीय बाघ - 3,000 से 4,550 | ||
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एमूर बाघ - 360 से 400 | एमूर बाघ - 360 से 400 | ||
इस प्रकार 20वीं सदी के अंत में विश्व भर में बाघों की कुल संख्या 5,000 से 7,500 के बीच होने का अनुमान था।</poem> | इस प्रकार 20वीं सदी के अंत में विश्व भर में बाघों की कुल संख्या 5,000 से 7,500 के बीच होने का अनुमान था।</poem> | ||
==घटती संख्या पर चिंतन== | ==घटती संख्या पर चिंतन== | ||
तीन दशक पहले बाघों की घटती संख्या पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई थी और धीरे-धीरे सभी देशों ने इस जानवर की सुरक्षा के उपाय किए, जिनमें अलग-अलग हद तक सफलता मिली। बाघ को अपने आवासीय इलाक़े में क़ानूनी सुरक्षा प्राप्त है, लेकिन सब जगह क़ानून कारगर ढंग से लागू नहीं हो रहा है। भारत ने, | [[चित्र:Tiger-Hunting-4.jpg|thumb|300px|बाघ का शिकार]] | ||
तीन दशक पहले बाघों की घटती संख्या पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई थी और धीरे-धीरे सभी देशों ने इस जानवर की सुरक्षा के उपाय किए, जिनमें अलग-अलग हद तक सफलता मिली। बाघ को अपने आवासीय इलाक़े में क़ानूनी सुरक्षा प्राप्त है, लेकिन सब जगह क़ानून कारगर ढंग से लागू नहीं हो रहा है। भारत ने, जहाँ बाघों की आधी संख्या पाई जाती है, इसे राष्ट्रीय पशु घोषित किया है और 1973 में महत्त्वाकांक्षी बाघ परियोजना शुरू की, जिसके तहत चुने हुए बाघ आरक्षित क्षेत्रों को विशिष्ट दर्ज़ा दिया गया और वहाँ विशेष संरक्षण प्रयास किए गए। [[नेपाल]], [[मलेशिया]] और इंडोनेशिया ने कई राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य स्थापित किए हैं, जहाँ इस जानवर की कारगर ढंग से रक्षा की जाती है। थाइलैंड, कंबोडिया और वियतनाम भी ऐसी ही कार्रवाई कर रही हैं। चीन एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ बाघ की तीनों उपप्रजातियाँ हैं, जिनमें सबसे अधिक संकटापन्न दक्षिण चीन का बाघ है; वह भी बाघ के संरक्षण पर विशेष ध्यान दे रहा है, रूस एवं सुदूर पूर्व में, जहां ग़ैरक़ानूनी शिकार ने एमूर बाघ के लिए गंभीर ख़तरा पैदा कर दिया है, सघन प्रयास और कारगर गश्त से इसकी संख्या में बढ़ोतरी हुई है। | |||
बाघ की स्थिति ने व्यापक सहानुभूति जगाई है और इसके संरक्षण के लिए काफ़ी पैसा मिला है। वर्ल्ड वाइड फ़ंड फ़ॉर नेचर (डब्लू. डब्लू.एफ.) पथप्रदर्शक और सबसे बड़ा अंशदाता रहा है, लेकिन एक्सॉन एवं कई अन्य संगठनों ने भी बड़ा योगदान किया है। द कनवेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एन्डेंजर्ड स्पीशीज़ (साइटेस) को बाघ के उत्पादों के ग़ैरक़ानूनी व्यापार पर नियंत्रण का काम सौंपा गया है बाघ को बचाने के लिए संयुक्त प्रयासों में समन्वय के लिए विश्व बाघ मंच की स्थापना की गई है। | बाघ की स्थिति ने व्यापक सहानुभूति जगाई है और इसके संरक्षण के लिए काफ़ी पैसा मिला है। वर्ल्ड वाइड फ़ंड फ़ॉर नेचर (डब्लू. डब्लू.एफ.) पथप्रदर्शक और सबसे बड़ा अंशदाता रहा है, लेकिन एक्सॉन एवं कई अन्य संगठनों ने भी बड़ा योगदान किया है। द कनवेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एन्डेंजर्ड स्पीशीज़ (साइटेस) को बाघ के उत्पादों के ग़ैरक़ानूनी व्यापार पर नियंत्रण का काम सौंपा गया है बाघ को बचाने के लिए संयुक्त प्रयासों में समन्वय के लिए विश्व बाघ मंच की स्थापना की गई है। | ||
===कम होते बाघ=== | |||
[[एशिया]] में पाए जाने वाले इस राजसी प्राणी के भविष्य पर मनुष्य की काली नज़र बहुत पहले से पड़ चुकी है। प्रकृति के इस भव्य, ताकतवर, अद्भुत और शाही प्राणी को बचाने के लिए अब तक जितनी भी | ====कम होते बाघ==== | ||
===विलुप्त होती प्रजाति=== | [[एशिया]] में पाए जाने वाले इस राजसी प्राणी के भविष्य पर मनुष्य की काली नज़र बहुत पहले से पड़ चुकी है। प्रकृति के इस भव्य, ताकतवर, अद्भुत और शाही प्राणी को बचाने के लिए अब तक जितनी भी योजनाएँ बनीं, उन्हें ठीक से पालन नहीं करने से और लगातार बढ़ती मानव जनसंख्या से जंगलों पर इतना दबाव पड़ रहा है कि कमोबेश हर क्षेत्र में जंगल पिछले एक दशक में अपनी वास्तविक सीमाओं से 47 प्रतिशत तक सिकुड़ चुके हैं। भारत और चीन जैसे ज़्यादा आबादी वाले देशों में तो स्थिति भयावह हो चुकी है। | ||
एशिया में बाघों की कुल नौ | [[चित्र:Tiger-1.jpg|thumb|250px|left|बाघ]] | ||
इसके अलावा सुमात्रा टाइगर, जो सुमात्रा द्वीप समूह में पाया जाता है। इसकी संख्या अब 400 बताई जा रही है। हिंद महासागर में बसे जावा और बाली द्वीपों में पाए जाने वाले जावा टाइगर और बाली टाइगर, जो आकार में सबसे छोटे माने जाते थे, अब विलुप्त मान लिए गए हैं। किसी ज़माने में उत्तर एशिया में मंगोलिया से लेकर कज़ाकिस्तान, [[अफ़ग़ानिस्तान]], तुर्कमेनिस्तान, ईरान, इराक़ से लेकर तुर्की तक पाया जाने वाला कैस्पियन टाइगर भी अब विलुप्त हो चुका है। | ====विलुप्त होती प्रजाति==== | ||
एशिया में बाघों की कुल नौ प्रजातियाँ हैं, जिन्हें क्षेत्र के आधार पर बांटा गया है। इसमें साइबेरियन बाघ, जो रूस के सुदूर और दुर्गम साइबेरिया के बर्फीले जंगलों में अब शायद सिर्फ़ 450 के क़्ररीब बचे हैं। रॉयल बंगाल टाइगर, जो भारत, नेपाल, [[बांग्लादेश]] और म्यांमार के जंगलों में पाया जाता है। इनकी संख्या कुल 1800 के आस पास है। बंगाल टाइगर की सबसे निकटतम प्रजाति है इंडोचाइनीज़ टाइगर, जो कभी लाओस, वियतनाम, कम्बोडिया और मलयेशिया में पाया जाता था। इनकी संख्या अब सिर्फ़ 300 बची है। इसके अलावा मलय टाइगर जो थाइलैंड और मलयेशिया में पाया जाता है। यह अब सिर्फ़ 500 बचे हैं जिनमें से अधिकतर मानव निर्मित पशु शिविरों में पाए जाते हैं। | |||
इसके अलावा सुमात्रा टाइगर, जो सुमात्रा द्वीप समूह में पाया जाता है। इसकी संख्या अब 400 बताई जा रही है। [[हिंद महासागर]] में बसे जावा और बाली द्वीपों में पाए जाने वाले जावा टाइगर और बाली टाइगर, जो आकार में सबसे छोटे माने जाते थे, अब विलुप्त मान लिए गए हैं। किसी ज़माने में उत्तर एशिया में मंगोलिया से लेकर [[कज़ाकिस्तान]], [[अफ़ग़ानिस्तान]], तुर्कमेनिस्तान, [[ईरान]], इराक़ से लेकर तुर्की तक पाया जाने वाला कैस्पियन टाइगर भी अब विलुप्त हो चुका है। | |||
==अवैध कारोबार के शिकार== | ==अवैध कारोबार के शिकार== | ||
[[चित्र:Tiger- | {| class="bharattable-green" border="1" style="margin:5px; float:right" | ||
चीन में वर्ष 2010 में टाइगर वर्ष मनाया जा रहा है और दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इस कारण से इस वर्ष बाघ के अंगों की मांग में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ है। एक रिपोर्ट के अनुसार मध्य एशिया और चीन में बाघ के लिंग की कीमत 80,000 डॉलर प्रति 10 ग्राम है, बाघ की खाल 10,000 से लेकर 1,00,000 डॉलर तक, बाघ की | |+ बाघ शिकार की प्रक्रिया | ||
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चीन में वर्ष [[2010]] में टाइगर वर्ष मनाया जा रहा है और दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इस कारण से इस वर्ष बाघ के अंगों की मांग में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ है। एक रिपोर्ट के अनुसार मध्य एशिया और चीन में बाघ के लिंग की कीमत 80,000 डॉलर प्रति 10 ग्राम है, बाघ की खाल 10,000 से लेकर 1,00,000 डॉलर तक, बाघ की हड्डियाँ 9,000 डॉलर प्रति किलो तक बिक जाती है। हृदय और अन्य आंतरिक अंगों की कीमत भी हज़ारों लाखों में है. इसके बावजूद ख़रीदारों की कोई कमी नहीं है। | |||
चीनी मान्यता के अनुसार मनाए जाने वाले टाइगर इयर में सभी को इस साल इस विलक्षण प्राणी को बचाने की कोशिश करनी चाहिए वरना आने वाले सालों में बाघ भी ड्रैगन की तर्ज़ पर क़िस्से कहानियों में देखा पढ़ा जाएगा। | चीनी मान्यता के अनुसार मनाए जाने वाले टाइगर इयर में सभी को इस साल इस विलक्षण प्राणी को बचाने की कोशिश करनी चाहिए वरना आने वाले सालों में बाघ भी ड्रैगन की तर्ज़ पर क़िस्से कहानियों में देखा पढ़ा जाएगा। | ||
देश में | |||
देश में सिर्फ़ 1411 बाघ ही बचे है यह गिनती सही है या ग़लत इस पर सवाल उठाया जा सकता है पर यह सच है कि हमारे देश के जंगलों व अभयारण्यों में तस्करों द्वारा किये गए अवैध शिकार के चलते बाघों की संख्या में तेज़ीसे गिरावट आई है और यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब बाघ सिर्फ़ चिड़ियाघरों तक ही सिमित हो जायेंगे। हमारे नन्हे ब्लोगर आदि की आशंका भी निराधार नहीं कि अगली बार बाघ चिड़ियाघर में भी देखने को ना मिले। बाघों को शिकारियों के शिकार से बचाने के लिए सरकार भी इतने सुरक्षा कर्मी जंगलों में तैनात नहीं कर सकती जो इन शिकारियों पर अंकुश लगा सके। इसके लिए हमें जंगल के आस-पास रहने वाले ग्रामीणों के सामने ही बाघ की महत्ता के उदहारण पेश उन्हें समझाना होगा कि बाघ उनके खेतों से दूर जंगल रह कर भी कैसे उनकी खेतों में कड़ी फ़सल की रखवाली कर सकता है और इस असंतुलन से बचने के लिए जंगल में बाघ का होना हमारे लिए कितना ज़रूरी है। | |||
==पारिवारिक इकाई== | ==पारिवारिक इकाई== | ||
*गर्म इलाक़ों में बाघ वर्ष भर बच्चे पैदा करते हैं। | *गर्म इलाक़ों में बाघ वर्ष भर बच्चे पैदा करते हैं। | ||
*ठंडे इलाक़ों में ये वसंत के मौसम में प्रजनन करते हैं। | *ठंडे इलाक़ों में ये वसंत के मौसम में प्रजनन करते हैं। | ||
*इनकी औसत गर्भावधि 113 दिन की होती है और एक बार में 2 या 3 शावक पैदा होते हैं। | *इनकी औसत गर्भावधि 113 दिन की होती है और एक बार में 2 या 3 शावक पैदा होते हैं। | ||
*शावक धारीदार होते हैं और | *शावक धारीदार होते हैं और माँ के साथ तब तक रहते हैं, जब तक वे वयस्क होकर अपने आप शिकार करने में समर्थ न हो जाएँ। शावक जब तक आत्मनिर्भर नहीं हो जाते, बाघिन दुबारा प्रजनन नहीं करती। | ||
*बाघ की औसत आयु क़रीब 11 साल होती है। | *बाघ की औसत आयु क़रीब 11 साल होती है। | ||
*क़ैद में रहने पर अत्यधिक निकट संबंध के कारण बाघ और सिंह का संकर पैदा हो सकता है। ऐसे प्रजनन में यदि बाघ पिता है, तो शावक टिगॉन और यदि सिंह पिता है, तो शावक लाइगर कहलाता है। | *क़ैद में रहने पर अत्यधिक निकट संबंध के कारण बाघ और सिंह का संकर पैदा हो सकता है। ऐसे प्रजनन में यदि बाघ पिता है, तो शावक टिगॉन और यदि सिंह पिता है, तो शावक लाइगर कहलाता है। | ||
[[चित्र:Tiger-5.jpg|thumb|250px|left|बाघ]] | |||
==शावकों का लालन पालन== | ==शावकों का लालन पालन== | ||
100 दिन की गर्भावधि के बाद शावक पैदा होते हैं। एक बार में दो से चार शावक पैदा होते हैं। शावक अंधे पैदा होते हैं और जब उनकी | 100 दिन की गर्भावधि के बाद शावक पैदा होते हैं। एक बार में दो से चार शावक पैदा होते हैं। शावक अंधे पैदा होते हैं और जब उनकी आँखें खुली भी रहती हैं, तब भी वे अपारदर्शिता के कारण छह से आठ हफ़्ते तक स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते। इस कारण दूध-छुड़ाई, संरक्षण और प्रशिक्षण का लंबा समय होता है, जिसके दौरान शावक की मृत्यु दर अधिक होती है, विशेष रूप से यदि खाने की भी कमी हो। शिकार पर जाने के कारण लंबे समय तक माँ की अनुपस्थिति और कभी-कभी खाना उपलब्ध होने की स्थिति में ताक़तवर शावकों की आक्रामकता के कारण कमज़ोर शावकों को कम भोजन मिलता है। नर शावक मादा शावकों की तुलना में ज़्यादा तेज़ी से बढ़ते हैं और अपनी माँ को जल्दी छोड़ देते हैं। शिकार करने का कौशल आंशिक रूप क़ैद में पाले-पोसे गए बाघों को यदि वनों में छोड़ा गया, तो वे अच्छी तरह से अपना भरण-[[पोषण]] नहीं कर पाते हैं। हालांकि मुख्य रूप से नर द्वारा शावकों की हत्या की बात का पता चलता है, लेकिन बाघिन और शावकों के साथ नर के होने, यहाँ तक कि शिकार में हिस्सेदारी असामान्य बात नहीं है। लेकिन यह साथ लंबे समय तक नहीं रहता। | ||
==नरभक्षी बाघ== | ==नरभक्षी बाघ== | ||
नरभक्षण से बढ़कर बाघ के किसी और आचरण ने आदमी को विकर्षित नहीं किया है। इस विपथन के कई कारण हैं, उम्र व चोट के कारण विकलांगता, शिकार की कमी, | [[चित्र:Tiger-Hunting.jpg|thumb|300px|[[हाथी]] के ऊपर बाघ का शिकार]] | ||
नरभक्षण से बढ़कर बाघ के किसी और आचरण ने आदमी को विकर्षित नहीं किया है। इस विपथन के कई कारण हैं, उम्र व चोट के कारण विकलांगता, शिकार की कमी, माँ से यह आदत सीखना, शावक या शिकार किए जानवर को बचाने या अन्य कारणों से आदमी को मारना और इसके बाद उसे खाना। बाघों की संख्या में कमी के कारण नरभक्षी बाघ भी दुर्लभ हो गए हैं, केवल [[पश्चिम बंगाल]] में [[सुंदरवन]] के जंगल इसका अपवाद हैं। | |||
==समाचार== | ==समाचार== | ||
====शुक्रवार, 12 नवंबर, 2010==== | |||
==== | '''पिछली सदी में 39 हज़ार बाघ विलुप्त'''<br /> | ||
''' | एक अनुमान के मुताबिक़ सौ साल पहले [[भारत]] में बाघों की संख्या 40,000 थी। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण ऑथारिटी के अनुसार सन् [[2002]] के सर्वेक्षण में जहाँ बाघों की संख्या 3500 आंकी गई थी, वहीं [[2008]] में यह घटकर 1411 हो गई है। यानि कि अब भारत में मात्र 1411 बाघ बचे हैं। बताया जाता है कि पिछले पांच वर्षों में बाघों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज़ की गई है। वन्य जीवों के लिए काम करने वालों का मानना है कि साल 2025 तक बाघों के विलुप्त हो जाने का ख़तरा है। बाघों की कुल आबादी के 40 फ़ीसदी बाघ भारत में पाए जाते हैं। भारत के 17 प्रदेशों में बाघों के 23 संरक्षित क्षेत्र हैं। [[एशिया]] महाद्वीप में बाघों की संख्या... | ||
एक अनुमान के | |||
==== | ====समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें==== | ||
*[http://kobrapost.blogspot.com/2009/06/blog-post_06.html कोबरा पॉस्ट] | *[http://kobrapost.blogspot.com/2009/06/blog-post_06.html कोबरा पॉस्ट] | ||
*[http://paryanaad.blogspot.com/2007/11/39.html पर्यानाद्] | *[http://paryanaad.blogspot.com/2007/11/39.html पर्यानाद्] | ||
*[http://suchthetruth.blogspot.com/2010/07/blog-post_13.html The Power of truth] | *[http://suchthetruth.blogspot.com/2010/07/blog-post_13.html The Power of truth] | ||
[[चित्र:Tiger-01.jpg|thumb|250px|बाघ]] | |||
====सोमवार, 28 मार्च, 2011==== | |||
'''भारत में बाघों की संख्या 1706 हुई, 295 बाघ बढ़े'''<br /> | |||
देश में बाघों की संख्या बढ़ गई है। वर्ष [[2006]] में इनकी संख्या 1411 थी जो 21 फ़ीसदी बढ़कर 1706 हो गई है। बाघों की ताज़ा गणना में ये आंकड़े सामने आए। पर्यावरण मंत्री [[जयराम रमेश]] ने सोमवार को देशभर के बाघों की संख्या से जुड़े आंकड़े तीन दिवसीय इंटरनेशनल बाघ कॉन्फ्रेंस में जारी किए। उन्होंने कहाँ कि बाघों की संख्या में इज़ाफ़ा एक अच्छी खबर है। हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि [[2009]] और [[2010]] में बाघों की मृत्यु दर सामान्य से अधिक रही। कैमरा ट्रैप विधि से डेढ़ साल से अधिक उम्र के 615 बाघों के फ़ोटोग्राफ खींचे गए हैं। मध्य भारत में बाघों पर हमले की घटना में कमी आई है। ख़ासकर [[आंध्र प्रदेश]] व [[मध्य प्रदेश]] के गलियारे में। | |||
====समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें==== | |||
{{लेख प्रगति | *[http://www.bhaskar.com/article/SPLDB-295-tigers-in-the-country-increased-1973060.html दैनिक भास्कर] | ||
|आधार= | *[http://www.khaskhabar.com/tigers-increase-in-india-03201129279731406.html ख़ास खबर] | ||
|प्रारम्भिक= | *[http://www.patrika.com/news.aspx?id=560927 पत्रिका डॉट कॉम] | ||
|माध्यमिक= | *[http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/7807968.cms नवभारत टाइम्स] | ||
|पूर्णता= | |||
|शोध= | ==बाघ संरक्षण के लिए भारत की प्रशंसा== | ||
}} | न्यूयार्क, अमेरिका के एक वन्यजीव संरक्षण संस्थान ने लुप्त प्राय बाघों के संरक्षण के लिए [[भारत]] की 'बेमिसाल प्रतिबद्धता' की तारीफ़ की है। न्यूयार्क की वाइल्ड लाइफ़ कंजर्वेशन सोसायटी (डब्ल्यूसीएस) ने [[एशिया]] की विभिन्न सरकारों को चेतावनी दी है कि लुप्त हो रही प्रजातियों को बचाने का उनका समय तेज़ीसे निकल रहा है। कोरिया के जेजु में आयोजित 'वर्ल्ड कंजर्वेशन कांग्रेस' में संस्था ने 5 सितम्बर, 2012 को कहा "भारत ने वर्ष 1972 में प्रोजेक्ट टाइगर की घोषणा के साथ बाघों की जिम्मेदारी ली। ऐसा करके उसने स्पष्ट संदेश दिया कि जंगली बाघों का भविष्य उसके हाथ में है और उनके भविष्य के लिए वह (भारत) पूरी तरह जिम्मेदार होगा।" | ||
संस्था ने कहा कि समस्याएँ और चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं, लेकिन भारत प्रतिबद्ध है कि बाघों का प्रभावी तरीक़े से उनके आवासों में संरक्षण होना चाहिए। भारत के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकार की ओर से 28 मार्च, 2011 को जारी बाघ गणना रिपोर्ट के मुताबिक़ बाघों की संख्या कम से कम 1,571 और अधिक से अधिक 1,875 है।<ref>आभार- राष्ट्रीय सहारा, दिनांक 7 सितम्बर 2012, पृष्ठ-20 </ref> | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक3|पूर्णता=|शोध=}} | |||
==वीथिका== | |||
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चित्र:White-Tiger-Arignar-Anna-Zoo-Chennai.jpg|बाघ, [[अरिनगर अन्ना चिड़ियाघर चेन्नई|अरिनगर अन्ना चिड़ियाघर]], [[चेन्नई]] | |||
चित्र:White-Bengal-Tiger.jpg|बाघ | |||
चित्र:Tiger-7.jpg|बाघ | |||
चित्र:Tiger-6.jpg|बाघ, [[भुवनेश्वर]] | |||
चित्र:Bannerghatta-National-Park.jpg|बाघ, [[वनेरघटा राष्ट्रीय उद्यान]], [[कर्नाटक]] | |||
चित्र:Tiger2.jpg|बाघ | |||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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*[http://subhashinmedia.blogspot.com/2010/02/blog-post_11.html राजा का है हाल बेहाल] | *[http://subhashinmedia.blogspot.com/2010/02/blog-post_11.html राजा का है हाल बेहाल] | ||
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*[http://www.indianwildlifeportal.com/project-tiger/index.html indianwildlifeportal.com] | *[http://www.indianwildlifeportal.com/project-tiger/index.html indianwildlifeportal.com] | ||
*[http://projecttiger.nic.in/ Projecttiger] | *[http://projecttiger.nic.in/ Projecttiger] | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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09:57, 11 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
बाघ
| |
जगत | जीव - जन्तु |
संघ | कॉर्डेटा (Chordata) |
वर्ग | स्तनपायी (Mammalia) |
गण | कार्नीवोरा (Carnivora) |
कुल | फ़ेलिडी (Felidae) |
जाति | पैंथरा (Panthera) |
प्रजाति | टाइग्रिस (tigris) |
द्विपद नाम | पैंथरा टाइग्रिस (Panthera tigris) |
अन्य जानकारी | 'पेंथेरा टाइग्रिस' भारतीय या बंगाल टाइगर नाम सबसे अधिक लोकप्रिय है। ये अधिकतर पूर्वी भारत और बांग्लादेश के सुंदरवन के मंग्रोव जंगलों में रहते हैं। |
बाहरी कड़ियाँ | विश्व बाघ दिवस |
राष्ट्रीय पशु
बाघ पैंथरा टाइग्रिस-लिन्नायस, पीले रंगों और धारीदार लोमचर्म वाला एक पशु है। राजसी बाघ, तेंदुआ, टाइग्रिस धारीदार जानवर है। अपनी शालीनता, दृढ़ता, फुर्ती और अपार शक्ति के लिए बाघ को 'राष्ट्रीय पशु' कहलाने का गौरव प्राप्त है। बाघ की आठ प्रजातियों में से भारत में पाई जाने वाली प्रजाति को रॉयल बंगाल टाइगर के नाम से जाना जाता है। उत्तर-पश्चिम भारत को छोड़कर बाकी सारे देशों में यह प्रजाति पायी जाती है। भारत के अतिरिक्त यह नेपाल, भूटान और बंगलादेश जैसे पड़ोसी देशों में भी पाया जाता है। बाघ कहलाए जाने वाले अन्य जानवर है:-
- वर्ष 2010 में वर्ल्ड वाइड फ़ंड फ़ॉर नेचर ने बाघों की आबादी महज 3,500 बताई। इसके पहले डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ. ने दुनिया भर में बाघों की संख्या 4000 के लगभग बताई थी।
उत्पत्ति
- ऐसा समझा जाता है कि बाघ की उत्पत्ति उत्तरी यूरेशिया में हुई और यह दक्षिण की ओर चला आया था।
- वर्तमान में यह रूस के सुदूर पूर्वी इलाक़े से चीन, भारत और दक्षिण पूर्वी एशिया तक पाया जाता है।
- इसकी सामान्य रूप से मान्य आठ प्रजातियाँ होती हैं।
- इनमें से जावा बाघ, बाली बाघ और कैरिबयाई बाघ विलुप्त हो गए है।
- चीनी बाघ विलुप्त होने के क़रीब हैं और सुमात्राई, साइबेरियाई एवं भारतीय उपप्रजातियाँ रेड डेटा बुक में निश्चित तौर पर संकटापन्न बताई गई हैं।
रूप और आकृति
- बाघ पर मोटी पीली लोमचर्म का कोट होता है जिस पर गहरी धारीदार पट्टियाँ होती हैं।
- लावण्यता, ताकत, फुर्तीलापन और आपार शक्ति के कारण बाघ को भारत के 'राष्ट्रीय जानवर' के रूप में गौरवान्वित किया है।
- बाघ की अयाल नहीं होती, लेकिन बूढ़े नर के गाल के बाल अपेक्षाकृत लंबे और फैले हुए होते हैं।
- नर बाघ मादा से बड़ा होता है और इसकी कंधे तक की ऊँचाई क़रीब 1 मीटर, लंबाई लगभग 2.2 मीटर, पूंछ क़रीब 1 मीटर लंबी, और वज़न लगभग 160 से 230 किलोग्राम या ज़्यादा से ज़्यादा लगभग 290 किलोग्राम होता है।
- सफ़ेद बाघों में सभी पूर्णत सफ़ेद नहीं होते, इनमें से लगभग सभी भारत में विंध्य और कैमूर पर्वत श्रृंखलाओं में पाए जाते हैं।
बाघ | |
---|---|
वंश | पैंथेरा |
प्रजाति | टिगरिस |
वैज्ञानिक नाम | पैंथेरा टिगरिस |
आवास | वन्य प्राणी |
स्थान | दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व-एशिया और रूस के सुदूर पूर्व |
आबादी | 3200 |
स्थिति | विलुप्ति का ख़तरा |
- काले बाघ के पाए जाने की भी ख़बर है, ये म्यांमार, बांग्लादेश और पूर्वी भारत के घने जंगलों में कभी-कभी पाए जाते हैं।
- बाघ घास वाले दलदली इलाक़ों और जंगलों में रहता है; यह महलों या मंदिरों जैसी इमारतों के खंडहरों में भी पाया जाता है।
- शक्तिशाली और आमतौर पर एकांत प्रिय यह विडाल एक अच्छा तैराक है और लगता है कि इसे नहाने में मज़ा आता है, विपत्ति में यह पेड़ पर चढ़ सकता है।
- स्थान और प्रजाति के अनुसार बाघ के आकार और विशिष्ट रंग एवं धारीदार चिह्न में भी परिवर्तन होता है। उत्तर के मुक़ाबले दक्षिण के बाघ छोटे और ज़्यादा भड़कीले रंग के होते हैं।
- बंगाल टाइगर (पी. टाइग्रिस) और दक्षिण-पूर्वी एशिया के द्वीपों के बाघ, उदाहरण के तौर पर, कुछ-कुछ लाल और भूरे रंग के, लगभग गहरी काली सुंदर अनुप्रस्थ धारियों वाले होते हैं। भीतरी हिस्से, पैर के अंदर की ओर, गाल और दोनों आंखों के ऊपर एक बड़ा सफ़ेद सा धब्बा होता है। लेकिन उत्तरी चीन और रूस के बहुत बड़े और दुर्लभ साईबेरियाई बाघों (पी. टाइग्रिस एल्टाइका) के बाल लंबे, मुलायम और हल्के पीले होते हैं।
- कुछ काले और सफ़ेद बाघ भी होते है और केवल एक पूर्णतः सफ़ेद बाघ की ही जानकारी मिली है।
भोजन
शिकार करने और भर पेट खाने के बाद बाघ बची हुई लाश को गिद्ध और अन्य अपमार्जकों से छुपाने का जान-बूझकर प्रयास करता है, जिससे भविष्य में भी खाना मिल सके। वह अन्य बाघों या तेंदुओं द्वारा मारे गए शिकार को ले जाने में भी नहीं झिझकता और कभी-कभी वह सड़ा मांस भी खा लेता है। बाघ रात को शिकार करता है। चीतल, हिरन, जंगली सूअर एवं मोर सहित विभिन्न प्रकार के जानवरों को अपना शिकार बनाता है। साधारणत: यह हृष्ट-पुष्ट बड़े स्तनधारियों पर हमला नहीं करता, यद्यपि ऐसी घटनाएँ हैं, जब बाघ ने हाथी या जवान भैंसे पर हमला किया। बाघ कभी-कभी मानव बस्तियों से भी पालतू जानवरों को उठाकर ले जाता है। बूढ़ा या विकलांग बाघ या शावकों वाली बाघिन आदमी का आसानी से शिकार कर सकते हैं तथा नरभक्षी बन जाते हैं।
बाघ संरक्षण
विश्व की बाघों की कुल आबादी का 60 फ़ीसदी हिस्सा भारत में ही रहता है। गति और शक्ति का प्रतीक बाघ हमारा राष्ट्रीय पशु भी है। ऐसे में इसको देखने का शौक़ तो होना स्वाभाविक ही है। देश में सरकार ने 38 टाइगर रिजर्व घोषित किए हुए हैं। मध्य प्रदेश में स्थित बांधवगढ़ अपने राष्ट्रीय उद्यान के लिए प्रसिद्ध है और यहां की ख़ासियत बाघ हैं। यहां पर्यटक रॉयल बंगाल टाइगर, तेंदुए, चीतल, सांभर और भी कई प्रजातियों को देख सकते हैं।
आंकडों पर एक नज़र
यद्यपि विगत 1,000 साल से बाघ का शिकार किया जाता रहा है, फिर भी 20वीं सदी के शुरू में जंगलों में रहने वाले बाघों की संख्या 1,00,000 आंकी गई थी। इस सदी के अवसान पर ऐसी आशंका थी कि विश्व भर में केवल 5,000 से 7,000 बाघ बचे हुए हैं। आज तक बाघों का महत्त्व विजयचिह्न और महंगे कोटों के लिए खाल के स्रोत के रूप में था। बाघों को इस आधार पर भी मारा जाता था कि वे मानव के लिए ख़तरा हैं। 1970 के दशक में अधिकतर देशों में शौक़िया शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया तथा बाघ की खाल का व्यापार ग़ैर क़ानूनी बना दिया गया। 1980 के दशक में बाघों की गणना से पता चला कि उनकी संख्या बढ़ रही है और ऐसा लगा कि संरक्षण प्रयास सफल हो रहे हैं और उनके विलुप्त होने का कोई ख़तरा नहीं है। किंतु स्थिति ऐसी नहीं थी, जैसी दिखाई देती थी। बाघ के अंगों, खोपड़ी, हड्डियों, गलमुच्छ, स्नायुतंत्र और ख़ून को लंबे समय से एशियाई लोग, विशेष रूप से चीनी, औषधि और शक्तिवर्द्धक पेय बनाने में इस्तेमाल करते रहे हैं, जिसका गठिया, मूषक दंश और विभिन्न बीमारियों को ठीक करने, ताक़त बहाल करने और कामोत्तेजक के रूप में उपयोग किया जाता है। जब तक बाघ के शिकार पर प्रतिबंध नहीं लगा था। उसके शरीर के इन भागों की कभी कमी नहीं रही। लेकिन 1980 के दशक के अंत में इन अंगों के भंडार ख़त्म हो रहे थे और ऐसे सबूत थे कि इनको पाने के लिए तब भी बाघों को मारा जा रहा था। सावधानीपूर्वक की गई गणना से पता चला कि कर्मचारियों ने, जिनकी ग़ैरक़ानूनी शिकारियों से सांठ-गांठ थी या जो उच्चाधिकारियों को खुश करने के लिए उत्सुक थे, पहले की गणना को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया था। इसी समय ग़ैरक़ानूनी शिकार की ख़बरें तेज़ी से बढ़ रही थीं तथा बाघ के अंगों का अवैध व्यापार फल-फूल रहा था और आपूर्ति में कमी के कारण इनकी क़ीमतें और ज़्यादा हो गई थीं। कभी-कभी अपराधी को पकड़ा जाता था और बरामद माल को नष्ट किया जाता था, जिसका अत्यधिक प्रचार भी किया जाता था। वास्तव में तस्करों को रोकने के लिए बहुत कम प्रयास किए गए और कई देशों में चीनी औषधि विक्रेताओं के पास शक्तिवर्धक पेय अब भी उपलब्ध हैं।
प्रतिबंधित देश
सरकारों पर उन देशों के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाने के लिए दबाव डाला गया, जो बाघ के अंगों के व्यापार को समाप्त करने के लिए समुचित उपाय करने में विफल रहे। संरक्षणकर्ताओं ने यह विश्वास करते हुए कि संयुक्त राज्य अमरीका द्वारा दंडात्मक उपाय की धमकी ही परिवर्तन लाने में मदद करेगी, राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के प्रशासन से कार्रवाई करने का आग्रह किया और अप्रैल 1994 में उन्होंने ऐसा किया भी। ताइवान से क़रीब 2 करोड़ 50 लाख डॉलर सालाना मूल्य के वन्य जीव उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया। कुछ सरकारों ने सहयोग का प्रयास किया। मार्च 1994 में भारत ने बाघों को बचाने के एक संगठित प्रयास के तहत 10 राष्ट्रों के 'विश्व बाघ मंच' की पहली बैठक बुलाई।
ग़ैर क़ानूनी शिकार बंद हो जाने के बावजूद बाघ के लिए ख़तरा समाप्त नहीं होगा। भारत में, जहाँ सबसे अधिक संख्या में बाघ रहते हैं। तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या की अधिक भूमि की आवश्यकता के कारण बाघों के आवास और भोजन आपूर्ति में कमी आ रही है। इसके बावजूद प्रकृति के प्रति वास्तविक सम्मान क़ायम है और बाघों को बचाने के लिए भारत पहले ही बड़ी राशि ख़र्च कर चुका है। आशा है कि शायद मानव और बाघ सहअस्तित्व जारी रखने के लिए कोई रास्ता ढूंढ निकालेंगे।
भारत में बाघ
खत्म होते जंगल और शिकारियों पर अंकुश न होने से राष्ट्रीय पशु और जंगल के राजा बाघ की संख्या लगातार कम होती जा रही है। देश के सभी अभयारण्य में लगातार इनकी संख्या कम होती जा रही है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार बीसवीं सदी के शुरू में देश में 40 हज़ार से ज़्यादा बाघ थे। सदी के शुरुआती सात दशकों में अंधाधुंध शिकार और जंगलों के सिमटने के कारण 1972 में बाघों की संख्या घटकर 1872 रह गई। बाघों की इस तरह गिरती संख्या पर केन्द्र सरकार ने 1973 में नौ टाइगर रिजर्व इलाकों में "बाघ बचाओ योजना" शुरू की। इसमें उत्तर प्रदेश तथा अब उत्तराखंड का जिम कार्बेट बाघ संरक्षित वन क्षेत्र भी शामिल था। उत्तर प्रदेश में राज्य में 26 हज़ार हेक्टयर से ज़्यादा वन इलाके पर अतिक्रमण हो गया है। राज्य में बाघों के रहने का एकमात्र स्थान "दुधवा टाइगर रिजर्व" में भी 827 हेक्टयर ज़मीन पर गैरक़ानूनी क़ब्ज़ा हो चुका है।
उत्तर प्रदेश में जब 1990 में गिनती हुई तो बाघों की संख्या 240 थी। वर्ष 2001 में हुई गणना में 284 बाघ थे जिनमें 123 नर, 132 मादा और 29 शावक थे। दो साल बाद 2003 में हुई गिनती में इनकी संख्या स्थिर रही और दो साल में सिर्फ़ एक बाघ कम मिला। उस समय पाए गए 283 बाघ में 92 नर, 162 मादा और 29 शावक थे। वर्ष 2005 की गिनती में दस बाघ कम हुए और इनकी संख्या 273 हो गई। वर्ष 2007 में कराई गई गिनती के परिणाम 2008 में आए और इनकी संख्या 109 हो गई।
बाघों की गिनती पहले उनके पंजों के निशान के आघार पर होती थी लेकिन 2007 की गणना में नयी पद्धति का इस्तेमाल किया गया। गिनती के इस तरीके को ज़्यादा विश्वसनीय माना गया। कुछ लोगों ने कैमरा ट्रैप पद्धति पर यह कह कर सवाल उठाया कि इसमें कैमरे ज़मीन से डेढ़ फुट ऊपर लगे होते हैं और शावक उसकी रेंज में नहीं आ पाते। शहरीकरण, औद्योगिकी विकास की रफ्तार ने दुनिया भर में जल, जंगल, ज़मीन को नुक़सान पहुँचाया है। इससे सर्वाधिक हानि पर्यावरण एवं उसको बनाए रखने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले अन्य प्राणियों की हुई। जंगल में जबरन घुसे विकास ने जानवरों के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। परिणाम स्वरूप वन्य प्राणी लगातार खत्म होते जा रहे हैं। कुछ जीव जंतु समाप्त हो गये और कुछ जानवरों की कई प्रजातियाँ लुप्तप्राय होने की कगार पर है। ऐसे में छोटे-छोटे वन्य प्राणियों से लेकर जंगल के राजा शेर (बाघ) तक सबके लिए अपनी जान बचाए रखना मुश्किल हो गया है। बाघ संरक्षण के सरकारी इंतज़ाम "सफ़ेद हाथी" साबित हो रहे हैं।
- पेंथेरा टाइग्रिस, नियोफ़ेलिस टाइग्रिस या लियो टाइग्रिस, एशिया की विशालकाय बिल्ली, विडाल कुल (फ़ीलीडी) का सबसे बड़ा सदस्य है। शेर, तेंदुआ और अन्य की तरह बाघ बड़े और दहाड़ने वाले विडालों में से एक हैं। ताक़त और उग्रता में इसका एकमात्र प्रतिद्वंद्वी केवल सिंह है।
- मनुष्य के अनुसार विश्व में सबसे बड़े विडाल वंशी, बाघ (पेंथेरा टाइग्रिस) से अधिक हिंसक कोई जानवर नहीं है और कोई भी इससे ज़्यादा डर पैदा नहीं करता। ऐमूर बाघ (पी.टी. अटलांटिका) की प्रजाति का वज़न 300 किलोग्राम तक और नाक से पूंछ तक लंबाई चार मीटर पाई गई है।
- ज्ञात आठ किस्मों की प्रजाति में से शाही बंगाल टाइगर (बाघ) उत्तर पूर्वी क्षेत्रों को छोड़कर देश भर में पाया जाता है और पड़ोसी देशों में भी पाया जाता है जैसे नेपाल, भूटान और बंगलादेश। भारत में बाघों की घटती जनसंख्या की जांच करने के लिए अप्रैल 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर (बाह्य परियोजना) शुरू की गई। अब तक इस परियोजना के अधीन बाघ के 27 आरक्षित क्षेत्रों की स्थापना की गई है जिनमें 37,761 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र शामिल है।
बाघ की प्रजातियाँ
बाघ प्रजाति कुल 8 थी, जिनमें से 5 ही बची हैं।
- टीग्रीज (पेंथेरा टाइग्रिस)- भारतीय या बंगाल टाइगर सबसे पॉपुलर है। अधिकतर पूर्वी भारत और बांग्लादेश के सुंदरवन के मंग्रोव फॉरेस्ट में रहते हैं। कुछ भूटान, म्यांमार और नेपाल में रहते हैं। नर बाघों स का वज़न क़रीब 227 किलो और मादा बाघों का क़रीब 137 किलो होता है। सफ़ेद बाघ नर की श्रेणी का होता है। यह लुप्तप्राय की श्रेणी में आता है।
- पी.टी. कोर्बेटाई या भारतीय चीनी बाघ- ये मुख्यतः थाईलैंड में पाए जाते हैं लेकिन म्यांमार, दक्षिण चीन, कंबोडिया, लाओस, वियतनाम और मलेशिया में भी हैं। ये बंगाल टाइगर्स से आकार में छोटे और गहरे होते हैं। ये नर बाघ का वज़न क़रीब 182 किलो और मादा का क़रीब 137 किलो होता है। नर 9 फुट लंबे और मादा 8 फुट लंबी होती हैं। यह भी लुप्तप्राय हैं।
- पी.टी. सुमात्राई या सुमात्राई बाघ- ये सबसे छोटे और डार्क (गहरे) होते हैं, लाल रंग के और इनके शरीर पर पास-पास धारियाँ होती हैं। इनका वज़न 114 किलो होता है। ये सुमात्रा में पाए जाते हैं। ये भी लुप्तप्राय हैं।
- साइबेरियन (एलटेशिया)- ये सबसे ऊँचे होते हैं। इनका वज़न 307 किलो और ऊँचाई 11 फुट होती है। रिकॉर्ड में अब तक सबसे भारी साइबेरियन बाघ 466 किलो का रहा है। ये मुख्यतः उत्तरी-पूर्व रूस के इलाके में पाए जाते हैं। ये 33 फुट ऊँची छलांग लगा सकने की क्षमता वाले होते हैं। ये भी खतरे में हैं।
- जवन (सोनडायका)- जावा में कभी ये पाए जाते थे। 1972 में अंतिम बार दिखने वाले इन बाघों को लुप्त मान लिया गया है।
- दक्षिणी चीन (एमोयेनसिस) - चीन के चिड़ियाघरों में ये बचे हैं और कुछ वहाँ के जंगलों में। चीन के मध्य और पूर्वी हिस्से में पाए जाते हैं। ये भी खतरे में हैं।
- कैस्पियन (वरगाटा)- तुर्की से एशिया के केंद्रीय हिस्से तक विचरने वाले ये टाइगर्स ईरान, मंगोलिया और केंद्रीय रूस तक दिखते थे। 1950 वें दशक के बाद ये दिखे ही नहीं।
- बाली (बलिका)- बाली द्वीप पर रहने वाले अंतिम बाली टाइगर को 1937 में मार दिया। ज़िंदा बाली टाइगर की तो कोई तस्वीर ही नहीं है।
जंगली विडाल
एशियाई जंगली विडालों में तेंदुए के बाद बाघ भौगोलिक रूप से सबसे ज़्यादा फैला हुआ है और व्यापक आवासीय विविधता के अनुरूप उसने अपने आप को ढाल लिया है। बाघ की सबसे ज़्यादा आबादी घने वनों के अतिरिक्त उस भूभाग में पाई जाती है, जहाँ बड़ी संख्या में शिकार पाया जाता है, जैसे ऊँची घास के मैदान, मिश्रित घास के मैदानी जंगल और पतझड़ एवं अर्द्ध पतझड़ वन। पूर्वी एशिया के शीतोष्ण और उष्णोष्ण वनों में विकसित विडालवंशियों में सबसे विशालकाय यह बाघ गर्मी को अब भी अपेक्षाकृत कम ही सहन कर पाता है। यह एक कुशल तैराक है, फिर भी न तो मेघश्याम तेंदुए (नियोफ़ेलिस नेबुलोसा) की तरह ताइवान और बोर्नियो द्वीप में और न ही तेंदुए (पेंथेरा पार्डस) की तरह श्रीलंका (भूतपूर्व सीलोन) द्वीप में बस सका। इससे संकेत मिलता है कि बाघ इस द्वीपों के मुख्यभूमि से अलग होने के बाद यहाँ पहुँचे, हालांकि बाघ इंडोनेशियाई द्वीपसमूह के सुमात्रा, जावा और बाली में पाया जाता है। लेकिन अन्य कई जंतु प्रजातियों की तरह यह बाली के पूर्व में गहरे जल मार्ग वैलेस रेखा को पार नहीं कर पाया। अन्य जंतुओं की तरह इन द्वीपों में बाघ औसतन छोटे शरीर का था। विलुप्त बाली बाघ सभी 8 उपप्रजातियों में सबसे छोटा था, शरीर और पूंछ को मिलाकर उसकी औसत लंबाई 2.5 मीटर थ। उपयुक्त आवास की तलाश में यह पश्चिम की ओर तुर्की और काला सागर तक चला आया था।
निवास का विशेष इलाका
बाघ विशेषकर नर अपान इलाक़ा स्थापित व क़ायम करने की कोशिश करते हैं, जिसका आकार व स्वरूप शिकार की संख्या और फैलाव, इलाक़े में अन्य बाघों की उपस्थिति, भूभाग की प्रकृति, पानी की उपलब्धता, जलवायु तथा व्यक्तिगत विशेषताओं पर निर्भर करता है। बाघ एक-दुसरे से दूरी और अपने इलाक़े का क़ब्ज़ा, दहाड़ने, भूमि खुरचने, पेड़ों पर पंजों के निशान, विष्ठा निक्षेपण, चेहरे की ग्रथियों को रगड़कर गंध निक्षेपण तथा गुदा ग्रंथियों से निकाली गंध एवं मूत्र के मिश्रण के छिड़काव से हासिल करता है। इस जाति की एकांतप्रियता भी क्षेत्र संघर्ष को टालने में मदद करती है। फिर भी संघर्ष होता है, जो कभी चोट या मृत्यु का भी कारण बन जाता है। बाघ विशेष शिकार को प्राथमिकता देता है। आमतौर पर अपने शरीर के वज़न के बराबर वज़न वाली प्रजातियाँ, जैसे सांबर, दलदली हिरन और जंगली सूअर आदि को। क़ांटों से घायल होने के ख़तरे के बावजूद साही के प्रति विशेष रुचि एक अपवाद है कई इलाक़ों में केवल अपनी अधिक संख्या के कारण चीतल, बाघ के आहार का मुख्य भाग है।
प्रकृति संतुलन में बाघ की भूमिका
सर्वोच्च परभक्षी होने के कारण बाघ प्रकृति की नियंत्रण और संतुलन योजना में प्रमुख भूमिका निभाता है। शिकार किए जाने वाले जानवरों के अलावा यह अपने इलाक़े के अन्य परभक्षी तेंदुए की संख्या पर भी नियंत्रण रखता है। इसके विपरीत शिकार होने वाली प्रजातियों की स्थिति का भी बाघ की संख्या और वितरण पर असर पड़ता है, लेकिन उतना नहीं जितना प्राकृतिक शिकार पर पूरी तरह निर्भर परभक्षी प्रजातियों, जैसे जंगली कुत्ते और मेघश्याम तेंदुए पर पड़ता है, क्योंकि बाघ पालतू जानवरों को भी खाता है।
परंपरागत हिन्दू विश्वास के अनुसार
बाघ देवी दुर्गा का वाहन है। जीववाद का अनुसरण करने वाले कुछ जनजातीय समुदाय अब भी बाघ को पूजते है और उसके आवासीय क्षेत्र में रहने वाले उसे भय और श्रद्धा से देखते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरों में बाघ को दर्शाया गया है। प्राचीन काल में गुप्त सम्राटों में से सबसे महान् समुद्रगुप्त के विशेष सोने के सिक्के में उन्हें बाघ का वध करते हुए दिखाया गया है। अपने प्रबल शत्रु अंग्रेज़ों को हरा न सकने के कारण टीपू सुल्तान ने अपनी कुंठा को दूर करने के लिए अंग्रेज़ सैनिक का शिकार करता हुआ जीवित बाघ जितना बड़ा और आवाज़ निकालने वाला बाघ का खिलौना मंगवाया था। एशियाई कला और दंत कथाओं में हाथी और सिंह के बाद बाघ जितना चित्रण किसी अन्य वन्य पशु का नहीं हुआ है। वैज्ञानिक प्रमाणों के विपरीत बाघ के अंगों को तावीज़, खुराक या औषधि के रूप में इस्तेमाल करने की वर्तमान प्रथा बाघ के प्रभामंडल तथा सहस्राब्दियों से उसके प्रति भय से उपजे विश्वास को दर्शाता है। चीनी पंचाग का प्रत्येक 12वां साल व्याघ्र वर्ष के रूप में मनाया जाता है और इसमें जन्मे बच्चे विशेष रूप से भाग्यशाली और शक्तिशाली माने जाते हैं। बाघ दंतकथाओं और अंधविश्वासों का विषय रहा है। खेल और खाल के लिए इसका शिकार किया जात है। जहाँ यह पाया जाता है, वहाँ अपने विभिन्न अंगों के कथित रोगनाशक, संरक्षी या कामोत्तेजक गुणों के कारण इसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
बाघ के अंगों का प्रयोग
- प्रदर्शन और पूजा के लिए खाल सहित बाघ के अंगों को काफ़ी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- तावीज़ के लिए पंजे, दांत और हंसुली।
- अपने दुश्मन को आंत के अल्सर से पीड़ित करने के लिए गलमुच्छ।
- औषधि के लिए रक्त और मूत्र।
- शक्तिवर्द्धन और पराक्रम के लिए मांस।
- संभोग शक्ति के लिए शिश्न।
- सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि औषधि एवं चीनी शराब के लिए हड्डियाँ इस्तेमाल की जाती है। एक अच्छी खाल की क़ीमत 15,000 डॉलर तक हो सकती है। एक किग्रा हड्डियाँ 250 डॉलर में बेची जा सकती हैं।
ग़ैरक़ानूनी शिकार
ग़ैरक़ानूनी शिकार बाघों की संख्या में कमी का एक प्रमुख कारण रहा है, लेकिन पिछली दो सदियों में उनकी संख्या में भारी कमी के कारण हैं-
- आवासीय इलाक़े में तेज़ी से कटौती, गुणात्मक और परिमाणात्मक दोनो रूप से।
- शौक़िया शिकार।
- बाघ जातियों की संख्या में कमी के कारण पालतू जानवरों पर ज़्यादा निर्भरता और इस कारण आदमी द्वारा बदले की कार्रवाई।
- मानव और पालतू जानवरों की संख्या में वृद्धि से बाघ के आवासीय इलाक़े में अशांति व कटौती।
- कृषि के लिए वनों तथा विशेष रूप से बाघ की पसंदीदा ऊँची घास के मैदानों की कटाई।
- युद्ध और विद्रोह।
- आवासीय इलाक़े के विखंडन और अलगाव तथा परिवर्तित वातावरण के अनुसार अपने को ढालने एवं मनुष्य की निकटता व अपव्यय से तालमेल बिठाने में बाघ की विफलता।
बाघ की केवल पांच जातियाँ शेष
1999 के आकलन के अनुसार, बाघ की शेष पांच जातियों की संख्या इस प्रकार है-
भारतीय बाघ - 3,000 से 4,550
सुमात्राई बाघ - 400 से 500
भारत-चीनी बाघ - 1,200 से 1,700
दक्षिणी चीन का बाघ - 20 से 30
एमूर बाघ - 360 से 400
इस प्रकार 20वीं सदी के अंत में विश्व भर में बाघों की कुल संख्या 5,000 से 7,500 के बीच होने का अनुमान था।
घटती संख्या पर चिंतन
तीन दशक पहले बाघों की घटती संख्या पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई थी और धीरे-धीरे सभी देशों ने इस जानवर की सुरक्षा के उपाय किए, जिनमें अलग-अलग हद तक सफलता मिली। बाघ को अपने आवासीय इलाक़े में क़ानूनी सुरक्षा प्राप्त है, लेकिन सब जगह क़ानून कारगर ढंग से लागू नहीं हो रहा है। भारत ने, जहाँ बाघों की आधी संख्या पाई जाती है, इसे राष्ट्रीय पशु घोषित किया है और 1973 में महत्त्वाकांक्षी बाघ परियोजना शुरू की, जिसके तहत चुने हुए बाघ आरक्षित क्षेत्रों को विशिष्ट दर्ज़ा दिया गया और वहाँ विशेष संरक्षण प्रयास किए गए। नेपाल, मलेशिया और इंडोनेशिया ने कई राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य स्थापित किए हैं, जहाँ इस जानवर की कारगर ढंग से रक्षा की जाती है। थाइलैंड, कंबोडिया और वियतनाम भी ऐसी ही कार्रवाई कर रही हैं। चीन एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ बाघ की तीनों उपप्रजातियाँ हैं, जिनमें सबसे अधिक संकटापन्न दक्षिण चीन का बाघ है; वह भी बाघ के संरक्षण पर विशेष ध्यान दे रहा है, रूस एवं सुदूर पूर्व में, जहां ग़ैरक़ानूनी शिकार ने एमूर बाघ के लिए गंभीर ख़तरा पैदा कर दिया है, सघन प्रयास और कारगर गश्त से इसकी संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
बाघ की स्थिति ने व्यापक सहानुभूति जगाई है और इसके संरक्षण के लिए काफ़ी पैसा मिला है। वर्ल्ड वाइड फ़ंड फ़ॉर नेचर (डब्लू. डब्लू.एफ.) पथप्रदर्शक और सबसे बड़ा अंशदाता रहा है, लेकिन एक्सॉन एवं कई अन्य संगठनों ने भी बड़ा योगदान किया है। द कनवेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एन्डेंजर्ड स्पीशीज़ (साइटेस) को बाघ के उत्पादों के ग़ैरक़ानूनी व्यापार पर नियंत्रण का काम सौंपा गया है बाघ को बचाने के लिए संयुक्त प्रयासों में समन्वय के लिए विश्व बाघ मंच की स्थापना की गई है।
कम होते बाघ
एशिया में पाए जाने वाले इस राजसी प्राणी के भविष्य पर मनुष्य की काली नज़र बहुत पहले से पड़ चुकी है। प्रकृति के इस भव्य, ताकतवर, अद्भुत और शाही प्राणी को बचाने के लिए अब तक जितनी भी योजनाएँ बनीं, उन्हें ठीक से पालन नहीं करने से और लगातार बढ़ती मानव जनसंख्या से जंगलों पर इतना दबाव पड़ रहा है कि कमोबेश हर क्षेत्र में जंगल पिछले एक दशक में अपनी वास्तविक सीमाओं से 47 प्रतिशत तक सिकुड़ चुके हैं। भारत और चीन जैसे ज़्यादा आबादी वाले देशों में तो स्थिति भयावह हो चुकी है।
विलुप्त होती प्रजाति
एशिया में बाघों की कुल नौ प्रजातियाँ हैं, जिन्हें क्षेत्र के आधार पर बांटा गया है। इसमें साइबेरियन बाघ, जो रूस के सुदूर और दुर्गम साइबेरिया के बर्फीले जंगलों में अब शायद सिर्फ़ 450 के क़्ररीब बचे हैं। रॉयल बंगाल टाइगर, जो भारत, नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के जंगलों में पाया जाता है। इनकी संख्या कुल 1800 के आस पास है। बंगाल टाइगर की सबसे निकटतम प्रजाति है इंडोचाइनीज़ टाइगर, जो कभी लाओस, वियतनाम, कम्बोडिया और मलयेशिया में पाया जाता था। इनकी संख्या अब सिर्फ़ 300 बची है। इसके अलावा मलय टाइगर जो थाइलैंड और मलयेशिया में पाया जाता है। यह अब सिर्फ़ 500 बचे हैं जिनमें से अधिकतर मानव निर्मित पशु शिविरों में पाए जाते हैं।
इसके अलावा सुमात्रा टाइगर, जो सुमात्रा द्वीप समूह में पाया जाता है। इसकी संख्या अब 400 बताई जा रही है। हिंद महासागर में बसे जावा और बाली द्वीपों में पाए जाने वाले जावा टाइगर और बाली टाइगर, जो आकार में सबसे छोटे माने जाते थे, अब विलुप्त मान लिए गए हैं। किसी ज़माने में उत्तर एशिया में मंगोलिया से लेकर कज़ाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ईरान, इराक़ से लेकर तुर्की तक पाया जाने वाला कैस्पियन टाइगर भी अब विलुप्त हो चुका है।
अवैध कारोबार के शिकार
चीन में वर्ष 2010 में टाइगर वर्ष मनाया जा रहा है और दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि इस कारण से इस वर्ष बाघ के अंगों की मांग में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ है। एक रिपोर्ट के अनुसार मध्य एशिया और चीन में बाघ के लिंग की कीमत 80,000 डॉलर प्रति 10 ग्राम है, बाघ की खाल 10,000 से लेकर 1,00,000 डॉलर तक, बाघ की हड्डियाँ 9,000 डॉलर प्रति किलो तक बिक जाती है। हृदय और अन्य आंतरिक अंगों की कीमत भी हज़ारों लाखों में है. इसके बावजूद ख़रीदारों की कोई कमी नहीं है।
चीनी मान्यता के अनुसार मनाए जाने वाले टाइगर इयर में सभी को इस साल इस विलक्षण प्राणी को बचाने की कोशिश करनी चाहिए वरना आने वाले सालों में बाघ भी ड्रैगन की तर्ज़ पर क़िस्से कहानियों में देखा पढ़ा जाएगा।
देश में सिर्फ़ 1411 बाघ ही बचे है यह गिनती सही है या ग़लत इस पर सवाल उठाया जा सकता है पर यह सच है कि हमारे देश के जंगलों व अभयारण्यों में तस्करों द्वारा किये गए अवैध शिकार के चलते बाघों की संख्या में तेज़ीसे गिरावट आई है और यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब बाघ सिर्फ़ चिड़ियाघरों तक ही सिमित हो जायेंगे। हमारे नन्हे ब्लोगर आदि की आशंका भी निराधार नहीं कि अगली बार बाघ चिड़ियाघर में भी देखने को ना मिले। बाघों को शिकारियों के शिकार से बचाने के लिए सरकार भी इतने सुरक्षा कर्मी जंगलों में तैनात नहीं कर सकती जो इन शिकारियों पर अंकुश लगा सके। इसके लिए हमें जंगल के आस-पास रहने वाले ग्रामीणों के सामने ही बाघ की महत्ता के उदहारण पेश उन्हें समझाना होगा कि बाघ उनके खेतों से दूर जंगल रह कर भी कैसे उनकी खेतों में कड़ी फ़सल की रखवाली कर सकता है और इस असंतुलन से बचने के लिए जंगल में बाघ का होना हमारे लिए कितना ज़रूरी है।
पारिवारिक इकाई
- गर्म इलाक़ों में बाघ वर्ष भर बच्चे पैदा करते हैं।
- ठंडे इलाक़ों में ये वसंत के मौसम में प्रजनन करते हैं।
- इनकी औसत गर्भावधि 113 दिन की होती है और एक बार में 2 या 3 शावक पैदा होते हैं।
- शावक धारीदार होते हैं और माँ के साथ तब तक रहते हैं, जब तक वे वयस्क होकर अपने आप शिकार करने में समर्थ न हो जाएँ। शावक जब तक आत्मनिर्भर नहीं हो जाते, बाघिन दुबारा प्रजनन नहीं करती।
- बाघ की औसत आयु क़रीब 11 साल होती है।
- क़ैद में रहने पर अत्यधिक निकट संबंध के कारण बाघ और सिंह का संकर पैदा हो सकता है। ऐसे प्रजनन में यदि बाघ पिता है, तो शावक टिगॉन और यदि सिंह पिता है, तो शावक लाइगर कहलाता है।
शावकों का लालन पालन
100 दिन की गर्भावधि के बाद शावक पैदा होते हैं। एक बार में दो से चार शावक पैदा होते हैं। शावक अंधे पैदा होते हैं और जब उनकी आँखें खुली भी रहती हैं, तब भी वे अपारदर्शिता के कारण छह से आठ हफ़्ते तक स्पष्ट रूप से नहीं देख पाते। इस कारण दूध-छुड़ाई, संरक्षण और प्रशिक्षण का लंबा समय होता है, जिसके दौरान शावक की मृत्यु दर अधिक होती है, विशेष रूप से यदि खाने की भी कमी हो। शिकार पर जाने के कारण लंबे समय तक माँ की अनुपस्थिति और कभी-कभी खाना उपलब्ध होने की स्थिति में ताक़तवर शावकों की आक्रामकता के कारण कमज़ोर शावकों को कम भोजन मिलता है। नर शावक मादा शावकों की तुलना में ज़्यादा तेज़ी से बढ़ते हैं और अपनी माँ को जल्दी छोड़ देते हैं। शिकार करने का कौशल आंशिक रूप क़ैद में पाले-पोसे गए बाघों को यदि वनों में छोड़ा गया, तो वे अच्छी तरह से अपना भरण-पोषण नहीं कर पाते हैं। हालांकि मुख्य रूप से नर द्वारा शावकों की हत्या की बात का पता चलता है, लेकिन बाघिन और शावकों के साथ नर के होने, यहाँ तक कि शिकार में हिस्सेदारी असामान्य बात नहीं है। लेकिन यह साथ लंबे समय तक नहीं रहता।
नरभक्षी बाघ
नरभक्षण से बढ़कर बाघ के किसी और आचरण ने आदमी को विकर्षित नहीं किया है। इस विपथन के कई कारण हैं, उम्र व चोट के कारण विकलांगता, शिकार की कमी, माँ से यह आदत सीखना, शावक या शिकार किए जानवर को बचाने या अन्य कारणों से आदमी को मारना और इसके बाद उसे खाना। बाघों की संख्या में कमी के कारण नरभक्षी बाघ भी दुर्लभ हो गए हैं, केवल पश्चिम बंगाल में सुंदरवन के जंगल इसका अपवाद हैं।
समाचार
शुक्रवार, 12 नवंबर, 2010
पिछली सदी में 39 हज़ार बाघ विलुप्त
एक अनुमान के मुताबिक़ सौ साल पहले भारत में बाघों की संख्या 40,000 थी। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण ऑथारिटी के अनुसार सन् 2002 के सर्वेक्षण में जहाँ बाघों की संख्या 3500 आंकी गई थी, वहीं 2008 में यह घटकर 1411 हो गई है। यानि कि अब भारत में मात्र 1411 बाघ बचे हैं। बताया जाता है कि पिछले पांच वर्षों में बाघों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज़ की गई है। वन्य जीवों के लिए काम करने वालों का मानना है कि साल 2025 तक बाघों के विलुप्त हो जाने का ख़तरा है। बाघों की कुल आबादी के 40 फ़ीसदी बाघ भारत में पाए जाते हैं। भारत के 17 प्रदेशों में बाघों के 23 संरक्षित क्षेत्र हैं। एशिया महाद्वीप में बाघों की संख्या...
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सोमवार, 28 मार्च, 2011
भारत में बाघों की संख्या 1706 हुई, 295 बाघ बढ़े
देश में बाघों की संख्या बढ़ गई है। वर्ष 2006 में इनकी संख्या 1411 थी जो 21 फ़ीसदी बढ़कर 1706 हो गई है। बाघों की ताज़ा गणना में ये आंकड़े सामने आए। पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने सोमवार को देशभर के बाघों की संख्या से जुड़े आंकड़े तीन दिवसीय इंटरनेशनल बाघ कॉन्फ्रेंस में जारी किए। उन्होंने कहाँ कि बाघों की संख्या में इज़ाफ़ा एक अच्छी खबर है। हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि 2009 और 2010 में बाघों की मृत्यु दर सामान्य से अधिक रही। कैमरा ट्रैप विधि से डेढ़ साल से अधिक उम्र के 615 बाघों के फ़ोटोग्राफ खींचे गए हैं। मध्य भारत में बाघों पर हमले की घटना में कमी आई है। ख़ासकर आंध्र प्रदेश व मध्य प्रदेश के गलियारे में।
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बाघ संरक्षण के लिए भारत की प्रशंसा
न्यूयार्क, अमेरिका के एक वन्यजीव संरक्षण संस्थान ने लुप्त प्राय बाघों के संरक्षण के लिए भारत की 'बेमिसाल प्रतिबद्धता' की तारीफ़ की है। न्यूयार्क की वाइल्ड लाइफ़ कंजर्वेशन सोसायटी (डब्ल्यूसीएस) ने एशिया की विभिन्न सरकारों को चेतावनी दी है कि लुप्त हो रही प्रजातियों को बचाने का उनका समय तेज़ीसे निकल रहा है। कोरिया के जेजु में आयोजित 'वर्ल्ड कंजर्वेशन कांग्रेस' में संस्था ने 5 सितम्बर, 2012 को कहा "भारत ने वर्ष 1972 में प्रोजेक्ट टाइगर की घोषणा के साथ बाघों की जिम्मेदारी ली। ऐसा करके उसने स्पष्ट संदेश दिया कि जंगली बाघों का भविष्य उसके हाथ में है और उनके भविष्य के लिए वह (भारत) पूरी तरह जिम्मेदार होगा।" संस्था ने कहा कि समस्याएँ और चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं, लेकिन भारत प्रतिबद्ध है कि बाघों का प्रभावी तरीक़े से उनके आवासों में संरक्षण होना चाहिए। भारत के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकार की ओर से 28 मार्च, 2011 को जारी बाघ गणना रिपोर्ट के मुताबिक़ बाघों की संख्या कम से कम 1,571 और अधिक से अधिक 1,875 है।[2]
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वीथिका
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बाघ, अरिनगर अन्ना चिड़ियाघर, चेन्नई
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बाघ
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बाघ
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बाघ, भुवनेश्वर
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बाघ
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- राजा का है हाल बेहाल
- बाघों के हित में एक परियोजना
- विश्व बाघ दिवस
- indianwildlifeportal.com
- Projecttiger
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