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| {{सूचना बक्सा कलाकार | | {{सूचना बक्सा कलाकार |
| |चित्र=rajkumar.jpg | | |चित्र=Rajkumar-sounth-indian-actor.jpg |
| |चित्र का नाम=राज कुमार | | |चित्र का नाम=राजकुमार |
| |पूरा नाम=कुलभूषण पंडित | | |पूरा नाम=सिंगनाल्लुरु पुत्तस्वमाया मुथुराजु |
| |प्रसिद्ध नाम=राज कुमार | | |प्रसिद्ध नाम=राजकुमार |
| |अन्य नाम= | | |अन्य नाम= |
| |जन्म=[[8 अक्तूबर ]] सन 1929 ई. | | |जन्म=[[24 अप्रैल]], [[1928]] |
| |जन्म भूमि=बलूचिस्तान (अब [[पाकिस्तान]] में) | | |जन्म भूमि=[[मद्रास]] |
| |अविभावक= | | |मृत्यु=[[12 अप्रॅल]] [[2006]] |
| |पति/पत्नी=गायत्री | | |मृत्यु स्थान=[[बंगलोर]] |
| |संतान=पुत्र- पुरु राज कुमार, पाणिनी राज कुमार, पुत्री- वास्तविकता राज कुमार | | |अभिभावक= |
| |कर्म भूमि=[[मुम्बई]] | | |पति/पत्नी= |
| |कर्म-क्षेत्र= अभिनेता (पूर्व में पुलिस में दारोग़ा थे) | | |संतान= |
| |मृत्यु=[[3 जुलाई ]], 1996 ई.
| | |कर्म भूमि=[[भारत]] |
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| | |कर्म-क्षेत्र=[[अभिनेता]] |
| |मुख्य रचनाएँ= | | |मुख्य रचनाएँ= |
| |मुख्य फ़िल्में=पैग़ाम, काजल, वक़्त, नीलकमल, पाकीज़ा | | |मुख्य फ़िल्में= |
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| |शिक्षा=स्नातक | | |शिक्षा= |
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| |पुरस्कार-उपाधि=सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (1966) | | |पुरस्कार-उपाधि=[[पद्म भूषण]], [[दादा साहब फालके पुरस्कार]] |
| |प्रसिद्धि=संवाद अदायगी | | |प्रसिद्धि=कन्नड़ फ़िल्मों के अभिनेता |
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| '''राज कुमार''' ([[8 अक्तूबर]] 1926 - [[3 जुलाई]] 1996) हिन्दी फिल्मों में एक भारतीय अभिनेता थे। इनका नाम कुलभूषण पंडित था लेकिन फ़िल्मी दुनियाँ में ये अपने दूसरे नाम 'राज कुमार' के नाम से प्रसिद्ध हैं। पारम्परिक पारसी थियेटर की संवाद अदाइगी को इन्होंने अपनाया और यही उनकी विशेष पहचान बनी। इनके द्वारा अभिनीत प्रसिद्ध फ़िल्मों में पैग़ाम, वक़्त, नीलकमल, पाकीज़ा, मर्यादा, हीर रांझा, सौदागर आदि हैं। | | {{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=राजकुमार|लेख का नाम=राजकुमार (बहुविकल्पी)}} |
| | '''राजकुमार''' का वास्तविक नाम '''सिंगनाल्लुरु पुत्तस्वमाया मुथुराजु''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Singanalluru Puttaswamayya Muthuraju'') है। ये दक्षिण भारतीय सिनेमा के [[अमिताभ बच्चन]] कहे जाने वाले कन्नड़ फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता थे। अत: इन्हें कन्नड़ फ़िल्मों का सबसे महान् नायक कहा जाए तो यह कदापि ग़लत नहीं होगा। |
| ==जीवन परिचय== | | ==जीवन परिचय== |
| राज कुमार का जन्म बलूचिस्तान (अब [[पाकिस्तान]] में) प्रांत में [[8 अक्तूबर]] 1926 को एक मध्यम वर्गीय कश्मीरी [[ब्राह्मण]] परिवार में हुआ था। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद राज कुमार [[मुंबई]] के माहिम पुलिस में बतौर दारोग़ा काम करने लगे। राज कुमार मुंबई के जिस थाने मे कार्यरत थे वहाँ अक्सर फ़िल्म उद्योग से जुड़े लोगों का आना-जाना लगा रहता था।
| | [[चित्र:Dr-Rajkumar-Stamp.jpg|thumb|left|200px|राजकुमार पर [[डाक टिकट]]]] |
| ==अभिनेता के रूप में शुरूआत==
| | * राजकुमार का जन्म [[24 अप्रैल]], [[1928]] को [[मद्रास]] में हुआ था। |
| एक बार पुलिस स्टेशन में फ़िल्म निर्माता कुछ जरूरी काम के लिए आए हुए थे और वह राज कुमार के बातचीत करने के अंदाज से काफ़ी प्रभावित हुए। उन्होंने राज कुमार को यह सलाह दी कि अगर आप फ़िल्म अभिनेता बनने की ओर क़दम रखे तो उसमें काफ़ी सफल हो सकते है। राज कुमार को फ़िल्म निर्माता की बात काफ़ी अच्छी लगी। इसके कुछ समय बाद राज कुमार ने अपनी नौकरी छोड़ दी और फ़िल्मों में बतौर अभिनेता बनने की ओर अपना रुख कर लिया। वर्ष 1952 में प्रदर्शित फ़िल्म रंगीली मे सबसे पहले बतौर अभिनेता राज कुमार को काम करने का मौका मिला। वर्ष 1952 से वर्ष 1957 तक राज कुमार फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। फ़िल्म रंगीली के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गए। इस बीच उन्होंने 'अनमोल सहारा- 1952, 'अवसर- 1953', 'घमंड- 1955', 'नीलमणि- 1957', 'कृष्ण सुदामा- 1957' जैसी कई फ़िल्मों र्मे अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर सफल नहीं हुई।
| | * राजकुमार को राष्ट्रीय स्तर पर कन्नड़ फ़िल्म इंडस्ट्री को स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है। |
| ====फ़िल्म जगत में सफलता====
| | * वर्ष [[1995]] में राजकुमार को हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री के सबसे बड़े पुरस्कार [[दादा साहब फालके पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया था। |
| वर्ष 1957 में प्रदर्शित [[महबूब ख़ान]] की फ़िल्म [[मदर इंडिया]] में राज कुमार गांव के एक किसान की छोटी सी भूमिका में दिखाई दिए। हालांकि यह फ़िल्म पूरी तरह अभिनेत्री नरगिस पर केन्द्रित थी फिर भी राज कुमार अपनी छोटी सी भूमिका में अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इस फ़िल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति भी मिली और फ़िल्म की सफलता के बाद राज कुमार बतौर अभिनेता फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए।
| | * वर्ष [[1983]] में भारत सरकार द्वारा [[पद्म भूषण]] से भी सम्मानित किया गया था। |
| ;फ़िल्मों में मिली कामयाबी
| | * [[12 अप्रॅल]] [[2006]] को [[बंगलोर]] में कन्नड़ फ़िल्मों के इस महानायक का निधन हो गया। |
| {{बाँयाबक्सा|पाठ=दुनिया जानती है कि राजेश्वर सिंह जब दोस्ती निभाता है तो अफसाने बन जाते हैं मगर दुश्मनी करता है तो इतिहास लिखे जाते है|विचारक=}}
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| वर्ष 1959 में प्रदर्शित फ़िल्म 'पैग़ाम' में उनके सामने हिन्दी फ़िल्म जगत के अभिनय सम्राट [[दिलीप कुमार]] थे लेकिन राज कुमार ने यहाँ भी अपनी सशक्त भूमिका के जरिये दर्शकों की वाहवाही लूटने में सफल रहे। इसके बाद राज कुमार 'दिल अपना और प्रीत पराई-1960', 'घराना- 1961', 'गोदान- 1963', 'दिल एक मंदिर- 1964', 'दूज का चांद- 1964' जैसी फ़िल्मों में मिली कामयाबी के जरिये राज कुमार दर्शको के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुए ऐसी स्थिति में पहुँच गये जहाँ वह फ़िल्म में अपनी भूमिका स्वयं चुन सकते थे। वर्ष 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म काजल की जबर्दस्त कामयाबी के बाद राज कुमार बतौर अभिनेता अपनी अलग पहचान बना ली। वर्ष 1965 बी.