"श्रीरंगम": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ") |
||
(9 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 11 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
[[चित्र:Srirangam-Temple-Srirangam.jpg|thumb|श्रीरंगम मंदिर, श्रीरंगम]] | |||
'''श्रीरंगम''' नगर, पूर्व-मध्य [[तमिलनाडु|तमिलनाडु राज्य]], [[दक्षिणी भारत]] में [[तिरुचिराप्पल्ली]] शहर के निकट [[कावेरी नदी|कावेरी]] और [[कोलेरून नदी|कोलेरून]] नदियों के विभाजन के एक [[द्वीप]] पर स्थित है। श्रीरंगम दक्षिण भारत में तीर्थयात्रियों के सर्वाधिक लोकप्रिय तीर्थस्थलों में से एक है। | |||
==स्थिति तथा मंदिर== | |||
यह नगर तिरुचिराप्पल्ली से 8 मील की दूरी पर स्थित है। 17वीं शती ई. का एक विशाल, भव्य विष्णु मंदिर यहां का उल्लेखनीय स्मारक है। मंदिर का शिखर स्वर्णिम है। इसके चतुर्दिक परकोटा खिंचा हुआ है, जिसमें लगभग 18 गोपुर बने हुए हैं। दो गोपुर अति विशाल हैं। परकोटे के भीतर अन्य मंदिर भी हैं। | |||
[[चित्र:Srirangam-Temple-Srirangam-1.jpg|thumb|250px|left|श्रीरंगम मंदिर, श्रीरंगम]] | |||
{{ | मंदिर के कुल सात घेरे हैं, जिनमें से चार के अन्दर नगर बसा हुआ है। सबसे बाहर का प्रांगण सबसे अधिक भव्य जान पड़ता है, क्योंकि इसमें एक सहस्त्र सतंभों की एक शाला है। मंदिर के शेष गिरिराव मंडपम् में अद्भुत नक्काशी प्रदर्शित है। यह मंडप अश्वमूर्तियों वाले स्तम्भों पर आधृत है। इस मंदिर के गोेपुर अलग-अलग देखने पर काफ़ी प्रभावशाली दिखाई देते हैं; किंतु सम्पूर्ण मंदिर की पृष्ठभूमि में इनका प्रभाव कुछ घट-सा जाता है। कहा जाता है कि यह मंदिर [[भारत]] का सबसे बड़ा तथा विशाल मंदिर है। [[उत्तर प्रदेश]] में [[वृन्दावन]] का '[[रंग नाथ जी मन्दिर वृन्दावन|श्रीरंगजी का मंदिर]]' दक्षिण के इसी मंदिर की अनुकृति जान पड़ता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=923|url=}}</ref> | ||
{{लेख प्रगति | ==रंगनाथ मंदिर== | ||
|आधार= | [[चित्र:Aandaal Sannithi.jpg|thumb|250px|श्रीरंगम मंदिर, श्रीरंगम]] | ||
|प्रारम्भिक= | श्रीरंगम का प्रमुख रंगनाथ मंदिर हांलाकि [[वैष्णव]] है, लेकिन [[शैव मत|शैव]] अनुयायियों के लिए भी श्रद्धेय है। रंगनाथ मंदिर में एक के अंदर एक सात आयताकार घिरे हुए क्षेत्र शामिल हैं, जिसमें सबसे बाहर वाले का परिमाप 3 किलोमीटर लंबा है। रंगनाथ मंदिर की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह पिछले पैरों पर खड़े घोड़ों से सुसज्जित 1,000 स्तंभों वाला मुख्य कक्ष है। इस मंदिर और 1,000 स्तंभ वाले मुख्य कक्ष का निर्माण [[विजयनगर साम्राज्य]] (1336-1565) के दौरान पुराने मंदिर के स्थल पर हुआ था। | ||
|माध्यमिक= | ===अन्य मंदिर एवं तीर्थ=== | ||
|पूर्णता= | '''जम्बुकेश्वर'''— श्रीरंगनाथ मंदिर से एक मील पूर्व यह इससे से भी प्राचीन मंदिर है। [[शंकर|शंकरजी]] के पंचतत्त्व लिंगों में यह आपोलिंग (जलतत्व लिंग) है। यह मंदिर भी श्रीरंगनाथ मंदिर की तरह विशाल है। इसमें तीन आंगन हैं। एक आंगन में तेप्पाकुलम सरोवर है। दूसरे आंगन में सहस्रस्तम्भ मंडप है। पाँचवें घेरे में जम्बुकेश्वर लिंग है। यह एक जल प्रवाह पर स्थापित है। मूर्ति के नीचे से बराबर [[जल]] ऊपर आता रहता है। निज मंदिर में जल भरा रहता है। मंदिर के पीछे चबूतरे पर जामुन का वृक्ष है। मंदिर के बाहरी मंडप में नटराज, सुब्रह्मण्यम, दक्षिणा मूर्ति आदि देवमूर्तियाँ हैं। तीसरी [[परिक्रमा]] में सुब्रह्मण्य मंदिर है। इस मंदिर में अनेकों मण्डप हैं। उनमें 9 तो मुख्य मंडप हैं। इनमें भी सोमास्कन्द मंडप की कला दर्शनीय है। परिक्रमा में एक राजराजेश्वर मंदिर है। उसमें पंचमुख लिंग है। इस मंदिर के प्रांगण से बाईं ओर एक द्वार से जाने पर अखिलाण्डेश्वरी (भवानी) का मंदिर मिलता है। इसमें निज मंदिर के ठीक सामने [[गणेश|गणेश जी]] का मंदिर है। देवी मंदिर की कला भव्य है। | ||
|शोध= | |||
}} | इस मंदिर के विषय में पौराणिक कथा है कि यहाँ आसपास जामुन के वृक्ष थे। उनमें जम्बू ऋषि तप करते थे। उन्हें दर्शन देकर भगवान शिव यहाँ लिंग रूप में विराजे। | ||
एक कथा यहाँ मंडप में चित्रांकित है कि जम्बुकेश्वर लिंग पर एक मकड़ी प्रतिदिन जाला बना देती थी। एक हाथी सूड़ में जलभर कर चढ़ाता तो जाला टूट जाता। एक दिन मकड़ी हाथी की सूंड में घुस गई। दोनों मर गये और उन्हें शिवलोक मिला। | |||
श्रीनिवास— कावेरी द्वीप के श्रीरंगनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर श्रीनिवास मंदिर है। श्रीरंगम द्वीप से 12 मील पर कोणेश्वर में श्रीनिवास मंदिर है। इसमें [[विष्णु|भगवान विष्णु]] की खड़ी मूर्ति है। यह मंदिर छोटा है। | |||
समयपुरम— यह तीर्थ श्रीरंगम से 4 मील दूर स्थित है। यहाँ के लिए बस जाती हैं। यहाँ मारीअम्मन (महामाया) मंदिर है। यह मंदिर विशाल है। कहा जाता है कि इनकी स्थापना [[विक्रमादित्य|राजा विक्रमादित्य]] ने की थी। | |||
[[ओरैयूर]]— श्रीरंगम से 3 मील दूरी स्थित है। यहाँ [[महालक्ष्मी]] मंदिर है। | |||
===पौराणिक कथा=== | |||
स्वयं [[नारायण|भगवान नारायण]] ने अपना श्रीविग्रह [[ब्रह्मा|ब्रह्माजी]] को दिया था। [[वैवस्वत मनु]] के पुत्र [[इक्ष्वाकु]] ने तप करके विमान के साथ वह मूर्ति ब्रह्माजी से प्राप्त की, तभी श्रीरंगजी [[अयोध्या]] में [[इक्ष्वाकु वंश]] के आराध्य हुए। [[त्रेतायुग|त्रेता]] में चोल नरेश धर्मवर्मा महाराज दशरथ के [[अश्वमेध यज्ञ]] में अयोध्या गये तो श्रीरंगजी में उनका चित्त लग गया। लौटकर वे उन्हें प्राप्त करने को तप करने लगे। | |||
[[श्रीराम]] राज्याभिषेक के पश्चात् [[विभीषण]] ने श्रीरघुनाथजी से श्रीरंगजी को मांग लिया। वह इन्हें लेकर [[लंका]] जा रहे थे, रंगद्वीप में रखकर स्नान पूजन किया। फिर रंगजी उठाये नहीं उठे। अनशन करने लगे तो स्वप्नादेश हुआ ‘[[कावेरी नदी|कावेरी]] का यह द्वीप मुझे प्रिय है। मैं लंका की ओर मुख करके स्थित होऊँगा। तुम यहीं दर्शन कर जाया करो।’ तबसे श्रीरंगजी यहीं विराजमान हैं<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम= हिन्दूओं के तीर्थ स्थान|लेखक= सुदर्शन सिंह 'चक्र'|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=|संकलन=|संपादन=|पृष्ठ संख्या=131|url=}}</ref>। | |||
==जनसंख्या== | |||
[[1991]] की जनगणना के अनुसार श्रीरंगम नगर की कुल जनसंख्या 70,109 है। | |||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | |||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{तमिलनाडु के धार्मिक स्थल}} | |||
{{तमिलनाडु के पर्यटन स्थल}} | {{तमिलनाडु के पर्यटन स्थल}} | ||
{{तमिलनाडु के | {{तमिलनाडु के ऐतिहासिक स्थान}} | ||
[[Category:विजयनगर साम्राज्य]][[Category:तमिलनाडु]] [[Category:तमिलनाडु के ऐतिहासिक स्थान]] [[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]] [[Category:इतिहास कोश]] | [[Category:विजयनगर साम्राज्य]][[Category:तमिलनाडु]] [[Category:तमिलनाडु के ऐतिहासिक स्थान]] [[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]] [[Category:इतिहास कोश]][[Category:तमिलनाडु के धार्मिक स्थल]] | ||
[[Category:तमिलनाडु के धार्मिक स्थल]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
07:39, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण
श्रीरंगम नगर, पूर्व-मध्य तमिलनाडु राज्य, दक्षिणी भारत में तिरुचिराप्पल्ली शहर के निकट कावेरी और कोलेरून नदियों के विभाजन के एक द्वीप पर स्थित है। श्रीरंगम दक्षिण भारत में तीर्थयात्रियों के सर्वाधिक लोकप्रिय तीर्थस्थलों में से एक है।
स्थिति तथा मंदिर
यह नगर तिरुचिराप्पल्ली से 8 मील की दूरी पर स्थित है। 17वीं शती ई. का एक विशाल, भव्य विष्णु मंदिर यहां का उल्लेखनीय स्मारक है। मंदिर का शिखर स्वर्णिम है। इसके चतुर्दिक परकोटा खिंचा हुआ है, जिसमें लगभग 18 गोपुर बने हुए हैं। दो गोपुर अति विशाल हैं। परकोटे के भीतर अन्य मंदिर भी हैं।
मंदिर के कुल सात घेरे हैं, जिनमें से चार के अन्दर नगर बसा हुआ है। सबसे बाहर का प्रांगण सबसे अधिक भव्य जान पड़ता है, क्योंकि इसमें एक सहस्त्र सतंभों की एक शाला है। मंदिर के शेष गिरिराव मंडपम् में अद्भुत नक्काशी प्रदर्शित है। यह मंडप अश्वमूर्तियों वाले स्तम्भों पर आधृत है। इस मंदिर के गोेपुर अलग-अलग देखने पर काफ़ी प्रभावशाली दिखाई देते हैं; किंतु सम्पूर्ण मंदिर की पृष्ठभूमि में इनका प्रभाव कुछ घट-सा जाता है। कहा जाता है कि यह मंदिर भारत का सबसे बड़ा तथा विशाल मंदिर है। उत्तर प्रदेश में वृन्दावन का 'श्रीरंगजी का मंदिर' दक्षिण के इसी मंदिर की अनुकृति जान पड़ता है।[1]
रंगनाथ मंदिर
श्रीरंगम का प्रमुख रंगनाथ मंदिर हांलाकि वैष्णव है, लेकिन शैव अनुयायियों के लिए भी श्रद्धेय है। रंगनाथ मंदिर में एक के अंदर एक सात आयताकार घिरे हुए क्षेत्र शामिल हैं, जिसमें सबसे बाहर वाले का परिमाप 3 किलोमीटर लंबा है। रंगनाथ मंदिर की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह पिछले पैरों पर खड़े घोड़ों से सुसज्जित 1,000 स्तंभों वाला मुख्य कक्ष है। इस मंदिर और 1,000 स्तंभ वाले मुख्य कक्ष का निर्माण विजयनगर साम्राज्य (1336-1565) के दौरान पुराने मंदिर के स्थल पर हुआ था।
अन्य मंदिर एवं तीर्थ
जम्बुकेश्वर— श्रीरंगनाथ मंदिर से एक मील पूर्व यह इससे से भी प्राचीन मंदिर है। शंकरजी के पंचतत्त्व लिंगों में यह आपोलिंग (जलतत्व लिंग) है। यह मंदिर भी श्रीरंगनाथ मंदिर की तरह विशाल है। इसमें तीन आंगन हैं। एक आंगन में तेप्पाकुलम सरोवर है। दूसरे आंगन में सहस्रस्तम्भ मंडप है। पाँचवें घेरे में जम्बुकेश्वर लिंग है। यह एक जल प्रवाह पर स्थापित है। मूर्ति के नीचे से बराबर जल ऊपर आता रहता है। निज मंदिर में जल भरा रहता है। मंदिर के पीछे चबूतरे पर जामुन का वृक्ष है। मंदिर के बाहरी मंडप में नटराज, सुब्रह्मण्यम, दक्षिणा मूर्ति आदि देवमूर्तियाँ हैं। तीसरी परिक्रमा में सुब्रह्मण्य मंदिर है। इस मंदिर में अनेकों मण्डप हैं। उनमें 9 तो मुख्य मंडप हैं। इनमें भी सोमास्कन्द मंडप की कला दर्शनीय है। परिक्रमा में एक राजराजेश्वर मंदिर है। उसमें पंचमुख लिंग है। इस मंदिर के प्रांगण से बाईं ओर एक द्वार से जाने पर अखिलाण्डेश्वरी (भवानी) का मंदिर मिलता है। इसमें निज मंदिर के ठीक सामने गणेश जी का मंदिर है। देवी मंदिर की कला भव्य है।
इस मंदिर के विषय में पौराणिक कथा है कि यहाँ आसपास जामुन के वृक्ष थे। उनमें जम्बू ऋषि तप करते थे। उन्हें दर्शन देकर भगवान शिव यहाँ लिंग रूप में विराजे।
एक कथा यहाँ मंडप में चित्रांकित है कि जम्बुकेश्वर लिंग पर एक मकड़ी प्रतिदिन जाला बना देती थी। एक हाथी सूड़ में जलभर कर चढ़ाता तो जाला टूट जाता। एक दिन मकड़ी हाथी की सूंड में घुस गई। दोनों मर गये और उन्हें शिवलोक मिला।
श्रीनिवास— कावेरी द्वीप के श्रीरंगनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर श्रीनिवास मंदिर है। श्रीरंगम द्वीप से 12 मील पर कोणेश्वर में श्रीनिवास मंदिर है। इसमें भगवान विष्णु की खड़ी मूर्ति है। यह मंदिर छोटा है।
समयपुरम— यह तीर्थ श्रीरंगम से 4 मील दूर स्थित है। यहाँ के लिए बस जाती हैं। यहाँ मारीअम्मन (महामाया) मंदिर है। यह मंदिर विशाल है। कहा जाता है कि इनकी स्थापना राजा विक्रमादित्य ने की थी।
ओरैयूर— श्रीरंगम से 3 मील दूरी स्थित है। यहाँ महालक्ष्मी मंदिर है।
पौराणिक कथा
स्वयं भगवान नारायण ने अपना श्रीविग्रह ब्रह्माजी को दिया था। वैवस्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु ने तप करके विमान के साथ वह मूर्ति ब्रह्माजी से प्राप्त की, तभी श्रीरंगजी अयोध्या में इक्ष्वाकु वंश के आराध्य हुए। त्रेता में चोल नरेश धर्मवर्मा महाराज दशरथ के अश्वमेध यज्ञ में अयोध्या गये तो श्रीरंगजी में उनका चित्त लग गया। लौटकर वे उन्हें प्राप्त करने को तप करने लगे। श्रीराम राज्याभिषेक के पश्चात् विभीषण ने श्रीरघुनाथजी से श्रीरंगजी को मांग लिया। वह इन्हें लेकर लंका जा रहे थे, रंगद्वीप में रखकर स्नान पूजन किया। फिर रंगजी उठाये नहीं उठे। अनशन करने लगे तो स्वप्नादेश हुआ ‘कावेरी का यह द्वीप मुझे प्रिय है। मैं लंका की ओर मुख करके स्थित होऊँगा। तुम यहीं दर्शन कर जाया करो।’ तबसे श्रीरंगजी यहीं विराजमान हैं[2]।
जनसंख्या
1991 की जनगणना के अनुसार श्रीरंगम नगर की कुल जनसंख्या 70,109 है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख