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*इसे तराई वाला इलाका कहते हैं। दूसरे वे लोग हैं जो [[नेपाल]] के भीतर हैं। यों यह उल्लेख है कि ये लोग बहुत पहले [[भारत]] के उस भाग से चले गए थे जहाँ हिन्दी बोली जाती है तथा जिस भाग को 'मध्यदेश' कहा गया तथा बाद में 'मध्यदेशीय' का ही 'मधेसिया' और 'मधेसी' हो गया।  
*इसे तराई वाला इलाका कहते हैं। दूसरे वे लोग हैं जो [[नेपाल]] के भीतर हैं। यों यह उल्लेख है कि ये लोग बहुत पहले [[भारत]] के उस भाग से चले गए थे जहाँ हिन्दी बोली जाती है तथा जिस भाग को 'मध्यदेश' कहा गया तथा बाद में 'मध्यदेशीय' का ही 'मधेसिया' और 'मधेसी' हो गया।  
*आज से लगभग दो सौ वर्ष पहले 'महाराज पृथ्वीनारायण शाह देव' जो हिन्दी के एक अच्छे कवि थे<ref>जो हिन्दी के एक अच्छे कवि थे</ref> के राज्यकाल में भी ये लोग नेपाल  में थे। जहाँ तक हिन्दी का प्रश्न है नेपाल हिन्दी का कोई एक रूप नहीं है।  
*आज से लगभग दो सौ वर्ष पहले 'महाराज पृथ्वीनारायण शाह देव' जो हिन्दी के एक अच्छे कवि थे<ref>जो हिन्दी के एक अच्छे कवि थे</ref> के राज्यकाल में भी ये लोग नेपाल  में थे। जहाँ तक हिन्दी का प्रश्न है नेपाल हिन्दी का कोई एक रूप नहीं है।  
*मधेसी लोगों की हिन्दी पुरानी है और नेपाली तथा नेवारी से प्रभावित है तथा सीमावर्ती हिन्दी में मध्यवर्ती पहाड़ी, अवधी तथा मैथिली आदि के तत्त्व हैं। यों अब मानक हिन्दी  का विभिन्न प्रभावों से युक्त रूप वहाँ प्रचिलित है। एक समय था जब हिन्दी को वहाँ दूसरी राजभाषा बनाए जाने की बात जोर-शोर से चल रही थी, राजनीतिक कारणों से ऐसा नहीं हो पाया। उल्लेख है कि नाथ और सिद्ध साहित्य की रचना प्राय: नेपाल में ही हुई थी।  
*मधेसी लोगों की हिन्दी पुरानी है और नेपाली तथा नेवारी से प्रभावित है तथा सीमावर्ती हिन्दी में मध्यवर्ती पहाड़ी, अवधी तथा मैथिली आदि के तत्त्व हैं। यों अब मानक हिन्दी  का विभिन्न प्रभावों से युक्त रूप वहाँ प्रचिलित है। एक समय था जब हिन्दी को वहाँ दूसरी राजभाषा बनाए जाने की बात ज़ोर-शोर से चल रही थी, राजनीतिक कारणों से ऐसा नहीं हो पाया। उल्लेख है कि नाथ और सिद्ध साहित्य की रचना प्राय: नेपाल में ही हुई थी।  
*बाद में लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा, मोतीराम भट्ट, भवानी गुप्त भिक्षु, केदारमान व्यथित, गोपाल सिंह नेपाली, राम हरि जोशी, यदुवंश लालचन्द्र, रामदेव द्विवेदी उदयन, सुन्दर झा शास्त्री, धीरेन्द्र मल्ल, शुक्रराज शास्त्री, घुस्वा सायमि, दुर्गा प्रसाद श्रेष्ठ आदि साहित्यकारों ने हिन्दी में अच्छी रचनाएँ कीं।  
*बाद में लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा, मोतीराम भट्ट, भवानी गुप्त भिक्षु, केदारमान व्यथित, गोपाल सिंह नेपाली, राम हरि जोशी, यदुवंश लालचन्द्र, रामदेव द्विवेदी उदयन, सुन्दर झा शास्त्री, धीरेन्द्र मल्ल, शुक्रराज शास्त्री, घुस्वा सायमि, दुर्गा प्रसाद श्रेष्ठ आदि साहित्यकारों ने हिन्दी में अच्छी रचनाएँ कीं।  
*1956 में नेपाल से 'नेपाली' नाम का हिन्दी दैनिक निकलना प्रारम्भ हुआ।  
*1956 में नेपाल से 'नेपाली' नाम का हिन्दी दैनिक निकलना प्रारम्भ हुआ।  
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==संबंधित लेख==
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08:53, 14 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

  • नेपाली हिन्दी पड़ोसी देश नेपाल में भी हिन्दी बोलने वाले काफ़ी हैं।
  • डॉ भोलानाथ तिवारी के अनुसार अनुमानत: उनकी संख्या अस्सी लाख के लगभग हैं।
  • इनमें कुछ लोग जो उन इलाकों में हैं जो ऐसे भारतीय इलाकों से लगे हुए हैं जहाँ हिन्दी की मध्य पहाड़ी, अवधी, मैथिली आदि बोलियाँ बोली जाती हैं।
  • इसे तराई वाला इलाका कहते हैं। दूसरे वे लोग हैं जो नेपाल के भीतर हैं। यों यह उल्लेख है कि ये लोग बहुत पहले भारत के उस भाग से चले गए थे जहाँ हिन्दी बोली जाती है तथा जिस भाग को 'मध्यदेश' कहा गया तथा बाद में 'मध्यदेशीय' का ही 'मधेसिया' और 'मधेसी' हो गया।
  • आज से लगभग दो सौ वर्ष पहले 'महाराज पृथ्वीनारायण शाह देव' जो हिन्दी के एक अच्छे कवि थे[1] के राज्यकाल में भी ये लोग नेपाल में थे। जहाँ तक हिन्दी का प्रश्न है नेपाल हिन्दी का कोई एक रूप नहीं है।
  • मधेसी लोगों की हिन्दी पुरानी है और नेपाली तथा नेवारी से प्रभावित है तथा सीमावर्ती हिन्दी में मध्यवर्ती पहाड़ी, अवधी तथा मैथिली आदि के तत्त्व हैं। यों अब मानक हिन्दी का विभिन्न प्रभावों से युक्त रूप वहाँ प्रचिलित है। एक समय था जब हिन्दी को वहाँ दूसरी राजभाषा बनाए जाने की बात ज़ोर-शोर से चल रही थी, राजनीतिक कारणों से ऐसा नहीं हो पाया। उल्लेख है कि नाथ और सिद्ध साहित्य की रचना प्राय: नेपाल में ही हुई थी।
  • बाद में लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा, मोतीराम भट्ट, भवानी गुप्त भिक्षु, केदारमान व्यथित, गोपाल सिंह नेपाली, राम हरि जोशी, यदुवंश लालचन्द्र, रामदेव द्विवेदी उदयन, सुन्दर झा शास्त्री, धीरेन्द्र मल्ल, शुक्रराज शास्त्री, घुस्वा सायमि, दुर्गा प्रसाद श्रेष्ठ आदि साहित्यकारों ने हिन्दी में अच्छी रचनाएँ कीं।
  • 1956 में नेपाल से 'नेपाली' नाम का हिन्दी दैनिक निकलना प्रारम्भ हुआ।
  • साहित्यलोक तथा आरोहण पत्रिकाएँ भी प्रकाशित होती हैं। कहना न होगा कि यहाँ जो साहित्य आधुनिक काल में लिखा गया है वह प्राय: मानक हिन्दी में है।


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टीका टिप्पणी

  1. जो हिन्दी के एक अच्छे कवि थे

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