आर.चोपड़ा की फ़िल्म वक़्त में अपने लाजवाब अभिनय से वह एक बार फिर से अपनी ओर दर्शक का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहे। फ़िल्म वक़्त में राज कुमार का बोला गया एक संवाद "चिनाय सेठ जिनके घर शीशे के बने होते है वो दूसरों पे पत्थर नहीं फेंका करते या फिर चिनाय सेठ ये छुरी बच्चों के खेलने की चीज नहीं हाथ कट जाये तो खून निकल आता है" दर्शकों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ। फ़िल्म वक़्त की कामयाबी से राज कुमार शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुँचे। ऐसी स्थिति जब किसी अभिनेता के सामने आती है तो वह मनमानी करने लगता है और ख्याति छा जाने की उसकी प्रवृति बढ़ती जाती है और जल्द ही वह किसी ख़ास इमेज में भी बंध जाता है। लेकिन राज कुमार कभी भी किसी ख़ास इमेज में नही बंधे इसलिये अपनी इन फ़िल्मो की कामयाबी के बाद भी उन्होंने 'हमराज़- 1967', 'नीलकमल- 1968', 'मेरे हूजूर- 1968', 'हीर रांझा- 1970' और 'पाकीज़ा- 1971' में रूमानी भूमिका भी स्वीकार की जो उनके फ़िल्मी चरित्र से मेल नहीं खाती थी इसके बावजूद भी राज कुमार यहाँ दर्शकों का दिल जीतने में सफल रहे।
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| [[चित्र:Rajkumar-1.jpg|left|250px|thumb|राज कुमार]]
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| ====फ़िल्म पाकीज़ा की सफलता====
| | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} |
| कमाल अमरोही की फ़िल्म पाकीज़ा पूरी तरह से मीना कुमारी पर केन्द्रित फ़िल्म थी इसके बावजूद राज कुमार ने अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों की वाहवाही लूटने में सफल रहे। फ़िल्म पाकीज़ा में राज कुमार का बोला गया एक संवाद "आपके पांव देखे बहुत हसीन हैं इन्हें ज़मीन पर मत उतारियेगा मैले हो जायेगें" इस क़दर लोकप्रिय हुआ कि लोग राज कुमार की आवाज की नक़्ल करने लगे।
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| ====अभिनय और विविधता====
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| वर्ष 1978 में प्रदर्शित फ़िल्म कर्मयोगी में राज कुमार के अभिनय और विविधता के नए आयाम दर्शकों को देखने को मिले। इस फ़िल्म में उन्होंने दो अलग-अलग भूमिकाओं में अपने अभिनय की छाप छोड़ी। अभिनय में एकरुपता से बचने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिए राज कुमार ने अपने को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इस क्रम में वर्ष 1980 में प्रदर्शित फ़िल्म बुलंदी में वह चरित्र भूमिका निभाने से भी नही हिचके और इस फ़िल्म के जरिए भी उन्होंने दर्शको का मन मोहे रखा। इसके बाद राज कुमार ने 'कुदरत- 1981', 'धर्मकांटा- 1982', 'शरारा- 1984', 'राजतिलक- 1984', 'एक नयी पहेली- 1984', 'मरते दम तक- 1987', 'सूर्या- 1989', 'जंगबाज- 1989', 'पुलिस पब्लिक- 1990' जैसी कई सुपरहिट फ़िल्मों के जरिये दर्शको के दिल पर राज किया।
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| ====अभिनय के नये आयाम====
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| वर्ष 1991 में प्रदर्शित फ़िल्म सौदागर में राज कुमार के अभिनय के नये आयाम देखने को मिले। सुभाष घई की निर्मित फ़िल्म सौदागर में दिलीप कुमार और राज कुमार वर्ष 1959 में प्रदर्शित पैग़ाम के बाद दूसरी बार आमने सामने थे। फ़िल्म में दिलीप कुमार और राज कुमार जैसे अभिनय की दुनिया के दोनो महारथी का टकराव देखने लायक था। फ़िल्म सौदागर में राज कुमार का बोला एक संवाद "दुनिया जानती है कि राजेश्वर सिंह जब दोस्ती निभाता है तो अफसाने बन जाते हैं मगर दुश्मनी करता है तो इतिहास लिखे जाते है" आज भी सिने प्रेमियों के दिमाग में गूंजता रहता है। ‘बूलंदी’ में ‘ना तलवार की धार से ना गोलियों की बौछार से...'आज भी हमारे दिलों में गूंजता है।
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| ==नब्बे का दशक==
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| {{दाँयाबक्सा|पाठ=देखो मौत और जिंदगी इंसान का निजी मामला होता है। मेरी मौत के बारे में मेरे मित्र चेतन आनंद के अलावा और किसी को नहीं बताना। मेरा अंतिम संस्कार करने के बाद ही फ़िल्म उद्योग को सूचित करना।|विचारक=}}
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| नब्बे के दशक में राज कुमार ने फ़िल्मों मे काम करना काफ़ी कम कर दिया। इस दौरान राज कुमार की 'तिरंगा- 1992', 'पुलिस और मुजरिम इंसानियत के देवता- 1993', 'बेताज बादशाह- 1994', 'जवाब- 1995', 'गॉड और गन' जैसी फ़िल्में प्रदर्शित हुई। नितांत अकेले रहने वाले राज कुमार ने शायद यह महसूस कर लिया था कि मौत उनके काफ़ी करीब है इसीलिए अपने पुत्र पुरू राज कुमार को उन्होने अपने पास बुला लिया और कहा, "देखो मौत और जिंदगी इंसान का निजी मामला होता है। मेरी मौत के बारे में मेरे मित्र चेतन आनंद के अलावा और किसी को नहीं बताना। मेरा अंतिम संस्कार करने के बाद ही फ़िल्म उद्योग को सूचित करना।"
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| ==पुरस्कार==
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| राज कुमार ने 'दिल एक मंदिर' और 'वक़्त' के लिए फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार प्राप्त किया।
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| ==मृत्यु==
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| अपने संजीदा अभिनय से लगभग चार दशक तक दर्शकों के दिल पर राज करने वाले महान अभिनेता राज कुमार [[3 जुलाई]] 1996 के दिन इस दुनिया को अलविदा कह गए।<ref>{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/cinemaaza/cinema/memories/201_201_872.html |title=संवाद अदायगी के बेताज बादशाह: राज कुमार |accessmonthday=[[13 जून]] |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल. |publisher=जागरण याहू इंडिया |language=[[हिन्दी]] }}</ref>
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| {{प्रचार}}
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| }}
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| {{संदर्भ ग्रंथ}}
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
| <references/> | | <references/> |
| ==बाहरी कड़ियाँ== | | ==बाहरी कड़ियाँ== |
| | | *[http://www.imdb.com/name/nm0004660/ Rajkumar] |
| *[http://www.rajexpress.in/news/34044.aspx उजाले उनकी यादों के...राज कुमार] | |
| ==संबंधित लेख== | | ==संबंधित लेख== |
| {{अभिनेता}} | | {{अभिनेता}}{{दादा साहब फाल्के पुरस्कार}} |
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