"नन्दी": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
छो (Text replace - "हिंदु " to "हिंदू ")
 
(5 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 6 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[चित्र:Nandi-Chamundi-Hill.jpg|thumb|250px|चामुंडी पर्वत पर नन्दी की मूर्ति]]
[[चित्र:Nandi.jpg|thumb|250px|नन्दी]]
*नन्दी का शाब्दिक अर्थ बैल है।  
'''नन्दी''' का शाब्दिक अर्थ बैल है। नन्दी [[हिन्दू]] [[देवता]] [[शिव]] जी का वाहन है।  
*नन्दी हिंदू देवता [[शिव]] जी का वाहन है।  
*कुछ विद्वानों का मत है कि यह बैल मूल रूप से शिव का ही पशु रूप था, लेकिन [[कुषाण काल]] (पहली शताब्दी) के बाद उसे इस भगवान का गण माना जाने लगा।
*कुछ विद्वानों का मत है कि यह बैल मूल रूप से शिव का ही पशु रूप था, लेकिन [[कुषाण काल]] (पहली शताब्दी ) के बाद उसे इस भगवान का गण माना जाने लगा।
*कई शिव मंदिरों में एक ऊंचे चबूतरे पर बैठे [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]], कूबड़ युक्त बैल की मूर्ति होती है, जिसका मुंह मंदिर के प्रवेश द्वार की ओर होता है, ताकि अनुश्रुति के अनुसार, वह भगवान को उनके प्रतीकात्मक रूप लिंगम में लगातार देखता रहे।  
*कई शिव मंदिरों में एक ऊंचे चबूतरे पर बैठे सफ़ेद, कूबड़ युक्त बैल की मूर्ति होती है, जिसका मुंह मंदिर के प्रवेश द्वार की ओर होता है, ताकि अनुश्रुति के अनुसार, वह भगवान को उनके प्रतीकात्मक रूप लिंगम में लगातार देखता रहे।  
*नन्दी शिव के प्रमुख गणों में से एक माना जाता है तथा मूर्तियों में उसका चित्रण बैल के चेहरे वाली बैल की बौनी आकृति के रूप में किया जाता है।  
*नन्दी शिव के प्रमुख गणों में से एक माना जाता है तथा मूर्तियों में उसका चित्रण बैल के चेहरे वाली बैल की बौनी आकृति के रूप में किया जाता है।  
*नन्दी को पूर्ण मानवतारूपी रूप में भी जाना जाता है, जिसे 'नंदिकेश्वर' या 'अधिकारनंदिन' कहा जाता है।  
*नन्दी को पूर्ण मानवतारूपी रूप में भी जाना जाता है, जिसे 'नंदिकेश्वर' या 'अधिकारनंदिन' कहा जाता है।  
*मानव रूप में उसकी मूर्तियां दक्षिण [[भारत]] के कई शिव मंदिरों के प्रवेशद्वार पर पाई जाती है, जिन्हें अक्सर ग़लती से भगवान शिव की मूर्ति समझ लिया जाता है, क्योंके वे तीसरे नेत्र, जटाओं में अर्ध्द चंद्र, चार भुजाएं, जिनमें से दो में परशु एवं मृग है जैसे समान लक्षणों से युक्त होती है।  
*मानव रूप में उसकी मूर्तियां [[दक्षिण भारत]] के कई शिव मंदिरों के प्रवेशद्वार पर पाई जाती है, जिन्हें अक्सर ग़लती से भगवान शिव की मूर्ति समझ लिया जाता है, क्योंके वे तीसरे नेत्र, जटाओं में अर्द्ध चंद्र, चार भुजाएं, जिनमें से दो में परशु एवं मृग है जैसे समान लक्षणों से युक्त होती है।  
*आराधना में जुड़े नन्दी के हाथ सामान्यत: इनमें भेद करने वाली विशेषता है।  
*आराधना में जुड़े नन्दी के हाथ सामान्यत: इनमें भेद करने वाली विशेषता है।  
*आधुनिक [[भारत]] में बैल को दिये जाने वाले सम्मान का कारण शिव के साथ उसका संबंध है। [[वाराणसी]](बनारस) जैसे पवित्र हिंदु नगरों में बैलों को सड़कों पर खुले घूमने की छूट है। उन्हें शिव की संपत्ति माना जाता है और उनके पार्श्व में शिव के त्रिशूल चिह्न को दागा जाता है।
*[[आधुनिक भारत]] में बैल को दिये जाने वाले सम्मान का कारण शिव के साथ उसका संबंध है। [[वाराणसी]] (बनारस) जैसे पवित्र हिंदू नगरों में बैलों को सड़कों पर खुले घूमने की छूट है। उन्हें शिव की संपत्ति माना जाता है और उनके पार्श्व में शिव के [[त्रिशूल]] चिह्न को दागा जाता है।
{{लेख प्रगति  
{{लेख प्रगति  
|आधार=
|आधार=
पंक्ति 23: पंक्ति 23:
[[Category:पौराणिक_कोश]]
[[Category:पौराणिक_कोश]]
[[Category:हिन्दू_धर्म_कोश]]
[[Category:हिन्दू_धर्म_कोश]]
[[Category:धार्मिक चिन्ह]]
[[Category:धार्मिक चिह्न]]
[[Category:भारतीय संस्कृति के प्रतीक]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

11:15, 17 मई 2013 के समय का अवतरण

नन्दी

नन्दी का शाब्दिक अर्थ बैल है। नन्दी हिन्दू देवता शिव जी का वाहन है।

  • कुछ विद्वानों का मत है कि यह बैल मूल रूप से शिव का ही पशु रूप था, लेकिन कुषाण काल (पहली शताब्दी) के बाद उसे इस भगवान का गण माना जाने लगा।
  • कई शिव मंदिरों में एक ऊंचे चबूतरे पर बैठे सफ़ेद, कूबड़ युक्त बैल की मूर्ति होती है, जिसका मुंह मंदिर के प्रवेश द्वार की ओर होता है, ताकि अनुश्रुति के अनुसार, वह भगवान को उनके प्रतीकात्मक रूप लिंगम में लगातार देखता रहे।
  • नन्दी शिव के प्रमुख गणों में से एक माना जाता है तथा मूर्तियों में उसका चित्रण बैल के चेहरे वाली बैल की बौनी आकृति के रूप में किया जाता है।
  • नन्दी को पूर्ण मानवतारूपी रूप में भी जाना जाता है, जिसे 'नंदिकेश्वर' या 'अधिकारनंदिन' कहा जाता है।
  • मानव रूप में उसकी मूर्तियां दक्षिण भारत के कई शिव मंदिरों के प्रवेशद्वार पर पाई जाती है, जिन्हें अक्सर ग़लती से भगवान शिव की मूर्ति समझ लिया जाता है, क्योंके वे तीसरे नेत्र, जटाओं में अर्द्ध चंद्र, चार भुजाएं, जिनमें से दो में परशु एवं मृग है जैसे समान लक्षणों से युक्त होती है।
  • आराधना में जुड़े नन्दी के हाथ सामान्यत: इनमें भेद करने वाली विशेषता है।
  • आधुनिक भारत में बैल को दिये जाने वाले सम्मान का कारण शिव के साथ उसका संबंध है। वाराणसी (बनारस) जैसे पवित्र हिंदू नगरों में बैलों को सड़कों पर खुले घूमने की छूट है। उन्हें शिव की संपत्ति माना जाता है और उनके पार्श्व में शिव के त्रिशूल चिह्न को दागा जाता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख